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अथवा
मौखिक साहित्य के विविध रूपों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर - परिचय
समाज को समझने के लिए सबसे पहले उसके साहित्य को समझना ज़रूरी होता है, क्योंकि साहित्य इंसान के भावनात्मक और सामाजिक अनुभवों की अभिव्यक्ति है। चाहे वह मौखिक साहित्य हो या लिखित, दोनों का मुख्य उद्देश्य समाज की सच्चाई को दिखाना होता है। खासकर मौखिक साहित्य, सीधे-सीधे आम लोगों की भावनाओं से जुड़ा होता है और उनके जीवन को दर्शाता है। यह साहित्य लोगों की रोज़मर्रा की बातें, सोच और अनुभव को सहजता से प्रकट करता है। पुराने समय से ही मौखिक और लिखित साहित्य समाज और लोक जीवन का अहम हिस्सा रहा है, जो कई अलग-अलग रूपों में सामने आता रहा है।
साहित्य का अर्थ
साहित्य वह होता है जिसमें आम लोग अपने भावों और विचारों को बोलकर या लिखकर व्यक्त करते हैं। यह समाज की ज़मीन से उगने वाली उपज की तरह होता है। यानी जैसा समाज होगा, वैसा ही उसका साहित्य होगा। साहित्य का मतलब वाडमय (वाणी या भाषा से भरा हुआ संपूर्ण साहित्य) होता है, और संस्कृत में इसे काव्य के रूप में समझा गया है। "साहित्य" शब्द अंग्रेज़ी के "लिटरेचर" शब्द का समानार्थी है, जिसका संबंध "letters" यानी पढ़ने और लिखने से होता है। इसलिए साहित्य को पढ़ने-लिखने की कला भी कहा जा सकता है।
मौखिक साहित्य का सामान्य परिचय
मौखिक साहित्य में लोग अपने अनुभव, परंपराएँ, रीति-रिवाज, धार्मिक विश्वास, भावनाएँ जैसे प्रेम, विरह, गुस्सा, ममता आदि को व्यक्त करते हैं। यह पूरी तरह से लोक-जीवन पर आधारित होता है, इसलिए इसे "मौखिक साहित्य" कहा जाता है।
मौखिक साहित्य वह साहित्य होता है जिसे किसी एक व्यक्ति ने नहीं लिखा होता, बल्कि यह पीढ़ी दर पीढ़ी लोगों की जुबानी चला आता है। इसमें लेखक का नाम नहीं होता, और लोग इसे अपनी रचना जैसा महसूस करते हैं। यह साहित्य आमतौर पर उन लोगों द्वारा बोला जाता है जो पढ़े-लिखे नहीं होते, और इसका उद्देश्य उनके जीवन की नीरसता को दूर करना होता है।
मौखिक साहित्य का उद्भव और विकास :
हिंदी का मौखिक साहित्य प्राचीन युग से ही चला आ रहा है। वह साहित्यकार की मौलिक कल्पना न होकर किसी प्राचीन कल्पना का अनुवाद होती है। हिंदी का मौखिक साहित्य अति प्राचीन है। मौखिक साहित्य की रचना और विकास अनादिकाल (बहुत पुराने समय) से होता आ रहा है। यह साहित्य किसी लेखक की नई रचना नहीं होता, बल्कि पुरानी परंपराओं और कल्पनाओं का अनुवाद या रूपांतरण होता है। भारत की कहानियाँ और लोककथाएँ पहले अरबी और पहलवी भाषा में अनुवादित हुईं, जिससे वे अन्य देशों में पहुँचीं। जब विचार मौखिक रूप में व्यक्त किए जाते हैं, तो वही मौखिक साहित्य कहलाता है। दुनिया में इंसान ही ऐसा जीव है जो अपने मन के भावों और विचारों को भाषा के ज़रिए दूसरों से साझा करता है। जब इंसान का विकास हुआ, तभी भाषा और मौखिक साहित्य का भी जन्म हुआ। समाज में एक-दूसरे से बात करने और काम करने के लिए भाषा की जरूरत हुई।
मौखिक और लिखित साहित्य का अन्तर्सम्बन्ध :
1. भाव और भाषा का अंतर
मौखिक और लिखित साहित्य दोनों का एक-दूसरे से गहरा रिश्ता है।
2. अभिव्यक्ति का तरीका
3. डॉ. रामनरेश त्रिपाठी का उदाहरण
इन्होंने कहा कि कुछ कविताओं का आनंद तभी लिया जा सकता है जब हमने कविता के नियम (छंद, अलंकार और व्याकरण आदि) का अध्ययन किया है।
4. मुख्य अंतर
मौखिक साहित्य के विविध रूप : मौखिक साहित्य वह साहित्य है जिसे लिखा नहीं गया होता, बल्कि मौखिक रूप से पीढ़ी दर पीढ़ी सुनाया और सिखाया जाता है। यह परंपरागत रूप से समाज की संस्कृति, मान्यताओं, और जीवनशैली को दर्शाता है। इसके मुख्य रूप निम्नलिखित हैं :
लोकगीतों का अर्थ एवं स्वरूप : लोकगीतों का साहित्य में बहुत ही खास स्थान है। ये गीत आम लोगों की भावनाओं, दुख-सुख और अनुभवों को बहुत ही दिल को छूने वाले तरीके से व्यक्त करते हैं।
लोकगीतों का वर्गीकरण :
लोकगीतों को अलग-अलग विद्वानों ने अलग-अलग तरीके से बाँटा है। डॉ. श्याम परमार ने लोकगीतों को 4 भागों में बाँटा है: 1. संस्कार गीत 2. महावारी गीत 3. माजिक-ऐतिहासिक 4. गीत विविध गीत।
सूर्यकरण पारिक ने राजस्थानी लोकगीतों को 29 प्रकार में बाँटा है, जैसे- देवी-देवताओं के गीत, ऋतुओं के गीत, व्रत और त्योहार के गीत विवाह, भाई-बहन, पति-पत्नी, प्रेम और बालिकाओं के गीत, काम करते समय के गीत (जैसे चक्की पीसते समय) , वीरता, भक्ति, हास्य, देशभक्ति और गाँव से जुड़े गीत आदि।
लोकगीत समाज और व्यक्ति से जुड़े होते हैं। जाति, समुदाय तथा भू-भाग की परंपराओं और रीति-रिवाजों के अनुसार अनेक रूपों में देखने और सुनने को मिलते हैं।
लोकगाथा का महत्त्व एवं प्रभाव : लोककथाएँ भारतीय संस्कृति का एक अहम हिस्सा हैं। ये कहानियाँ बहुत पहले से लोगों के बीच बोली और सुनी जाती रही हैं। हर राज्य, हर प्रांत की अपनी-अपनी लोककथाएँ होती हैं जो वहाँ की संस्कृति, परंपराओं और जीवन से जुड़ी होती हैं। भारत को कहानियों का देश कहा जाता है क्योंकि यहाँ जन्म, मृत्यु, त्योहार, पूजा, प्रेम, साहस, धर्म और इतिहास से जुड़ी बहुत सी लोककथाएँ हैं। इनका कोई निश्चित शुरुआत का समय नहीं है, लेकिन माना जाता है कि जब से इंसान ने बोलना सीखा, तभी से लोककथाएँ भी चलन में आ गईं।
लोककथाओं का महत्त्व:
थॉमसन के अनुसार लोककथाएँ दो तरह की होती हैं:
1. जो सच्चाई को उजागर करें।
2. जो कल्पना से भरी हों।
भारत में लोग कल्पना से भरी कहानियों को भी सच मान लेते हैं, जबकि यूरोप में उन्हें बस कल्पना माना जाता है।
निष्कर्ष:
लोककथाएँ समाज का आइना होती हैं। इनमें लोगों के अनुभव, सोच, भावनाएँ और परंपराएँ जुड़ी होती हैं। ये कहानियाँ न सिर्फ मनोरंजन करती हैं, बल्कि हमें जीवन के जरूरी संदेश भी देती हैं। इनका माध्यम सरल भाषा होता है, जिससे हर कोई इन्हें आसानी से समझ सके। लोककथाएँ हमारी सांस्कृतिक विरासत हैं जो हमें हमारी जड़ों से जोड़ती हैं।
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