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प्रश्न 1 - भूमंडलीकरण कैसे पर्यावरण के लिए हानिकारक है? चर्चा कीजिए।
अथवा
वैश्वीकरण के विभिन्न पहलुओं की विवेचना कीजिए जिन्होंने पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है।
उत्तर -
परिचय
भूमंडलीकरण 20वीं शताब्दी के अंतिम वर्षों में एक प्रमुख वैश्विक प्रक्रिया के रूप में उभरा, जिसने दुनिया भर के देशों को एक वैश्विक गाँव के रूप में बदल दिया है। इसका सबसे महत्वपूर्ण रूप आर्थिक भूमंडलीकरण रहा, जो 1980 के दशक से उत्पादन, व्यापार और निवेश के क्षेत्र में तेजी से बढ़ा। हालांकि, इसके साथ ही पर्यावरण पर इसके नकारात्मक प्रभाव भी सामने आए हैं. जिसे समझना और सुधारना जरूरी है।
भूमंडलीकरण (Globalization) - भूमंडलीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिससे दुनिया के देश, उनकी अर्थव्यवस्थाएं, संस्कृतियाँ और बाजार आपस में जुड़ जाते हैं। यह व्यापार, तकनीक, संचार और निवेश के फैलाव से होता है।
भूमंडलीकरण के पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव के पहलू :
1. औद्योगीकरण और प्रक्षण - भूमंडलीकरण के चलते देशों में आर्थिक प्रतिस्पर्धा तेज़ हुई, जिससे भारी पैमाने पर उद्योगों की स्थापना हुई। इन फैक्ट्रियों से निकलने वाले धुएँ, रसायनों और कचरे ने वायु, जल और भूमि को गंभीर रूप से प्रदूषित किया, जिससे पर्यावरणीय संतुलन बुरी तरह प्रभावित हुआ।
2. प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन संश्विक बाज़ार की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए खनिज, वन, जल और ऊर्जा संसाधनों का लगातार अत्यधिक दोहन किया गया। इससे न केवल संसाधनों की उपलब्धता घट रही है, बल्कि जैव विविधता और पारिस्थितिक संतुलन भी खतरे में पड़ गया है।
3. परिवहन और कार्बन उत्सर्जन - अंतरराष्ट्रीय व्यापार के विस्तार से जल, वायु और सड़क परिवहन का उपयोग बहुत बढ़ा है। इन साधनों से निकलने वाली ग्रीनहाउस गैसों ने वातावरण में कार्बन की मात्रा बढ़ाई, जिससे वैश्विक तापमान और जलवायु परिवर्तन की गति तेज हो गई है।
4. वनों की कटाई और भूमि क्षरण ओद्योगीकरण, कृषि विस्तार और शहरीकरण के लिए बड़े पैमाने पर वनों की कटाई हुई है। इससे वन्य जीवों का आवास नष्ट हुआ, भूमि की उपजाऊ शक्ति कम हुई और पूरे पारिस्थितिक तंत्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा।
5. कृषि में रसायनों का अत्यधिक प्रयोग- खाद्य उत्पादन बढ़ाने के लिए आधुनिक कृषि में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का अत्यधिक उपयोग हो रहा है, जिससे मिट्टी और जल स्रोत प्रदूषित हो रहे हैं। साथ ही, केवल एक ही फसल उगाने से जैव विविधता भी घट रही है।
6. ई-कचरे और प्लास्टिक अपशिष्ट में वृद्धि- तकनीकी प्रगति और उपभोग बढ़ने के कारण हर साल बड़ी मात्रा में इलेक्ट्रॉनिक कचरा और प्लास्टिक उत्पन्न हो रहा है। इनका पुनर्चक्रण व निपटान सुचारू रूप से न हो पाने के कारण ये कचरे भूमि, जल और महासागरों को गंभीर रूप से प्रदूषित कर रहे हैं।
निष्कर्ष
अंततः वैश्वीकरण ने जहाँ एक ओर आर्थिक अवसर बढ़ाए, वहीं दूसरी ओर पर्यावरणीय संकट को गहरा किया। यदि पर्यावरण-संवेदनशील नीतियाँ नहीं अपनाई गईं, तो वैश्वीकरण का लाभ भी भविष्य में हानिकारक हो सकता है। यह आवश्यक है कि वैश्वीकरण को सतत विकास के सिद्धांतों के अनुरूप पुनः परिभाषित किया जाए, ताकि पर्यावरण और विकास के बीच संतुलन बना रहे।
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