प्रश्न 1- "19वीं सदी के भारत में सामाजिक और धार्मिक सुधार आंदोलनों की पृष्ठभूमि का विश्लेषण कीजिए।" ब्रह्म समाज, के सिद्धांतों और कार्यों पर विशेष प्रकाश डालिए।"

May 07, 2025
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प्रश्न 1-

उत्तरपरिचय 

19वीं सदी के दौरान भारत में सामाजिक और धार्मिक सुधार आंदोलनों की शुरुआत हुई। अंग्रेजों के शासन और पश्चिमी शिक्षा के प्रभाव से लोगों ने जातिवाद, सती प्रथा, बहुविवाह और महिलाओं की स्थिति जैसी कुरीतियों पर सवाल उठाने शुरू किए। इस समय समाज में बदलाव की आवश्यकता महसूस की गई। राजा राममोहन राय जैसे सुधारकों ने सामाजिक न्याय, समानता और धर्म सुधार की दिशा में काम किया। उनके प्रयासों से ब्रह्म समाज जैसी संस्थाओं का निर्माण हुआ, जिन्होंने प्रमुख समस्याओं को सुधारने की कोशिश की।


विश्लेषण : 19वीं सदी के भारत में सामाजिक और धार्मिक सुधार आंदोलनों की पृष्ठभूमि

1. अंग्रेजों के आगमन से सामाजिक सोच में बदलाव :

भारत में अंग्रेजों के शासन के साथ नई कानूनी और प्रशासनिक व्यवस्थाएँ आईं। इससे भारतीय समाज को अपनी पुरानी व्यवस्था की कमजोरियाँ दिखने लगीं। जातिवाद, धर्म, महिलाओं की स्थिति और शिक्षा पर सवाल उठने लगे। यह बदलाव धीरे-धीरे सामाजिक क्रांति में बदल गया।

2. अंग्रेजी शिक्षा और नए विचारों का असर :

अंग्रेजों ने जब भारत में अंग्रेजी शिक्षा शुरू की, तो भारतीय युवाओं को पश्चिमी देशों के विचारों से की जानकारी हुई। स्वतंत्रता, समानता, वैज्ञानिक सोच और मानव अधिकार जैसे विचार भारतीयों को आकर्षित करने लगे। इससे भारतीय समाज में रूढ़ियों और कुरीतियों के खिलाफ एक सोच विकसित हुई, जो समाज सुधार आंदोलनों की नींव बना।

3. समाज सुधारकों की जागरूकता :

 

राजा राममोहन राय, ईश्वरचंद्र विद्यासागर, स्वामी दयानंद सरस्वती जैसे समाज सुधारकों ने भारतीय समाज की बुराइयों को दूर करने के लिए आवाज़ उठाई। उन्होंने सती प्रथा, बाल विवाह, स्त्रियों की अशिक्षा, और विधवा पुनर्विवाह जैसे मुद्दों पर खुलकर बात की। उनके प्रयासों से समाज में जागरूकता आई और सुधार की दिशा में कदम उठे। 

4. ईसाई प्रचारकों और अंग्रेज विद्वानों की भूमिका :

ईसाई मिशनरियों ने भारतीय धर्मों और परंपराओं की बुराई की, जिससे भारतीय विद्वानों को अपनी संस्कृति को बचाने और समझने की प्रेरणा मिली। अंग्रेज इतिहासकारों ने भारत के इतिहास और समाज पर जो बातें लिखीं, उन्होंने भारतीयों को खुद पर सोचने और सुधार करने के लिए प्रेरित किया।

5. मीडिया और महिलाओं की स्थिति पर नई सोच :

अख़बारों, पत्रिकाओं और पुस्तकों ने समाज की बुराइयों को उजागर करना शुरू किया और लोगों को सुधार के लिए जागरूक किया। खासकर महिलाओं की शिक्षा, अधिकार और सम्मान की माँग ज़ोर पकड़ने लगी। कई सुधारकों और संस्थाओं ने महिलाओं की स्थिति सुधारने के लिए स्कूल, आश्रम और पत्रिकाएं शुरू कीं, जिससे समाज में सकारात्मक बदलाव आने लगा।

ब्रह्म समाज




राजा राम मोहन राय (22 मई 1772 - 27 सितंबर 1833) एक भारतीय सामाजिक सुधारक, लेखक और दार्शनिक थे, जिन्हें आधुनिक भारत का जनक भी कहा जाता है, उन्होंने 1828 में ब्रह्म समाज की स्थापना की, जो भारतीय उपमहाद्वीप में सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलन का अग्रदूत था।

    ब्रह्म समाज के सिद्धांत :-

    1. ब्रह्म समाज का मानना था कि एक ही ईश्वर है, जो दुनिया को बनाता है और उसकी देखभाल करता है। ईश्वर के पास अनंत शक्ति और अच्छाई है।

    2. हर इंसान की आत्मा हमेशा जीवित रहती है, वे अपने कामों के लिए ईश्वर के प्रति जिम्मेदार हैं।

    3. व्यक्ति या मानव निर्मित किसी भी चीज़ की ईश्वर के रूप में पूजा नहीं की जानी चाहिए।

    4. ईश्वर अच्छे लोगों की आत्माओं से बात करता है, इसलिए ईश्वर से बात करने के लिए पैगम्बर या पवित्र पुस्तकों की कोई ज़रूरत नहीं है।

    5. ब्रह्म समाज का मानना है कि सत्य ही धर्म है। धार्मिक किताबों को तब तक मानना चाहिए, जब तक वो ईश्वर की सिखाई बातों से मेल खाती हों।

    6. लोगों को हर दिन प्रेम और आदर्शों के साथ ईश्वर की पूजा करनी चाहिए।

    7. सभी लोग ईश्वर के सामने समान हैं, इसलिए जाति, रंग, नस्ल या लिंग के आधार पर किसी के साथ भेदभाव नहीं होना चाहिए।

    8. ब्रह्म समाज मूर्तियों की पूजा, जानवरों की बलि या अनुष्ठान में विश्वास नही रखता है।

     ब्रह्म समाज के कार्य :-

    क्रमांक

    कार्य/विषय

    विवरण

    1.

    सती प्रथा का उन्मूलन

    राजा राममोहन राय ने 1818 में अपनी भाभी की सती होने की घटना के बाद इस प्रथा के खिलाफ आंदोलन शुरू किया। 1829 में ब्रिटिश सरकार ने सती प्रथा को गैरकानूनी घोषित किया।

    2.

    बहु विवाह और जातिवाद का विरोध

    उन्होंने बहुविवाह और जातिवाद के खिलाफ आवाज़ उठाई। उन्होंने प्रेम, सम्मान और समानता के आधार पर विवाह और समाज की वकालत की।

    3.

    किसानों का समर्थन

    राममोहन राय ने ज़मींदारों द्वारा किसानों से अत्यधिक किराया वसूलने का विरोध किया और किसानों के अधिकारों के लिए कानून की मांग की।

    4.

    प्रेस की स्वतंत्रता

    1823 में उन्होंने प्रेस की आज़ादी के लिए आंदोलन किया। 1835 में सरकार ने प्रेस पर लगाए गए कड़े नियम हटा दिए।

    5.

    शिक्षा एवं साहित्य में योगदान

    1815-1820 के बीच उन्होंने कई पुस्तकें लिखीं और धार्मिक ग्रंथों का अनुवाद किया। “The Precepts of Jesus” जैसे कार्य प्रमुख हैं।

    6.

    देवेन्द्रनाथ ठाकुर और केशवचंद्र सेन का योगदान

    राममोहन राय के बाद देवेंद्रनाथ ठाकुर ने तत्त्वबोधिनी सभा (1839) की स्थापना की। केशवचंद्र सेन ने ब्रह्मसमाज को आगे बढ़ाया, लेकिन उनके उदार विचारों से संगठन में विभाजन हुआ।


    निष्कर्ष

    19वीं सदी में सामाजिक और धार्मिक सुधार आंदोलनों ने भारत में महत्वपूर्ण परिवर्तन लाए। ब्रह्म समाज, जिसकी स्थापना राजा राममोहन राय ने की, ने सती प्रथा, बहुविवाह, और जातिवाद के खिलाफ संघर्ष किया। इसके साथ ही, इसने धार्मिक स्वतंत्रता, महिलाओं के अधिकार और समाज में समानता की दिशा में कदम बढ़ाए।



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