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NIOS Question Paper Oct 2024 SET A
HINDI (301)
Question 23-29
23. निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर दिए गए प्रश्नों के सर्वाधिक उपयुक्त वाले विकल्प को चुनकर लिखिए:
सुनि मुनि बचन राम रुख पाई। गुरु साहिब अनुकूल अघाई। लखि अपने सिर सबु छरु भारू। कहि न सकहिं कछु करहिं विचारू॥ पुलकि सरीर सभाँ भए ठाढ़े। नीरज नयन नेह जल बाढ़े। कहब मोर मुनिनाथ निबाहा। एहि तें अधिक कहौं मैं काहा॥ मैं जानऊँ निज नाथ सुभाऊ। अपराधिहु पर कोह न काऊ। मो पर कृपा सनेहु विसेषी। खेलत खुनिस न कब हूँ देखी॥ सिसुपन तें परि हरेउँ न संगू। कबहुँ न कीन्ह मोर मन भंगू॥ मैं प्रभु कृपा रीति जिथँ जोही। हारेहुँ खेल जितावहिं मोही॥ |
(i) किसके नेत्रों से अश्रु बहने लगे?
(क) राम (ख) भरत
(ग) कैकयी (घ) मुनि
उत्तर - (ख) भरत
(ii) गुरु वशिष्ठ ने क्या किया?
(क) राम के मन की बात कह दी (ख) भरत के मन की बात कह दी
(ग) राम को अयोध्या चलने को कहा (घ) भरत को चुप रहने को कहा
उत्तर - (ख) भरत के मन की बात कह दी
(iii) राम के स्वभाव की क्या विशेषता है?
(क) छोटों से प्रेम न करना (ख) दृढ़ता पूर्वक बोलना
(ग) गुरुजनों पर क्रोध करना (घ) अपराधी पर भी क्रोध न करना
उत्तर - (घ) अपराधी पर भी क्रोध न करना
(iv) 'मो पर कृपा सनेहु विसेषी' पंक्ति में 'मो' किसके लिए प्रयुक्त हुआ है?
(क) राम (ख) भरत
(ग) लक्ष्मण (घ) वशिष्ठ
उत्तर - (ख) भरत
(v) भरत की आँखे सदैव किसकी प्यासी बनी रही?
(क) राम के दर्शनों की (ख) राम के प्रेम की
(ग) माता कैकयी के प्रेम की (घ) राजा दशरथ के प्रेम की
उत्तर - (ख) राम के प्रेम की
(vi) 'नेह-जल' में कौन-सा अलंकार है?
(क) उत्प्रेक्षा (ख) अतिशयोक्ति
(ग) मानवीकरण (घ) रूपक
उत्तर - (घ) रूपक
(vii) बड़ों के सम्मुख मुँह न खोलना _______________ ।
(क) उनसे डरना है (ख) उन्हें प्रसन्न रखना है
(ग) दबाव सहन करना है (घ) शिष्टाचार की परंपरा है
उत्तर - (घ) शिष्टाचार की परंपरा है
24. दिए गए गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर उस पर आधारित प्रश्नों के उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनकर लिखिए :
हमारे शैशवकालीन अतीत और प्रत्यक्ष वर्तमान के बीच में समय-प्रवाह का पाट ज्यों-ज्यों चौड़ा होता जाता है त्यों-त्यों हमारी स्मृति में अनजाने ही एक परिवर्तन लक्षित होने लगता है, शैशव की चित्रशाला के जिन चित्रों से हमारा रागात्मक संबंध गहरा होता है, उनकी रेखाएँ और रंग इतने स्पष्ट और चटकीले होते चलते हैं कि हम वार्धक्य की धुँधली आँखों से भी उन्हें प्रत्यक्ष देखते रह सकते हैं। पर जिनसे ऐसा संबंध नहीं होता वे फीके होते-होते इस प्रकार स्मृति से धुल जाते हैं कि दूसरों के स्मरण दिलाने पर भी उनका स्मरण कठिन हो जाता है। मेरे अतीत की चित्रशाला में बहिन सुभद्रा से मेरे सख्य का चित्र पहली कोटि में रखा जा सकता है, क्योंकि इतने वर्षों के उपरांत भी उसकी सब रंग-रेखाएँ अपनी सजीवता में स्पष्ट हैं। |
(i) गद्यांश के रचयिता का नाम है :
(क) महावीर प्रसाद द्विवेदी (ख) महादेवी वर्मा
(ग) सुभद्राकुमारी चौहान (घ) राजेन्द्र यादव
उत्तर - (ख) महादेवी वर्मा
(ii) गद्यांश के पाठ का नाम है :
(क) दो कलाकार (ख) सुभद्राकुमारी चौहान
(ग) कुटज (घ) यक्ष-युधिष्ठिर संवाद
उत्तर - (ख) सुभद्राकुमारी चौहान
(iii) अतीत और वर्तमान के बीच की समय की खाई बढ़ने पर क्या परिणाम निकलता है?
(क) हमारी स्मृतियों में परिवर्तन आने लगता हैं।
(ख) हमारी स्मृतियाँ धूमिल पड़ने लगती हैं।
(ग) सामाजिक दूरियाँ बढ़ने लगती हैं।
(घ) पारिवारिक जिम्मेदारियाँ बढ़ने लगती हैं।
उत्तर - (ख) हमारी स्मृतियाँ धूमिल पड़ने लगती हैं।
(iv) 'शैशव की चित्रशाला ...... गहरा होता है' - पंक्ति में प्रयुक्त 'चित्रों' से अभिप्राय है :
(क) व्यक्तियों से (ख) तस्वीरों से
(ग) वस्तुओं से (घ) घटनाओं से
उत्तर - (घ) घटनाओं से
(v) वार्धक्य का अर्थ है:
(क) जवानी (ख) बुढ़ापा
(ग) शैशवावस्था (घ) सुप्तावस्था
उत्तर - (ख) बुढ़ापा
(vi) लेखिका और सुभद्राकुमारी के बीच किस प्रकार के संबंध थे?
(क) रागात्मक (ख) औपचारिक
(ग) पारीवारिक (घ) कामकाजी
उत्तर - (क) रागात्मक
(vii) 'उनकी रेखाएँ और रंग ........ चटकीले होते चलते हैं।' वाक्य में प्रयुक्त 'रेखाएँ और रंग' संकेत करते हैं :
(क) बनावट और दृश्यता की ओर
(ख) रंग-रूप और वेशभूषा की ओर
(ग) जीवन और व्यक्तित्व की ओर
(घ) आकृति और वर्ण-विन्यास की ओर
उत्तर - (ग) जीवन और व्यक्तित्व की ओर
25. व्याकरण संबंधी निम्नलिखित प्रश्नों के निर्देशानुसार उत्तर लिखिए :
(i) पाच्य, नूतन (विलोम शब्द लिखिए)
उत्तर - :विलोम शब्द :
पाच्य - अपाच्य
नूतन - पुराना
(ii) अतिशय, लेखक (उपसर्ग/प्रत्यय अलग कीजिए)
उत्तर -
अतिशय - उपसर्ग : अति
लेखक - प्रत्यय : क
(iii) अरे तुम प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हो गए (विराम चिह्न लगाकर पुनः लिखिए)
उत्तर - अरे, तुम प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हो गए!
(iv) निरपराधी व्यक्ति को सजा नहीं मिलनी चाहिए। (वाक्य शुद्ध करके पुनः लिखिए)
उत्तर - निरपराधी व्यक्ति को सजा नहीं मिलनी चाहिए।
(v) एक जंगल में दो शेर रहते थे। (संयुक्त वाक्य बनाइए)
उत्तर - एक जंगल में दो शेर रहते थे, और वे हमेशा शिकार करते थे।
(vi) इतिहासिक, आशिवार्द (शब्दों का शुद्ध रूप लिखिए)
उत्तर - :शुद्ध रूप :
इतिहासिक - ऐतिहासिक
आशिवार्द - आशीर्वाद
(vii) बालक दौड़ता है। (भाववाच्य में बदलिए)
उत्तर - दौड़ने का कार्य बालक द्वारा किया जाता है।
(viii) मुरारि, अधः+गति (संधिच्छेद/संधि कीजिए)
उत्तर -
मुरारि = मुर + आरी
अधः + गति = अधोगति
(ix) यथासमय (विग्रह करते हुए समास का नाम लिखिए)
उत्तर - :विग्रह सहित समास का नाम :
समास विग्रह - यथा + समय (द्वन्द्व समास)
(x) अन (प्रत्यय से दो शब्द बनाइए)
उत्तर - :’अन’ प्रत्यय से दो शब्द :
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26. निम्नलिखित काव्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए :
(i)
(i)
सोभित कर नवनीत लिए। घुटुरुनि चलत रेनु तन-मेडित, मुख दधि लेप किये। चारु कपोल, लोल लोचन, गोरोचन-तिलक दिये। लट-लटकनि मनु मत्त मधुप-गन मादक मधुहिं पिए। कठुला-कंठ वज्र के हरि-नख राजत रुचिर हिए। धन्य सूर एकौ पल इहिं सुख, का सत कल्प जिए। |
उत्तर -
सोभित कर नवनीत ……….. सत कल्प जिए।
प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ सूरदास के पद से संकलित है। इसके माध्यम से सूरदास जी ने बालकृष्ण के अनुपम सौंदर्य का मार्मिक एवं चित्रात्मक वर्णन किया है। सूर के इस बाल-वर्णन में स्वाभाविकता, सरलता और मनोरमता का अद्भुत संयोग है।
व्याख्या : सूरदासजी कहते हैं कि श्रीकृष्ण अभी बहुत छोटे हैं और नंद-यशोदा के घर के आंगन में घुटनों के बल ही चल पाते हैं। श्रीकृष्ण के छोटे से एक हाथ में ताजा माखन शोभायमान है और वह इस माखन को लेकर घुटनों के बल चल रहे हैं। उनका शरीर धूल में लिपटा हुआ है और यह धूल भी उनके सौंदर्य को बढ़ा रही है। उनके मुँह पर दही लिपटा है मानो मुख पर दही लेप कर लिया हो। उनके गाल सुंदर तथा नेत्र चंचल हैं। ललाट पर गोरोचन, तिलक के रूप में प्रयुक्त होने वाला एक सुगंधित पदार्थ, का तिलक लगा है। कृष्ण के बाल घुँघराले हैं। जब वे घुटनों के बल माखन लिए हुए चलते हैं तब घुँघराले बालों की लटें उनके कपोलों पर झूलने लगती हैं, जिससे ऐसा प्रतीत होता है मानो भ्रमर मधुर रस का पान करके मतवाले हो गए हैं। उनके गले में पड़े कठुले व सिंहनख से उनका सौंदर्य और अधिक बढ़ गया है। सूरदास कहते हैं कि श्रीकृष्ण के इस बाल रूप के दर्शन यदि एक पल के लिए भी हो जाए तो जीवन सार्थक हो जाए। अन्यथा सौ कल्पों या युगों तक भी जीवन निरर्थक ही है अर्थात् इस रूप-सौंदर्य के दर्शन के बिना अनंतकाल तक जिया गया जीवन भी बेकार है।
विशेष-
अथवा
(ii)
नक्शे में जंगल हैं पेड़ नहीं नक्शे में नदियाँ हैं पानी नहीं नक्शे में पहाड़ हैं पत्थर नहीं नक्शे में देश है लोग नहीं समझ ही गये होंगे आप कि हम सब एक नक्शे में रहते हैं। |
उत्तर -
नक्शे में जंगल ........... में रहते हैं।
प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हिन्दी की पाठ्यपुस्तक में “नरेश सक्सेना” द्वारा रचित ‘नक्शे’ से अवतरित है। यह कविता हमारे समाज, पर्यावरण और मानवता की वास्तविक स्थिति पर गहरी टिप्पणी करती है।
व्याख्या : कवि यह दिखाते हैं कि नक्शे में किसी स्थान का भौगोलिक विवरण तो होता है, लेकिन उसकी असली सुंदरता और जीवन की विविधता को नहीं दिखाया जा सकता। ये ऐसे नक्शे हैं जिसमें जंगल तो हैं, पर पेड़ नहीं। नदियाँ हैं, पर पानी नहीं। पहाड़ हैं, पर पत्थर नहीं। और तो और इन नक्शों में देश के देश दिखाई पड़ते हैं, पर लोगों का नामोनिशान नहीं है। मतलब भौगोलिक रूप से तो ये चीज़ें मौजूद हैं, किंतु उनका प्राण-तत्व, उनकी जीवंतता गायब है। यह हमारे समाज में शहरीकरण और आधुनिकता के नाम पर प्राकृतिक संसाधनों के शोषण को दर्शाता है। नक्शे में देश की सीमाएँ तो दिख सकती हैं, लेकिन उसमें लोगों की ज़िन्दगी, संघर्ष और पहचान नहीं होती, जो एक सामाजिक और राजनीतिक दृष्टिकोण को चुनौती देता है तथा इन नक्शों में मानवीयता एवं संवेदनाएँ की जगह नहीं हैं।
विशेष-
27. निम्नलिखित प्रश्नों में से किन्हीं दो के उत्तर 50-60 शब्दों में लिखिए :
(i) 'संयुक्त परिवार' कविता के आधार पर लिखिए कि कवि अपने घर के लगी पर्ची को देखकर बेचैन क्यों हो उठता है? घर आए अतिथि बिना मिला लौट जाने पर आपकी क्या प्रतिक्रिया होती है?
उत्तर - कवि अपने घर के दरवाजे पर लगी पर्ची देखकर बेचेन हो उठता है क्योंकि यह आधुनिक समाज में संयुक्त परिवार के विघटन और आत्मीयता की कमी को दर्शाता है। अतिथि बिना मिले लौट जाता है, जो पारिवारिक संबंधों की ठंडक को दर्शाता है। यदि मेरे घर आए अतिथि बिना मिले लौट जाते, तो मुझे दुःख और ग्लानि होती। मैं प्रयास करता कि घर पर सभी का स्वागत हो और परिवार में प्रेम व अपनापन बना रहे।
(ii) 'क्या भूलूँ क्या याद करूँ मैं' कवि स्मृतियों के द्वंद्व से मुक्ति की कामना क्यों करता है?
उत्तर - कवि को अपनी यादों में सुखद और दुखद दोनों तरह के अनुभव दिखाई देते हैं, जिससे वह असमंजस में है कि क्या याद करे और क्या भूल जाए। कवि चाहता है कि वह इन यादों के बोझ से मुक्त हो जाए और एक नई शुरुआत करे, जहाँ वह केवल वर्तमान में जी सके। कवि अपनी यादों के साथ अकेला है, और इसलिए वह उनसे दूर होना चाहता है ताकि वह जीवन में आगे बढ़ सकें और एक नया जीवन जी सके।
(iii) 'परशुराम के उपदेश' कविता के संदर्भ में 'दिनकर 'जी की भाषागत विशेषताओं पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर - :‘परशुराम के उपदेश‘ कविता के संदर्भ में ‘दिनकर‘ जी की भाषागत विशेषताएँ निम्न है :
(क) वैराग्य छोड़ बाँहों की विभा सँभालो
(ख) पीयूष चंद्रमाओं को पकड़ निचोड़ो
(ग) किरिचों पर अपने तन का चाम मढ़ो रे !
28. निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए और पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
जला अस्थियाँ बारी-बारी
चटकाई जिनमें चिंगारी,
जो चढ़ गये पुण्यवेदी पर,
लिए बिना गर्दन का मोल।
कलम, आज उनकी जय बोल।
जो अगणित लघु दीप हमारे
तूफानों में एक किनारे,
जल-जलाकर बुझ गए किसी दिन
माँगा नहीं स्नेह मुँह खोल
कलम, आज उनकी जय बोल
पीकर जिनकी लाल शिखाएँ
उगल रही सौ लपट दिशाएँ
जिनके सिंहनाद से सहमी,
धरती रही अभी तक डोल
कलम, आज उनकी जय बोल
अंधा, चकाचौध का मारा
क्या जाने इतिहास बेचारा
साखी हैं उनकी महिमा के,
सूर्य चन्द्र भूगोल खगोल।
कलम, आज उनकी जय बोल।
(i) कलम से किनकी जय बोलने के लिए कहा जा रहा है? और क्यों?
उत्तर - कलम से स्वतंत्रता सेनानियों की जय बोलने के लिए कहा जा रहा है। क्योंकि उनके बलिदानों के कारण ही हमें स्वतंत्रता प्राप्त हुई है, और उनका संघर्ष हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत है।
(ii) 'लिए बिना गर्दन का मोल' का क्या आशय है?
उत्तर - 'लिए बिना गर्दन का मोल' का आशय है कि उन्होंने बिना अपनी जान की परवाह किए हुए, , अपने प्राणों की आहुति दी।
(iii) स्वाधीनता सेनानियों के बलिदान के साक्षी कौन हैं? और कैसे?
उत्तर - स्वाधीनता सेनानियों के बलिदान के साक्षी इतिहास, सूर्य, चंद्र, भूगोल और खगोल हैं।
(iv) इतिहास को अंधा क्यों कहा है?
उत्तर - इतिहास को अंधा इसलिए कहा गया है क्योंकि वह कभी भी स्वाधीनता सेनानियों के बलिदान और संघर्ष को पूरी तरह से पहचान और सम्मान नहीं दे सका।
(v) स्वतंत्रता सेनानियों के प्रति हमारा क्या कर्त्तव्य है?
उत्तर - हम उनके द्वारा दिए गए स्वतंत्रता के मूल्य और संघर्षों को हमेशा याद रखें और उसे संजोएं।
29. निम्नलिखित गद्यांश की व्याख्या कीजिए :
(i) मेरे मन में सावरकर के प्रति पूर्वाग्रह था, क्योंकि उनका संबंध 'हिंदू महासभा' से रहा। मैंने नहीं सोचा कि एक हिंदू के रूप में अपनी अस्मिता की तलाश सांप्रदायिकता नहीं। कम-से-कम ऐसा व्यक्ति सांप्रद्रायिक नहीं हो सकता, जिसने देशभक्ति की इतनी बड़ी सजा भोगी हो। |
उत्तर -
मेरे मन में ……….. सजा भोगी हो।
प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश "श्रीकांत वर्मा" द्वारा लिखित "अंडमान डायरी" से लिया गया है। श्रीकांत वर्मा सन् 1986 की जनवरी में यह अनुभव करते हैं कि सावरकर स्वाधीनता संग्राम के इतिहास में जिस कीर्ति के अधिकारी थे; उनसे उन्हें वंचित रखा गया।
व्याख्या : प्रस्तुत गद्यांश के माध्यम से लेखक बताते है कि उन्होंने 1986 में यह महसूस करते हैं कि स्वतंत्रता संग्राम में वीर सावरकर ने जो योगदान दिया, उसका उन्हें उचित सम्मान नहीं मिला। आज़ादी के बाद सत्ता में आए दल ने सावरकर के विचारों को अस्वीकार कर दिया, क्योंकि उनका संबंध 'हिंदू महासभा' से था। इस कारण उन्हें सांप्रदायिक मान लिया गया। लेखक जब सेल्यूलर जेल में उनकी कोठरी के सामने खड़ा होता है, तो उसे एक तरह का अपराधबोध महसूस होता है, क्योंकि सावरकर को 25-25 साल की सज़ा मिली थी और उन्होंने 9 साल 10 महीने अंडमान की सेल्यूलर जेल में बिताए। 1924 में उन्हें रिहा किया गया, लेकिन शर्त थी कि वे कोई राजनीतिक गतिविधि नहीं करेंगे। उनके जीवन के अंतिम बीस साल अकेलेपन और बदनामी में बीते। लेखक उनकी मूर्ति को देखकर आदरपूर्वक सिर झुका लेते हैं।
विशेष-
अथवा
(ii) ये जो ठिगने-से लेकिन शानदार दरख्त गर्मी की भयंकर मार खा-खाकर और भूख-प्यास की निरंतर चोट सह-सहकर भी जी रहे हैं, इन्हें क्या कहूँ? सिर्फ जी ही नहीं रहे हैं, हँस भी रहे हैं। बेहया हैं क्या? या मस्तमौला है? कभी-कभी जो लोग ऊपर से बेहया दिखते हैं, उनकी जड़े काफी गहरे पैठी रहती हैं। ये पाषाण की छाती फाड़कर न जाने किस अतल गह्वर से अपना भोग्य खींच लाते हैं। |
उत्तर -
ये जो ठिगने-से ……….. खींच लाते हैं।
प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश प्रसिद्ध निबंधकार आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा रचित निबंध ‘कुटज’ से अवतरित है। इसमें लेखक कुटज के स्वरूप, मस्तमौलापन एवं उसकी सहनशीलता को दर्शाता है।
व्याख्या : लेखक बताता है कि शिवालिक पर्वत श्रृंखला सूखी और नीरस है। यहाँ पानी का अभाव रहता है। फिर भी यहाँ जो ठिगने से कुटज के वृक्ष शान से खड़े और जीते हुए दिखाई देते हैं। ये कुटज के वृक्ष भयंकर गर्मी की मार झेलते रहते हैं। ये भूख प्यास की चोट को भी सहते हैं। यहाँ इन्हें भोजन तक प्राप्त नहीं होता। फिर भी जीते हैं। इनकी जीने की प्रशंसा करनी पड़ेगी। ये केवल जीते हीं नहीं, हँसते भी रहते हैं। इन्हें बेहया (बेशर्म) भी नहीं कहा जा सकता। ये तो मस्तमौला हैं। कुछ लोग ऊपर से बेशर्म प्रतीत होते हैं, पर उनकी जड़ें गहरी होती हैं। कुटज के वृक्षों की जड़ें भी गहराई तक गई होती हैं। ये तो पत्थरों की छाती को चीरकर भी अपना भोजन खींच निकाल लेते हैं। गहरी खाई से भी अपना भोग्य खींच लेते हैं। इससे उनकी जीने की इच्छा का पता चलता है।
विशेष-
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