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प्रश्न 1. (क) सांख्य दर्शन के मत में पुरुष के स्वरूप को लिखिए ।
उत्तर - सांख्य दर्शन का एक मुख्य तत्व पुरुष का स्वरूप है जो साक्षी, द्रष्टा, अकर्ता तथा मध्यस्थ है। पुरुष का स्वरूप सांख्यकारिका में कहा गया है।
सांख्य दर्शन के अनुसार, पुरुष का स्वरूप प्रकृति और पुरुष के तत्वों के संयोजन से निर्मित होता है। प्रकृति और पुरुष ये दो अविच्छेद्य और अनित्य तत्व होते हैं, जिनका अद्वितीय संयोजन सांख्य दर्शन में सृष्टि का मूल कारण माना जाता है। पुरुष को निर्गुण, अपरिमित, द्रव्यरहित और अचल माना जाता है। वह प्रकृति के प्रति अकर्षित नहीं होता और न उसका कोई कारण होता है। पुरुष से केवल ज्ञान ही आता है और वह साक्षी बना रहता है। वह संयोगों में नहीं फंसता और मुक्ति प्राप्त करता है।
प्रश्न 2. (ख) प्रकृति की प्रवृति पर विचार कीजिए ।
उत्तर - प्रकृति की प्रवृति पर विचार
प्रकृति की सभी प्रवृत्तियाँ स्वार्थ अथवा परोपकारिता से संचालित होती हैं। प्रकृति जड़ है, उसमें स्वार्थ और परोपकारिता नहीं है, फिर भी संसार में परोपकारिता देखी जाती है। संसार में देखा जाता है कि अचेतन में भी प्रयोजन की प्रवृत्ति होती है। जिस प्रकार गाय में बछड़े को पोषण देने वाला दूध भी अचेतन होता है, उसी प्रकार अचेतन प्रकृति भी मनुष्य की मुक्ति में प्रवृत्त होती है।
प्रश्न 3. (ख) गौण और मुख्य भेद से पुरुषार्थ को बताइए ।
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प्रश्न 4. (क) प्रत्यक्ष शब्द के कितने और कौनसे अर्थों में प्रयोग करते हैं।
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प्रश्न 5. (ख) माया का अनादित्व, भावरूपत्व और ज्ञाननिवर्त्यत्व की व्याख्या कीजिए ।
प्रश्न 6. (क) ब्रह्म के स्वरूप लक्षण की विस्तारपूर्वक व्याख्या कीजिए ।
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