History of India 1858-1947 In Hindi Medium

Aug 06, 2025
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प्रश्न 1- "19वीं सदी के भारत में सामाजिक और धार्मिक सुधार आंदोलनों की पृष्ठभूमि का विश्लेषण कीजिए।" ब्रह्म समाज, के सिद्धांतों और कार्यों पर विशेष प्रकाश डालिए।"

उत्तर -

परिचय


19वीं सदी के दौरान भारत में सामाजिक और धार्मिक सुधार आंदोलनों की शुरुआत हुई। अंग्रेजों के शासन और पश्चिमी शिक्षा के प्रभाव से लोगों ने जातिवाद, सती प्रथा, बहुविवाह और महिलाओं की स्थिति जैसी कुरीतियों पर सवाल उठाने शुरू किए। इस समय समाज में बदलाव की आवश्यकता महसूस की गई। राजा राममोहन राय जैसे सुधारकों ने सामाजिक न्याय, समानता ओर धर्म सुधार की दिशा में काम किया। उनके प्रयासों से ब्रह्म समाज जैसी संस्थाओं का निर्माण हुआ, जिन्होंने प्रमुख समस्याओं को सुधारने की कोशिश की।

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विश्लेषण: 19वीं सदी के भारत में सामाजिक और धार्मिक सुधार आंदोलनों की पृष्ठभूमि


1. अंग्रेजों के आगमन से सामाजिक सोच में बदलाव: भारत में अंग्रेजों के शासन के साथ नई कानूनी और प्रशासनिक व्यवस्थाएँ आईं। इससे भारतीय समाज को अपनी पुरानी व्यवस्था की कमजोरियों दिखने लगीं। जातिवाद, धर्म, महिलाओं की स्थिति और शिक्षा पर सवाल उठने लगे। यह बदलाव धीरे-धीरे सामाजिक क्रांति में बदल गया।


2. अंग्रेजी शिक्षा और नए विचारों का असर अंग्रेजों ने जब भारत में अंग्रेजी शिक्षा शुरू की, तो भारतीय युवाओं को पश्चिमी देशों के विचारों से की जानकारी हुई। स्वतंत्रता, समानता, वैज्ञानिक सोच और मानव अधिकार जैसे विचार भारतीयों को आकर्षित करने लगे। इससे भारतीय समाज में रूढ़ियों और कुरीतियों के खिलाफ एक सोच विकसित हुई, जो समाज सुधार आंदोलनों की नींव बना।


3. समाज सुधारकों की जागरूकता राजा राममोहन राय, ईश्वरचंद्र विद्यासागर स्वामी दयानंद सरस्वती जैसे समाज सुधारकों ने भारतीय समाज की बुराइयों को दूर करने के लिए आवाज़ उठाई। उन्होंने सती प्रथा, बाल विवाह, स्त्रियों की अशिक्षा, और विधवा पुनर्विवाह जैसे मुद्दों पर खुलकर बात की। उनके प्रयासों से समाज में जागरूकता आई और सुधार की दिशा में कदम उठे।


4. ईसाई प्रचारकों और अंग्रेज विद्वानों की भूमिका ईसाई मिशनरियों ने भारतीय धर्मों और परंपराओं की बुराई की, जिससे भारतीय विद्वानों को अपनी संस्कृति को बचाने और समझने की प्रेरणा मिली। अंग्रेज इतिहासकारों ने भारत के इतिहास और समाज पर जो बातें लिखीं, उन्होंने भारतीयों को खुद पर सोचने और सुधार करने के लिए प्रेरित किया।

5. मीडिया और महिलाओं की स्थिति पर नई सोच अखबारों, पत्रिकाओं और पुस्तकों ने समाज की बुराइयों को उजागर करना शुरू किया और लोगों को सुधार के लिए जागरूक किया। खासकर महिलाओं की शिक्षा, अधिकार और सम्मान की माँग ज़ोर पकड़ने लगी। कई सुधारकों और संस्थाओं ने महिलाओं की स्थिति सुधारने के लिए स्कूल, आश्रम और पत्रिकाएं शुरू करें, जिससे समाज में सकारात्मक बदलाव आने लगा।

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ब्रह्म समाज


राजा राम मोहन राय


ब्रह्म समाज एक महत्वपूर्ण सुधार आंदोलन था, जिसकी शुरुआत 20 अगस्त 1828 में राजा राम मोहन राय ने की थी। इसका उद्देश्य हिंदू धर्म में एक भगवान पर विश्वास करना, अंधविश्वासों का विरोध करना और समाज में सुधार लाना था।
22May 1772-27 Sep 1833 राजा राम मोहन राय (22 मई 1772-27 सितंबर 1833) एक भारतीय सामाजिक सुधारक, लेखक और दार्शनिक थे, जिन्हें आधुनिक भारत का जनक भी कहा जाता है, उन्होंने 1828 में ब्रह्म समाज की स्थापना की, जो भारतीय उपमहाद्वीप में सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलन का अग्रदूत था।


ब्रह्म समाज के सिद्धांत :-


1. ब्रह्म समाज का मानना था कि एक ही ईश्वर है, जो दुनिया को बनाता है और उसकी देखभाल करता है। ईश्वर के पास अनंत शक्ति और अच्छाई है।

2. हर इंसान की आत्मा हमेशा जीवित रहती है, वे अपने कामों के लिए ईश्वर के प्रति जिम्मेदार है।

3. व्यक्ति या मानव निर्मित किसी भी चीज की ईश्वर के रूप में पूजा नहीं की जानी चाहिए।

4.ईश्वर अच्छे लोगों की आत्माओं से बात करता है. इसलिए ईश्वर से बात करने के लिए पैगम्बर या पवित्र पुस्तकों की कोई ज़रूरत नहीं है।

5 ब्रह्म समाज का मानना है कि सत्य ही धर्म है। धार्मिक किताबों को तब तक मानना चाहिए, जब तक वो ईश्वर की सिखाई बातों से मेल खाती हों।

6. लोगों को हर दिन प्रेम और आदर्शों के साथ ईश्वर की पूजा करनी चाहिए।

7. सभी लोग ईश्वर के सामने समान हैं, इसलिए जाति, रंग, नस्त या लिंग के आधार पर किसी के साथ भेदभाव नहीं होना चाहिए।

8. ब्रह्म समाज मूर्तियों की पूजा, जानवरों की बलि पा अनुष्ठान में विश्वास नहीं रखता है।

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ब्रह्म समाज के कार्य :-


1. सती प्रथा का उन्मूलन : राजा राममोहन राय ने 1818 में अपनी भाभी की सती होते देख सती प्रथा के खिलाफ आंदोलन शुरू किया। उन्होंने इसे खत्म करने का संकल्प लिया। उनके संघर्ष के परिणामस्वरूप, 1829 में ब्रिटिश सरकार ने सती प्रथा को गैरकानूनी घोषित किया और इस पर रोक लगाई।

2. बहु विवाह और जातिवाद का विरोध : राजा राममोहन राय ने बहुविवाह और जातिवाद के खिलाफ संघर्ष किया। उन्होंने कहा कि विवाह प्रेम और सम्मान पर आधारित होना चाहिए, न कि जाति या व्यापार के आधार पर। उन्होंने समान अधिकारों की वकालत की और समाज से जातिवाद को समाप्त करने का समर्थन किया।

3. किसानों का समर्थन : राजा राममोहन राय ने किसानों के अधिकारों का समर्थन किया। वे नहीं चाहते थे कि ज़मींदार किसानों से अत्यधिक किराया वसूल करें। उन्होंने ब्रिटिश सरकार से किसानों के भूमि किराए पर अधिकारों की रक्षा के लिए कानून बनाने की मांग की, ताकि किसानों के साथ उचित व्यवहार हो सके।

4. प्रेस की स्वतंत्रता: राजा राममोहन राय ने प्रेस की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया। 1823 में उन्होंने ब्रिटिश सरकार से समाचार पत्रों के लिए स्वतंत्रता की मांग की। 1835 में ब्रिटिश सरकार ने समाचार पत्रों के लिए कड़े नियमों को समाप्त कर दिया, जिससे भारतीयों को स्वतंत्र प्रेस की सुविधा मिली।

5. शिक्षा एवं साहित्य में योगदान : राजा राममोहन राय ने 1815-1820 के बीच 14 बंगाली और 10 अंग्रेजी पुस्तकें लिखीं। उन्होंने हिंदू धार्मिक ग्रंथों का अंग्रेजी, बंगाली और हिंदी में अनुवाद किया। 1820 में "द प्रीसेट्स ऑफ़ जीसस" जैसी पुस्तकें लिखकर उन्होंने धर्म और साहित्य में नवाचार किया।

6. देवेन्द्रनाथ ठाकुर और केशवचंद्र सेन : राजा राममोहन राय की मृत्यु के बाद, ब्रह्मसमाज को पुनर्जीवित करने का कार्य देवेंद्रनाथ ठाकुर ने किया। उन्होंने तत्त्वबोधिनी सभा-1839 की स्थापना की। उनके बाद, केशवचंद्र सेन ने ब्रह्मसमाज को आगे बढ़ाया और सामाजिक सुधारों में रुचि दिखाई, लेकिन उनके उदार विचारों से संगठन में विभाजन हुआ।

निष्कर्ष
19वीं सदी में सामाजिक और धार्मिक सुधार आंदोलनों ने भारत में महत्वपूर्ण परिवर्तन लाए। ब्रह्म समाज, जिसकी स्थापना राजा राममोहन राय ने की, ने सती प्रथा, बहुविवाह, और जातिवाद के खिलाफ संघर्ष किया। इसके साथ ही, इसने धार्मिक स्वतंत्रता, महिलाओं के अधिकार और समाज में समानता की दिशा में कदम बढ़ाए।

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