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उत्तर- परिचय
औपनिवेशिक भारत में अंग्रेजों ने फोर्ट विलियम कॉलेज के माध्यम से भाषा, साहित्य, दर्शन और ज्ञान की शिक्षा शुरू की। इससे प्रेरित होकर भारतीय बुद्धिजीवियों ने राष्ट्र निर्माण और हिंदी भाषा के प्रचार के लिए कई संगठनों और संस्थानों का निर्माण किया। इनका प्रमुख उद्देश्य भारत की प्राचीन साहित्यिक परंपरा और इतिहास से जनता को परिचित कराना और शिक्षा देना था।
हिंदी की आरंभिक संस्थाएँ
1. नागरी प्रचारिणी सभा, काशी
नागरी प्रचारिणी सभा की स्थापना क्वींस कॉलेज (बनारस) के तीन छात्रों श्यामसुंदर दास, रामनारायण मिश्र, शिवकुमार सिंह ने 16 जुलाई, 1893 ई. में की। इसके पहले अध्यक्ष बाबू राधाकृष्ण दास थे, जिनकी अध्यक्षता में 30 सितंबर, 1894 में सभा का पहला अधिवेशन कारमाइकेल पुस्तकालय (बनारस) में हुआ।
नागरी प्रचारिणी सभा का उद्देश्य : इसका मुख्य उद्देश्य साहित्य और भाषा को बढ़ावा देना, पांडुलिपियों की खोज, संग्रह और प्रकाशन करना व अदालतों में नागरी लिपि (देवनागरी) को लागू करवाना था। उस समय में सरकारी कार्यालयों और न्यायालयों में अंग्रेजी और फारसी का वर्चस्व था, जिन्हें आम लोग न तो बोल पाते थे और न ही समझ पाते थे। इस वजह से जनता को काफी परेशानी होती थी।
कार्य एवं उपलब्धियाँ
1. काशी नागरी प्रचारिणी सभा ने 1900 से हस्तलिखित हिंदी पांडुलिपियों की खोज और संरक्षण का कार्य शुरू किया। 1911 तक आठ रिपोर्टों में सैकड़ों ज्ञात-अज्ञात कवियों के ग्रंथों का पता लगाया। उस समय जितने भी इतिहासकारों ने हिंदी साहित्य का इतिहास लिखा, उनमें मिश्रबंधु, रामचंद्र शुक्ल आदि ने साहित्य सामग्री को प्रकाशित कराने का कार्य किया। इस सामग्री का उपयोग कर मिश्रबंधुओं ने 1913 में "मिश्रबंधु विनोद" नामक कविताओं का संग्रह प्रकाशित किया।
2. नागरी प्रचारिणी सभा ने पाठकों के लिए पुस्तकें उपलब्ध कराने और साहित्य में रुचि बढ़ाने के लिए कुछ पुस्तकालय स्थापित किए। इनमें हिंदी का सबसे बड़ा पुस्तकालय 'आर्यभाषा पुस्तकालय' 1896 में बनाया गया। साथ ही, 1896 में नागरी प्रचारिणी पत्रिका का प्रकाशन शुरू हुआ, जिसमें ऐतिहासिक, दार्शनिक, वैज्ञानिक और साहित्यिक विषयों पर लेख छपते थे।
3. सन् 1897 में सभा ने नागरी प्रचारिणी पत्रिका (त्रैमासिक) का प्रकाशन शुरू किया। यह पत्रिका एक प्रसिद्ध साहित्यिक शोध पत्रिका थी, जिससे कई अज्ञात कवि, लेखक और ग्रंथ सामने आए। हिंदी की प्रसिद्ध पत्रिका सरस्वती की नींव भी इसी सभा ने रखी।
4. इस सभा ने हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए अहिंदी भाषी छात्रों को हिंदी पढ़ने हेतु छात्रवृत्ति प्रदान करने का प्रावधान किया था। साथ ही, हिंदी साहित्यकारों को प्रोत्साहन देने के लिए कई तरह के पुरस्कार देने की व्यवस्था भी की थी।
2. हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयागराज
हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयागराज की स्थापना 3 मई 1910 को नागरी प्रचारिणी सभा, काशी द्वारा की गई। इसका पहला अधिवेशन 10 अक्टूबर 1910 को पंडित मदन मोहन मालवीय की अध्यक्षता में हुआ। 1911 में दूसरा अधिवेशन प्रयागराज में पंडित गोविंद नारायण मिश्र की अध्यक्षता में संपन्न हुआ। इसके बाद यह एक स्वतंत्र संस्था के रूप में प्रयागराज में स्थापित हो गया।
हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयागराज का उद्देश्य : इस संस्था की स्थापना के समय हिंदी-उर्दू विवाद चरम पर था। इसने देवनागरी लिपि और हिंदी का समर्थन किया तथा अदालतों, डाकखानों व कार्यालयों आदि में देवनागरी लिपि और हिंदी भाषा के उपयोग के लिए संघर्ष किया।
कार्य एवं उपलब्धियाँ
1. आजादी से पहले हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने में महात्मा गांधी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1918 में इंदौर में हिंदी साहित्य सम्मेलन के अधिवेशन में गांधीजी को सभापति बनाया गया। उन्होंने दक्षिण भारत में हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए आर्थिक सहायता का प्रस्ताव रखा, जिससे मद्रास में 'हिंदी प्रचार सभा' की स्थापना हुई। इस तरह साहित्य सम्मेलन ने हिंदी आंदोलन को बढ़ावा दिया और विभिन्न राज्यों में इसके प्रचार के लिए अधिवेशन आयोजित किए।
2. यह युवाओं को हिंदी भाषा और साहित्य की शिक्षा देने के लिए पाठ्य पुस्तकों का निर्माण, प्रकाशन और उनकी शिक्षा देने का भी कार्य करती थी। साथ ही प्रथमा, मध्यमा और उत्तमा की उपाधियाँ प्रदान करती थी।
3. साहित्यकारों को प्रोत्साहित करने के लिए उनकी पुस्तकों को छापने के साथ-साथ साहित्य के पाठकों का निर्माण और विभिन्न पुरस्कार प्रदान किए जाते थे। इनमें 'मंगला प्रसाद पारितोषिक' प्रमुख था। यह पुरस्कार द्विवेदी युग के कवि अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' को उनकी कृति 'प्रियप्रवास' के लिए दिया गया था।
3. दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा, मद्रास
महात्मा गांधी ने 31 मार्च 1918 को इंदौर में हिंदी साहित्य सम्मेलन के आठवें त्रिदिवसीय सम्मेलन की अध्यक्षता की। इसी दौरान, 'अखिल कर्नाटक हिंदी प्रचार सम्मेलन' हुआ, जिसमें दक्षिण भारत में हिंदी प्रचार के लिए एक नई संस्था बनाने का निर्णय लिया गया। इस संस्था का नाम 'दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा' रखा गया। इसकी पहली बैठक बैंगलोर में आयोजित की गई।
दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा, मद्रास का उद्देश्य : इसका उद्देश्य दक्षिण भारत के विभिन्न राज्यों में राष्ट्रभाषा हिंदी का प्रचार-प्रसार करना था। महात्मा गांधी का यह मानना था कि भारत की सामान्य बोलचाल की भाषा हिंदुस्तानी है और उसमें राष्ट्रभाषा बनने की पूरी क्षमता है।
कार्य एवं उपलब्धियाँ
4. राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा
1936 में नागपुर में महात्मा गांधी की प्रेरणा से राष्ट्रभाषा प्रचार समिति की स्थापना हुई। शुरुआत में इसे "हिंदी प्रचार समिति" कहा जाता था, लेकिन 6 अगस्त 1938 को इसका नाम बदलकर "राष्ट्रभाषा प्रचार समिति" रखा गया। इसका मुख्य केंद्र वर्धा (महाराष्ट्र) में है। इस संस्था के सुझाव पर 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है।
उद्देश्य : यह एक स्वतंत्र संस्था है और इसका मुख्य लक्ष्य पूरे विश्व में हिंदी का प्रचार करना है। साथ ही, देश में यह समिति राष्ट्रभाषा और इसे बोलने वालों के बीच घनिष्ठ संबंध बढ़ाने और देशभक्ति की भावना मजबूत करने का काम करती है।
कार्य एवं उपलब्धियाँ
राष्ट्रभाषा हिंदी का प्रचार करने के लिए समिति ने हिंदी को सरल और व्यावहारिक बनाने पर जोर दिया, ताकि अन्य भाषी लोग इसे आसानी से अपनाएं। इसके साथ ही, 'भारत-भारती' नामक तेरह भाषाओं की छोटी पुस्तकें प्रकाशित की गईं, जो देवनागरी लिपि में थीं, ताकि लोग सरल तरीके से किसी भी भाषा का सामान्य ज्ञान प्राप्त कर सकें।
हिंदी भाषा और साहित्य को बढ़ावा देने के लिए समिति ने कई भाषाओं की किताबों का हिंदी में अनुवाद कराया, साथ ही कई महत्वपूर्ण किताबें लिखवाकर प्रकाशित भी कीं।
महात्मा गाँधी के विचारों को साकार करने में इस संस्था का बड़ा योगदान है। इसने एक करोड़ 60 लाख से अधिक गैर-हिंदी भाषी लोगों को हिंदी में शिक्षित करने का कार्य किया। इसके अलावा, राष्ट्रभाषा को बढ़ावा देने के लिए अनेक देशों में विश्व हिंदी सम्मेलनों का आयोजन किया जाता है। प्रथम विश्व हिंदी सम्मेलन सन् 1975 में नागपुर में आयोजित किया गया था।
निष्कर्ष
हिंदी की इन संस्थाओं ने भाषा और साहित्यिक कृतियों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। साथ ही, हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने और देव नागरी लिपि को फैलाने में भी मदद की। इसके माध्यम से देशभर में राष्ट्रीय भावना, गौरव, एकता और नवचेतना का प्रचार हुआ।
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