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प्रश्न - 1 कार्यालयी हिंदी से आप क्या समझते है? भारत में कार्यालयी हिंदी की वर्तमान स्थिति को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर -
परिचय
कार्यालयी हिन्दी का स्वरूप तकनीकी, लिखित और औपचारिक होता है। इसमें कार्यालयी संदर्भ की तकनीकी शब्दावली का प्रयोग होता है और इसका व्यवहार औपचारिक प्रयोजनों से लिखित रूप में होता है। कार्यालयी हिन्दी शब्दावली के कुछ उदाहरण हैं- फाइल, अनुभाग, अदालत, हलफनामा, प्रस्ताव, आवेदन-पत्र, दफ्तर आदि। इसके अलावा कार्यालयी हिन्दी की भाषा सूचना प्रधान होती है यानी वर्तमान समय इसके द्वारा कर्मचारियों और अधिकारियों तथा विभागों के बीच सूचनाओं का आदान-प्रदान होता है।
कार्यालयी हिंदी: विभिन्न कार्यालयों में कार्य करने वाले लोग जब हिंदी में काम करते हैं, तो उसे कार्यालयी हिंदी कहा जाता है। लेकिन यहाँ इसका मतलब वह नहीं है। कार्यालयी हिंदी से तात्पर्य उस हिंदी से है जो सरकारी कार्यालयों और उनसे जुड़े संस्थानों में उपयोग की जाती है, जिसे भारतीय संविधान में 'राजभाषा' के रूप में जाना जाता है। चूंकि यह सरकार के कामकाज की भाषा है, इसलिए इसे 'राजभाषा' भी कहा जाता है। यह भाषा शैली सरकारी और प्रशासनिक कार्यों में उपयोग की जाती है और इसमें विशिष्ट शब्दावली, वाक्य रचना और औपचारिकता होती है। इस भाषा का उद्देश्य सरकारी कामकाज को आम जनता के लिए सुगम और समझने योग्य बनाना है।
डॉ. उषा तिवारी के अनुसार सरकारी कामकाज में प्रयुक्त होने वाली भाषा को प्रशासनिक हिंदी या कार्यालयीन हिंदी कहा जाता है, हिंदी का वह स्वरूप जिसमें प्रशासन के काम में आने वाले शब्द, वाक्य अधिक प्रयोग में आते हों।
भारत में कार्यालयी हिंदी की वर्तमान स्थिति :
भारत में बहुसंख्यक समाज हिंदी भाषा को जानता, बोलता है और हिंदी को ही भारत की भाषा संपर्क स्वीकार किया जाता है। वैदिककालीन संस्कृत से निकली भारतीय भाषाओं में सबसे अधिक निकटता हिंदी के साथ है। जिस तरह से संस्कृत भाषा वैदिक काल से निरंतर परिवर्तित होते हुए आधुनिक युग में अपना स्वरूप बिल्कुल बदल चुकी है उसी तरह 'हिंदी' के उदय के साथ वर्षों की यात्रा के उपरांत हिंदी विभिन्न अनुशासनों की सहचरी की भूमिका निभाते हुए निरंतर विकसित होती रही है। उसका स्वरूप किसी एक अनुशासन में कुछ और होता है तो किसी अन्य अनुशासन में कुछ और वर्तमान समय में हिंदी समाज के समक्ष जिस रूप में है उसके अनेक स्वरूप हमें दिखाई देते हैं। उसके प्रयोजन के आधार पर उसके विभिन्न रूप इस प्रकार हैं-
1. साहित्यिक हिंदी- स्वाभाविक तौर पर 'साहित्यिक हिंदी' से अभिप्राय साहित्य की विभिन्न विधाओं में प्रयोग की जाने वाली सृजनात्मक भाषा से होता है जिसमें बिंब, प्रतीक, लक्षणात्मक व व्यंजनात्मक प्रयोग, आलंकारिकता आदि शिल्प के अनेक पक्ष समाहित होते हैं। इस हिंदी में प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से अर्थ-ग्रहण किये जा सकते हैं।
2. सामान्य जन की हिंदी- सामान्य-जन की हिंदी अनौपचारिकता से युक्त होती है और इसके अंतर्गत भाषिक-संरचना के नियमों से कुछ छूट मिल जाती है। यह व्याकरण के नियमों से युक्त होकर भी उससे मुक्त रहती है क्योंकि इसमें इस हिंदी का प्रयोग करने वाला समाज हिंदी के ग्राम्य, देशज तथा विदेशी शब्दों का प्रयोग भी सहज रूप से कर सकता है।
3. कार्यालयी हिंदी- कार्यालयी हिंदी' सामान्य रूप से वह हिंदी है जिसका प्रयोग किसी भी कार्यालय के दैनिक कामकाज में प्रयोग में किया जाता है लेकिन व्यावसायिक कार्यालयों की हिंदी इससे भिन्न प्रकार की होती है। इसीलिए कार्यालयी हिंदी को वर्तमान समय में सरकारी कार्यालयों में व्यवहार में ली जाने वाली हिंदी के रूप में ही जाना जाता है।
4. व्यावसायिक हिंदी- व्यावसायिक हिंदी से अभिप्राय औद्योगिक या व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में प्रयोग में ली जाने वाली हिंदी से हैं जिसके अंतर्गत वाणिज्यिक, पर्यटन, संस्कृति, जनसंचार आदि क्षेत्र सम्मिलित हैं।
निष्कर्ष
भारत में कार्यालयी हिंदी की स्थिति मिश्रित है। हिंदी का उपयोग बढ़ रहा है, लेकिन इसे और प्रभावी बनाने के लिए भाषा को सरल और सहज बनाने की आवश्यकता है। साथ ही, देश के विभिन्न क्षेत्रों में भाषा की विविधता का भी ध्यान रखना आवश्यक है, ताकि कार्यालयी हिंदी हर क्षेत्र में सुलभ और प्रभावी हो सके।
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