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उत्तर - परिचय
आचार्य रामचंद्र शुक्ल हिंदी निबंध परंपरा के युग प्रवर्तक है जिनका "लोभ और प्रीति" नामक निबंध सुप्रसिद्ध है, जिसे चिंतामणी निबंध संकलन से लिया गया है। यह शुक्ल जी का मनोविकारपरक निबंध है, जिसमें विचार किया है कि लोभ और प्रीति ऐसे भाव है जिनका संबंध मनुष्य के जीवन व्यवहार से बहुत गहरा है।
लोभ और प्रीति' का अर्थ:
लोभ : किसी प्रकार का सुख या आनंद देने वाली वस्तु के संबंध में मन की ऐसी स्थिति जिसमें उस वस्तु की कमी का एहसास होते ही उसकी प्राप्ति, साथ या सुरक्षा की तीव्र इच्छा उत्पन्न हो जाती है, लोभ कहलाती है।
प्रीति : किसी विशेष वस्तु या व्यक्ति के प्रति होने पर लोभ सात्त्विक (पवित्र) रूप को प्राप्त करता है, जिसे प्रीति या प्रेम कहते हैं।
रामचंद्र शुक्ल के अनुसार - “किसी वस्तु के प्रति मन में जो ललक होती है वह लोभ है और किसी व्यक्ति विशेष की चाह प्रीति है।“
लोभ और प्रीति निबंध
लोभियों पर व्यंग्य का बाण चलाते हुए लिखते है कि "मोटे आदमियों! तुम ज़रा सा दुबले हो जाते, अपने अंदेशे से ही सही-तो न जाने कितनी ठठरियों पर माँस चढ़ जाता।" यहाँ लेखक ने सामाजिक शोषण पर गहरा व्यंग्य करते हुए अमीर-ग़रीब का भेद स्पष्ट किया है। यह व्यंग्य बाण उन संपन्न अत्याचारियों के लिए है जो लोभ में आकर ग़रीब, लाचार लोगों का शोषण करते हैं।
“लोभ और प्रीति” में शुक्ल जी ने लोभ के दो भेद बताए हैं - एक सामान्य और दूसरा विशिष्ट।
1. सामान्य लोभ : उनके अनुसार सामान्य लोभ के अंतर्गत "अच्छा खाना, अच्छा कपड़ा, अच्छा घर तथा धन” को रखा गया है, जो व्यक्ति की सामान्य जरूरतों के अंतर्गत आते है व इस तरह का लोभी व्यक्ति सामाजिक निंदा का पत्र नहीं हो सकता।
2. सामान्य लोभ : उनके अनुसार सामान्य लोभ के अंतर्गत "अच्छा खाना, अच्छा कपड़ा, अच्छा घर तथा धन” को रखा गया है, जो व्यक्ति की सामान्य जरूरतों के अंतर्गत आते है व इस तरह का लोभी व्यक्ति सामाजिक निंदा का पत्र नहीं हो सकता।
“लोभ और प्रीति” में शुक्ल जी ने प्रीति के दो क्षेत्र बताए हैं - वैयक्तिक क्षेत्र तथा सामाजिक क्षेत्र।
1. वैयक्तिक क्षेत्र : इसके अंतर्गत प्रेम का प्रभाव सीमित रूप में रहता है, जिसे शुक्ल जी ने एकांतिक प्रेम कहा है। एकांतिक प्रेम का क्षेत्र समाजिकता और पारिवारिक जीवन से भिन्न रहता है। इसके उदाहरणस्वरूप शुक्ल जी ने “कृष्ण के प्रति गोपियों के प्रेम” को रेखांकित किया है। वे कहते हैं कि भक्ति मार्ग में आने वाले लगभग सभी प्रेम 'एकांतिक' ही हैं।
2. सामाजिक क्षेत्र : सामाजिक क्षेत्र में प्रेम का प्रभाव सामाजिक स्तर पर होता है जो जनहितकारी होता है। यह व्यापक होता है तथा साहस और वीरता से भरा रहता है क्योंकि इसमें कर्तव्यनिष्ठा, दृढ़ता, धीरता निहित होती है। यह प्रेम का दूसरा रूप है जो लोक जीवन से जुड़ा रहता है तथा लोक जीवन के मध्य घटित होता है। यहाँ शुक्ल जी ने 'राम' के द्वारा प्रेम की आदर्श कल्पना की है।
निष्कर्ष:
'लोभ और प्रीति' आचार्य रामचंद्र शुक्ल का एक मनोविकार संबंधी निबंध है। इस निबंध में उन्होंने मानवीय भावों 'लोभ' और 'प्रीति' का विस्तृत विश्लेषण किया है। लोभ और प्रीति ऐसे मनोभाव है जिनका प्रत्यक्ष व परोक्ष संबंध मनुष्य जीवन के व्यवहार से है। इसी परिप्रेक्ष्य को उन्होंने निबंध में प्रस्तुत किया। जीवन के प्रति अनुराग, कर्म पर बल और स्वदेश के प्रति प्रेम का भाव, उन्होंने लोभ और प्रीति निबंध में प्रतिपादित किया।
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