हिन्दी: रंगमंच Notes

Aug 07, 2025
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प्रश्न 1 नाट्यशास्त्र का संक्षिप्त परिचय दीजिए। इसके साथ ही नाट्यशास्त्र की विशेषताओं का उल्लेख करें।

उत्तर -

परिचय

नाट्यशास्त्र भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है, जिसे भरत मुनि द्वारा रचित माना जाता है। यह ग्रंथ नाट्य (नाटक) और नृत्य के सिद्धांतों का विस्तृत वर्णन करता है और इसे भारतीय रंगमंच का पहला और सबसे प्राचीन ग्रंथ माना जाता है। यह ग्रंथ 36 अध्यायों में विभाजित है जिसमें नाट्यकला के साथ-साथ नृत्य, संगीत, अभिनय, मंच-सज्जा और अन्य कलाओं से संबंधित सभी पहलुओं को विस्तार से समझाया गया है।

नाट्यशास्त्र से तात्पर्य : आसन शब्दों में, नाट्य संबंधित सभी विषयों का प्रतिपादन करने वाला ग्रंथ 'नाट्यशास्त्र" है। जिसमें नृत्य, संगीत और नाटक के विभिन्न पहलुओं को शामिल किया गया है।


नाट्यशास्त्र के रचयिता: "भरत मुनि" :


भरत मुनि को पारंपरिक रूप से नाट्य शास्त्र का लेखक माना जाता है। भारतीय नाट्य कला पर विचार करते समय नाट्यशास्त्र सदा आगे आ जाता है। इसमें नाटक का प्रामाणिक और विस्तृत विवेचन प्रस्तुत किया गया है। भरत मुनि ने इस ग्रंथ को दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व के आसपास लिखा था। भरतमुनि ने अपने नाट्यशास्त्र की रचना नटों को प्रशिक्षण देने के लिए की थी। उनका नाट्यशास्त्र केवल एक पुस्तक ही नहीं, बल्कि सदियों तक बनी रहने वाली एक जीवंत परंपरा है। भरतमुनि ने नाट्य के लिए वेद को भी एक प्रमाण माना है और नाट्य को उन्होंने चार वेदों के अतिरिक्त पाँचवा वेद कहा है।

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नाट्यशास्त्र का संक्षिप्त परिचय :

नाट्यशास्त्र कुल 36 अध्यायों में विभाजित है, जिनमें नाट्यकला के विभिन्न पहलुओं का वर्ण न है:

अध्याय 1-6      >  नाट्यशास्त्र की उत्पत्ति, नाट्य की परिभाषा और इसके विभिन्न अंगों का वर्णन।
अध्याय 7-12    > अभिनय के विभिन्न प्रकार, नाट्य की रचना और प्रदर्शन।
अध्याय 13-22  > रस भाव, और उनके विभिन्न प्रकार।
अध्याय 23-27  > वेशभूषा, आभूषण, और मंच सज्जा।
अध्याय 28-36  > संगीत, वाद्य यंत्र, और नृत्य के विभिन्न प्रकार।

नाट्यशास्त्र की विशेषताएँ :

1. कथानक और विषयवस्तु :
नाट्यशास्त्र में कथानक (कहानी) का विशेष महत्व है। इसमें कहानी को इस प्रकार प्रस्तुत किया जाता है कि दर्शकों में रस उत्पन्न हो। नाटक की कहानी को सत्य और कल्पना का मिश्रण बताया जाता है, जिसमें नायक की कठिनाइयों और संघर्षों को प्रमुखता दी जाती है। विषयवस्तु का चयन भी ऐसा होता है जो सामाजिक, धार्मिक या राजनीतिक हो, ताकि वह व्यापक रूप से समाज को प्रभावित कर सके।

2. संवाद और भाषा-शैली:
नाट्यशास्त्र में संवादों को कथानक के अनुकूल बनाने पर जोर दिया जाता है। संवाद प्रभावशाली, अर्थपूर्ण और पात्रों के चरित्र के अनुरूप होते हैं। भाषा-शैली पात्रों की स्थिति, उनके सामाजिक स्तर, और घटनाओं के अनुरूप होती है। संस्कृत भाषा का उपयोग प्रधान रूप से होता है। संवादों की शैली भावों को प्रकट करने में सक्षम होती है, जिससे दर्शक भावनात्मक रूप से जुड़ पाते हैं।

3. संगीत और नृत्य का प्रयोग:
नाट्यशास्त्र में संगीत और नृत्य नाटक का अहम हिस्सा माने जाते हैं। इनसे नाटक के भाव और प्रभाव को और भी जीवंत और असरदार बनाया जाता है। अलग-अलग राग और ताल का चयन कहानी की स्थिति और भावनाओं के अनुसार किया जाता है। नृत्य के ज़रिए भावनाओं का प्रदर्शन, कहानी का विकास और पात्रों की मनःस्थिति को दिखाया जाता है। इससे नाटक अधिक आकर्षक और दिलचस्प बनता है।

4. पात्र और चरित्र-चित्रण :
नाट्यशास्त्र में पात्रों का चित्रण अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। प्रत्येक पात्र का चरित्र उसकी भावनाओं, उसकी स्थिति और उसके कार्यों के आधार पर विकसित किया जाता है। नायक, खलनायक, विदूषक आदि जैसे पात्रों के चरित्र को विशिष्ट तरीके से प्रस्तुत किया जाता है। पात्रों का मनोवैज्ञानिक विकास भी दिखाया जाता है, जिससे नाटक में गहराई आती है।

5. वेशभूषा और मुख-सज्जा :
नाट्यशास्त्र में वेशभूषा और मुख-सज्जा (मेकअप) एक अहम पहलु हैं। यह पात्रों के सामाजिक, धार्मिक और भौगोलिक स्तर को दर्शाती है। मुख-सज्जा का इस्तेमाल पात्रों के चेहरे के भावों को और भी प्रभावशाली बनाने के लिए किया जाता है। खास पात्रो जेसे देवता, राक्षस, राजा आदि के लिए विशेष प्रकार की वेशभूषा और मुख-सज्जा का प्रयोग किया जाता है, जिससे वे ज्यादा प्रामाणिक और आकर्षक लगते हैं

निष्कर्ष
भारतीय नाट्यकला का प्राचीन और व्यापक ग्रंथ "नाट्यशास्त्र" जिसमें नाटकों की रचना और प्रस्तुति के सभी आवश्यक तत्वों को विस्तार से बताया गया है। कथानक, संवाद, संगीत, नृत्य, के प्रभावशाली संयोजन से नाटक दर्शकों के मन में गहरी छाप छोड़ता है। इन सिद्धांतों का उद्देश्य सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि समाज के नैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों को उजागर करना भी है। इस तरह, नाट्यशास्त्र न केवल एक कला का मार्गदर्शन करता है, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तन का माध्यम भी बनता है

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