प्रश्न 1. प्राचीन भारतीय इतिहास के पुनर्गठन के लिए साहित्यिक एवं पुरातात्विक स्रोतों के महत्त्व का परीक्षण कीजिए।

Jun 02, 2025
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प्रश्न 1. प्राचीन भारतीय इतिहास के पुनर्गठन के लिए साहित्यिक एवं पुरातात्विक स्रोतों के महत्त्व का परीक्षण कीजिए।

उत्तर - परिचय  

प्राचीन भारत के इतिहास का अध्ययन कई दृष्टियों से महत्वपूर्ण है और इसके इतिहास के पुनर्गठन के लिए साहित्यिक एवं पुरातात्विक स्रोत अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। इन स्रोतों से हम जान पाते हैं कि मानव-समुदायों ने हमारे देश में प्राचीन संस्कृतियों का विकास कब, कहाँ और कैसे किया? यह बतलाता है कि उन्होंने कृषि की शुरुआत कैसे की जिससे कि मानव का जीवन सुरक्षित और सुस्थिर हुआ। इससे ज्ञात होता है कि प्राचीन भारत के निवासियों ने किस तरह प्राकृतिक संपदाओं की खोज की और उनका उपयोग किया, तथा किस प्रकार उन्होंने अपनी जीविका के साधनों की सृष्टि की। हम यह भी जान पाते हैं कि उन्होंने खेती, कताई, धातुकर्म आदि की शुरूआत कैसे की, कैसे जानवरों  की स्फाई की, और कैसे ग्रामों, नगरों तथा अन्ततः राज्यों की स्थापना की।

भारतीय इतिहास के पुनर्गठन के लिए साहित्यिक एवं पुरातात्विक स्रोतों का महत्त्व :

साहित्यिक और पुरातात्विक स्रोतों का अध्ययन हमें भारतीय इतिहास के बेहतर अध्ययन और समझने में मदद करता है। इन स्रोतों का संयोजन हमारी सोच को विस्तृत करता है और हमें उस समय की सांस्कृतिक, धार्मिक, राजनीतिक, और आर्थिक परिस्थितियों को समझने में मदद करता है।

साहित्यिक स्रोत

साहित्यिक स्रोत, वे स्रोत है, जो साहित्य अर्थात् पुस्तकों के माध्यम से प्राप्त होती है। यह साहित्य धार्मिक, लौकिक एवं विदेशी लेखकों के द्वारा प्राप्त होते हैं। प्राचीन भारतीय इतिहास के साहित्यिक स्रोतों को दो वर्गों में विभक्त किया जा सकता है-

(1) धार्मिक साहित्य तथा (2) ऐतिहासिक एवं समसामयिक साहित्य।

1. धार्मिक साहित्य -

प्राचीन भारतीय धार्मिक साहित्य से हमें तत्कालीन सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक जीवन के बारे में जानकारी मिलती है। धार्मिक साहित्य के अन्तर्गत ब्राह्मण साहित्य, बौद्ध साहित्य तथा जैन साहित्य को सम्मिलित किया जा सकता है।

धार्मिक ग्रन्थ

ब्राह्मण ग्रंथों में वैदिक साहित्य प्रमुख है। वैदिक साहित्य भारतीय विद्वानों की अद्भुत सृजनशीलता का परिचायक है। वैदिक साहित्य का सृजन लगभग 1500 - 200 ई० पू० के मध्य किया गया। वैदिक साहित्य के अंतर्गत वेद, ब्राह्मण ग्रंथ, उपनिषद, अरण्यक और सूत्र साहित्य आता हैं।

  • वेद- भारतीय साहित्य की प्राचीनतम कृति वेद हैं। वेद संख्या में चार हैं - ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद तथा अथर्ववेद ऋग्वेद में हमें भारत के आर्यों के प्रसार, उनके आन्तरिक एवं बाह्य संघर्ष के बारे में जानकारी मिलती है। वेदों से हमें प्राचीन आर्यों की सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक तथा राजनीतिक स्थिति के बारे में जानकारी मिलती है।
  • ऋग्वेद- सबसे प्राचीन वेद ऋग्वेद है। ऋग्वेद की रचना 1500-1000 ई. पू. के मध्य हुई। ऋग्वेद में 10 मण्डल, 1028 सूक्त तथा 10,580 ऋचाएँ हैं। ऋग्वेद के 2-9 तक के मंडल प्राचीन तथा 1 और 10 वाँ मण्डल नवीन हैं। ऋग्वेद से प्राचीन आर्यों के सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक जीवन की विस्तृत जानकारी मिलती है।
  • सामवेद- सामवेद ऐसा वेद है, जिसके मंत्र यज्ञों में देवताओं की स्तुति करते हुए गाये जाते थे। यह ग्रंथ तत्कालीन भारत की गायन विद्या का श्रेष्ठ उदाहरण प्रस्तुत करता हैं। सामवेद में 1549 ऋचाएँ हैं। सामवेद 75 ऋचाएँ ही मौलिक है, शेष ऋग्वेद से ली गई हैं।

बौद्ध धर्म-ग्रन्थ -

बौद्ध साहित्य प्राचीन भारतीय इतिहास का महत्वपूर्ण स्रोत है। बौद्ध साहित्य से धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक एवं साँस्कृतिक पहलुओं पर व्यापक जानकारी प्राप्त होती है। बौद्ध साहित्य की प्रमुख रचनाएँ है-

  • त्रिपिटक- त्रिपिटक तीन हैं- (1) विनयपिटक, (2) सुत्तपिटक तथा (3) अभिधम्म पिटक। इन ग्रन्थों से हमें तत्कालीन धार्मिक, सामाजिक तथा आर्थिक स्थिति के बारे में जानकारी मिलती है। विनय पिटक में बौद्ध भिक्षुओं-भिक्षुणियों के आचरण संबंधित नियमों का वर्णन मिलता हैं। सुत्तपिटक में महात्मा बुद्ध के उपदेशों का सार संग्रहित हैं।
  • जातक कथा- जातक कथाओं में महात्मा बुद्ध के पूर्व जन्मों का विवरण है। संख्या में 550 जातक कथाएँ उपलब्ध है। ये जातक 500-200 ई. पू. की धार्मिक, सामाजिक और आर्थिक स्थिति पर बहुमूल्य प्रकाश डालती हैं।
  • मिलिन्दपन्हो- इस ग्रन्थ में यूनानी शासक मिनाण्डर तथा बौद्धभिक्षु नागसेन के बीच हुए वार्तालाप का विवरण दिया हुआ है। इससे तत्कालीन सामाजिक, धार्मिक तथा आर्थिक स्थिति के बारे में जानकारी मिलती है।

जैन ग्रन्थ - जैन साहित्य प्राचीन भारतीय इतिहास का महत्वपूर्ण स्रोत है। जैन साहित्य से धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक एवं साँस्कृतिक पहलुओं पर व्यापक जानकारी प्राप्त होती है। जैन साहित्य में आगम साहित्य का स्थान सर्वोपरि है, इसमें 12 अंग, 12 उपांग, 10 प्रकीर्ण, 6 छंदसूत्र, नन्दिसूत्र, अनुयोगद्वार और मूल-सूत्र सम्मिलित हैं।

2. ऐतिहासिक एवं समसामयिक ग्रन्थ

प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत के रूप में लौकिक, समसामयिक तथा ऐतिहासिक साहित्यिक ग्रंथ प्रचूर मात्रा में स्रोत सामग्री उपलब्ध कराते है। ये ग्रंथ तत्कालीन जन-जीवन, भौतिक संस्कृति, प्रशासन एवं राजनीति पर व्यापक जानकारी देते है।

  • अर्थशास्त्र- चन्द्रगुप्त मौर्य के प्रधानमंत्री कौटिल्य (चाणक्य) द्वारा लिखित अर्थशास्त्र मौर्यकालीन सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक, राजनीतिक एवं राजव्यवस्था का यथोचित ज्ञान करता हैं।\
  • मुद्राराक्षस- विशाखदत्त द्वारा लिखित इस नाटक से चाणक्य एवं चन्द्रगुप्त मौर्य द्वारा नंद वंश के विनाश के विषय में जानकारी प्राप्त होती है।
  • नीतिसार- कामन्दक द्वारा लिखित इस ग्रन्थ से गुप्त कालीन राज्यतंत्र पर प्रकाश पड़ता हैं।

पुरातात्विक स्रोत

पुरातत्व उन भौतिक वस्तुओं का अध्ययन करता है, जिनका निर्माण और उपयोग मनुष्य ने किया है। अतः वे समस्त भौतिक वस्तुएँ जो अतीत में मनुष्य द्वारा निर्मित एवं उपयोग की गयी है, वे सभी वस्तुएँ पुरातत्व के अंतर्गत आती है, पुरातात्विक स्रोत कहलाती है।

पुरातात्विक स्रोत सामग्री को 6 भागों में बाँटा जा सकता है-

(1) अभिलेख, (2) सिक्के अथवा मुद्राएँ, (3) स्मारक, (4) मिट्टी के बर्तन, उपकरण, आभूषण आदि।

  1. अभिलेख - अभिलेख वह लेख होते है, जो किसी पत्थर (चट्टान), धातु, लकड़ी या हड्डी पर खोदकर लिखें होते हैं। प्राचीन अभिलेख अनेक जैसे, स्तम्भों, शिलाओं, गुहाओं, मूर्तियों , प्रकारों, ताम्रपत्रों, मुद्राओं पर मिलते हैं। अभिलेखों के अध्ययन को 'पुरालेखशास्त्र' कहा जाता है।
  2. सिक्के अथवा मुद्राएँ - मुद्राएँ जारी करना किसी भी शासक की स्वतंत्र सत्ता का प्रतीक होता था। भारत में सबसे प्राचीन मुद्राएँ 'आहत' मुद्राएँ है, जो लगभग पाँचवीं शताब्दी ई. पू. में प्रचलित थीं। मुद्राओं के अध्ययन को 'न्यूमिस्मेटिक्स' (मुद्राशास्त्र) कहा जाता है। प्राचीन भारत में मुद्राएँ ताँबें, चाँदी, सोने, सीसे, पोटीन, मिट्टी की मिलती है।
  3. स्मारक - स्मारक से तात्पर्य, प्राचीन भवन, मृतक स्मृति भवन और क्षत्रिय, धार्मिक भवन आदि आते है। हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, तक्षशिला, नालंदा, रोपड़, हस्तिनापुर, बनावली आदि के स्मारकों से तत्कालीन वास्तुकला नगर नियोजन, सामाजिक स्थिति, धार्मिक स्थिति एवं साँस्कृतिक स्थिति का ज्ञान होता है। स्तूप, चैत्य, विहार, गुफाओं एवं मंदिरों से तत्कालीन धार्मिक एवं साँस्कृतिक स्थिति का ज्ञान होता है।
  4. मिट्टी के बर्तन, उपकरण, आभूषण - भारत के विभिन्न क्षेत्रों से खुदाई में मिट्टी के बर्तन, पाषाण एवं धातु उपकरण, आभूषण आदि प्राप्त हुए हैं। इनके अध्ययन से उस युग की कला पर प्रकाश पड़ता है।

निष्कर्ष

भारतीय इतिहास के पुनर्गठन में साहित्यिक और पुरातात्विक स्रोतों का महत्त्व अत्यंत महत्वपूर्ण है। ये स्रोत विभिन्न कालों में हुई घटनाओं, सामाजिक परिवर्तनों और संस्कृति के विकास को समझने में मदद करते हैं। इन स्रोतों का विशेष महत्त्व इसलिए है क्योंकि वे भारतीय समाज के विभिन्न पहलुओं को दर्शाते हैं और हमें हमारे इतिहास और संस्कृति की मूल अवधारणा को समझने में मदद करते है

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