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प्रश्न 1 - तुलनात्मक राजनीति के बदलते हुए स्वरूप और क्षेत्र का परीक्षण कीजिए ।
अथवा
तुलनात्मक राजनीति के प्रकृति और क्षेत्र पर चर्चा कीजिए ।
उत्तर -
परिचय
तुलनात्मक राजनीति, राजनीति विज्ञान की एक शाखा एवं विधि है जो तुलनात्मक अध्ययन पर आधारित है। तुलनात्मक राजनीति में दो या अधिक देशों की राजनीतिक व्यवस्था की तुलना की जाती है या एक ही देश की अलग-अलग समय की राजनीति की तुलना की जाती है और देखा जाता है कि इनमें समानता क्या है और अन्तर क्या है।
अरस्तू :- अरस्तू को तुलनात्मक राजनीति का जनक कहा जाता है। सर्वप्रथम अरस्तू द्वारा ही राजनीति के प्रति वैज्ञानिक दृष्टिकोण को अपनाया गया। अरस्तु ने अपने महान ग्रंथ 'Politics' में सर्वप्रथम, तुलनात्मक पद्धति का सहारा लिया। साथ ही साथ अरस्तु ने 158 देशों के संविधानों का अध्ययन भी किया।
परिभाषा:-
एडवर्ड फ्रीमैन के अनुसार, तुलनात्मक राजनीति राजनीतिक संस्थाओं एवं सरकारों के विविध प्रकारों का एक तुलनात्मक विवेचन एवं विश्लेषण है।
रॉल्फ ब्राइबन्टी के अनुसार " तुलनात्मक राजनीति संपूर्ण सामाजिक व्यवस्था में उन तत्वों की व्याख्या है जो राजनीतिक कार्यों एवं उनके संस्थागत प्रकाशन को प्रभावित करते हैं।"
एस कर्टिस के शब्दों में, राजनीतिक संस्थाओं और राजनीतिक व्यवहार की कार्यप्रणाली मे महत्वपूर्ण नियमितताओं, समानताओं और असमानताओं का तुलनात्मक राजनीति से सम्बन्ध है।
तुलनात्मक राजनीति की प्रकृति / स्वरूप
1. तुलनात्मक राजनीतिक लम्बात्मक तुलना के रूप में: इस विचार के समर्थकों के अनुसार तुलनात्मक राजनीति एक ही देश में स्थित विभिन्न सरकारों व उनको प्रभावित करने वाले राजनीतिक व्यवहारों का तुलनातमक विश्लेषण एवं अध्ययन है।
प्रत्येक राज्य में कई स्तरों पर सरकारें होती हैं- राष्ट्रीय सरकार, राज्य सरकार एवं स्थानीय सरकार। इस दृष्टिकोण के अनुसार तुलनात्मक राजनीति का सम्बन्ध इस प्रकार की एक देश में स्थित विभिन्न सरकारों- राष्ट्रीय, प्रान्तीय एवं स्थानीय की आपस में तुलना से है। राजनीति एक ही देश की विभिन्न सरकारों की लम्बात्मक तुलना हैं।
2. तुलनात्मक राजनीति की क्षैतिज (Horizontal) प्रकृतिः इस मत में विश्वास रखने वाले विचारकों के अनुसार तुलनात्मक राजनीति राष्ट्रीय सरकारों का क्षैतिज तुलनात्मक अध्ययन है। इस धारणा के अनुसार तुलना दो प्रकार से हो सकती है प्रथम, एक ही देश में विद्यमान राष्ट्रीय सरकार की विभिन्न कालों के आधार पर तुलना और द्वितीय विश्व में विद्यमान राष्ट्रीय सरकारों की तुलना हो सकती है।
वर्तमान की राजनीति संस्थाओं प्रक्रियाओं तथा राजनीतिक व्यवहारों का तुलनात्मक विश्लेषण अतीत के ही सन्दर्भ में किया जा सकता है। जैसे- भारत के सन्दर्भ में यह तुलना प्राचीन भारत राष्ट्रीय सरकारों मध्यकालीन भारत, ब्रिटिश भारत की सरकारों तथा आधुनिक स्वतन्त्र भारत की राष्ट्रीय सरकारों में की जा सकती है।
इसी प्रकार स्वतंत्र भारत की राष्ट्रीय सरकारों की तुलना एक ही शासनकाल के विभिन्न पहलुओं के सन्दर्भ में की जा सकती है। जैसे, नेहरू काल (1942-1964) अथवा इन्दिरा गाँधी (1966-1977) तथा (1980-1984)
तुलनात्मक राजनीति के क्षेत्र
तुलनात्मक राजनीति का क्षेत्र विवादपूर्ण रहा है। इसका मुख्य कारण है कि इसके परम्परागत और आधुनिक दृष्टिकोणों में मेल नहीं खाता है। पुराने राजनीतिक विचारक अपने अध्ययन क्षेत्र को केवल शासन तथा सरकार के ढाँचे तक सीमित रखते थे जबकि आधुनिक विद्वान इसके क्षेत्र को बहुत ही व्यापक बना देते हैं।
तुलनात्मक राजनीति का विषय-क्षेत्र इस प्रकार है :-
1. राजनीतिक समाजीकरण का अध्ययन
राजनीतिक समाजीकरण तुलनातामक राजनीति का एक महत्वपूर्ण अध्ययन विषय है। राजनीतिक समाजीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा राजनीतिक मूल्यों तथा दृष्टिकोणों के विषय में जानकारी प्राप्त होती है। राजनीतिक समाजीकरण एक दीर्घकालीन प्रक्रिया है। यह व्यक्ति के जीवन से प्रारम्भ होकर उसकी मृत्यु तक चलती रहती है। व्यक्ति अपने बचपन से ही विभिन्न राजनीतिक विषयों में रूचि लेने लगता है और जीवन पर्यन्त वह इससे जुड़ा रहता है।
राजनीतिक समाजीकरण को तुलनात्मक राजनीति में इसलिए शामिल किया जाता है क्योंकि राजनीतिक समाजीकरण पर ही किसी राजनीतिक प्रणाली की सफलता या असफलता निर्भर करती है। प्रायः विकसित देशों में राजनीतिक समाजीकरण की प्रक्रिया तीव्र होती है। इसके विपरीत पिछड़े व विकासशील देशों में यह प्रक्रिया बहुत धीमी होती है।
2. राजनीतिक संस्कृति का अध्ययन
राजनीतिक संकृति से अभिप्राय एक राजनीतिक व्यवस्था के नागरिकों के उस व्यवस्था के प्रति दृष्टिकोण, विश्वास, भावनाओं तथा मूल्यों से है। प्रत्येक राजनीतिक व्यवस्था की अपनी विशिष्ट राजनीतिक संस्कृति होती है। राजनीतिक संस्कृति ही यह स्पष्ट करती है कि लोग राजनीतिक व्यवस्था को कितना महत्व देते हैं। वास्तव में किसी राजनीतिक व्यवस्था की सफलता या असफलता राजनीतिक संस्कृति पर ही निर्भर करती है। अतः तुलनात्मक राजनीतिक अध्ययनों में राजनीतिक संस्कृति का अध्ययन किया जाता है।
3. विभिन्न राज्यों का संस्थागत व्यापक विवरण
तुलनात्मक राजनीति के परम्परागत विद्वानों ने विधान मंडल, कार्यपालिका, न्यायपालिका तथा नौकरशाही को ही राजनीतिक विषय क्षेत्र माना। यद्यपि आजकल संस्थाओं के स्थान पर कार्य-पद्धति और व्यावहारिक पक्ष पर अधिक बल दिया जाता है, तथापि राजनीतिक सरंचना को बिल्कुल छोड़ा नहीं जा सकता। साधारणतया यह माना जाता है कि अन्तिम निर्णय लेने की संसद की शक्ति दिन-प्रतिदिन कम होती जा रही है और यह शक्ति कार्यपालिका के हाथों में आ गई है। इस सरकार के निष्कर्षों पर पहुँचने के लिए यह आवश्यक है कि हम अधिक से अधिक देशों की कार्यपालिका और विधानमंडलों का अध्ययन करें।
4. राजनीतिक विशिष्टजन, राजनीतिक हिंसा और राजनीतिक भ्रष्टाचार
तुलनात्मक राजनीति के विद्वान् इस बात का भी अध्ययन करते हैं कि वे व्यक्ति जो राजसत्ता का प्रयोग करते हैं, समाज के किन वर्गों से सम्बन्धित हैं और उनकी सत्ता का क्या आधार है। प्रत्येक राज्य में शासन की शक्ति कुछ विशिष्ट लोगों या एक विशिष्ट वर्ग के हाथों में होती है। जिन देशों मे स्वस्थ दलीय प्रणाली है, वही शशकों की भर्ती का मुख्य स्रोत राजनीतिक दल होते हैं।
आर्थिक असमानता और राजनीतिक शासकों की भर्ती के ढंग का राजनीतिक हिंसा और आन्तरिक कलह से गहरा सम्बन्ध है। क्रीसिस तथा वार्ड के शब्दों में, "जिन देशों में यत्नपूर्वक समाज में किन्ही विशेष वर्गों को 'राजनीतिक सत्ता' से वंचित रखा जाता है, वहाँ ये वर्ग हिंसक साधनों से सत्ता हथियाने का प्रयास करते हैं।"
निष्कर्ष
तुलनात्मक राजनीतिक विश्लेषण से हम देश विशेष की संस्थाओं का गहराई से अध्ययन करके उपस्थित समस्याओं का हल ढूंढ सकते है। वर्तमान समय में कल्याणकारी राज्य में राजनीतिक व्यवस्था एवं व्यवहार के बारे में सामान्य नियमों का निर्धारण करना अत्यंत आवश्यक हो गया है, ताकि सामान्य राजनीतिक सिद्धांतों का निर्माण कर राजनीतिक व्यवस्था को स्थायित्व प्रदान किया जा सके।
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