History : Medieval Societies: Global Perspective Notes IN Hindi Medium | B.A (Prog.) Education Sem 2nd

May 21, 2025
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History : Medieval Societies: Global Perspective Notes IN Hindi Medium | B.A (Prog.) Education Sem 2nd

प्रश्न 1 - यूरोपियन सामन्तवाद के उदय तथा पतन के कारणों का वर्णन कीजिए । इसके साथ ही सामंतवाद की मुख्य विशेषताओं का भी आकलन कीजिए ।

उत्तर - परिचय

इतिहासकारों द्वारा 'सामंतवाद' (fuedalism) शब्द का प्रयोग मध्यकालीन यूरोप के आर्थिक, विधिक, राजनीतिक और सामाजिक संबंधों का वर्णन करने के लिए किया जाता रहा है। यह जर्मन शब्द 'फ़्यूड' से बना है जिसका अर्थ 'एक भूमि का टुकड़ा है' और यह एक ऐसे समाज को इंगित करता है जो मध्य फ्रांस और बाद में इंग्लैंड और दक्षिणी इटली में भी विकसित हुआ। विशेष रूप से पश्चिमी यूरोप में इस अवधि के दौरान कई सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन हुए। मध्यकाल के दौरान पश्चिमी यूरोप में ऐसी सामाजिक व्यवस्था विकसित हुई जो शेष विश्व से बहुत भिन्न थी। इसे 'सामंतवाद' के नाम से जाना जाता है।

चिन्तक के विचार:

वेब्सटर के अनुसार 'सामंतवाद एक ऐसी प्रणाली है जिसमें स्थानीय शासक उन शक्तियों का प्रयोग करते हैं जो राजा, सम्राट अथवा किसी केंद्रीय शक्ति को प्राप्त होते हैं। सामंतवाद वैयक्तिक शासन, एक विशिष्ट भूमि व्यवस्था और व्यक्तिगत निर्भरता का मिश्रित रूप था।

हेनरी पिरेन के अनुसार 'फ्युडलिज्म एक बन्द जागीरी व्यवस्था थी जिसमें उत्पादन मुख्यतः उपयोग के लिए होता था और व्यापार लगभग था ही नहीं।

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यूरोप में सामंतवाद का उदय:

यूरोप में सामन्‍तीय व्‍यवस्‍था का आरम्‍भ पाँचवी शताब्‍दी से माना जाता है। यूरोप मे सामन्‍तीय व्‍यवस्‍था 5वीं शताब्‍दी तक रही। यह यूरोपीय इतिहास का मध्‍ययुग कहलाता है। किन्‍तु 15वीं शताब्‍दी तक यह प्रथा काफी निर्बल हो गई और जल्‍द ही सारे यूरोप में सामन्‍तीय व्‍यवस्‍था का अन्‍त हो गया।

रोमन साम्राज्‍य के पतन के बाद सामंतवाद का उदय हुआ । रोमन साम्राज्‍य के पतन के बाद यूरोप मे अराजकता ने जन्‍म ले लिया। जगह-जगह लूटमार व रक्‍तपात होने लगे थे। ऐसी स्थिति  में यूरोप महाद्वीप का सामान्‍य जीवन ख़राब होने लगा। आतंकवाद के इसी प्रकार के विस्‍तार को देखकर लोगों ने अपनी जानमाल की रक्षा के लिये एक ऐसे व्‍यक्ति की अधीनता स्‍वीकार कर ली जो उसकी इन अत्‍याचारों से रक्षा कर सकें। ऐसे सभी लोगों को उस अत्‍याचार युग में सामन्‍त की संज्ञा दी गई।

यूरोपियनों ने जिन शक्तिशाली व्‍यक्ति का आश्रय प्राप्‍त किया था वही कालान्‍तर में एक विशाल भू-भाग के स्‍वामी बनकर तथा सशक्‍त एवं सम्‍पन्‍न होकर शरणागत व्‍यक्तियों की सुरक्षा का प्रबंध करने लगें। इन अधीनस्‍थ व्‍यक्तियों के सुव्‍यवस्थित जीवन का भार भी इन्‍ही सामन्‍तों पर आ गया। इस प्रकार से सामन्‍त यूरोप के इतिहास से अपना महत्‍वपूर्ण स्‍थान रखने लगे।

सामंतवाद के पतन के कारण:

सामंतवाद के विकास का एक लंबा एवं जटिल इतिहास रहा है उसी प्रकार इसका पतन भी एक लंबी प्रक्रिया के तहत हुआ । सांमतवाद का पतन इतिहासकारों के बीच एक विवाद का प्रश्न रहा है। विद्वानों का मानना है कि 14वीं शताब्दी में सामंतवाद का धीरे-धीरे पतन होने लगा और कुछ समय बाद यूरोप से यह व्यवस्था समाप्त हो गई। कुछ विद्वानों का मानना है कि व्यापार के फिर से उभरने और विकसित होने तथा फलस्वरूप नगरों का विकास सामंतवाद के पतन का मुख्य कारण था । अन्य विद्वानों का प्रौधोगिकी का स्तर, कृषि में उत्पादकता, जनसंख्या संबधी बदलाव और ग्रामीण परिदृश्य में परिवर्तन जैसे अन्य मुद्दे सामंतवाद के पतन के लिए जिम्मेदार थे।

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1. नवीन हथियारों तथा बारूद का प्रयोग

नवीन हथियारों और बारुद के प्रयोग ने भी सामंतवाद के पतन में महत्वपूर्ण सहयोग दिया। सामंतों ने अपने-अपने क्षेत्रों में शक्तिशाली दुर्गों का निर्माण कर रखा था, जिसके कारण उन्हें पराजित करना और उनके दुर्गों पर अधिकार करना आसान नहीं था, किंतु बारूद के आविष्कार और युद्धों में उसके प्रयोग ने सामंतों की स्थिति में परिवर्तन कर दिया। राजाओं ने अपनी स्वयं की सेनाएँ स्थापित की और उनको नवीन बंदूकों और बारूद से सुसज्जित किया। बारूद के प्रयोग से सामंतों के शक्तिशाली दुर्गों को ढहाना और उन पर अधिकार करना आसान हो गया।

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2. जनसंख्या में वृद्धि

1960-70 के दशक में नव-माल्थसवादियों ने भी सामंतवाद के पतन की व्याख्या अपने तरीके से की। इनका मानना है कि जनसंख्या के पैटर्न में आए बदलाव के कारण सामंती अर्थव्यवस्था का पतन हुआ। ये आगे कहते हैं कि आर्थिक ढाँचे में दीर्घकालीक परिवर्तन में जनसंख्या की बड़ी भूमिका थी 

इमैनुएल लि रॉय लादूरी (Emmanuel Le Roy Ladurie ) ने यह तर्क दिया कि मध्ययुगीन यूरोप में बढ़ी हुई आबादी का बोझ सहन करने में कृषि अपने को असमर्थ पा रही थी। जनसंख्या में वृद्धि के साथ-साथ उत्पादकता में गिरावट, जोतों का विखंडन, मजदूरी में गिरावट और लगान में वृद्धि के कारण कृषि संकट पैदा हो गया । इसलिए 1314-15 ई0 में अकाल और 1348-51 में प्लेग ने ऐसा कहर बरपाया कि यूरोप की एक चौथाई जनसंख्या समाप्त हो गई। इससे मध्ययुगीन यूरोप का संपूर्ण संतुलन बिगड़ गया और पूँजीवाद की और संक्रमण हुआ ।

3. पारस्परिक संघर्ष

सामंतवादी व्यवस्था के पतन का एक प्रमुख कारण सामंतों का पारस्परिक संघर्ष था। प्रत्येक सामंत की अपनी अलग-अलग सेना होती थी, जिनका मुख्य उद्देश्य आवश्यकता पड़ने पर देश की सुरक्षा करना होता था। मध्यकालीन यूरोप में राजा की अपनी कोई व्यक्तिगत सेना नहीं होती थी । युद्ध की स्थिति उत्पन्न होने पर वह अपने सामंतों की संयुक्त सेना का प्रयोग करता था। किंतु ये सामंत प्रायः आपस में लड़ते रहते थे। इंग्लैंड में 'गुलाब के फूलों का युद्ध' इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। फ्रांस की स्थिति इंग्लैंड से भी खराब थी। वहाँ सामंतों में निरंतर पारस्परिक संघर्ष चलता रहता था, जिससे न केवल देश की हानि होती थी बल्कि  उनकी स्वयं की शक्ति का भी ह्रास होता था।

अनेक सामंतों ने धर्मयुद्धों में भाग लेने और ईसाई धर्म की सुरक्षा के लिए अपनी भूमि या तो बेच दी या उसे गिरवी रख दिया। इससे उनकी सत्ता व शक्ति क्षीण हो गई। अनेक सामंत इन धर्मयुद्धों में वीरगति को प्राप्त हुए और उनकी भूमि पर राजाओं ने अपना अधिकार स्थापित कर लिया।

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4. पुनर्जागरण और सुधार आंदोलन

पुनर्जागरण और सुधार आंदोलन जैसे सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तनों ने समाजार्थिक मूल्यों और दृष्टिकोणों में बदलाव किया, जिससे सामंती व्यवस्था का पतन निश्चित हो गया। 14वीं शताब्दी में पुनर्जागरण की लहर इटली में शुरू होकर शीघ्र ही पूरे यूरोप में फैल गई। इस आंदोलन ने समाज, राजनीति और संस्कृति के संबंध में पारंपरिक मध्ययुगीन विश्वदृष्टि के स्थान पर एक नये दृष्टिकोण  का प्रचार किया । पुनर्जागरण के विचारकों ने मानव के तर्क, व्यक्तिवाद और शिक्षा के महत्व पर जोर दिया, जो आज्ञाकारिता, पदानुक्रम और वफादारी के पारंपरिक सामंती मूल्यों के विपरीत थे। पुनर्जागरण ने कला, साहित्य और विज्ञान के नये रूपों को भी जन्म दिया, जिसने पारंपरिक सामंती संस्कृति को चुनौती दी। 16वीं शताब्दी में सुधार आंदोलन ने भी कैथोलिक चर्च के साथ-साथ पारंपरिक सामंती संबंधों को चुनौती दी।

5. नये हथियारों का अविष्कार

लगातार हो रहे युद्धों के कारण सामंतों की संख्या घटती जा रही थी और दूसरी ओर नए हथिआरों के आविष्कार के कारण उनका सामाजिक एवं सामरिक महत्त्व भी घट रहा था । घुड़सवार सामंत अपने भाले, बर्छे और तलवारों से लड़ते थे और इस कारण वे युद्ध में कुशल समझे जाते थे। इस समय लंबे धनुष का प्रचलन आरंभ हुआ। इससे तीरंदाज किसान भी घुड़सवार सामंत का मुकाबला करने लगा और सामाजिक दृष्टि से अब नाइट की पुरानी प्रधानता जाती रही।

इन सामंतों की सामरिक प्रधानता का दूसरा कारण था कि वे अपने दुर्भेध किलों में रहकर अपनी सुरक्षा आसानी से करते थे, किंतु मंगोल यूरोप में सबसे पहले बारूद लाये और अरब युद्ध में बारूद के गोलों का व्यवहार होने लगा। गोला-बारूद द्वारा सामंती किलों पर दखल जमाना आसान हो गया, इसलिए अब सामंती किले की दुर्भेधता जाती रही ।

6. किसान विद्रोह

सामंतों के पतन का एक प्रमुख कारण था किसानों का विद्रोह । कृषि अधिशेष का सामंतो के द्वारा अधिक दोहन का बुरा असर किसानों पर पड़ा। छोटे एवं मध्यम किसान भी इससे प्रभावित हुए क्योंकि अधिशेष दोहन के दर में वृद्धि से उनके पास मुश्किल से कुछ बचता था । एम.एम. पोस्टन के अनुसार सामंती कुलीन वर्ग के द्वारा आश्रित किसानों से कुल उपज का आधा भाग लिया जाता था। इसके साथ-साथ लगातार कृषि के कारण भूमि की उर्वरकता भी कम होती जा रही थी क्योंकि उर्वरकता हासिल करने के लिए किसान जमीनों को बहुत दिनों तक परती नहीं छोड़ सकते थे। साथ ही किसानो की सीमित आय के कारण उन्नत बीज, उर्वरक और तकनीक पर खर्च नहीं करते सकते थे।

परिणामस्वरूप कृषि उत्पादन में गिरावट दर्ज हुआ और खाद्य पदार्थो के असमान वितरण और आबादी में लगातार वृद्धि के कारण संकट को जन्म दिया। साथ ही साथ सामंती वर्ग के द्वारा कृषि के क्षेत्र में कोई रूचि का न लेना तथा भोग विलास में ज्यादा खर्च करना भी महत्तवपूर्ण भूमिका निभा रहा था।

7. व्यापार वाणिज्य में वृद्धि

बेल्जियम के इतिहासकार हेनरी पिटेन ने सामंतवाद के पतन के लिए व्यापार के प्रसार और शहरी केंद्रों के उदय को जिम्मेदार बताया है। धर्मयुद्धों और नई भौगोलिक खोजों के कारण पूरब एवं पश्चिम के लोग एक-दूसरे के संपर्क में आये और जिससे व्यापार और वाणिज्य का पुनरुत्थान हुआ और एक नवीन व्यापारी वर्ग का उदय हुआ। इससे सामंतों की प्रभुसत्ता कमजोर हुई क्योंकि व्यापारी वर्ग सामंती व्यवस्था से बंधा हुआ नहीं था। व्यापार का वातावरण स्वतंत्रता का वातावरण था और सामंती प्रथा का वातावरण असंतोष और संकीर्णता का। इसलिए दोनों में संघर्ष होना स्वाभाविक था। व्यापार में कुछ व्यापारियों ने इतना धन कमाया कि वे सामंतों से अधिक धनी, संपन्न और वैभवशाली हो गये। व्यापारियों को सामंतों से हेय समझा जाता था, जिसके कारण वे सामंतों से ईर्ष्या करते थे और सामंतों के विरुद्ध राजा को भी सहयोग दिये। इस प्रकार व्यापार की उन्नति और राजाओं की शक्ति में वृद्धि के साथ-साथ सामंतवाद का पतन होना स्वाभाविक था।

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सामंतवाद की विशेषताएँ:

सामंतवाद का राजनीतिक और प्रशासनिक ढाँचा भूमि अनुदान और कृषि दासत्व प्रथा पर आधारित था। इस व्यवस्था के अंतर्गत समाज के भिन्न-भिन्न वर्गों के लोग एक निश्चित पारस्परिक संबंध में स्वयं को बाँध लेते थे। यह संबंध प्रतिरक्षा और सेवा पर आधारित होता था। समाज का शक्तिशाली वर्ग कमजोर वर्ग के लोगों की रक्षा करने का उत्तरदायित्व अपने ऊपर ले लेता था और कमजोर वर्ग शक्तिशाली वर्ग की सेवा करना स्वीकार कर लेता था ।

सामंतवाद यूरोप की एक सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्था थी, जिसमें एक पदानुक्रमित संरचना में कुलीन, जागीरदार ओर सर्फ आपसी दायित्वों और  सेवाओं के आधार पर एक जटिल संबंधों में बंधे थे।

मध्ययुगीन यूरोप में सामंतवाद की तीन प्रमुख विशेषताएँ थीं:- जागीर, संरक्षण और संप्रभुता जागीर साधारणतया भूमि को कहते थे, जो सामंती पदानुक्रम का प्रमुख आधार थी। सामंतों के पास बड़ी-बड़ी जागीरें थीं, जो उन्हें राजा से सैन्य सेवा के बदले में मिली थीं। संरक्षण का अर्थ भूमिदाता द्वारा भूमि पाने वाले की सुरक्षा से था, और संप्रभुता अपनी जागीर में भूमिपति के पूर्ण अथवा आंशिक स्वामित्व को कहा जाता था।

सामंतवाद एक ऐसी मध्ययुगीन प्रशासकीय प्रणाली और सामाजिक व्यवस्था थी, जिसके अंतर्गत कानूनी रूप से राजा सम्राट समस्त भूमि का स्वामी होता था और भूमि विविध श्रेणी के सामंतों और सैनिकों में विभक्त होती थी। भूमि, धन और संपत्ति का साधन समझी जाती थी । सामंतों में यह वितरित भूमि उनकी जागीर होती थी जिसमें वे अपनी इच्छानुसार कृषकों से खेती करवाते हुए उनसे कर वसूल करते थे, भेंट ओट उपहार लेते थे।

व्यावहारिक रूप में सामंत अपनी जागीर में प्रभुता संपन्न होते थे और उन तमाम प्रशासनिक अधिकारों का प्रयोग करते थे, जो पहले केवल राजाओं को मिले हुए थे। अपनी जागीर  में शांति और सुरक्षा बनाये रखना सामंतों का दायित्व था और इसके बदले में वे कृषकों से कर वसूल करते थे

निष्कर्ष

यह कहा जा सकता है कि यूरोप में उत्पादन की सामंती प्रणाली हावी हो गई थी। सामंती राज्य व्यवस्था, समाज और अर्थव्यवस्था की संस्थाओं को पदानुक्रम के साथ वर्गीकृत किया गया था। संरचनाओं में समानता के बावजूद पूरे यूरोप में सामंती सामाजिक संरचना के विकास में अंतर थे। शक्ति संबंधों की इस पिरामिडनुमा संरचना में भूमि सामाजिक- राजनीतिक संबंधों को तय करने का प्रमुख साधन बन गई।

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