प्रश्न 1- शिक्षा के ज्ञानात्मक/ज्ञानमीमांसीय आधार के रूप में ज्ञान के महत्व पर चर्चा करें।

May 31, 2025
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प्रश्न 1- शिक्षा के ज्ञानात्मक/ज्ञानमीमांसीय आधार के रूप में ज्ञान के महत्व पर चर्चा करें।

उत्तर - परिचय

शिक्षा के सन्दर्भ में वर्तमान समाज का स्वरूप सामान्यतः 'ज्ञान आधारित समाज' का है अथवा शिक्षा एवं दर्शन के सम्बन्ध में दोनों का उद्देश्य व्यक्ति को सत्य का ज्ञान कराना एवं उसके जीवन का विकास करना है। यह वह आधार है जिस पर संपूर्ण शैक्षिक संरचना का निर्माण किया जाता है। ज्ञान शिक्षा के मूलभूत स्तंभ के रूप में कार्य करता है, वह आधार बनता है जिस पर सीखने, समझने और आलोचनात्मक सोच की पूरी प्रक्रिया निर्मित होती है।

ज्ञानमीमांसा का अर्थ -

ज्ञानमीमांसा- ज्ञानमीमांसा दर्शनशास्त्र का एक क्षेत्र है, जो मानवीय ज्ञान से संबंधित है। यह एक प्रकार की दार्शनिक जाँच/पड़ताल का वह क्षेत्र है, जो ज्ञान की उत्पत्ति, प्रकृति, वैधता, ज्ञान की विधियाँ एवं सीमाओं की खोज करता है। ज्ञानमीमांसा (Epistemology) ग्रीक शब्द 'Episteme' अर्थात्, ज्ञान तथा 'LOGOS' अर्थात्, विज्ञान या परिचर्चा से आया है। 

ज्ञान का अर्थ -

ज्ञान से आशय वास्तविकता के किसी पक्ष के प्रति जागरूकता तथा समझ से है जोकि त्य विश्वास पर आधारित हो। यह स्पष्ट व सुबोध सूचना या तथ्य है जोकि तार्किक प्रक्रिया के अनुप्रयोग के द्वारा वास्तविकता से प्राप्त किया जाता है।

शिक्षा के ज्ञानात्मक/ज्ञानमीमांसीय आधार के रूप में ज्ञान का महत्व :

ज्ञानमीमांसा दर्शन का एक क्षेत्र है जो मानव ज्ञान से संबंधित है। यह दार्शनिक जाँच/पड़ताल का वह क्षेत्र है, जो ज्ञान की उत्पत्ति, प्रकृति, वैधता, ज्ञान की विधियाँ एवं सीमाओं की खोज करता है। यह खोज प्रायः इस तथ्य से संबंधित है कि ज्ञानमीमांसा वास्तव में दर्शनशास्त्र की एक शाखा है, जिसने ज्ञान के विस्फोट के कारण विचारकों का ध्यान आकर्षित किया है।

  1. ज्ञानमीमांसा में ज्ञाता, ज्ञान और ज्ञेय के संबंधों की विस्तृत व्याख्या की जाती है। जिस प्रकार ज्ञाता को किसी विषय (ज्ञेय) का ज्ञान होता है उसी प्रकार ज्ञान का संबंध विषय और ज्ञाता दोनों से होता है। दार्शनिक चिंतन की विशिष्टता के आधार पर ज्ञाता, ज्ञान और ज्ञेय की त्रिपुटी की व्याख्या ज्ञानमीमांसा के अंतर्गत की जाती है।
  2. ज्ञानमीमांसा का प्रमुख उद्देश्य और क्षेत्र ज्ञान के स्रोतों से सम्बंधित प्रश्नों एवं विवादों का समाधान ढूढ़ना है। दर्शन में ज्ञान के प्रमुख चार स्रोत माने गए हैं-आप्तवाक्य या शब्द प्रमाण, ज्ञानेन्द्रियों द्वारा ज्ञान की प्राप्ति, चिंतन-स्रोत के रूप में(तर्क बुद्धि का उपयोग) और आन्तरिक सूझ (अंत: प्रज्ञा का उपयोग)। ज्ञानमीमांसा के माध्यम से ज्ञान इन सभी स्रोतों की विवेचना की जाती है।
  3. ज्ञानमीमांसा में ज्ञान की वैधता तथा ज्ञान की सत्यता व असत्यता की मीमांसा किन्हीं निश्चित कसौटियों के आधार पर की जाती है। अनेक दार्शनिक मतों ने अपने-अपने सिद्धांत के अनुरूप सत्य की कसौटियां निर्धारित की है जैसे- प्रत्ययवादी सुसंगति सिद्धांत, वस्तुवादियों ने संवाद सिद्धांत एवं फलवादियों ने संतोषजनक परिणाम के सिद्धांत आदि का प्रतिपादन किया है। ज्ञानमीमांसा के द्वारा ही सत्य की कसौटी तथा ज्ञान की वैधता का निर्धारण किया जाता है।
  4. ज्ञानमीमांसा में ज्ञान के स्वरुप को स्पष्टीकृत करने हेतु उसका अन्य ज्ञानमीमांसीय संप्रत्ययों जैसे- चिंतन, स्मृति, विश्वास, अज्ञान, सत्य इत्यादि से संबंधों की विवेचना होती है। ये सब ज्ञान की व्याख्या करने के लिए साधन हैं। ज्ञान ही ज्ञानमीमांसा का केन्द्र बिन्दु और साध्य है।

निष्कर्ष

ज्ञानमीमांसा वह आधारशिला बनाती है जिस पर शैक्षिक प्रणालियाँ निर्मित की जाती हैं, जो ज्ञान प्राप्त करने, व्यवस्थित करने और संचारित करने के तरीके का मार्गदर्शन करती हैं। ज्ञानमीमांसा, ज्ञान के अपने दार्शनिक अन्वेषण के माध्यम से, न केवल हमारी समझ को आकार देती है बल्कि शैक्षिक प्रयासों के सार को भी प्रभावित करती है।

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