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प्रश्न 1. पूंजीवाद को परिभाषित कीजिए। क्या आप इस बात से सहमत हैं कि वैश्वीकरण आधुनिक पूंजीवाद का प्रतिरूप है? सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
अथवा
"भूमण्डलीकरण ने राष्ट्र राज्य के राजनीतिक प्रतिक्रियाओं को प्रभावित किया है"। विवेचना कीजिए।
उत्तर -
परिचय
प्रारंभिक पुनर्जागरण के दौरान, 15वीं और 16वीं शताब्दी में पूंजीवाद की उत्पत्ति हुई। हालाँकि पूंजीवादी प्रणाली के प्रमाण प्राचीन सभ्यताओं में भी मिलते हैं। 18वीं शताब्दी की औद्योगिक क्रांति ने पूंजीवाद को उत्पादन के एक प्रमुख तरीके के रूप में स्थापित किया, जिसकी विशेषता कारखाने में 'काम' और 'श्रम' का विभाजन था। वैश्वीकरण की प्रक्रिया के माध्यम से, पूंजीवाद 19वीं और 20वीं शताब्दियों में दुनिया भर में फैल गया।
पूंजीवाद की परिभाषा विभिन्न विचारको के अनुसार
आधुनिक पूंजीवाद :
आधुनिक पूंजीवाद, जहां निजी कंपनियाँ मुनाफा कमाने के लिए स्वतंत्र होती हैं, वैश्विक बाजारों में व्यापार और निवेश के माध्यम से और अधिक लाभ कमा सकती हैं। इसके परिणामस्वरूप, वैश्वीकरण को बढ़ावा मिलता है। आधुनिक पूंजीवादी अर्थव्यवस्थाओं में, कंपनियाँ अपने उत्पादों और सेवाओं को केवल अपने देश में ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में बेचने का प्रयास करती हैं।
1. उदाहरण के लिए, एप्पल (Apple): यह एक अमेरिकी कंपनी है जो अपने उत्पादों का डिज़ाइन अमेरिका में करती है, उनके घटक चीन और अन्य देशों में बनाती है, और उन्हें पूरे विश्व में बेचती है। इससे कंपनी की उत्पादन लागत कम होती है और उन्हें वैश्विक बाजार में अपनी उपस्थिति मजबूत करने में मदद मिलती है।
2. उदाहरण के लिए, एक कार कंपनी टोयोटा (Toyota) : इसके हिस्से विभिन्न देशों में बनाए जाते हैं - इंजन जापान में, सीटें थाईलैंड में, और इलेक्ट्रॉनिक्स जर्मनी में। फिर इन सभी हिस्सों को संयोजित कर अंतिम उत्पाद तैयार किया जाता है। इससे कंपनियों को सर्वोत्तम गुणवत्ता और लागत के लिए विभिन्न स्थानों पर उत्पादन करने की सुविधा मिलती है।
विश्वीकरण : एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके जरिए दुनिया के लोग एक-दूसरे से जुड़ते हैं। इसमें विश्व राजनीति, अर्थशास्न, और संस्कृति शामिल है। वैश्वीकरण के जरिए, अलग-अलग देशों के बीच वस्तुओं, सेवाओं, निवेश, और तकनीक का आदान-प्रदान होता है। वैश्वीकरण के कारण ही, दुनिया भर में लोगों के जीवन स्तर में काफ़ी सुधार हुआ है।
आधुनिक पूंजीवाद का प्रतिरूप वैश्विकरण :
हाँ, वैश्वीकरण को आधुनिक पूंजीवाद का प्रतिरूप माना जा सकता है। वैश्वीकरण और आधुनिक पूंजीवाद आपस में गहराई से जुड़े हुए हैं, और दोनों एक-दूसरे को मजबूती प्रदान करते हैं।
1. आधुनिक पूंजीवाद के रूप में वैश्वीकरण:
वैश्वीकरण एक जटिल और व्यापक प्रक्रिया है जिसने वैश्विक समाज और अर्थव्यवस्था के विभिन्न पहलुओं को प्रभावित किया है। आधुनिक पूंजीवाद ने अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का विस्तार किया है। इससे वैश्विक व्यापार में वृद्धि हुई है और विभिन्न देशों के बीच आर्थिक संबंध मजबूत हुए हैं। ऐसी नव-उदारवादी नीतियाँ 1990 के दशक में दुनिया भर के अधिकांश देशों ने अपनाई थीं और यह नई विश्व अर्थव्यवस्था की प्रमुख विचारधारा बन गई।
2. बाजार का विस्तार
वैश्वीकरण ने अंतर्राष्ट्रीय बाजारों को अभूतपूर्व रूप से बढ़ावा दिया है, जिससे कंपनियों को वैश्विक स्तर पर अपने उत्पाद बेचने और सेवाएं प्रदान करने का अद्वितीय अवसर मिला है। इसके परिणामस्वरूप, कंपनियों ने अपने व्यापारिक गतिविधियों को सीमाओं से परे फैलाने में सफलता प्राप्त की है। अब कंपनियां सिर्फ स्थानीय बाजारों पर निर्भर नहीं रह गई, बल्कि वे दुनिया भर के बाजारों में अपने उत्पाद और सेवाएं प्रदान कर रही हैं।
3. तकनीकी विकास और वैश्वीकरण :
आधुनिक पूंजीवाद में तकनीकी विकास ने अत्यधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वैश्वीकरण ने प्रौद्योगिकी के प्रसार को तेज कर दिया है, जिससे उत्पादन प्रक्रियाएं और अधिक कुशल और लाभदायक हो गई हैं। उदाहरण के लिए, इंटरनेट और संचार प्रौद्योगिकियों ने व्यापारिक लेन-देन को सरल और तेज़ बना दिया है।
4. वैश्विक आर्थिक संस्थाओं का वैश्विक विस्तार:
1990 के दशक में, वैश्विक आर्थिक संस्थाएँ जैसे कि विश्व बैंक और IMF (अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष) ने कुछ खास सिद्धांतों को बढ़ावा दिया। इन सिद्धांतों को "वाशिंगटन कांसेंसस" कहा गया, और इसमें शामिल थे- स्थायित्व, नि जीकरण, उदारवाद। इन नीतियों के कारण, नव-उदारवादी पूँजीवाद दुनिया के उन देशों में भी फैल गया, जो पहले इनसे दूर थे।
भूमण्डलीकरण का राष्ट्र राज्य के राजनीतिक प्रतिक्रियाओं पर प्रभाव :
1. राज्य की संप्रभुता का हास :
वैश्वीकरण के दौर में अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं, परा-राष्ट्रीय संगठनों और वैश्विक दबाव समूहों के उदय ने राज्यों की नीति-निर्माण क्षमताओं को कमजोर कर दिया है। यू.एन., WTO, IMF जैसी संस्थाओं ने राज्यों की आर्थिक और सामाजिक नीतियों पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाला है। इसके अलावा, अंतर्राष्ट्रीय सामाजिक आंदोलनों और गैर-सरकारी संगठनों ने भी राष्ट्रीय नीतियों पर दबाव बनाना शुरू कर दिया है, जिससे राज्यों को अपने नागरिक समाज और वैश्विक मांगों के बीच संतुलन बनाना पड़ा है।
2. आर्थिक स्वायत्तता और वैश्वीकरण :
किनिची ओहमे के अनुसार, राष्ट्र-राज्य आर्थिक गतिविधियों को नियंत्रित करने में अप्राकृतिक और दुष्क्रियाशील इकाई बन गया है। वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं, बहुराष्ट्रीय कंपनियों और वित्तीय बाजारों के प्रसार ने राज्यों की आर्थिक नीतियों पर नियंत्रण को कमजोर कर दिया है।
3. राजनीतिक और सामाजिक संरचनाओं में बदलाव :
सुजान स्ट्रेंज ने बताया है कि राज्य का घटता प्राधिकार राजनीतिक और सामाजिक संरचनाओं में बदलाव का कारण बना है। राज्य अब विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय और क्षेत्रीय नेटवर्क्स और सहकारिताओं का हिस्सा बन गया है, जिससे उनकी पारंपरिक भूमिका और अधिकारक्षेत्र में कमी आई है।
4. तकनीकी विकास और राज्य की भूमिका :
रोबर्ट गिल्पिन के अनुसार, वैश्वीकरण का प्रभाव तकनीकी विकास का परिणाम है। तकनीकी विकास ने अंतर्राष्ट्रीय संबंधों और व्यापार को बदल दिया है, जिससे राज्य की भूमिका भी बदल गई है। राज्यों ने इन तकनीकी परिवर्तनों के अनुसार अपनी नीतियों को अनुकूलित किया है।
5. वैश्वीकरण का रूपांतरणवादी दृष्टिकोण :
डेविड हेल्ड और एंथोनी एम्सिग्रिव के अनुसार, वैश्वीकरण ने संस्थाओं, शक्ति के प्रयोग और वितरण को रूपांतरित किया है। वे मानते हैं कि वैश्वीकरण के तहत राज्य के कुछ क्षेत्रों में शक्तिशाली बनने और कुछ क्षेत्रों में प्राधिकार खोने की संभावनाएँ होती हैं।
मूल्यांकन
प्रारंभिक पुनर्जागरण से शुरू होकर 18वीं शताब्दी की औद्योगिक क्रांति ने पूंजीवाद को एक प्रमुख आर्थिक प्रणाली के रूप में स्थापित किया। 19वीं और 20वीं शताब्दियों में वैश्वीकरण ने इसे दुनिया भर में फैलाया, जिससे अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और निवेश का अभूतपूर्व विस्तार हुआ। वैश्वीकरण और पूंजीवाद गहराई से जुड़े हुए हैं और एक-दूसरे को मजबूत करते हैं। वैश्वीकरण ने बाजारों का विस्तार किया है, तकनीकी विकास को बढ़ावा दिया है, और वैश्विक आर्थिक संस्थाओं का प्रभाव बढ़ाया है। इसने राज्यों की संप्रभुता को चुनौती दी है और उनकी आर्थिक और राजनीतिक संरचनाओं में बदलाव लाया है। आधुनिक पूंजीवाद ने तकनीकी विकास और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के माध्यम से वैश्विक आर्थिक संबंधों को मजबूत किया है, जिससे वैश्विक बाजार और कंपनियों आपस में अधिक गहराई से जुड़ी हुई हैं।
निष्कर्ष
अंतत: हम यह कह सकते हैं की वैश्वीकरण आधुनिक पूंजीवाद का ही प्रतिरूप है क्योंकि यह वैश्विक स्तर पर पूंजी, वस्तुओं, सेवाओं, और श्रम के मुक्त प्रवाह को बढ़ावा देता है। इनसे पूंजीवादी सिद्धांतों का वैश्विक प्रसार होता है, जिससे वैश्वीकरण और पूंजीवाद आपस में जुड़ जाते हैं।
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