Welcome to MVS Blog
अथवा
औद्योगीकरण ने उन्नीस्वीं सदी के यूरोप में वर्ग-संरचना, परिवार और स्त्रियों के कार्यों को किस प्रकार प्रभावित किया ?
उत्तर - परिचय
18वीं सदी में शुरू हुई पहली औद्योगिक क्रांति ने मशीनों के उपयोग से उत्पादन की दिशा बदली। इसके बाद 19वीं सदी के बाद में तकनीकी खोजों और ऊर्जा स्रोतों के नवाचार ने उद्योगों को और अधिक गति दी। विद्युत, इस्पात, और परिवहन के विकास ने समाज में आर्थिक गतिविधियों को बढ़ाया और जीवन के अनेक क्षेत्रों में परिवर्तन लाया। इसी दौर में सामाजिक ढांचे, पारिवारिक संरचना और स्त्रियों की भूमिका में भी व्यापक बदलाव दिखाई देने लगे।
द्वितीय औद्योगिक क्रांति (1870-1914) : वह क्रांति जो विद्युत ऊर्जा, स्टील (बेसेमर प्रक्रिया), पेट्रोलियम और मशीन टूल्स में हुए नवाचारों से जुड़ी थी, जिससे उत्पादन तेज़ और कुशल हुआ, दूसरी औद्योगिक क्रांति/तकनीकी क्रांति कहलाती है। इसकी शुरुआत 1870 में हुई। यह क्रांति ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, अमेरिका, जापान, रूस और इटली में फैली।
द्वितीय औद्योगिक क्रांति के प्रमुख कारण
1. विद्युत ऊर्जा का नवाचार और उपयोग : 1879 में थॉमस अल्वा एडिसन ने विद्युत बल्ब का आविष्कार किया। इससे बिजली का उपयोग फैक्ट्रियों और घरों में बढ़ा। विद्युत ऊर्जा ने मशीनों को तेज और बेहतर बनाया, जिससे उद्योगों में उत्पादन बढ़ा। रात में भी काम संभव हुआ। इससे उद्योगों की क्षमता और उत्पादकता में बड़ा सुधार आया। इससे द्वितीय औद्योगिक क्रांति को नई ऊर्जा मिली।
2. इस्पात उद्योग का विकास : 1856 में हेनरी बेसेमर ने इस्पात बनाने की तकनीक विकसित की। इससे सस्ता, मजबूत और टिकाऊ इस्पात तैयार हुआ। इस्पात की बढ़ती उपलब्धता ने रेलवे, पुल, जहाज और भवन निर्माण में क्रांति ला दी। इस नवाचार से भारी उद्योगों को मजबूत कच्चा माल मिला, जिससे औद्योगिकीकरण तेजी से बढ़ा और बड़े निर्माण कार्य संभव हुए।
3. परिवहन और संचार में सुधार का विस्तार: 19वीं सदी में रेलवे नेटवर्क तेजी से फैला। 1866 में पहली अटलांटिक टेलीग्राफ केबल बिछी। इससे माल और सूचनाओं का तेज़ आदान-प्रदान संभव हुआ। सस्ते और तेज परिवहन से व्यापार बढ़ा। संचार में सुधार से वैश्विक संपर्क बढ़े और उद्योगों को नई ताकत मिली। इससे आर्थिक विकास और वैश्वीकरण को गति मिली।
4. वैज्ञानिक और प्रौद्योगिकीय प्रयोगशालाओं की स्थापना: 19वीं सदी के अंत में बेल लैब्स जैसी प्रयोगशालाओं में नए आविष्कार और खोजें हुईं। इनसे उद्योगों को नई मशीनें और तकनीकें मिलीं। उत्पादन तेज और बेहतर हुआ। वैज्ञानिक शोध ने नवाचार को बढ़ावा दिया। इससे द्वितीय औद्योगिक क्रांति को गति और नई दिशा मिली।
5. बाजार विस्तार और उपभोक्तावाद से बढ़ता उत्पादन : औद्योगिक उत्पाद सस्ते होने से बाजार और उपभोक्तावाद तेजी से बढ़ा। लोगों की खरीदने की क्षमता बढ़ने पर वस्तुओं की मांग भी बढ़ी। मांग पूरी करने के लिए बड़े पैमाने पर उत्पादन हुआ। इससे उत्पादन, रोजगार और व्यापार में तेजी आई। यह द्वितीय औद्योगिक क्रांति का प्रमुख कारण बना।
6. श्रमिक वर्ग व सामाजिक बदलाव से शहरीकरण: इस दौरान उद्योगों में बड़े पैमाने पर मजदूरों की जरूरत पड़ी। इससे ग्रामीण लोग शहरों की ओर आने लगे और श्रमिक वर्ग का विस्तार हुआ। फैक्ट्रियों के इर्द-गिर्द नए शहर बसने लगे। इस प्रवास और सामाजिक बदलाव ने शहरीकरण को तेज किया, जो द्वितीय औद्योगिक क्रांति का एक प्रमुख कारण बना।
द्वितीय औद्योगिक क्रांति के प्रभाव
1. आर्थिक प्रभाव : द्वितीय औद्योगिक क्रांति से बड़े उद्योग, बैंकिंग, और पूँजी निवेश में तेजी आई। उत्पादन और निर्यात बढ़े। अमेरिका, जर्मनी और जापान नई औद्योगिक शक्तियाँ बनकर उभरे।
2. सामाजिक प्रभाव : श्रमिक वर्ग का विस्तार हुआ, शहरीकरण तेजी से बढ़ा। जीवनशैली में परिवर्तन आया,सामाजिक असमानता बढ़ी। ट्रेड यूनियन और समाजवादी आंदोलनों की शुरुआत हुई।
3. राजनीतिक प्रभाव : औद्योगिक पूंजीपति शक्तिशाली बने, सरकारों पर प्रभाव बढ़ा। श्रमिकों के अधिकारों को लेकर कानून बने। समाजवाद और मार्क्सवाद जैसी विचारधाराएँ उभरने लगीं।
4. तकनीकी प्रभाव : बिजली, स्टील, टेलीफोन, रेडियो और रासायनिक उद्योगों में क्रांति हुई। उत्पादन तेज और सस्ता हुआ। वैज्ञानिक शोध और तकनीकी नवाचारों का युग प्रारंभ हुआ।
औद्योगिकीकरण का 19वीं सदी में वर्ग-संरचना, परिवार और स्त्रियों पर प्रभाव
1. वर्ग संरचना पर प्रभाव : औद्योगीकरण ने समाज की वर्ग संरचना बदल दी। अमीर पूंजीपति वर्ग ने धन और संसाधनों पर कब्जा किया, जबकि गरीब मजदूर वर्ग का शोषण बढ़ा। नया मध्यम वर्ग भी उभरा, जिसमें नौकरीपेशा लोग शामिल थे। इससे समाज दो मुख्य वर्गों में बंट गया और श्रमिकों ने बेहतर अधिकारों के लिए आंदोलन शुरू किए।
2. परिवार पर प्रभाव : द्वितीय औद्योगिक क्रांति से पहले परिवार संयुक्त और पारंपरिक था, जहाँ बच्चे कमाई का साधन माने जाते थे। औद्योगिकीकरण के दौरान आर्थिक और सामाजिक बदलाव हुए, जिससे बच्चे अब खर्च समझे जाने लगे। जन्म दर में कमी आई, जीवन स्तर सुधरा और शिशु मृत्यु दर कम हुई। इसने पारंपरिक परिवार व्यवस्था और सोच में महत्वपूर्ण बदलाव किए।
3. स्त्रियों के कार्यों पर प्रभाव : 19वीं सदी में औद्योगीकरण से पहले महिलाएं घरेलू कार्यों तक सीमित थीं, लेकिन फैक्ट्रियों और सेवा क्षेत्रों में श्रमिक मांग के कारण वे कपड़ा, धातु जैसे उद्योगों में काम करने लगीं। द्वितीय औद्योगिक क्रांति में महिलाएं टेलीफोन ऑपरेटर, शिक्षिका, नर्स बनीं। शिक्षा के प्रसार से आत्मनिर्भरता बढ़ी और उन्होंने समानता, मताधिकार के लिए नारीवादी आंदोलन चलाए।
मूल्यांकन
द्वितीय औद्योगिक क्रांति ने तकनीकी और आर्थिक विकास को तेज किया, जिससे उत्पादन बढ़ा और नए उद्योग उभरे। इसके सामाजिक प्रभावों में वर्ग संरचना में बदलाव, पारंपरिक परिवार व्यवस्था में परिवर्तन और महिलाओं के कार्यक्षेत्र का विस्तार शामिल है। हालांकि, यह बदलाव सामाजिक असमानता और शहरीकरण की चुनौतियां भी लेकर आया। इसलिए, इसका प्रभाव सकारात्मक आर्थिक विकास के साथ-साथ सामाजिक संघर्ष और बदलावों का मिश्रण था।
निष्कर्ष
द्वितीय औद्योगिक क्रांति ने आर्थिक और तकनीकी प्रगति के साथ समाज में महत्वपूर्ण बदलाव लाए। इसने नएउद्योगों को जन्म दिया, वर्ग संरचना में परिवर्तन किया, परिवार की पारंपरिक व्यवस्था को बदला और स्त्रियों के कार्यक्षेत्र का विस्तार किया। इससे सामाजिक जीवन और आर्थिक विकास दोनों में सकारात्मक उन्नति हुई।
0 Response