Public Administration in India Notes In Hindi Medium

Aug 16, 2025
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प्रश्न 1 - भारत में सिविल सेवा प्रणाली के ऐतिहासिक विकास को लिखिए। स्वतंत्र भारत में इसके संवैधानिक ढांचे की बदलती प्रकृति की व्याख्या करें।

उत्तर-

परिचय

भारतीय सिविल सेवा (ICS) का इतिहास भारत में ब्रिटिशों के औपनिवेशिक शासन से जुड़ा हुआ है। आईसीएस की स्थापना ब्रिटिश राज के दौरान हुई थी। लार्ड कार्नवालिस (Lord Cornwallis) को ब्रिटिश भारत में "सिविल सेवा के जनक" के रूप में जाना जाता है। भारतीय सिविल सेवा (ICS) ने ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और इसके बाद यह, 1947 में भारत को स्वतंत्रता मिलने के साथ ही भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) में विकसित हुई। The Role and Relevance of Civil Services in India | Dhyeya IAS® - Best UPSC  IAS CSE Online Coaching | Best UPSC Coaching | Top IAS Coaching in Delhi |  Top CSE Coaching

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सिविल सेवा से तात्पर्य उन सेवाओं से है जो जनता की मांगों और जरूरतों को पूरा करती है।

विभिन्न विचारकों द्वारा सिविल सेवा की परिभाषाएं :

  • ई. एन. ग्लैडन के अनुसार, इन्होंने अपनी पुस्तक 'द सिविल सर्विसः इट्स प्रॉब्लम्स एंड फ्यूचर में लिखा, "सिविल सेवा एक महत्वपूर्ण सरकारी संस्था का नाम है जिसमें राज्य के केंद्रीय प्रशासन के कर्मचारी शामिल होते हैं"।
  • हर्मन फाइनर के अनुसार, "सिविल सेवा अधिकारियों का एक पेशेवर निकाय है, जो स्थायी, वेतनभोगी और कुशल होते हैं"।

भारत में सिविल सेवा प्रणाली का ऐतिहासिक विकास :

    • भारत में सिविल सेवाओं की परंपरा ब्रिटिश शासन से पहले भी दिखाई देती है। प्राचीनकाल में कौटिल्य ने अपनी पुस्तक 'अर्थशास्त्र' में तीन प्रकार के सरकारी कर्मचारियों के बारे में बताया था-

    1 युक्त (अधिकारी)

    2 उपयुक्त (क्लर्क)

    3 तत्पुरुष (सेवक)

    चाणक्य - विकिपीडिया

      • मुगलों ने भी सिविल सेवा से मिलती-जुलती परंपरा मनसबदारी प्रणाली भारत में शुरू की थी, जो नागरिक और सैन्य सेवा दोनों का मिश्रण थी। इसके अंतर्गत मनसबदारों के दो पद थेः -

      1. जात - व्यक्तिगत पद/स्थान

      2. सवार- घुड़सवारों की संख्या

      मुगलों के सेनापति: किसी ने सल्तनत छिनने से बचाया तो किसी ने बादशाह को ही  बंदी बनाया | Powerful generals who led Mughal Empire expansion in Indian  subcontinent

      इसके बाद हम भारत में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के अंतर्गत सिविल सेवा को देखते हैं:

      1. ब्रिटिश अधिकारियों ने सर्वप्रथम 'सिविल सेवा' शब्द का इस्तेमाल किया था। शुरू में ईस्ट इंडिया कंपनी ने इस शब्द को उन कर्मचारियों के लिए अपनाया जो भारत के साथ वाणिज्यिक मामलों से जुड़े हुए थे।

      2. ईस्ट इंडिया कंपनी ने जैसे-जैसे भारत के क्षेत्रों पर कब्ज़ा करना शुरू किया, सिविल कर्मचारियों को प्रशासनिक ज़िम्मेदारियाँ भी दी जाने लगीं।

      3. 1765 से ईस्ट इंडिया कंपनी के औपचारिक अभिलेखों में "सिविल सेवा" शब्द का प्रयोग किया जाने लगा।

      ब्रिटिश शासन में सिविल सेवा से संबंधित महत्वपूर्ण अधिनियम और रिपोर्ट -

      1833 और 1853 का चार्टर एक्ट:

      1833 के चार्टर एक्ट ने सिविल सेवाओं को सभी के लिए खोल दिया। इसमें खुली प्रतियोगिता के माध्यम से सिविल सेवकों का चयन करने का प्रावधान किया गया। 1853 के चार्टर एक्ट द्वारा भाई-भतीजावाद को खत्म किया गया।
      इसके बाद, 1854 में सिविल सेवा आयोग की स्थापना हुई, जिसने 19-22 वर्ष की आयु के व्यक्तियों के लिए सिविल सेवा परीक्षा का आयोजन किया। पहली सिविल सेवा परीक्षा 1855 में हुई थी।

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      मैकाले समिति की रिपोर्ट, 1854 :

      1854 की मैकाले समिति की रिपोर्ट ने सिविल सेवकों के लिए नियुक्ति और प्रशिक्षण के लिए नियम बनाए। इस रिपोर्ट के अंतर्गत निम्नलिखित बातें शामिल थी जैसे-

      • सरकारी पदों पर नियुक्ति योग्यता और प्रतियोगिता के आधार पर होगी।
      • आयु सीमा 18 से 23 वर्ष होगी।
      • परीक्षा पास करने वाले व्यक्ति को जांचकर्ता के रूप में प्रशिक्षण दिया जाएगा।

      मैकाले को याद करते हुए, वह साम्राज्यवादी जिससे हम घृणा करते हैं

      लार्ड मैकाले


      मोंटफोर्ड रिपोर्ट 1918 और भारत सरकार अधिनियम 1919:

      मोंटफोर्ड रिपोर्ट 1918 और भारत सरकार अधिनियम 1919 के कारण ही भारत में सिविल सेवाओं के विकास में बदलाव की एक नई प्रक्रिया देखी गई। जिसके परिणामस्वरूप, (ICS) के लिए पहली प्रतियोगी परीक्षा (First Competitive Exam) वर्ष 1922 में भारत के इलाहाबाद में हुई। और भारत में सिविल सेवा विकास का इतिहास मोंटफोर्ड रिपोर्ट की सिफारिशों का उल्लेख किए बिना अधूरा है, जो इस प्रकार हैं:-

      उच्च सिविल सेवाओं के 33% पद भारत में भरे जाने चाहिए, जिसमें हर साल 1.5% वृद्धि होनी चाहिए।
      सिविल सेवा की परीक्षा इंग्लैंड और भारत दोनों में होनी चाहिए।
      सिविल सेवा से रिटायर होने पर व्यक्ति को वेतन, भत्ते और पेंशन मिलने चाहिए।

      मोंटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार - विकिपीडिया

      मोंटेग्यू-चेम्सफोर्ड


      ली कमीशन या रॉयल कमीशन, 1923

      सिविल सेवाओं के भारतीयकरण के प्रति नकारात्मक ब्रिटिश प्रतिक्रिया पर, 1923 में, लॉर्ड ली की अध्यक्षता में ब्रिटिश सरकार द्वारा ली कमीशन का गठन किया गया था। इसकी प्रमुख सिफ़ारिशें इस प्रकार थीं :-

      • आयोग ने मुख्य सेवाओं को तीन वर्गों में विभाजित करने का सुझाव दिया: (i) अखिल भारतीय, (ii) केंद्रीय, और (iii) प्रांतीय।
      • भारतीयों और अंग्रेजों को 50:50 की समानता के आधार पर भर्ती करने का सुझाव।
      • राज्य सचिव को अखिल भारतीय सेवाओं की नियुक्ति और देखरेख जारी रखनी चाहिए।

      Arthur Lee, 1st Viscount Lee of Fareham - Wikipedia

      आर्डर हैवमल्टन ली

      इन सुझावों को ब्रिटिश शासन के तहत सरकार ने अपनाया और इसके बाद 1926 में संघ लोक सेवा आयोग का गठन किया गया। इस आयोग में अध्यक्ष सहित 5 सदस्य थे। इसके पहले अध्यक्ष सर रॉस बार्कर थे। आयोग को भविष्य में सिविल सेवकों को नियुक्त करने का दायित्व दिया गया था।

      भारत सरकार अधिनियम, 1935 :

      भारत सरकार अधिनियम 1935 के लागू होने के बाद 1937 में संघ लोक सेवा आयोग को संघीय लोक सेवा आयोग ने अपने अधीन ले लिया। भारत सरकार अधिनियम 1935 ने सिविल सेवाओं में निम्नलिखित परिवर्तन किए थे:-

      • भारत में सर्वप्रथम संघीय शासन प्रणाली की नींव रखी गई।
      • सिविल सेवकों की स्वतंत्रता की रक्षा और उन्हें लाभ प्रदान किया।
      • संघ लोक सेवा आयोग, प्रांतीय लोक सेवा आयोग और संयुक्त लोक सेवा आयोग के गठन का सुझाव दिया।

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      अंततः, 26 जनवरी 1950 को भारत का संविधान लागू होने के साथ ही संघीय लोक सेवा आयोग (FPSC) को वर्तमान संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) से बदल दिया गया।

      स्वतंत्र भारत में सिविल सेवा प्रणालीः संवैधानिक ढांचा

      भारतीय सिविल सेवा (ICS), जिसे बाद में भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) के नाम से जाना गया, इसका भारत के प्रशासनिक और शासन व्यवस्था पर गहरा प्रभाव पड़ा है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 308 से 323 A तक के माध्यम से इसकी बदलती प्रकृति को समझा जा सकता है:

      अनुच्छेद 308 : यह सिविल सेवा प्रणाली के लिए मूलभूत ढांचा प्रदान करता है, जो राष्ट्रपति को सरकारी पदों के लिए भर्ती और सेवा शर्तों के संबंध में नियम बनाने का अधिकार देता है।

      अनुच्छेद 309: यह लेख विधायी निकायों के लिए सिविल सेवा भर्ती और सेवा की शर्तों को नियंत्रित करने वाले कानून और नियम बनाने के लिए मंच तैयार करता है।

      अनुच्छेद 310 :
      यह सेवारत व्यक्तियों के लिए कार्यालय का कार्यकाल स्थापित करता है। और कार्यपालिका को सिविल सेवकों को नियुक्त करने और बर्खास्त करने का अधिकार देता है।

      अनुच्छेद 311 :
      यह सिविल सेवकों के लिए सुरक्षा उपाय प्रदान करता है, बर्खास्तगी, निष्कासन या रैंक में कमी जैसी समस्याओं में उचित उपचार प्रदान करता है।

      अनुच्छेद 312 : यह संघ और राज्यों दोनों की सेवा के लिए आईएएस, आईपीएस और आईएफएस जैसी अखिल भारतीय सेवाओं के निर्माण की अनुमति देता है।

      अनुच्छेद 313 : यह सिविल सेवाओं से संबंधित मौजूदा कानूनों और नियमों में परिवर्तन या संशोधन के दौरान सिविल सेवा प्रणाली में निरंतरता और स्थिरता प्रदान करता है।

      अनुच्छेद 323ए: यह सिविल सेवाओं से संबंधित विवादों को कुशल और निष्पक्ष तरीके से हल करने के लिए एक तंत्र प्रदान करता है।

      निष्कर्ष
      भारत के लोक प्रशासन में सिविल सेवाओं की एक महत्वपूर्ण भूमिका है। इन सेवाओं के बिना, इतने बड़े देश पर शासन करना असंभव होता। इसलिए, सिविल सेवाओं को समय-समय पर सुधार की आवश्यकता होती है ताकि यह लोगों की जरूरतों को पूरा कर सके और देश के लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद कर सकें।

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