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अथवा
अंतर्राष्ट्रीय संबंध का उद्भव एवं विकास का वर्णन कीजिए।
उत्तर – परिचय
अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध शब्द राष्ट्रों के आपसी सम्बन्धों के सब पहलुओं का वर्णन करता है, चाहे वे राजनीतिक हों या गैर-राजनीतिक, शान्तिमय हों या युद्धमय, आर्थिक हों या भौगोलिक, सरकारी हों या गैर-सरकारी, जबकि अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति शब्द राष्ट्रों के केवल राजनीतिक सम्बन्धों का ही निरूपण करता है।
हंस मोर्गेंथाऊ एक जर्मन-अमेरिकी न्यायविद और राजनीतिक वैज्ञानिक थे, जो बीसवीं सदी के अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के अध्ययन में अग्रणी विद्वानों में से एक थे। उन्होंने अन्तर्राष्ट्रीय संबंधों के सिद्धांत और अन्तर्राष्ट्रीय कानून के अध्ययन में ऐतिहासिक योगदान दिया और उनकी पुस्तक राष्ट्रों के बीच राजनीति (Politics Among Nations), 1948 में पहली बार प्रकाशित हुई।
विचारकों के विचार:
अंतर्राष्ट्रीय संबंध:
अंतर्राष्ट्रीय संबंध से तात्पर्य दो या अधिक राष्ट्रों के मध्य संबंधों के स्वरूप से है, अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध में काफी व्यापकता पाई जाती है। उसके अन्तर्गत राष्ट्रों के आर्थिक, व्यापारिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक, कानूनी, राजनीतिक खोज एवं अन्वेषण सम्बन्धी, इत्यादि संबंधों का अध्ययन किया जाता है।
अंतर्राष्ट्रीय संबंध राजनीति विज्ञान की एक शाखा है जो कि राष्ट्रों के मध्य संबंधों, संयुक्त राष्ट्र, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक जैसे गैर-राज्य गतिविधियों और एमनेस्टी इंटरनेशनल ग्रीन पीस, ह्यूमन राइट्स वॉच आदि जैसे अंतर्राष्ट्रीय गैर-सरकारी संगठनों से संबंधित है। अंतर्राष्ट्रीय संबंध विशेष रूप से अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा मुद्दों, विभिन्न राष्ट्रों की विदेश नीति, वैश्वीकरण, अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद, अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण और विभिन्न क्षेत्रों के अध्ययनों से भी संबंधित होता है।
वर्तमान में 'अंतर्राष्ट्रीय राजनीति' का स्थान ' अंतर्राष्ट्रीय संबंधों ने ले लिया है। इसके अंतर्गत राज्यों के परस्पर संघर्ष के साथ-साथ सहयोगात्मक पहलुओं को भी अब अंतर्राष्ट्रीय संबंध के अंतर्गत अध्ययन किया जाता है। इसके अतिरिक्त आज 'राज्यों' के अलावा अन्य कई कारक भी अब अंतर्राष्ट्रीय संबंध के विषय क्षेत्र बन गए हैं । अतः इसके अंतर्गत आज व्यक्ति, संस्था, संगठन व कई अन्य गैर - राज्य ईकाईयॉ भी सम्मिलित हो गई हैं।
अंतर्राष्ट्रीय संबंध का उद्भव एवं विकास:
अंतर्राष्ट्रीय संबंध के विकास का इतिहास ज्यादा प्राचीन नहीं है, बल्कि यह विषय बीसवीं शताब्दी की उपज है। स्पष्ट रूप से देखा जाए तो वेल्स विश्वविद्यालय में अंतर्राष्ट्रीय वुडरों विल्सन पीठ की 1919 की स्थापना से ही इसका इतिहास प्रारम्भ होता है।
इस पीठ पर प्रथम आसीन होने वाले प्रसिद्ध इतिहासकार प्रोफेसर ऐल्फर्ड जिमर्न थे तथा बाद में अन्य प्रमुख विद्वाना जिन्होंने इस पीठ को सुशोभित किया उनमें से प्रमुख थे - सी. के. वेबस्टर, ई.एच.का., पी.ए.रेनाल्ड, लारेंस डब्लू, माटिन. टी. ई. ईवानज आदि ।
केनेथ थाम्पसन ने सन् 1962 के रिव्यू ऑफ पॉलिटिक्स में प्रकाशित अपने लेख में अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के इतिहास को चार भागों में बांटा है, जिसके आधार पर इस विषय का सुस्पष्ट एवं सुनिश्चित अध्ययन सम्भव हो सकता है।
1. वेस्टफेलिया की संधि(1648)
अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में राष्ट्र राज्य की संकल्पना सर्वप्रथम वेस्टफेलिया की संधि में प्रकट हुई। अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में राष्ट्र-राज्य व्यवस्था की अवधारणा के उदय के संकेत 1648 की वेस्टफेलिया की संधि (Westphalia Treaty ) से मिलते हैं, जिसने यूरोप में तीस वर्षों (1618-1648) के युद्ध को समाप्त कर दिया। यह संधि राज्य व राज्य-व्यवस्था को कानूनी मान्यता देती है ।
2. कूटनीतिक इतिहास का प्रभुत्व, प्रारम्भ से 1919 तक
प्रथम विश्व युद्ध से पूर्व इतिहास, कानून, राजनीति शास्त्र, दर्शन आदि के विद्वान ही अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के अलग-अलग पहलुओं पर विचार करते थे। मुख्य रूप से इतिहासकार ही इसका अध्ययन राजनयिक इतिहास तथा अन्य देशों के साथ संबंधों के इतिहास के रूप में करते थे। इसके अंतर्गत कूटनीतिज्ञों व विदेश मंत्रियों द्वारा किए गए कार्यों का लेखा जोखा होता था । अतः इसे कूटनीतिक इतिहास की संज्ञा भी दी जाती है। ई.एच.कार के अनुसार प्रथम विश्व युद्ध का संबंध केवल सैनिकों तक समझा जाता था इसके समक्ष अंतर्राष्ट्रीय राजनीति का संबंध राजनयिकों तक। इसके अतिरिक्त, प्रजातांत्रिक देशों में भी परम्परागत रूप से विदेश नीति को दलगत राजनीति से अलग रखा जाता था तथा चुने हुए अंग भी अपने आपकों विदेशी मंत्रालय पर अंकुश रखने में असमर्थ महसूस करते थे ।
1919 से पूर्व इस विषय के प्रति उदासीनता के कई प्रमुख कारण थे - प्रथम, इस समय तक यही समझा जाता था युद्ध व राज्यों में गठबंधन उसी प्रकार स्वाभाविक है जैसे गरीबी व बेरोजगारी । अतः युद्ध, विदेश नीति एवं राज्यों के मध्य परस्पर संबंधों को रोक पाना मानवीय समार्थ्य के वश से बाहर माना जाता था । द्वितीय, प्रथम विश्व युद्ध से पूर्व युद्ध इतने भयंकर नहीं होते थे । तृतीय, संचार साधनों के अभाव में अंतर्राष्ट्रीय राजनीति कुछ गिने चुने राज्यों तक ही सीमित थी ।
इस प्रकार इस युग में अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के अध्ययन की सबसे बड़ी कमी सामान्य हितों का विकास रहा। इस काल में केवल राजनयिक इतिहास का वर्णनात्मक अध्ययन मात्र ही हुआ । परिणामस्वरू इससे न तो वर्तमान तथा नही भावी अंतर्राष्ट्रीय राजनीति को समझने में कोई मदद मिली। इस युग की मात्र उपलधि 1919 में वेल्स विश्वविद्यालय में अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के अध्ययन की पीठ की स्थापना रही ।
3. राजनैतिक सुधारवाद का युग, 1939–1945
द्वितीय विश्व युद्ध वर्ष 1939-45 के बीच होने वाला एक सशस्त्र विश्वव्यापी संघर्ष था। इस युद्ध में दो प्रमुख प्रतिद्वंद्वी गुट धुरी शक्तियाँ (जर्मनी, इटली और जापान) तथा मित्र राष्ट्र (फ्राँस, ग्रेट ब्रिटेन, संयुक्त राज्य अमेरिका, सोवियत संघ और कुछ हद तक चीन) शामिल थे।
द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद, अंतर्राष्ट्रीय संबंधों ने वास्तव में एक वैश्विक चरित्र विकसित करना शुरू किया, जिसमें प्रत्येक राष्ट्र ने अपने राष्ट्रीय हितों को अन्य देशों के हितों के साथ-साथ शांति, सुरक्षा और विकास के अंतर्राष्ट्रीय हितों के साथ स्थापित करना शुरू कर दिया।
अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के विकास, दो विश्व युद्धों के बीच का काल के रूप में देखा जाता है । इसे सुधारवाद का युग इसलिए कहा जाता है कि इसमें राज्यों द्वारा राष्ट्र संघ की स्थापना के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में सुधार की कल्पना की गई। इस युग में मुख्य रूप से संस्थागत विकास किया गया। इस काल के विद्वानों, राजनयिकों, राजनेताओं व चिन्तकों का मानना था कि यदि अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं का विकास हो जाता है तो विश्व समुदाय के सम्मुख उपस्थित युद्ध व शांति की समस्याओं का समाधान सम्भव हो सकेगा। इस उद्देश्य हेतु कुछ कानूनी व नैतिक उपागमों की संरचनाएं की गई जिनके निम्न मुख्य आधार थे।
अंतर्राष्ट्रीय संबंध का विषय क्षेत्र और प्रकृति:
प्रकृति:
अंतर्राष्ट्रीय संबंध का विषय क्षेत्र:
1. शक्ति संघर्ष की राजनीति का अध्ययन
हैंस जे. मॉर्गेन्थाऊ:- हैंस जे मोर्गेथाऊ ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'पॉलिटिक्स अमंग नेशन्स: द स्ट्रगल फॉर पावर एंड पीस' (1948) में कहा है कि 'अंतर्राष्ट्रीय संबंध राष्ट्रों के मध्य शक्ति के लिए संघर्ष है।' अंतर्राष्ट्रीय संबंध वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा संघर्ष उत्पन्न होते हैं और यह वैश्विक स्तर पर शक्ति के दावे, मध्यस्थता और संवाद के माध्यम से हल किए जाते हैं। इसलिए एक राष्ट्र के लिए शक्ति अर्जित करना अत्यंत आवश्यक है।
मॉर्गेन्थो के शब्दों में, “अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति सभी राजनीतिक उद्देश्यों की भाँति शक्ति के लिए संघर्ष है ।" प्रारम्भ में अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का उद्देश्य युद्ध और युद्ध को समाप्त करना था परन्तु वर्तमान में आधुनिक प्रवृत्ति अन्तर्राष्ट्रीय व्यवहार को शक्ति के आधार पर समझने की है। आज प्रत्येक राष्ट्र शक्ति प्राप्त करने, शक्ति की वृद्धि करने और उसका प्रदर्शन करने में विश्वास करने लगा है । अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति इस स्थिति को समझने और इसके सन्दर्भ में विश्व की समस्याओं को हल करने के लिए उपाय बताता है।
2. प्रमुख शक्तियों की विदेश नीतियाँ
संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, चीन, यूरोपीय संघ (ईयू), जापान और भारत जैसी प्रमुख शक्तियों की विदेश नीति अंतर्राष्ट्रीय संबंध के महत्वपूर्ण विषय का गठन करती है। यह प्रमुख शक्ति अंतर्क्रिया विदेश नीति के मामलों की प्रेरक शक्तियाँ हैं। यह शक्ति संतुलन, शीत युद्ध, दितांत (Relaxation of Tensions) और नव शीत युद्ध के विचार विदेश नीति और अन्य राष्ट्र राज्यों पर उनके प्रभाव को दर्शाते हैं।
3. सुरक्षा
अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के मुख्य उद्देश्य मध्यस्थता, संवाद, निरस्त्रीकरण पर बातचीत जैसे द्विपक्षीय संबंधों से संबंधित गतिविधियाँ सामूहिक विनाश के हथियारों का अप्रसार और राष्ट्रों के बीच तनाव में कमी लाना हैं। इसमें रणनीतिक विचार के साथ- साथ युद्ध और शांति पर चर्चा किसी भी राज्य की सुरक्षा से सीधे संबंधित होता है।
4. अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक अर्थव्यवस्था
राजनीतिक अर्थव्यवस्था का अध्ययन इस बात पर ध्यान केंद्रित करता है कि बाजार राजनीति किस प्रकार से आपस में परस्पर क्रिया करती हैं, जिसमें यह भी शामिल है कि बाज़ार राजनीति को किस प्रकार से प्रभावित करता हैं और यह नीतियां अर्थव्यवस्था को कैसे प्रभावित करती हैं, सन 1980 के दशक के मध्य में वैश्वीकरण कि शुरुआत के साथ, विद्वानों के बीच अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक अर्थव्यवस्था में नए सिरे से रूची विकसित हुई है।
5. राजनीतिज्ञों के लिए महत्त्व
अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति की विचारधारा के सिद्धान्त राजनीतिज्ञों को वह ज्ञान प्रदान करते हैं, जिससे वे विदेश नीति से सम्बन्धित समस्याओं जैसेसाम्राज्यवाद, उपनिवेशवाद, अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार, अर्थव्यवस्था का भूमण्डलीकरण, नवीन अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था, निःशस्त्रीकरण आदि का समाधान करने में सहयोग देते हैं ।
6. वैश्वीकरण
“वैश्वीकरण” का अर्थ है प्रौद्योगिकी, उत्पादों और सेवाओं में सीमा पार व्यापार और पूंजी, श्रम और सूचना के प्रवाह के परिणामस्वरूप विश्वभर में अर्थव्यवस्थाओं, संस्कृतियों एवं सामाजिक गतिविधियों की बढ़ती परस्पर निर्भरता को संदर्भित करता है। कई दशकों में, इन राष्ट्रों ने आंदोलनों का समर्थन करने के लिए आर्थिक गठजोड़ विकसित किए हैं। लेकिन 1990 के दशक की शुरुआत में शीत युद्ध के पश्चात् से इस शब्द ने लोकप्रियता हासिल क्योंकि इन सहकारी व्यवस्थाओं ने अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में दैनिक गतिविधियों को आकार दिया।
7. अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण
पर्यावरणीय मुद्दों ने विश्वभर के राज्यों के लिए चिंता को बढ़ाया है। ग्लोबल वार्मिंग का बढ़ना, ग्लेशियरों का पिघलना और पेय जल की कमी जैसे पर्यावरणीय मुद्दों ने विश्वभर को चिंतित किया हुआ है।
8. विश्व शान्ति में योगदान
विश्व शान्ति आज की आवश्यक आवश्यकता है। प्रो. चार्ल्स मार्टिन के अनुसार, अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के अध्ययन की मुख्य समस्या दो विरोधी स्थितियों - विश्व शान्ति तथा युद्ध का एक साथ अध्ययन करना होता है। अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति विश्व शान्ति की स्थापना के लिए प्रयत्नशील रहती है। अतः अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का आधुनिक युग में विशेष महत्त्व है।
निष्कर्ष
अंतर्राष्ट्रीय संबंध का स्वरूप परिवर्तनशील है। जब-जब अंतर्राष्ट्रीय संबंध के परिवेश, कारकों व घटनाक्रम में परिवर्तन आयेगा, इसके अध्ययन करने के तरीकों व दृष्टिकोणें में भी परिवर्तन अनिवार्य है। इसके अतिरिक्त, यह परिवर्तन स्थाई न होकर निरंतर है। इसके साथ-साथ कारकों, स्तरों, आयामों आदि के कारण यह बहुत जटिल है अतः इसके सुचारू अध्ययन हेतु बहुत स्पष्ट, तर्कसंगत, व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है ।
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