Welcome to MVS Blog
उत्तर - परिचय
हिंदी साहित्य की विभिन्न विधाओं में कहानी विधा का भी अपना महत्त्वपूर्ण स्थान है। कथा-साहित्य में उपन्यास के साथ-साथ कहानी का भी नामोल्लेख है। हिंदी कहानियों का इतिहास भारत में सदियो पुराना है। प्राचीन काल से कहानियां भारत में बोली, सुनी और लिखी जाती है। प्रेमचंद, जैनेंद्र, फणीश्वरनाथ रेणु, मत्रु भंडारी, आदि हिंदी के प्रमुख कहानीकार हैं।
कहानी का शाब्दिक अर्थ है-
'कहना', इसी रूप में संस्कृत की 'कथ' धातु से कथा शब्द बना, जिसका अर्थ भी कहने के लिए प्रयुक्त होता है। कथ्य एक भाव है, जिसे प्रकट करने के लिए कथाकार अपने मस्तिष्क में एक रूपरेखा बनाता है और उसे एक साँचे में ढाल कर प्रस्तुत करता है, वही 'कथा' कहलाती है। इसे गल्प और आख्यायिका भी कहा जाता है। 'कहानी' शब्द अंग्रेजी के 'शॉर्ट स्टोरी' का समानार्थी है।
कहानी की परिभाषा
कहानी गद्य साहित्य की सबसे अधिक रोचक एवं लोकप्रिय विधा है, जो जीवन के किसी विशेष पक्ष का मार्मिक, भावनात्मक और कलात्मक वर्णन करती है। "हिन्दी गद्य की वह विधा है जिसमें लेखक किसी घटना, पात्र अथवा समस्या का क्रमबद्ध ब्यौरा देता है, जिसे पढ़कर एक समन्वित प्रभाव उत्पन्न होता है, उसे "कहानी" कहते हैं।"
दूसरे शब्दों में - "कहानी वह विधा है जो लेखक के किसी उद्देश्य किसी एक मनोभाव जैसे उसके चरित्र, उसकी शैली, उसका कथा-विन्यास, सब कुछ उसी एक भाव को पुष्ट करते हैं।"
कहानी पर विभिन्न परिभाषाएँ:-
जेम्स डब्ल्यू. लिन -
"किसी एक पात्र के जीवन में आने वाले किसी मोड़ का संक्षिप्त और नाटकीय ढंग से किया गया चित्रण ही कहानी है।"
मुंशी प्रेमचंद -
"कहानी ऐसी रचना है जिसमें जीवन के किसी एक अंग या किसी एक मनोभाव को प्रदर्शित करना ही लेखक का उद्देश्य रहता है। उसके चरित्र, उसकी शैली तथा उसका कथा विन्यास सब उसके एक भाव को पुष्ट करते हैं।"
हिंदी साहित्य में कहानी का स्वरूप
हिंदी साहित्य में कहानी का स्वरूप एक गतिशील और विकासशील विधा के रूप में उभर कर सामने आयी है।इसका प्रारंभ लोककथाओं और धार्मिक आख्यानों से हुआ, लेकिन साहित्यिक रूप में कहानी आधुनिक युग मेंही स्थापित हुई। समय, समाज, संस्कृति और लेखक की संवेदनाओं के अनुसार इसका स्वरूप लगातार परिवर्तितहोता रहा है।
हिंदी साहित्य में कहानी का विकास
1) प्रारंभिक युग में हिंदी कहानी का विकास :
हिंदी में आधुनिक कहानी की शुरुआत द्विवेदी युग से मानीजाती है। भारतेंदु युग और उससे पहले की रचनाएँ जैसे ब्रजभाषा की वाताएँ, राजस्थानी बातें, 'लतायफ' (रोचकबातें, मनोरंजक किस्से, या चुटकुले)आदि में कहानी के तत्त्व तो थे, पर वे आधुनिक शैली की नहीं थीं। 'रानीकेतकी की कहानी (1805) एक लंबी दास्तान थी, जो यथार्थ से दूर थी। 1860 के आसपास बुद्धिफलोदय, सूरजपुरकी कहानी, धरमसिंह का वृतांत जैसी शिक्षाप्रद कहानियाँ लिखी गईं, जो अधिकतर अनुवाद थीं।भारतेंदु युग में लेखकों का ध्यान नाटक, निबंध और उपन्यास पर था, कहानी पर नहीं। द्विवेदी युग में भी अनुवादऔर गद्य परिष्कार को प्राथमिकता मिली। प्रेमचंद से पहले की कहानियाँ तीन शैलियों में थीं- ऐतिहासिक,आत्मकथात्मक, यात्रा शैली। इस युग में बंगमहिला, पारसनाथ त्रिपाठी और गिरिजाकुमार घोष ने बांग्ला औरअंग्रेजी कहानियों का अनुवाद किया।
2) प्रेमचंद - प्रसाद युग :
प्रेमचंद और जयशंकर प्रसाद हिंदी कहानी के दो बड़े लेखक थे। इन दोनों के समयसे हिंदी में आधुनिक और सच्ची कहानियों की शुरुआत हुई। पहले कहानियाँ काल्पनिक होती थीं, लेकिन अबकहानियाँ वास्तविक जीवन और समाज से जुड़ने लगीं।
जयशंकर प्रसाद - प्रसाद जी कवि, नाटककार और कहानीकार थे। उनकी कहानियाँ कल्पनाशील,भावनाप्रधान और कलात्मक होती थीं। उन्होंने 'आकाशदीप', 'आंधी', 'छाया' जैसी कहानियाँ लिखीं। वेभारतीय संस्कृति के प्रेमी थे और उनकी कहानियों में गहराई और आदर्शवाद होता था।
प्रेमचंद - प्रेमचंद आधुनिककाल के यथार्थवादी लेखक थे। उन्होंने साधारण लोगों के दुख-सुख और समाजकी समस्याओं को कहानी में दिखाया। उनकी प्रसिद्ध कहानियाँ हैं- 'पूस की रात', 'कफन', 'ईदगाह', 'नमकका दरोगा' आदि। उनकी भाषा सरल और शैली साफ होती थी।
अन्य लेखक - इस युग में प्रेमचंद और प्रसाद के साथ-साथ सुदर्शन, कोषिक, वंशीधर शुक्ल, भगवतीप्रसादवाजपेयी, रायकृष्णदास, गोविंदवल्लभ पंत, वृंदावनलाल वर्मा आदि ने भी अच्छी कहानियाँ लिखीं। इन सभीने अलग-अलग विषयों पर- जैसे पारिवारिक जीवन, समाज, इतिहास, मनोविज्ञान आदि पर कहानियाँ लिखीं।
3) वर्तमान युग :
तीन पीढ़ियाँ : आजकल हिंदी कहानी लेखन में एक ही समय में तीन पीढ़ियाँ सक्रिय हैं।प्रेमचंद के बाद कई कहानीकारों ने इस क्षेत्र में योगदान दिया है। पहली पीढ़ी के कहानीकारों में हैं- जैनेन्द्र,जिनकी कहानियाँ 'फांसी', 'वातायन', 'पाजेब' आदि प्रमुख हैं, यशपाल-'वो दुनिया', 'ज्ञानदान', इलाचंद्र जोशी-आहुति', 'चित्र का शीर्षक' आदि। इनकी कहानियाँ मनोवैज्ञानिक और यथार्थवादी होती थीं। इन्होंने समाज औरव्यक्ति के मन की गहराइयों को उजागर किया। दूसरी पीढ़ी में आए। अज्ञेय, भगवतीचरण वर्मा, चंद्रगुप्तविद्यालंकार आदि। इनकी कहानियाँ सामाजिक, राजनीतिक और मनोवैज्ञानिक विषयों को लेकर लिखी गईं।तीसरी पीढ़ी में कहानीकारों ने नई दृष्टि अपनाई। कहानी अब केवल कथानक या पात्रों की बात नहीं रही, बल्किभावनाओं, विचारों और सामाजिक यथार्थ को ज्यादा महत्व दिया जाने लगा।
निष्कर्ष
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि हिंदी कहानी का उद्भव तथा विकास में सामाजिक ऐतिहासिक रूप भी देखनेको मिलता है। इसमें सामाजिक कुरीतियों जैसे दहेज प्रथा, बाल विवाह, भ्रष्टाचार, अंधविश्वास आदि को दूर करनेका प्रयास किया गया है। इसमें हम निष्कर्ष रूप से कह सकते हैं कि इतने वर्षों में हिंदी कहानी में इतना नहींलिखा गया जितना कि अब आने वाले समय में लिखा जा रहा है। यह कहानी के उठे हुए स्तर का परिणाम है।
2 Response