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INTRODUCTION
नमस्ते बच्चो / दोस्तों!
मैं मनीष वर्मा आपका स्वागत करता हूँ हमारे इस ब्लॉग वेबसाइट पर, जिसका सिर्फ एक ही उद्देश्य है — "जहाँ तक सड़क नहीं पहुँची, वहाँ तक शिक्षा पहुँचाना", क्योंकि ज्ञान सबका हक है!!
आज के इस ब्लॉग पेज के माध्यम से मैं आपको बताना चाहता हूँ — 4 साल की ग्रेजुएशन डिग्री के बारे में!
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि नई शिक्षा नीति (NEP 2020) के बाद से पढ़ाई का तरीका थोड़ा बदल गया है। अब सिर्फ किताबी ज्ञान नहीं, बल्कि वास्तविक जीवन की स्किल्स भी महत्वपूर्ण हैं। इसी बदलाव के तहत ही 4 साल की ग्रेजुएशन शुरू की गई है।
पहले हमारे यहाँ ग्रेजुएशन 3 साल की होती थी, जैसे BA, B.Sc या B.Com. पर अब 4 साल का नया सिस्टम है, जिसने छात्रों को एक्स्ट्रा समय, ज़्यादा विषय चुनने की आज़ादी, और रिसर्च करने के बेहतरीन मौके दिए हैं।
इस नए सिस्टम का मुख्य उद्देश्य यही है — “पढ़ाई सिर्फ डिग्री लेने के लिए नहीं, बल्कि कुछ नया सीखने और ज़िन्दगी में आगे काम आने के लिए हो!”
इतिहासिक पृष्ठभूमि (भारत और विश्व)
पहले भारत में ग्रेजुएशन ज़्यादातर 3 साल की होती थी। और यह सिस्टम तब से चला आ रहा था जब भारत ब्रिटिश शासन में था। लेकिन 2020 में नई शिक्षा नीति (NEP) ने कहा – "अब समय आ गया है 4 साल की ग्रेजुएशन का!" क्योंकि…
दुनिया के बड़े-बड़े देश जैसे USA, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया में तो 4 साल की ग्रेजुएशन काफी समय से चल रही है। वहाँ छात्र पहले 2 साल अलग-अलग विषयों का मिक्स पढ़ते हैं, फिर अपनी पसंद का मेजर विषय चुनते हैं। इससे उन्हें यह अंदाज़ा हो जाता है कि उनका इंटरेस्ट किस फील्ड में है। तीसरे वर्ष से वे उसी विषय को "मेजर" बना लेते हैं।
अब भारत भी यही मॉडल ला रहा है ताकि हमारे छात्र भी ग्लोबल स्टैंडर्ड्स के साथ कदम से कदम मिलाकर आगे बढ़ें और दुनिया के किसी भी कोने में आत्मविश्वास से खड़े हो सकें।
ज़रूरत क्यों है?
आपने यह ज़रूर सोचा होगा कि पहले तो BA, B.Com, B.Sc सिर्फ 3 साल के ही होते थे, तो अब 4 साल क्यों? क्या इसकी ज़रूरत थी भी? कहीं यह सरकार का गलत निर्णय तो नहीं?
तो हम आपको बताना चाहते हैं कि भारत में B.Tech, MBBS, और B.Pharma जैसे कोर्स पहले से ही 4 या 5 साल के होते हैं। मतलब, साइंस और प्रोफेशनल कोर्स के छात्रों को ज़्यादा गहराई से पढ़ाई करने को मिलती है। अब इस नए सिस्टम में वही गहराई ह्यूमैनिटीज़ और कॉमर्स के छात्रों के लिए भी लाई गई है।
पहले अगर आप किसी कारणवश पढ़ाई बीच में छोड़ देते थे, तो छात्रों का पूरा पैसा और समय बर्बाद हो जाता था। पर अब ऐसा नहीं है — आपने जितनी पढ़ाई की है, उतनी पढ़ाई का (Certificate / Diploma / Degree) आपको मिल जाएगा। आसान भाषा में कहें तो इस नए सिस्टम में हर साल कुछ न कुछ मिलेगा — यानी की "No Waste, Only Gain!"
देखिए कैसे:
YEAR |
KYA MILEGA? |
1ST YEAR | Certificate in chosen subject |
2nd YEAR | Diploma in specialization |
3rd YEAR | Honours with Research Degree |
4th YEAR | Honours with Research Degree |
दोस्तों, अब सवाल उठता है कि 4 साल की ग्रेजुएशन का क्या फ़ायदा है?
क्या सिर्फ एक साल बढ़ा दिया गया है, या इसके कुछ असली (Real) फ़ायदे भी हैं?
आइए, एक-एक करके इस सिस्टम में मिलने वाले फायदों को विस्तार से समझते हैं:
1. UGC-NET और PhD के लिए सीधा रास्ता – चौथे साल में छात्रों को रिसर्च-बेस्ड प्रोजेक्ट्स करने का मौका मिलता है। इससे छात्रों को अपने विषय में गहराई से ज्ञान प्राप्त होता है और UGC का नया नियम कहता है कि 4 साल की ग्रेजुएशन के बाद आप सीधे UGC-NET एग्ज़ाम दे सकते हैं और PhD भी शुरू कर सकते हैं।
2. अपनी पसंद के विषय पढ़ो – इस सिस्टम में आपको फ्लेक्सिबिलिटी मिलती है। आप साइंस के साथ म्यूज़िक, या कॉमर्स के साथ हिस्ट्री भी पढ़ सकते हैं। यह एक मल्टी-डिसिप्लिनरी अप्रोच है जिससे करियर के और भी ज़्यादा विकल्प खुलते हैं।
3. `मल्टीपल एग्ज़िट और री-एंट्री सिस्टम – अब आप जहाँ पढ़ाई छोड़े, वहीं से दोबारा शुरू कर सकते हैं, और यह सब होगा Academic Bank of Credits (ABC) के ज़रिए जो आपके सभी क्रेडिट्स को डिजिटल रूप में सेव करता है।
4. ग्लोबल लेवल से मैच – अमेरिका, कनाडा जैसे देशों में 4 साल की डिग्री ही स्टैंडर्ड मानी जाती है। इससे आपकी डिग्री की ग्लोबल वैल्यू बढ़ती है और इंटरनेशनल स्टडीज़ या जॉब्स के लिए रास्ता आसान होता है।
अब कुछ छात्रों का यह भी सवाल होता है कि — क्या यह नया सिस्टम सभी के लिए बराबर रूप से फायदेमंद है? या फिर इसके कुछ नुकसान (Disadvantages) भी हो सकते हैं?
तो चलिए, एक-एक करके समझते हैं कि इसके संभावित नुकसान क्या हो सकते हैं:
एक साल का एक्स्ट्रा समय और पैसा – जहां पहले 3 साल में डिग्री मिल जाती थी, अब एक साल और बढ़ गया है। इसका मतलब है एक साल की ज़्यादा फीस, रहने का खर्चा, और जॉब में देरी — जो कई छात्रों के लिए आर्थिक बोझ हो सकता है।
हर छात्र को रिसर्च नहीं चाहिए – सभी छात्रों का इंटरेस्ट रिसर्च या पीएचडी में नहीं होता। कई छात्र सिर्फ एक अच्छी डिग्री लेकर जल्दी नौकरी पाना चाहते हैं। उनके लिए चौथे साल की पढ़ाई फायदेमंद नहीं लगती।
कॉलेजों पर भी अतिरिक्त बोझ – हर कॉलेज के पास इतनी फैकल्टी, लैब और रिसर्च की सुविधाएं नहीं होतीं। सभी जगहों पर क्वालिटी बनाए रखना एक चुनौती हो सकती है।
कन्फ्यूजन और स्पष्टता की कमी – फ्लेक्सिबल सिस्टम में ज़्यादा विकल्प होते हैं, लेकिन यही विकल्प कभी-कभी कन्फ्यूजन का कारण बनते हैं। स्टूडेंट्स और पेरेंट्स के लिए सही विकल्प चुनना मुश्किल हो सकता है।
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दोस्तों, 4 साल का ग्रेजुएशन मॉडल एक प्रगतिशील कदम है। इसमें फ्लेक्सिबिलिटी, रिसर्च स्कोप और इंटरनेशनल कम्पैटिबिलिटी जैसे कई फायदे हैं। लेकिन कुछ चुनौतियाँ भी हैं जिन्हें नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।
हर छात्र की यात्रा अलग होती है — कोई जल्दी नौकरी चाहता है तो कोई आगे की पढ़ाई। रूरल एरिया में अभी भी संसाधनों की कमी है। और सभी छात्र एक और साल की फीस वहन नहीं कर सकते।
मेरा मानना है कि:
छात्रों को सही मेंटरशिप मिलनी चाहिए ताकि वे अपने गोल्स के अनुसार 3 साल या 4 साल का विकल्प चुन सकें।
सरकार और संस्थानों को मिलकर यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सभी छात्रों को समान रूप से गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिले।
सबसे ज़रूरी है कि सभी छात्रों की चॉइस की इज्ज़त हो, किसी पर भी जबरदस्ती कोई सिस्टम थोपा न जाए।
मैं, एक यूट्यूबर शिक्षक, जो आप सभी छात्रों से प्रतिदिन जुड़ा रहता हूँ, यह मानता हूँ कि 4 साल का ग्रेजुएशन मॉडल एक अच्छी सोच है — पर असली सफलता तब ही मिलेगी जब ज़मीनी स्तर पर भी मजबूत सपोर्ट सिस्टम तैयार किया जाए। मैं चाहता हूँ कि हर छात्र को अपने जीवन का श्रेष्ठ वर्ज़न बनने का अवसर मिले — चाहे वो 3 साल में हो या 4 साल में।
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हम आपके सवालों और सुझावों का इंतज़ार करेंगे।
शिक्षा सभी का अधिकार है – आइए इसे हर कोने तक पहुँचाएं! धन्यवाद! जय हिन्द
THE END
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