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(i) जल - मण्डल
(ii) भूमि अवक्रमण
(iii) मृदा अपरदन
(iv) प्राथमिक उत्पादकता
(v) भू - तापीय ऊर्जा
(vi) स्थलमंडल
(vii) खतरनाक अपशिष्ट
(viii) बाँध
उत्तर-
(i) जल- मंडल
पृथ्वी के धरातल के लगभग 70 फीसदी भाग को घेरे हुए जल क्षेत्र को जलमंडल जलमण्डल कहा जाता है। जलमण्डल में जल परतें पृथ्वी की सतह पर महासागरों, झीलों, hydrosphere नदियों, तथा अन्य जलाशयों के रूप में फैली है। महासागर जलमंडल के मुख्य भाग हैं।
(ii) भूमि अवक्रमण
भूमि अवक्रमण एक प्रक्रिया है जिसमें भूमि, मनुष्य द्वारा अत्यधिक दोहन के कारण भूमि की उत्पादकता क्षमता में गिरावट आती है। जिसमें भूमि की प्रजनन क्षमता की हानि, मिट्टी के कटाव, जल भराव, लवणता, बाढ़ और सूखा भूमि अवक्रमण के कुछ प्रमुख पहलू हैं।
(iii) मृदा अपरदन
भूमि की ऊपरी सतह पानी या हवा के कारण एक जगह से दूसरी जगह चली जाती है जिसे मृदा अपरदन कहते हैं। जिसमें मुख्यतः जल एवं वायु जैसे प्राकृतिक भौतिक बलों द्वारा भूमि की ऊपरी मृदा के कणों को अलग कर बहा ले जाना शामिल है।
(iv) प्राथमिक उत्पादकता
प्राथमिक उत्पादकता, पौधों द्वारा प्रति इकाई क्षेत्र मे बायोमास का उत्पादन करने की दर को कहते हैं। प्राथमिक उत्पादकता, प्रकाश संश्लेषण और श्वसन को प्रभावित करने वाले पर्यावरणीय कारकों से सर्वाधिक प्रभावित होती है।
(v) भू-तापीय ऊर्जा
भू-तापीय ऊर्जा वह ऊर्जा है जो भूमि के भीतर से उत्पन्न होती है। यह ऊर्जा पृथ्वी की सतह से या दरारों के माध्यम से प्राकृतिक गीजर के रूप में जमीन पर निकलती है, जैसे - मणिकरण, कुल्लू और सोहाना, हरियाणा में। इसे अक्सर जल, और बिजली उत्पन्न करने के लिए उपयोग किया जाता है।
(vi) स्थलमंडल
स्थलमंडल, पृथ्वी की ठोस पर्पटी या कठोर ऊपरी परत को कहते हैं। यह चट्टानों और खनिजों से बना होता है और मिट्टी की पतली परत से ढका होता है। स्थलमंडल, पहाड़, पठार, मैदान, घाटी आदि जैसी विभिन्न स्थलाकृतियों वाला विषम धरातल होता है। माउन्ट एवेरेस्ट स्थलमंडल में उच्चतम बिंदु है।
(vii) खतरनाक अपशिष्ट
खतरनाक अपशिष्ट वह अपशिष्ट है जो मानव, पशु स्वास्थ्य या पर्यावरण के लिए खतरा या जोखिम पैदा करने की क्षमता रखता है। इसमें पेट्रोलियम रिफाइनिंग, फार्मास्युटिकल उत्पादन, पेट्रोलियम, पेंट, एल्युमीनियम, इलेक्ट्रॉनिक आइटम आदि जैसे वाणिज्यिक उत्पाद निर्माण से उत्पन्न कचरा शामिल है।
(viii) बांध
बांधों के निर्माण द्वारा जल संग्रहण को सिंचाई के लिए जल प्रबंधन का एक कुशल घटक माना जाता है। भारत में, सिंचाई के लिए जल की उच्च स्तर की मांग को विभिन्न ऊंचाइयों के बांधों के निर्माण से प्राप्त किया जा सकता है। आजादी के बाद से अब तक 700 से ज्यादा बांध बनाए जा चुके हैं।
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