Primary Education in India in Hindi Medium

Aug 06, 2025
1 Min Read

Primary Education in India

6th Semester

प्रश्न 1 - प्राथमिक शिक्षा राष्ट्र निर्माण में कैसे योगदान करती हैं ? इसकी प्रमुख चुनौतियों का विश्लेषण करते हुए इसमें नवाचार और सुधार के अवसर पर विस्तार से चर्चा कीजिए।

उत्तर – .परिचय.

प्राथमिक शिक्षा किसी भी राष्ट्र की शिक्षा प्रणाली की नींव होती है, जो बच्चों में बौद्धिक, सामाजिक और नैतिक मूल्यों की नींव रखती है। यह न केवल बौद्धिक विकास को प्रोत्साहित करती है, बल्कि बच्चों के भावनात्मक और शारीरिक विकास का आधार  भी बनती है। भारत जैसे देश में, प्राथमिक शिक्षा न केवल व्यक्तिगत विकास को बढ़ावा देती है, बल्कि सामाजिक समानता, आर्थिक प्रगति और राष्ट्रीय एकता को भी मजबूत करती है। अत: एक मजबूत प्राथमिक शिक्षा प्रणाली ही समृद्ध राष्ट्र का मार्ग प्रशस्त करती है।                                                                               

Click Here For Full Notes

प्राथमिक शिक्षा पर कुछ प्रमुख विद्वानों के विचार :

1. श्री अरविंदो का मानना था "प्राथमिक शिक्षा व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और आत्मिक विकास का संतुलित माध्यम है।"  
2. रवीन्द्रनाथ टैगोर ने  "प्राथमिक शिक्षा को रचनात्मकता, स्वतंत्रता और प्रकृति से जुड़ाव के साथ-साथ बाल स्वभाव के अनुरूप बनाने की वकालत की।"
3. डॉ. भीमराव अंबेडकर ने  “प्राथमिक शिक्षा को वंचित वर्गों के सामाजिक और आर्थिक सशक्तिकरण का पहला और सबसे ज़रूरी कदम माना।“

 

 

राष्ट्र निर्माण में प्राथमिक शिक्षा का योगदान :

प्राथमिक शिक्षा राष्ट्र की मानव संपदा (संपत्ति) को तैयार करती है, जो आगे चलकर सामाजिक, आर्थिक, और लोकतांत्रिक मूल्यों को मजबूत कर राष्ट्र निर्माण में निम्न प्रकार से महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है:-

  1. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और नीतिगत सुधार - भारत में प्राथमिक शिक्षा की शुरुआत गुरुकुल और पारंपरिक पाठशालाओं से हुई, जो जीवन और संस्कृति से जुड़ी थीं। ब्रिटिश शासन में अंग्रेजी-केंद्रित शिक्षा आई, जिससे स्वदेशी शिक्षा कमजोर पड़ी। स्वतंत्रता के बाद कोठारी आयोग, सर्व शिक्षा अभियान (2001) और शिक्षा का अधिकार अधिनियम (2009) जैसे प्रयासों ने शिक्षा को सभी के लिए सुलभ और समावेशी बनाया। इन पहलों ने शिक्षा को राष्ट्र निर्माण का केंद्रीय तत्व बनाया, जिससे सामाजिक-आर्थिक असमानताएँ कम हुईं।
  1. सामाजिक समरसता और एकता का निर्माण - प्राथमिक शिक्षा विभिन्न सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमियों के बच्चों को एक मंच पर लाती है, जहाँ वे साथ मिलकर सीखते हैं। इससे जाति, धर्म और लिंग के भेदभाव कम होते हैं और आपसी सम्मान व समझ बढ़ती है। स्कूलों में बच्चों को एकता, सहिष्णुता और सहयोग के मूल्य सिखाए जाते हैं, जो सामाजिक समरसता और राष्ट्रीय एकता को मजबूत करते हैं।
  1. आर्थिक विकास का आधार - प्राथमिक शिक्षा बच्चों को पढ़ने-लिखने और गणना जैसे जरूरी कौशल सिखाती है, जो आगे चलकर रोजगार और उत्पादकता में मदद करते हैं। यह नवाचार और उद्यमिता को बढ़ावा देती है। ग्रामीण क्षेत्रों में यह आत्मनिर्भरता लाकर गरीबी को घटाती है। मध्याह्न भोजन योजना (मिड-डे-मील) जैसी पहलें खासकर गरीब और वंचित वर्गों के बच्चों को स्कूल लाने में सफल रही हैं।
  1. सतत विकास और महिला सशक्तिकरण - प्राथमिक शिक्षा सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) जैसे गरीबी हटाने, लैंगिक समानता और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। विशेष रूप से, महिला शिक्षा का प्रभाव गहरा है। शिक्षित महिलाएँ बाल विवाह को रोकने, मातृ मृत्यु दर को कम करने, और कार्यबल में भागीदारी बढ़ाने में सक्षम होती हैं। वे अपने बच्चों की शिक्षा को प्राथमिकता देती हैं, जिससे एक सकारात्मक चक्र शुरू होता है जो परिवार और समाज को सशक्त बनाता है।
  2. लोकतंत्र और नागरिक सशक्तिकरण - प्राथमिक शिक्षा लोकतंत्र की मजबूती के लिए आवश्यक है। यह नागरिकों को उनके अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूक बनाती है। शिक्षित लोग बेहतर फैसले लेते हैं, सरकार को जवाबदेह बनाते हैं और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में भाग लेते हैं। कोठारी आयोग (1964-66) और राष्ट्रीय शिक्षा नीति (1968) ने ऐसे पाठ्यक्रम की सिफारिश की, जो न सिर्फ ज्ञान दे, बल्कि जीवन कौशल और सामाजिक जिम्मेदारी भी सिखाए, जिससे नागरिकों में राष्ट्रीय चेतना और जिम्मेदारी का विकास होता हो।

Click Here For Full Notes

प्राथमिक शिक्षा में प्रमुख चुनौतियाँ तथा नवाचार और सुधार के अवसर :

भारत ने प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में कई उपलब्धियाँ हासिल की हैं, लेकिन आज भी यह क्षेत्र कुछ अहम चुनौतियों का सामना कर रहा है। इन समस्याओं ने शिक्षा प्रणाली को बेहतर बनाने के लिए नवाचार और सुधारों के अवसर भी प्रदान किए हैं:-

  1. पहुँच और समानता में अंतराल को पाटना -

चुनौती: ग्रामीण व दूरस्थ क्षेत्रों में स्कूलों को पर्याप्त भवन, बिजली, शौचालय और जल जैसी बुनियादी सुविधाओं की कमी का सामना करना पड़ता है। साथ ही, लड़कियों और हाशिए के समुदायों के बच्चों की शिक्षा तक पहुँच भी सीमित है, जिससे समावेशी विकास बाधित होता है।

नवाचार व सुधार: सरकार ने कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय जैसे आवासीय स्कूल शुरू किए, जिससे लड़कियों के नामांकन में वृद्धि हुई। बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान ने लैंगिक समानता को बल दिया। इसके अतिरिक्त, परिवहन सेवाओं के विस्तार और डिजिटल कक्षाओं की शुरुआत से दूरदराज़ क्षेत्रों में भी शिक्षा सुलभ हुई।

  1. शिक्षण और अधिगम की गुणवत्ता में सुधार -

चुनौती: अत्यधिक शिक्षक-छात्र अनुपात और अपर्याप्त शिक्षक प्रशिक्षण से शिक्षण की गुणवत्ता प्रभावित होती है। पारंपरिक विधियाँ बच्चों की सक्रिय भागीदारी और समझ विकसित करने में कमज़ोर रही हैं।

नवाचार व सुधार: राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा (NCF) 2005 ने गतिविधि-आधारित शिक्षण की सिफारिश की, जिससे कक्षा में बच्चों की रुचि व भागीदारी बढ़ी। DIKSHA जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म ने शिक्षकों को आधुनिक प्रशिक्षण और संसाधन उपलब्ध कराए। हर जिले में स्कूल खोलने की पहल से स्थानीय स्तर पर शिक्षा की उपलब्धता भी बढ़ी।

  1. प्रतिधारण और समावेशन की रणनीतियाँ -

चुनौती: आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों में ड्रॉपआउट दर अधिक है। साथ ही, विकलांग और विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के लिए समावेशी शिक्षा का अभाव भी एक बड़ी बाधा है।

नवाचार व सुधार: मध्याह्न भोजन योजना ने पोषण प्रदान कर बच्चों की उपस्थिति में वृद्धि की। RTE अधिनियम 2009 और RPWD अधिनियम 2016 ने शिक्षा को समावेशी और अधिकार आधारित बनाया। समग्र शिक्षा अभियान ने गुणवत्तापूर्ण और समान अवसरों वाली शिक्षा प्रणाली को विकसित करने में योगदान दिया।

  1. कक्षाओं में प्रौद्योगिकी और डिजिटल संसाधनों का समावेश -

चुनौती: डिजिटल संसाधनों की कमी और तकनीकी पहुँच का अभाव बच्चों के लिए शिक्षा को कम रोचक और प्रभावी बनाता है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में।

नवाचार व सुधार: ई-पाठशाला, DIKSHA और अन्य डिजिटल प्लेटफॉर्म्स ने डिजिटल पाठ्यपुस्तकें, वीडियो और शिक्षण सामग्री की निशुल्क उपलब्धता सुनिश्चित की। इससे शिक्षण अधिक संवादात्मक, दृश्यात्मक और सुलभ हुआ, जिससे छात्रों की समझ और रुचि में वृद्धि हुई।

  1. गतिविधि-आधारित शिक्षण दृष्टिकोण -

चुनौती : रटने पर आधारित पारंपरिक शिक्षा पद्धति बच्चों की रचनात्मकता, विश्लेषण क्षमता और आनंदमय सीखने की प्रवृत्ति को दबा देती है।

नवाचार व सुधार : गतिविधि-आधारित शिक्षण (Activity Based Learning-ABL) ने कक्षा को अधिक भागीदारीपूर्ण और अनुभवात्मक बनाया। प्रथम संस्था के ‘Read India’ अभियान ने सिद्ध किया कि इस दृष्टिकोण से बच्चों के सीखने के परिणामों में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। यह विधि बच्चों की जिज्ञासा और रचनात्मक सोच को प्रोत्साहित करती है।

निष्कर्ष :

प्राथमिक शिक्षा राष्ट्र निर्माण का आधार है, हालाँकि यह कई चुनौतियों से घिरी रही है, लेकिन इनसे निपटने के लिए नवाचारों और नीतिगत प्रयासों ने शिक्षा की गुणवत्ता, समावेशिता और पहुँच में सुधार किया है। आगे भी यह आवश्यक है कि इन सफल पहलों को और मजबूत किया जाए।

Click Here For Full Notes

What do you think?

0 Response