प्रश्न 1 - पितृसत्ता की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का वर्णन कीजिए। 'सिल्विया वाल्बी' पितृसत्ता को किस प्रकार परिभाषित करती हैं?

May 12, 2025
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प्रश्न 1 - पितृसत्ता की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का वर्णन कीजिए। 'सिल्विया वाल्बी' पितृसत्ता को किस प्रकार परिभाषित करती हैं?

'सिल्विया वाल्वी' पितृसत्ता को किस प्रकार परिभाषित करती हैं? और पितृसत्ता को किन छह संरचनाओं के संगठन के रूप में देखती हैं, बताइए।

अथवा

ब्रिटिश समाजशास्त्री 'सिल्विया वाल्वी' द्वारा वर्णित पितृसत्ता की संरचनाओं के संगठन की चर्चा करें।

उत्तर - परिचय

पितृसत्ता की शुरुआत और विकास सबसे पहले मेसोपोटामिया सभ्यता में देखने को मिलती है। इसके बाद यह विचार धार्मिक ग्रंथों के माध्यम से और अधिक फैलता गया। प्रसिद्ध ब्रिटिश समाजशास्त्री सिल्विया वाल्वी ने अपनी पुस्तक “Theorizing Patriarchy" में पितृसत्ता की छः संरचनाओं का वर्णन किया। इस व्यवस्था के विरुद्ध में कई अन्य समाजशास्त्री / विचारक भी सामने आए। 

पितृसत्ता का अर्थ:

पितृसत्ता (Patriarchy)

एक सामाजिक व्यवस्था है, जिसमें पुरुषों का वर्चस्व होता है और वे परिवार, समाज, राजनीति, अर्थव्यवस्था व संस्कृति में निर्णय लेने की शक्ति रखते हैं। सरल शब्दों में हम यह कह सकते हैं की यह एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें पुरुषों को महिलाओं की तुलना में अधिक शक्ति और अधिकार प्राप्त होते हैं।

पितृसत्ता पर विभिन्न विचारकों के विचार:

फ्रेडरिक एंगेल्स की पुस्तक "The Origin of the Family अनुसार :

पितृसत्ता का उदय निजी संपत्ति के विकास के साथ हुआ, जिससे महिलाओं की स्थिति कमजोर हुई।

गेरडा लर्नर ने अपनी पुस्तक 'द क्रिएशन ऑफ़ पैटिआकी में लिखा :

"पितृसत्ता एक ऐतिहासिक निर्माण है, न कि एक प्राकृतिक या अपरिहार्य स्थिति।

पितृसत्ता की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

पितृसत्ता का उल्लेख विभिन्न प्राचीन सभ्यताओं में भी देखने मिला है। जो यह स्पष्ट करता है की पितृसत्तात्मक मानदंड प्राचीन समय से ही चले आ रहे है :-

1. प्राचीन मेसोपोटामिया में पितृसत्ता -

प्राचीन मेसोपोटामिया में पितृसत्ता की गहरी जड़ें थीं। लगभग 1754 ईसा पूर्व बनी हम्मुराबी की संहिता ने पुरुषों के अधिकार तय किए और महिलाओं को कमजोर स्थिति में रखा। इसमें नियमों के जरिए पुरुषों का कानूनी और आर्थिक दबदबा स्थापित किया गया। उदाहरण के लिए, इस संहिता में कहा गया था कि यदि किसी महिला पर अवैध संबंध का आरोप लगे, तो उसे डुबो दिया जा सकता है। यह दिखाता है कि उस समय महिलाओं के जीवन और व्यवहार पर कड़ा नियंत्रण था।

2. प्राचीन ग्रीस में पितृसत्ता -

प्राचीन ग्रीस में पितृसत्ता का प्रभाव घर और समाज दोनों जगह दिखता था। एथेंस का लोकतंत्र, जिसे महान माना जाता है, महिलाओं को राजनीति से दूर रखता था और उन्हें सिर्फ घर संभालने और बच्चों को जन्म देने तक सीमित करता था। पुरुष सार्वजनिक जीवन और बौद्धिक कामों में सक्रिय रहते थे। दार्शनिक अरस्तू ने लिखा कि महिलाएँ पुरुषों से शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर होती हैं, जिससे पुरुषों की श्रेष्ठता को सही ठहराया गया।

3. प्राचीन रोम में पितृसत्ता -

प्राचीन रोम में पितृसत्ता बहुत मजबूत थी। पिता को अपने परिवार पर पूरा नियंत्रण मिलता था, यहाँ तक कि वह अपने बच्चों के जीवन और मृत्यु का फैसला भी कर सकता था। महिलाओं को कभी-कभी कुछ कानूनी अधिकार मिलते थे, लेकिन वे हमेशा अपने पिता, पति या किसी अन्य पुरुष रिश्तेदार के अधीन रहती थीं।

4. धर्म में पितृसत्ता -

धार्मिक ग्रंथों और परंपराओं ने भी पितृसत्ता को मजबूत किया। कई धर्मों में पुरुषों को आध्यात्मिक और नैतिक नेता माना गया, जबकि महिलाओं की भूमिका घर और सहायक कार्यों तक सीमित रही। उदाहरण के लिए, यहूदी-ईसाई परंपरा में परिवार और धार्मिक मामलों में पुरुषों के नेतृत्व को महत्वपूर्ण माना गया, जिसे उनके धार्मिक ग्रंथों में भी दिखाया गया है।

'सिल्विया वाल्बी' द्वारा पितृसत्ता की परिभाषा:

सिल्विया वाल्वी के अनुसार, पितृसत्ता एक सामाजिक व्यवस्था है, जिसमें पुरुषों का महिलाओं पर अधिकार होता है और वे उनका शोषण करते हैं। उन्होंने पितृसत्ता और पूँजीवाद को अलग व्यवस्थाएँ बताया, जो कभी साथ तो कभी विरोध में रहती हैं। युद्ध के दौरान जब महिलाएँ कार्यक्षेत्र में आईं, तब इन दोनों के हित अलग हो गए। वाल्बी ने पितृसत्ता की छह संरचनाओं की पहचान की और कहा कि महिला-पुरुष असमानता कई स्तरों पर फैली होती है।

सिल्विया वाल्बी के अनुसार पितृसत्ता की छह संरचनाओं का संघठन:

1. परिवार में उत्पादन संबंध -

महिलाओं द्वारा किए जाने वाले घरेलू काम, जैसे खाना बनाना, बच्चों की देखभाल और सफाई को महत्व नहीं दिया जाता, जबकि ये काम बहुत जरूरी होते हैं।

2. सवेतन कार्य -

श्रम बाजार में महिलाओं को कम महत्त्वपूर्ण और कम वेतन वाले काम दिए जाते हैं। उन्हें पुरुषों की तुलना में कम वेतन मिलता है और कई बड़े अवसरों से वंचित रखा जाता है।

3. पितृसत्तात्मक राज्य -

वाल्बी का मानना है कि सरकार की नीतियाँ और व्यवस्थाएँ पुरुषों के हितों को प्राथमिकता देती हैं, जिससे महिलाओं को बराबरी का स्थान नहीं मिल पाता।

4. पुरुष हिंसा -

महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा और अन्य प्रकार की हिंसा को एक व्यक्तिगत समस्या मानने के बजाय इसे एक सामाजिक व्यवस्था के रूप में देखा जाता है। कानून होने के बावजूद, यह समस्या आज भी बनी हुई है।

5. काम-वासना में भेदभाव -

समाज में पुरुषों और महिलाओं के यौन व्यवहार को लेकर अलग-अलग नियम होते हैं। पुरुषों को ज्यादा स्वतंत्रता मिलती है, जबकि महिलाओं पर कई तरह की पाबंदियां लगाई जाती हैं।

6. पितृसत्तात्मक सांस्कृतिक संस्थाएँ -

मीडिया, धर्म और शिक्षा जैसी संस्थाएँ पितृसत्ता को मजबूत बनाती हैं। वे महिलाओं की छवि और उनके आचरण को नियंत्रित करने वाले मानदंड तय करती हैं। वाल्बी इसे दो रूपों में देखती हैं -

  • निजी पितृसत्ता
  • सार्वजनिक पितसत्ता

 निजी पितृसत्ता -

इस व्यवस्था में महिलाओं पर परिवार के पुरुष सदस्यों, जैसे -पिता, पति या भाई का पूर्ण नियंत्रण होता है। महिलाओं को घरेलू कार्यों तक सीमित रखा जाता है और उन्हें सार्वजनिक जीवन, जैसे शिक्षा, नौकरी या राजनीति में भाग लेने की अनुमति नहीं दी जाती। 20वीं शताब्दी से पहले, पश्चिमी समाजों में भी महिलाएँ घर की चारदीवारी तक ही सीमित थीं और पूरी तरह पुरुषों पर निर्भर रहती थीं।

सार्वजनिक पितृसत्ता -

इसमें महिलाएँ कार्यस्थल, राजनीति और समाज के अन्य क्षेत्रों में भाग तो ले सकती हैं, लेकिन फिर भी वे असमानता का शिकार रहती हैं। उन्हें संपत्ति, निर्णय लेने की शक्ति और सामाजिक सम्मान से वंचित रखा जाता है। पहले के समय में कई महिलाओं को विवाह के बाद नौकरी छोड़नी पड़ती थी, और वे उच्च पदों तक नहीं पहुँच पाती थीं।

निष्कर्ष -

पितृसत्ता सदियों से समाज में मौजूद रही है और विभिन्न सभ्यताओं में इसे अलग-अलग रूपों में देखा गया है। सिल्विया वाल्बी ने इसकी छह संरचनाएँ बताई, जो परिवार, श्रम, राज्य, हिंसा, भेदभाव और संस्कृति से जुड़ी हैं। दूसरे विश्व युद्ध के बाद महिलाओं की स्थिति में सुधार हुआ, लेकिन पितृसत्ता पूरी तरह खत्म नहीं हुई और नए रूपों में बनी हुई है।

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