प्रश्न 1- भाषा पर विचार करते हुए इनकी विशेषताओं का वर्णन कीजिए।

May 23, 2025
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प्रश्न 1- भाषा पर विचार करते हुए इनकी विशेषताओं का वर्णन कीजिए।

उत्तर - परिचय

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज में रहते हुए उसे निरंतर विचारों का आदान-प्रदान करने की आवश्यकता पड़ती है। इसके लिए वह भाषा का सहारा लेता है। भाषा एक ऐसा माध्यम है, जिसके द्वारा एक व्यक्ति अपने विचारों, भावनाओं और इच्छाओं को दूसरों तक पहुँचाते हैं। जब मनुष्य अपनी वाणी से ऐसी ध्वनियां उच्चारण करता है, जो अर्थपूर्ण होती हैं और जिन पर चर्चा की जा सकती है, तो उन्हीं ध्वनियों को भाषा कहा जाता है।

भाषा शब्द का अर्थ :

'भाषा' शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के 'भाष' धातु से हुई है, जिसका अर्थ है बोलना या कहना। इस प्रकार भाषा शब्द का अभिप्राय है अभिव्यक्ति का साधन।

'भाषा' के लिए विभिन्न शब्द

डॉ. कैलाश नाथ पाण्डेय ने अपनी पुस्तक 'भाषा और समाज' में विभिन्न भाषाओं में 'भाषा' के लिए इस्तेमाल होने वाले शब्दों का उल्लेख किया है। जैसे- अंग्रेजी में भाषा के लिए 'लैंग्वेज' (Language) शब्द का प्रयोग होता है, ग्रीक में 'लेईखेनन', रूसी में 'यजिक', जर्मन में 'स्ग्राखे', अरबी में 'लिस्सान' और फारसी में 'जबान' तथा उर्दू में 'जुबान' या 'जाँ' शब्द का प्रयोग होता है।

भाषा की परिभाषाएं :

  • डॉ. कैलाशनाथ पाण्डेय के अनुसार- "वस्तुतः किसी जाति अथवा व्यक्ति द्वारा विचारों की अभिव्यक्ति के लिए प्रयुक्त साधनों को भाषा कहते हैं।
  • महर्षि पतंजलि के अनुसार- "जो वाणी में व्यक्त होती है, उसे भाषा कहते हैं।"
  • डॉ. भोलानाथ तिवारी के अनुसार- "भाषा वह साधन है जिसके माध्यम से हम सोचते हैं तथा अपने विचारों को व्यक्त करते हैं।"
  • रूप नारायण त्रिपाठी के अनुसार- "मूल रूप में मानव की व्यक्त वाणी को ही भाषा कहते हैं, जिसका मुख्यार्थ होता है- वर्णात्मक मानव-भाषा।

भाषा की विशेषताएँ

(क) भाषा सामाजिक वस्तु है : भाषा के कई प्रकार हो सकते हैं, लेकिन भाषाविज्ञान के अनुसार उस भाषा का महत्त्व होता है जो मानव समाज में उपयोग की जाती है। इसलिए भाषा को सामाजिक वस्तु कहा जाता है। भाषा का समाज से प्रत्यक्ष सम्बन्ध है। व्याकरण भाषा के बाह्य रूप को निश्चित करता है, लेकिन भाषा की आंतरिक संरचना तैयार करने में समाज की भूमिका रहती है। समाज से भाषा को प्रतीक मिलते हैं, समाज से ही भाषा को प्रयोग की शैली मिलती है और समाज ही भाषा के परिवर्तन की दिशा तय करता है।

(ख) भाषा पैतृक संपत्ति नहीं है : पैतृक संपत्ति से अभिप्राय है वह संपत्ति जो हमारे पूर्वज हमारे लिए अर्जित करके छोड़ जाते हैं। भाषा के संदर्भ में भी कभी-कभी यह कह दिया जाता है कि भाषा परिवार से पैतृक संपत्ति के रूप में मिलती है। दुनिया के अधिकांश भाषा चिंतक इस दावे को ख़ारिज कर चुके हैं। इसके पीछे यह तर्क दिया गया है कि अगर भाषा पैतृक संपत्ति होती तो पैदा होने के बाद चाहे बच्चा किसी भी समाज में पले-बढ़े, लेकिन उसे भाषा तो वही सीखनी चाहिए जो उसके जन्मदाता परिवार की भाषा है, ऐसा वास्तव में नहीं होता है। एक शिशु उसी परिवार या समाज की भाषा सीखता है जिसमें उसने बोलना सीखा है। चाहे उसका जन्मदाता कोई भी क्यों न हो।

(ग) भाषा अर्जित वस्तु है : व्यक्ति जिस समाज में जन्म लेता है, वह उसी भाषा को सबसे पहले सीखता है। बाद में, व्यक्ति कितनी भी भाषाएँ सीखे, यह उसकी क्षमता पर निर्भर करता है। भारत में, अधिकांश लोग तीन भाषाएँ जानते हैं और कुछ लोग चार या पाँच भाषाएँ भी जानते हैं। इसलिए कहा जाता है कि भाषा अर्जित वस्तु है और कोई भी व्यक्ति अपनी क्षमता के अनुसार कई भाषाएँ सीख सकता है।

(घ) भाषा एक परंपरा है : हर भाषा की अपनी परंपरा होती है, जो समय के साथ बदलती रहती है। यह बदलाव परंपरा के कारण ही संभव होता है। परंपरा वह व्यवस्था है जो शुरू होती है और निरंतर चलती रहती है। परंपरा को बनाए रखना जरूरी है, क्योंकि वही भाषा की पहचान बचाए रखती है। अगर किसी भाषा में परंपरा का विकास नहीं होता, तो वह लंबे समय तक जीवित नहीं रह सकती।

(ङ) भाषा परिवर्तनशील है : भाषा का स्वभाव परिवर्तनशील है, जो समय और स्थान के साथ बदलती रहती है। कहावतें जैसे "भाषा बहता नीर" और "कोस-कोस पर पानी बदले, चार कोस पर वाणी" इस बदलाव को दर्शाती हैं। आज के समय में जो हिंदी हम बोलने, पढ़ने या लिखने में प्रयोग करते हैं, आज से पचास साल पहले की हिंदी से अलग थी। उससे पचास वर्ष और पीछे जाए तो भाषा की अलग ही संरचना देखने को मिलेगी। इससे पता चलता है कि भाषा परिवर्तनशील है और समय के साथ-साथ बदलती रहती है।

(च) भाषा भाव संप्रेषण का साधन है : भाषा भावों और सूचनाओं के आदान-प्रदान का माध्यम है, जिसे संप्रेषण कहते हैं। यह वाचिक (मौखिक या लिखित) और अवाचिक (संकेत, प्रतीक, हाव-भाव) के माध्यम से होता है। संप्रेषण विचारों, ज्ञान और अनुभवों के विनिमय में मदद करता है और सामाजिक व व्यक्तिगत लक्ष्यों को पूरा करने में सहायक होता है। यह निर्णय लेने, समस्या समाधान और संगठन के कार्यों को बेहतर बनाने में उपयोगी है। इसके माध्यम से सूचना एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक किसी माध्यम (जैसे माइक्रोफोन, ईमेल, या डिजिटल उपकरण) की सहायता से पहुंचाई जाती है।

निष्कर्ष

भाषा मानव अभिव्यक्ति का मूल साधन है, जो विचारों, भावनाओं और ज्ञान के आदान-प्रदान को संभव बनाती है। यह अर्जित, परिवर्तनशील और सामाजिक संरचना का हिस्सा है, जो व्यक्ति की क्षमताओं और समाज की आवश्यकताओं के अनुरूप विकसित होती है। भाषा सिर्फ वाणी नहीं, बल्कि संस्कृति और परंपरा का वाहक भी है, जो सामाजिक पहचान बनाए रखती है। इसके माध्यम से मानव समाज में संचार, निर्णय, और विकास की प्रक्रियाएं सहज रूप से संपन्न होती हैं।

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