History of India : 1700-1857 Notes In Hindi Medium B.A PROG DU SOL Semester 5th

May 27, 2025
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History of India : 1700-1857 Notes In Hindi Medium B.A PROG DU SOL Semester 5th

प्रश्न 1- मुग़ल साम्राज्य के पतन और क्षेत्रीय राजनीतिक संस्थाओं के उदय के कारणों का वर्णन कीजिए।

उत्तर - परिचय

मुगल साम्राज्य भारत के इतिहास में सबसे बड़े और सबसे शक्तिशालीसाम्राज्यों में से एक था। बाबर ने 1526 में पानीपत के पहले युद्ध में दिल्ली के शासक इब्राहिम लोदी को हराकर मुगल वंश की नींव रखी।उसके बाद हुमायूँ, अकबर, जहाँगीर, शाहजहाँ और औरंगज़ेब जैसे शक्तिशाली शासकों ने इस साम्राज्य को उसकी चरम सीमा तक पहुँचाया। मुगल काल भारतीय इतिहास के सुनहरे युगों में से एक माना जाता है, जिसने भारत पर लगभग 300 वर्षो तक शासन किया।

मुग़ल साम्राज्य का पतन : मुगल साम्राज्य का पतन उसी तरह आश्चर्यजनक था,जैसे इसका उत्थान। औरंगजेब की कठोर नीतियाँ, उत्तराधिकारियों की अयोग्यता,आंतरिक विवाद और दरबारी साजिशें इसके पतन के प्रमुख कारण बने। सत्ता के लिए संघर्ष, क्षेत्रीय शक्तियों का उदय और यूरोपीय हस्तक्षेप ने इसे और कमजोर कर दिया। अंततः यह वैभवशाली साम्राज्य बिखर गया और 1857 के विद्रोह के बाद समाप्त हो गया।

मुग़ल साम्राज्य के पतन के कारण

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1. राजनीतिक कारण

  • उत्तराधिकार के नियम का अभाव- मुगलों में उत्तराधिकार का कोई नियम नहीं था। हर शासक ने ताकत के बल पर गद्दी हासिल की। बादशाह की मृत्यु या जीवनकाल में ही उत्तराधिकार के लिए संघर्ष शुरू हो जाते थे, जिसमें दरबारी और अमीर भी शामिल होते थे। इन झगड़ों ने साम्राज्य को कमजोर किया और पतन की ओर धकेल दिया।
  • औरंगज़ेब के दुर्बल उत्तराधिकारी- औरंगजेब के बाद कमजोर और अयोग्य शासक गद्दी पर आए,जो भोग-विलास में डूबे रहे। वजीरों और सरदारों ने सत्ता अपने हाथों में ले ली, और बादशाह उनकी कठपुतली बन गए। कई शासकों को हटाया या मारा गया। इन दुर्बल शासकों ने मुगल साम्राज्य को पाटन की ओर धकेल दिया।
  • दरबारी षड्यन्त्र एवं गुटबाजी- औरंगजेब के शासन के अंतिम वर्षों में दरबारी गुटबाजी बढ़ गई।
    तूरानी, पर्शियाई और हिंदुस्तानी गुट अपने-अपने हितों के लिए आपस में लड़ते रहे। ये गुट प्रशासन को अनदेखा करते और देश में अशांति फैलाते थे। विदेशी आक्रमणों के समय भी ये एकजुट नहीं हुए और कई बार हमलावरों से मिलकर भी षड्यंत्र रचते थे।
  • प्रशासनिक भ्रष्टाचार - मुगल प्रशासन में योग्यता की जगह सिफारिश और धन ने ले ली। अयोग्य और स्वार्थी अधिकारी पदों पर आ गए, जिससे भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी बढ़ी। मनसब और जागीरें पैसे के बदले मिलने लगीं, जिससे प्रशासन कमजोर हो गया। इस भ्रष्टाचार ने मुगल साम्राज्य को
    कमजोर कर पतन की ओर धकेल दिया।
  • विदेशी आक्रमण- मुगलों की कमजोरी का फायदा उठाकर नादिरशाह और अहमदशाह अब्दाली
    ने 18वीं शताब्दी में भारत पर आक्रमण किया। नादिरशाह ने दिल्ली लूटी और उसे जलाकर राख
    कर दिया, साथ ही मुहम्मदशाह को बंदी बना लिया, जिससे मुगलों की प्रतिष्ठा पूरी तरह नष्ट हो गई।अंत में, शाहआलम को अंग्रेजों से संधि करनी पड़ी, और मुगल सिर्फ नाम के शासक रह गए।
  • भारत में यूरोपीय शक्तियों का विकास- 16वीं शताब्दी से यूरोपीय शक्तियाँ, खासकर पुर्तगाली
    और अंग्रेज, भारत में अपना प्रभाव बढ़ाने लगीं। व्यापार के साथ-साथ वे राजनीति में भी हस्तक्षेप
    करने लगे। 18वीं शताब्दी तक अंग्रेजों ने पुर्तगालियों को पीछे छोड़ दिया और पलासी के युद्ध के
    बाद भारत में सत्ता स्थापित की। मुगलों की कमजोरी के कारण अंग्रेजों ने बक्सर में शाहआलम को
    भी हराया और मुगलों को पेंशनभोक्ता बना लिया।

2. आर्थिक कारण

  • कमज़ोर आर्थिक व्यवस्था- मुगल साम्राज्य के पतन का एक बड़ा कारण उसकी कमजोर आर्थिक व्यवस्था थी, खासकर जागीरदारी और कृषि व्यवस्था में संकट। जागीरदारों की संख्या बढ़ने पर भी जागीरें कम थीं, जिससे मनसबदारी व्यवस्था कमजोर हो गई। औरंगज़ेब के शासन के बाद यह समस्या और बढ़ गई। किसानों पर बढ़ते राजस्व के बोझ ने उनकी स्थिति बदतर कर दी, जिससे वे विद्रोह करने लगे। किसानों और मुगल सत्ता के बीच बिगड़ते संबंधों ने राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था को कमजोर कर दिया। इस आर्थिक संकट ने साम्राज्य को तेजी से पतन की ओर धकेल दिया।
  • क्षेत्रीय अर्थव्यवस्थाओं में परिवर्तन- 17वीं शताब्दी के अंत और 18वीं शताब्दी की शुरुआत में भारत की क्षेत्रीय अर्थव्यवस्थाओं में महत्वपूर्ण बदलाव हुए। कृषि उत्पादकता में सुधार, व्यापार का तेजी से विस्तार, और कारीगरी व विनिर्माण गतिविधियों में वृद्धि के कारण बंगाल, गुजरात और दक्कन जैसे क्षेत्रों में व्यापारिक केंद्र और समृद्ध कपड़ा उद्योग विकसित हुए। कपास और नील जैसी नकदी फसलों ने इन क्षेत्रों की आर्थिक प्रगति को और मजबूत किया। इन परिवर्तनों ने क्षेत्रीय शक्तियों को सशक्त बनाया, जो अब मुगल खजाने पर निर्भर हुए बिना अपनी आर्थिक स्थिति को स्थिर रखने में सक्षम थीं।

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3. धार्मिक कारण: (औरंगज़ेब की भूमिका)

अकबर के बाद मुगल सम्राटों की धार्मिक नीति संकीर्ण होती गई। जहाँगीर, शाहजहाँ और औरंगजेब की नीतियों ने हिंदुओं में असंतोष बढ़ा दिया, जिससे समाज में धार्मिक भेदभाव और अत्याचार महसूस होने लगे। इस स्थिति का फायदा उठाकर राजपूतों, मराठों, जाटों, सिखों और अन्य समूहों ने विद्रोह किया। औरंगजेब इन विद्रोहों को रोकने में असफल रहा, और ये विद्रोह उसके बाद भी जारी रहे। इन आंदोलनों ने मुगल साम्राज्य की जड़ों को कमजोर कर दिया और उसके पतन का रास्ता तैयार कर दिया।

4. मुग़लों की सैन्य दुर्बलताएँ

मुगल साम्राज्य का विस्तार सैन्य शक्ति पर आधारित था, लेकिन सेना की कमजोरियों ने पतन का मार्ग प्रशस्त किया। मनसबदारी व्यवस्था पर आधारित सेना में स्वामिभक्ति की कमी और अनुशासनहीनता बढ़ गई। राजपूतों को अलग करने, नौसेना के अभाव, पुराने हथियारों, और छापामार युद्ध की अज्ञानता ने मुगल सेना को कमजोर किया। लगातार युद्ध और उत्तराधिकार संघर्षों ने सेना की शक्ति को पूरी तरह से खत्म कर दिया।

5. नए समाजिक समूहों का उदय

मुगल साम्राज्य के पतन के साथ स्थानीय सरदार, जमींदार, और व्यापारी वर्ग प्रभावशाली बन गए। इनके पास अपनी सैन्य और प्रशासनिक शक्तियाँ थीं, जिससे मुगल सत्ता कमजोर हुई। मराठा, सिख, और जाट जैसे समूहों ने क्षेत्रीय शक्तियाँ स्थापित कर मुगलों के वर्चस्व को चुनौती दी। इन नए समूहों ने मुगल साम्राज्य के विखंडन को तेज कर दिया।

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क्षेत्रीय राजनीतिक संस्थाओं का उदय : मुगल साम्राज्य के पतन के चलते मुग़ल साम्राज्य की शक्ति घटने लगी, जिससे मराठा, सिख, जाट, मैसूर और त्रावणकोर जैसे राज्यों ने अपनी स्वतंत्रता की ओर कदम बढ़ाया और मुग़ल साम्राज्य की सत्ता को चुनौती दी।

1. मराठा

मराठा साम्राज्य का उदय शिवाजी महाराज के नेतृत्व में हुआ। मुग़ल साम्राज्य के कमजोर होने के बाद मराठों ने पश्चिमी भारत के बड़े हिस्से पर अपना नियंत्रण स्थापित किया। उनकी सैन्य शक्ति और रणनीति ने उन्हें एक प्रमुख क्षेत्रीय शक्ति बना दिया।

2. सिख

पंजाब क्षेत्र में सिखों ने गुरु गोबिंद सिंह और बाद में महाराजा रणजीत सिंह के नेतृत्व में एक मजबूत साम्राज्य की नींव रखी। यह साम्राज्य मुग़ल शासन के खिलाफ खड़ा हुआ और सिखों ने अपनी स्वतंत्रता की रक्षा की।

3. जाट

जाटों ने भी मुग़ल साम्राज्य के कमजोर होने के साथ ही सूरजमल जैसे नेताओं के नेतृत्व में अपने साम्राज्य का गठन किया, विशेष रूप से भरतपुर और मथुरा में। उनकी सेना और राजनैतिक जागरूकता ने उन्हें भारत में एक सशक्त शक्ति बना दिया।

4. मैसूर

दक्षिण भारत में मैसूर राज्य का उदय हुआ। हैदर अली और उनके बेटे टीपू सुलतान के नेतृत्व में इस राज्य ने ब्रिटिश साम्राज्य और अन्य स्थानीय शक्तियों के खिलाफ संघर्ष किया। मैसूर राज्य का प्रशासन और सैन्य संगठन मजबूत था।

5. त्रावणकोर राज्य

त्रावणकोर, जो वर्तमान केरल में स्थित है, ने भी एक स्वतंत्र राज्य के रूप में उभरने के लिए मुग़ल साम्राज्य के कमजोर होने का लाभ उठाया। त्रावणकोर राज्य ने अपने प्रभाव क्षेत्र में स्थिरता बनाई और दक्षिण भारत में महत्वपूर्ण शक्ति बन गया।

6. बंगाल

बंगाल में मुग़ल सत्ता कमजोर होने पर नवाब सिराज-उद-दौला और उसके बाद मीर कासिम जैसे शासकों ने क्षेत्रीय सत्ता स्थापित की। इसके बाद, बंगाल ने स्वतंत्र रूप से शासन किया और व्यापारिक गतिविधियों में भी अपना वर्चस्व कायम किया।

निष्कर्ष

मुगल साम्राज्य का पतन और क्षेत्रीय शक्तियों का उदय एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया थी। मराठा, मैसूर, सिख और जाट जैसे राज्यों ने अपनी मजबूत अर्थव्यवस्था, प्रशासनिक सुधार और सैन्य ताकत से मुग़ल सत्ताको चुनौती दी, जिससे मुग़लों की केंद्रिय सत्ता कमजोर हुई। इन राज्यों ने अपने संसाधनों का सही उपयोग
कर स्वतंत्रता प्राप्त की और मुग़ल साम्राज्य के सम्पूर्ण पतन में अहम भूमिका निभाई।

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