Political Science: State Politics in India Best Notes In Hindi Medium

Aug 12, 2025
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प्रश्न 1. राज्यों में चुनावी राजनीति के अध्ययन के तीनों चरणों की व्याख्या कीजिए।

उत्तर -

परिचय

शोधकर्ताओं द्वारा भारत के अंतर्गत चुनावी राजनीति के अध्ययन का आरम्भ प्रथम दशक के अंत में शुरू हो गया था। इस समय के दौरान, शोधकर्ताओं ने अपने मुख्य ध्यान को सदैव राष्ट्रीय स्तरीय राजनीति पर रखा और इसमें विभिन्न पहलुओं का अध्ययन किया। उन्होंने राज्य स्तर के चुनाव, राजनीतिक दलों की रणनीतियां, और जनता के मुद्दों पर गहरा अध्ययन किया और इसे सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तन के संदर्भ में समझने का प्रयास किया।
चुनाव: एक माध्यम है जिसके जरिए एक समृद्ध राष्ट्र अपने नागरिकों को सार्वजनिक मामलों में शामिल करता है और उन्हें सरकार में भागीदारी का अवसर प्रदान करता है। एक सुचारु चुनाव प्रणाली ही सच्ची प्रतिनिधि सरकार की नींव होती है।

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राज्यों में चुनावी राजनीति के अध्ययन के चरण :

सुधा पाई अपने लेख में बताती है कि भारत की राज्य राजनीति की अध्ययन की यात्रा को तीन चरणों में विभाजित करके अध्ययन किया जा सकता है-

1. राज्य राजनीति के अध्ययन का प्रथम चरण :

  • सुधा पाई द्वारा राज्य राजनीति के अध्ययन के प्रथम चरण को 1950-1960 के मध्य के दशक तक चिन्हित किया गया है। यह काल राज्य राजनीति के अध्ययन के दृष्टिकोण से उदासीनता का काल था। शोध प्रणाली के दृष्टिकोण से इस काल में राज्य राजनीति पर होने वाले कार्य औपचारिक-वैधानिक शोध प्रणाली के माध्यम से संपन्न हो रहे थे।
  • स चरण में हुए परिवर्तनों का प्रभाव वर्तमान राज्य राजनीति पर भी देखा जा सकता है, जैसे- राज्यों का पुनर्गठन, राज्यों के अंतर्गत उभरते नेतृत्व की प्रक्रिया, कांग्रेस दल में क्षेत्रीय दलों का विलय आदि। इस काल के मुख्य कार्य एस. वी कोगेकर एवं आर. पार्क द्वारा किया गया था तथा इन शोध कर्ताओं ने प्रथम बार राज्य राजनीति को अलग स्थान प्रदान करने का कार्य किया था।
  • राज्य पुनर्गठन आयोग की स्थापना एवं भाषागत आधार पर राज्य निर्माण की माँग ने शोध को राज्य राजनीति के अध्ययन की ओर परिवर्तित करने का कार्य किया।

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2. राज्य राजनीति के अध्ययन का द्वितीय चरण :

  • सुधा पाई के अनुसार 1967 के पश्चात् से राज्य राजनीति पर एक व्यवस्थित अध्ययन का आरम्भ हो गया था तथा इसका श्रेय इकबाल नारायण को प्रदान किया जाता है।
  • इस ही काल में मायरन वीनर द्वारा संपादित कार्य 'स्टेट पॉलिटिक्स इन इंडिया' भी राज्य राजनीति के क्षेत्र में एक मील का पत्थर मानी जा सकती है। इस पुस्तक के अंतर्गत मुख्य रूप से आठ राज्यों; उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, जम्मू एवं कश्मीर, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, आंध्र प्रदेश एवं पंजाब का अध्ययन किया गया था।
  • इस ही श्रृंखला में 1976 में इकबाल नारायण द्वारा भारत के 22 राज्यों की राजनीति का अध्ययन करते हुए एक विस्तृत शोध कार्य को प्रस्तुत किया था।
  • सुधा पाई के अनुसार इस द्वितीय चरण की मुख्य विशेषता यह रही थी कि इसने राज्य केन्द्रित अध्ययन की ओर जहाँ शोधकर्ताओं को आकर्षित करना आरम्भ कर दिया था, वही दूसरी ओर राज्य राजनीति को उप-व्यवस्था के रूप में अवलोकित किया जाने लगा था।
  • इस चरण की एक विशेषता यह भी रही कि, 1960 के दशक तक आते-आते अनुभवजन्य शोध (वास्तविक अनुभव से प्राप्त ज्ञान) पर आधारित कार्य भी होना आरम्भ हो गये थे जिसमें मुख्यतः मतदान व्यवहार पर अध्ययन करना शोध का केंद्र हो गया था परन्तु यह अनुभवजन्य शोध का आरम्भिक चरण था।

3. राज्य राजनीति के अध्ययन का तृतीय चरण

  • सुधा पाई मानती है कि राज्य राजनीति के अध्ययन का यह तृतीय चरण इसलिए विशेष रहा था क्योंकि 1970 के पश्चात् से राज्यों को एक अलग 'राजनीतिक अध्ययन की इकाई' का स्थान प्राप्त हो गया था।
  • इस काल में दो स्तर पर दल एवं दल व्यवस्था का अध्ययन किया जा रहा था, प्रथम राज्यों के अंतर्गत कांग्रेस दल की भूमिका एवं अन्य क्षेत्रीय दलों की राज्य राजनीति के अंतर्गत भूमिका का निर्वहन किस प्रकार से हो रहा था।
  • सुधा पाई का मानना है कि राज्य राजनीति का अध्ययन करने के लिए इस काल में कोई विशेष विधि या प्रणाली नहीं थी, जिस का कारण वह उत्तर व्यवहारवाद के आगमन के रूप में वर्णित करती है, जिसने किसी एक विधि या प्रणाली के द्वारा अध्ययन करने की अपेक्षा विभिन्न विधियों के प्रयोग को प्रोत्साहित किया।

मूल्यांकन

राज्य राजनीति एक अध्ययन के प्रथम चरण में कांग्रेस दल की प्रमुखता के कारण राष्ट्रीय राजनीति को ही महत्त्व प्रदान किया गया तथा राज्य राजनीति को अध्ययन से पृथक कर दिया गया था।
द्वितीय चरण के अंतर्गत मायरन विनर तथा इकबाल नारायण जैसे शोधकर्ताओं द्वारा राज्य राजनीति का अध्ययन करना प्रारम्भ कर दिया गया था।
तृतीय चरण को सुधा पाई उत्तर व्यवहारवाद के आगमन के रूप में वर्णित करती है, जिसने एक विधि या प्रणाली को ना अपना कर वभिन्न विधियों के प्रयोग को बढ़ावा दिया।

निष्कर्ष
वर्तमान समय में राज्य राजनीति को अध्ययन करने के लिए अनेक पुस्तकों का अध्ययन किया जा सकता है परन्तु राज्य राजनीति में स्थित निरंतर बदलावों को समझने के लिए हमें निरंतर सुधार करते रहने की आवश्यकता है।

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