प्रश्न 1- भारतीय संविधान की मूल विशेषताओं की विवेचना कीजिए ।

May 21, 2025
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प्रश्न 1- भारतीय संविधान की मूल विशेषताओं की विवेचना कीजिए ।

उत्तर - परिचय

भारत का संविधान, भारत का सर्वोच्च विधान है जो संविधान सभा द्वारा 26 नवम्बर 1949 को पारित हुआ तथा 26 जनवरी 1950 से प्रभावी (लागू) हुआ। किसी भी देश को गणराज्य बनाने के लिए संविधान की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। संविधान द्वारा सम्पूर्ण देश की शासन व्यवस्था को नियंत्रित किया जाता है।

संविधान: संविधान नियमों, उपनियमों का एक ऐसा लिखित दस्तावेज होता है, जिसके अनुसार सरकार एवं देश का संचालन किया जाता है। यह देश की राजनीतिक व्यवस्था का बुनियादी ढाँचा निर्धारित करता है। संविधान देश की विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका की स्थापना, उनकी शक्तियों तथा दायित्वों का सीमांकन एवं जनता तथा राज्य के मध्य संबंधों का विनियमन (Regulation) करता है। प्रत्येक संविधान, देश के आदर्शों, उद्देश्यों व मूल्यों का दर्पण होता है।

भीमराव आंबेडकर संविधान के ड्राफ्टिंग समिति के अध्यक्ष थे। इसी वजह से उन्हें संविधान का निर्माता भी कहा जाता है, पर भारतीय संविधान को लिखने वाले शख्स प्रेम बिहारी नारायण रायजादा थे, उन्होंने अपने हाथ से संविधान को लिखा था

भारतीय संविधान की मूल विशेषताएं निम्नलिखित हैं:

1. लिखित संविधान

भारतीय संविधान एक लिखित संविधान है। भारत का संविधान एक संविधान सभा ने एक निश्चय समय तथा योजना के अनुसार बनाया था इसलिए यह लिखित संविधान है इस दृष्टिकोण से भारतीय संविधान, अमेरिकी संविधान के समुतुल्य है। जबकि ब्रिटेन और इजराइल का संविधान अलिखित है।

2. विस्तृत संविधान

भारत का संविधान दुनिया में सबसे विस्तृत संविधान है क्योंकि भारतीय संविधान में विभिन्न प्रावधानों को काफी सहज तरीके से विस्तृत रूप में लिखा गया है, ताकि संविधान का पालन करने के दौरान शासन प्रशासन को अधिक कठिनाइयों का सामना ना करना पड़े। यही कारण है कि मूल रूप से भारतीय संविधान में कुल 395 अनुच्छेद (22 भागों में विभाजित) और 8 अनुसूचियाँ थी, किंतु विभिन्न संशोधनों के परिणामस्वरूप वर्तमान में इसमें कुल 448 अनुच्छेद (25 भागों में विभाजित) और 12 अनुसूचियां हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान में 7 अनुच्छेद, चीन के में 138, जापान के में 103 और कनाडा के संविधान में 107 अनुच्छेद हैं।

एच. वी. कामथ ने इसकी विशालता के सम्बन्ध में कहा था, "हमें इस बात का गर्व है कि हमारा संविधान विश्व का सबसे विशालकाय संविधान है।"

डॉ. जैनिंग्स के अनुसार, "भारतीय संविधान विश्व का सर्वाधिक व्यापक संविधान है।"

3. लचीलेपन और कठोरता का मिश्रण

भारतीय संविधान लचीलेपन और कठोरता का मिश्रण हैं। भारतीय संविधान के लचीले होने का अर्थ यह है कि भारतीय संविधान के कुछ प्रावधान ऐसे हैं, जिन्हें भारतीय संसद साधारण बहुमत के माध्यम से संशोधित कर सकती है। उदाहरण के लिए, राज्यों के नाम, राज्यों की सीमा इत्यादि।

जबकि भारतीय संविधान के कठोर होने का अर्थ यह है कि इस संविधान के कुछ ऐसे प्रावधान भी हैं, जिन्हें संशोधित करना भारतीय संसद के लिए आसान नहीं होता है। इन प्रावधानों के लिए न सिर्फ संसद के दोनों सदनों में विशेष बहुमत की आवश्यकता होती है, बल्कि देश के आधे राज्यों के विधान मंडल के समर्थन की आवश्यकता भी होती है। देश की संघीय व्यवस्था से संबंधित तमाम प्रावधान इसी प्रक्रिया के माध्यम से संशोधित किए जा सकते हैं। इस प्रकार भारतीय संविधान लचीलेपन और कठोरता का सुंदर मिश्रण है।

4. समाजवादी राज्य

समाजवादी अर्थात यह अपने सभी नागरिकों के लिए सामाजिक और आर्थिक समानता सुनिश्चित करता है। इससे यह भी संकेत मिलता है कि भारत सभी रूपों में शोषण के खिलाफ है और अपने सभी नागरिकों के लिए आर्थिक न्याय में विश्वास रखता है। 1976 में पारित 42वें संविधान संशोधन द्वारा संविधान की प्रस्तावना में समाजवादी शब्द जोड़ दिया गया है, जो संविधान के मूल स्वरूप में नही था। इसका उद्देश्य सम्पूर्ण समाज में आर्थिक, राजनीतिक, आधिकारिक दृष्टि से समानता स्थापित करना होता है। हालांकि भारतीय संविधान पूर्णरूप से समाजवादी व्यवस्था पर जोर देता है और न ही पूँजीवादी प्रवृत्तियों को सहारा देता है। यह दोनो के स्वरूपों के मध्य का मार्ग अपनाता है।

5. मौलिक अधिकार और मौलिक कर्तव्य

मौलिक अधिकार और मौलिक कर्तव्य, संविधान की सबसे महत्वपूर्ण विशेषताएं हैं। वे अधिकार जो लोगों के जीवन के लिये अति-आवश्यक या मौलिक समझे जाते हैं उन्हें मूल अधिकार (fundamental rights) कहा जाता है। भारतीय संविधान के भाग- III में निहित, मौलिक अधिकार भारत के संविधान द्वारा प्रदान किये गए बुनियादी मानवाधिकार है। छह मौलिक अधिकारों में समानता का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, शोषण के खिलाफ अधिकार, धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार, सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार और संवैधानिक उपचार का अधिकार शामिल हैं।

भारतीय संविधान में मौलिक कर्तव्य नैतिक दायित्वों का एक समूह है, जिसका पालन सभी भारतीय नागरिकों को करना होता है। मौलिक कर्त्तव्य सोवियत संघ के संविधान से लिया गया था। स्वर्ण सिंह समिति की रिपोर्ट के आधार पर 1976 में 42वें संविधान संशोधन द्वारा संविधान में भाग 4-क तथा अनुच्छेद 51-क को जोड़कर 10 मूल कर्तव्यों को शामिल किया गया।

6. लोकतांत्रिक गणराज्य 

भारत के संविधान की प्रस्तावना में भारत को एक लोकतांत्रिक गणराज्य बनाने का लक्ष्य घोषित किया गया है। इसका अर्थ यह है कि भारत एक गणराज्य होगा और उसके राज्याध्यक्ष का चुनाव लोकतांत्रिक तरीके से किया जाएगा। गणराज्य होने का अर्थ यह है कि भारत का कोई सामान्य व्यक्ति भी अपनी योग्यता के दम पर देश के सर्वोच्च पद राष्ट्रपति तक पहुंच सकता है। यानी राष्ट्रपति बनने के लिए देश के किसी भी नागरिक को नहीं रोका जा सकता है। हालांकि संसद इसके लिए कुछ सामान्य शर्तें निर्धारित कर सकती है।

7. सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार

भारतीय संविधान द्वारा भारत में संसदीय शासन प्रणाली की व्यवस्था की गयी है। संसदीय शासन प्रणाली के अन्तर्गत सरकार के गठन जनता के प्रत्यक्षतः निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा किया जाता है। प्रतिनिधियों का चुनाव वस्यक मताधिकार के आधार पर किया जाता है। संविधान में कही भी जाति, धर्म, लिंग शिक्षा, क्षेत्र, भाषा, व्यवसाय आदि के आधार पर मताधिकार देने में कोई भेदभाव नही किया गया है। वयस्क मताधिकार की उम्र पहले तो 21 वर्ष थी, परन्तु 1989 में 61वें संविधान संशोधन द्वारा उम्र घटाकर 18 वर्ष कर दी गई है।

8. स्वतंत्र न्यायपालिका

भारतीय संविधान में एक स्वतंत्र न्यायपालिका का प्रावधान है, न्यायपालिका की स्वतंत्रता का अर्थ है कि न्यायपालिका सरकार के अन्य अंगों (विधायिका और कार्यपालिका) से स्वतन्त्र होगी । जिससे न्यायाधीश निष्पक्ष न्याय दें सके ।

निष्कर्ष

भारतीय संविधान एक उल्लेखनीय दस्तावेज़ है जो एक विविध और जटिल राष्ट्र की आकांक्षाओं को दर्शाता है। यह न्याय, समानता और स्वतंत्रता के सिद्धांतों का प्रतीक है और शासन और व्यक्तिगत अधिकारों के लिए एक मजबूत ढांचा प्रदान करता है। अपनी लंबाई और जटिलता के बावजूद, संविधान समय की कसौटी पर खरा उतरा है और अपने मूल्यों को बनाए रखते हुए देश की बदलती जरूरतों के अनुरूप ढल गया है।

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