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उत्तर - परिचय
मानव एक सामाजिक प्राणी है वह समाज में रहता है। समाज में रहकर वह विचारों का आदान-प्रदान करता है। प्रत्येक मनुष्य अपने विचार,भावनाएँ एवं सिद्धान्त आदि को दूसरे व्यक्तियों के साथ आदान-प्रदान या विनिमय (Exchange) करता है। यह परस्पर विचारों का आदान-प्रदान ही संचार अथवा सम्प्रेषण कहलाता है। संचार एक ऐसी प्रक्रिया (Process) है जो दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच घटित होती है।
मुख्य रूप से विचारों के आदान-प्रदान की प्रक्रिया ही सम्प्रेषण कहलाती है। यह विचारों के आदान-प्रदान की प्रक्रिया नयी नहीं है, बल्कि प्राचीन काल से ही इसकी परम्परा देखने को मिलती है। आदिमानव अपने विचारों को संकेतों के माध्यम से प्रकट करता था क्योंकि उसके पास भाषायी शक्ति का अभाव था। जैसे-जैसे मानव सभ्यता का विकास भाषा संस्कार एवं विद्वानों के आधार पर हुआ तत्पश्चात् सम्प्रेषण के माध्यम भी विकसित होने लगे।
विश्व में हुई संचार क्रान्ति ने सम्प्रेषण के महत्त्व एवं आवश्यकता में भी वृद्धि की है। सम्प्रेषण की अवधारणा केवल मानव समाज में ही नहीं बल्कि समस्त प्राणियों में समान रूप से पायी जाती है। केवल माध्यम अलग-अलग होते हैं; जैसे-एक व्यक्ति अपनी भावनाओं को विचारों के माध्यम से स्पष्ट करता है वहीं एक पक्षी उसको संकेत एवं अपनी चहचहाने की भाषा में प्रस्तुत करता है। इस प्रकार सम्प्रेषण समस्त व्यक्तियों एवं प्राणियों द्वारा सम्पन्न होता है।
सम्प्रेषण का अर्थ -
'सम्प्रेषण' दो शब्दों से मिलकर बना है- सम + प्रेषण, अर्थात् समान रूप से भेजा गया । सम्प्रेषण को अंग्रेजी में कम्यूनीकेशन (Communication) कहते हैं। कम्यूनीकेशन शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के 'कम्यूनिस' (Communis) शब्द से मानी जाती है, जिसका अर्थ होता है- सामान्य बनाना । अतः सम्प्रेषण का अर्थ है परस्पर सूचनाओं तथा विचारों का आदान-प्रदान करना ।
मानव विकास यात्रा के साथ-साथ संप्रेषण का स्वरूप व प्रकार बदलता गया। व्यक्ति की असीमित आवश्यकताओं ने संप्रेषण की आवश्यकता को जन्म दिया। प्राचीन सूचना संप्रेषण माध्यमों- लकड़ी व पत्तों के प्रयोग से लेकर भाषा, लिपि, प्रिटिंग प्रेस, रेडियों, फिल्म, दूरभाष, टेलीविजन, सेटेलाइट या उपग्रह, इंटरनेट मोबाइल तक का सफर मानव की असीमित आवश्यकता का ही परिणाम है।
परिभाषा -
सी. जी. ब्राउन के अनुसार - संप्रेषण एक व्यक्ति से दूसरे तक सूचना का हस्तांतरण है, चाहे उसके द्वारा विश्वास उत्पन्न हो या नही अथवा विनियम हो या नही, किन्तु हस्तान्तरण की गई सूचना प्राप्तकर्ता की समझ मे आनी चाहिए।"
समर के अनुसार - संप्रेषण मे एक या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच तथ्यों, विचारों, सभाओं अथवा भावनाओं का आदान-प्रदान होता है।
कीथ डेविस के अनुसार - संप्रेषण एक-दूसरे के मध्य सूचना के आदान-प्रदान करने एवं समझने की प्रक्रिया है।"
संप्रेषण की प्रक्रिया –
संप्रेषण की प्रक्रिया प्रेषक से प्रारम्भ होकर प्रतिपुष्टि प्राप्ति के बाद प्रेषक पर ही समाप्त होती है। यह एक निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है । कभी न समाप्त होने वाला संप्रेषण चक्र संस्था में निरन्तर विद्यमान रहता है।
संप्रेषण, संगठन के व्यक्तियों एवं समूहों का वाहक एवं विचार अभिव्यक्ति का माध्यम है। संप्रेषण प्रक्रिया में सन्देश का भेजने वाला सन्देश के प्रवाह के माध्यम का प्रयोग करता है। यह माध्यम लिखित, मौखिक, दृश्य अथवा एवं सुनने के लायक होता है। संप्रेषण माध्यम का चयन संप्रेषण के उद्देश्य, गति एवं प्राप्तकर्त्ता की परिस्थितियों के अनुसार किया जाता है।
संप्रेषण माध्यम का चुनाव करते समय सन्देश संवाहक यह ध्यान रखता है कि उसे कब और क्या सम्पे्रषित करना है? सन्देश को प्राप्त करने वाला व्यक्ति सन्देश को प्राप्त करता है, उसकी विवेचना करता है तथा अपने अनुसार उसे ग्रहण करके उसकी प्रतिक्रिया प्रदान करता है।
संप्रेषण प्रक्रिया के प्रमुख तत्व-
संप्रेषण का महत्त्व -
मानव जीवन संप्रेषण के बिना संभव नहीं है। जन्म से मृत्यु तक मनुष्य अपने जीवन में सूचनाओं के आदान-प्रदान का कार्य करता है। कभी किसी प्रश्न का उत्तर देता है, कभी किसी से प्रश्न पूछता है या कभी कोई सूचना दूसरों तक पहुँचाता है और यह कार्य संप्रेषण के बिना संभव नही है ।
निष्कर्ष
संप्रेषण के बिना व्यक्ति के सामाजिक जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। सामाजिक जीवन के लिए संप्रेषण का महत्त्व निर्विवाद रूप से है, संप्रेषण प्रक्रिया का प्रस्थान बिंदु वक्ता है और श्रोता और प्रतिक्रिया संप्रेषण का विस्तार है।
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