IGNOU MGPE - 007 गांधी के बाद के अहिंसक आंदोलनों Notes In Hindi Medium

Aug 31, 2025
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IGNOU MGPE - 007 गांधी के बाद के अहिंसक आंदोलनों  Notes In Hindi Medium

प्रश्न 1 - भारत में शांतिपूर्ण आंदोलन के नेतृत्व और उसकी ढाँचागत व्यवस्था की व्याख्या कीजिए।

अथवा

गांधी के बाद के अहिंसक आंदोलनों में नेतृत्व और संगठनात्मक पैटर्न पर चर्चा करें।

उत्तर -

परिचय

भारत में शांतिपूर्ण आंदोलनों की परंपरा महात्मा गांधी के नेतृत्व में शुरू हुई, जहाँ अहिंसा, सत्याग्रह और जनसहभागिता को आंदोलन का मूल आधार बनाया गया। स्वतंत्रता के बाद भी यह परंपरा जारी रही, लेकिन अब इन आंदोलनों का नेतृत्व और ढाँचा बदलता गया। गांधी के बाद के अहिंसक आंदोलनों में नेतृत्व एक व्यक्ति तक सीमित न रहकर स्थानीय समुदायों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और संगठनों में बँट गया। साथ ही, इन आंदोलनों की संगठनात्मक व्यवस्था भी अधिक विकेन्द्रीकृत और लचीली हो गई।

गाँधी जी के अनुसार "अहिंसा सबसे बड़ा धर्म है" और सच्चा संघर्ष वही है जो बिना हिंसा के हो। उन्होंने यह भी कहा कि, "अहिंसा मानव की सबसे बड़ी शक्ति है; यह किसी भी हथियार से अधिक प्रभावशाली है।"

भारत में शांतिपूर्ण आंदोलन के नेतृत्व और उसकी ढाँचागत व्यवस्था :

1. गाँधी का नेतृत्वः विचारों और संबंधों पर आधारित महात्मा गाँधी का नेतृत्व सिर्फ भाषण देने या ताकत दिखाने पर नहीं था, बल्कि उनके विचारों और लोगों से बने गहरे रिश्तों पर आधारित था। वे आम लोगों की भावनाओं और समस्याओं को समझते थे। उन्होंने नेतृत्व को आदेश देने का तरीका नहीं बनाया, बल्कि सेवा और बातचीत का माध्यम बनाया। वे खुद जनता के दुख-दर्द में शामिल होते थे और वहीं से आंदोलन को दिशा मिलती थी। गाँधी का नेतृत्व ऐसा था जिसमें अनुयायी (follower) केवल पीछे चलने वाले नहीं, बल्कि सोचने और समझने वाले साथी बनते थे।

2. भारत में शांतिपूर्ण आंदोलन की ढाँचागत व्यवस्था: गांधी जी ने शांतिपूर्ण आंदोलन की एक स्पष्ट और मजबूत ढाँचागत व्यवस्था बनाई थी। इसमें दो स्तर शामिल थे- एक ओर थे आम लोग जो उनकी छवि से भावनात्मक रूप से जुड़ते थे, और दूसरी ओर थे आश्रमवासी जो अनुशासन और सेवा से आंदोलन को मजबूत बनाते थे। गाँधी ने भाषणों, यात्राओं और पत्रों के माध्यम से जनता से लगातार संपर्क बनाए रखा। आश्रम योजनाओं के केंद्र थे, जहाँ से आंदोलन की रणनीति तैयार होती थी।

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गांधी के बाद के अहिंसक आंदोलनों में नेतृत्व और संगठनात्मक पैटर्न:

नेतृत्व का स्वरूप: गांधीवाद की निरंतरता और नवाचार

1. विनोबा भावे- गांधीवादी विचारधारा के वाहक विनोबा को गांधी का नैतिक प्रतिनिधि माना गया। उन्होंने भूदान आंदोलन के माध्यम से स्वैच्छिक भूमि दान की परंपरा शुरू की। जिसमें अमीर जमींदारों से स्वेच्छा से जमीन लेकर गरीब किसानों में बांटी जाती थी। उनका नेतृत्व मौन, आंतरिक अनुशासन और नैतिक दृढ़ता से युक्त था, जो गांधी के रचनात्मक कार्यक्रमों का विस्तार था।
2. जयप्रकाश नारायण- राजनीतिक चिंतन से नैतिक क्रांति तक जयप्रकाश नारायण ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत मार्क्सवादी विचारों से की, लेकिन बाद में वे गांधीवाद की ओर आकर्षित हुए। 1954 में उन्होंने सर्वोदय आंदोलन से जुड़कर सम्पूर्ण क्रांति का नारा दिया, जो सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक क्षेत्रों में गहराई से परिवर्तन की माँग करता था।
3. अन्य प्रमुख नेता - विविध विचारों का समन्वय गांधी जी के बाद कई विचारशील नेताओं और कार्यकर्ताओं ने उनके सिद्धांतों को अलग-अलग क्षेत्रों में आगे बढ़ाया। के.जी. मशरूवाला, दादा धर्माधिकारी, शंकरराव देव और धीरेन्द्र मजूमदार जैसे लोगों ने शिक्षा, ग्रामोद्योग, पर्यावरण और सामाजिक न्याय के क्षेत्रों में सक्रिय योगदान दिया। इन्होंने गांधीवाद को केवल राजनीति तक सीमित नहीं रखा, बल्कि समाज के हर क्षेत्र में उसे लागू किया।

संगठनात्मक पैटर्न: विकेंद्रीकरण, आश्रम और वैश्विक जुड़ाव

1. गाँधीवादी आश्रमः आंदोलन के आधार स्तम्य गांधीजी के विचारों पर बने आश्रम, जैसे वर्धा और मदुरै, कार्यकर्ताओं के लिए शिक्षा, सेवा और प्रयोग की जगह थे। इन आश्रमों से भूदान, शांति मिशन और शांति सेना जैसे आंदोलन जुड़े। ये आश्रम न केवल विचारों की बल्कि समाज सेवा और संगठन की मजबूत नींव भी बने।

2. स्वतंत्र शांति पहले: नए सामाजिक क्षेत्रों से जुड़ाव महिलाओं, छात्रों, पत्रकारों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने अलग-अलग सामाजिक मुद्दों पर शांतिपूर्ण विरोध किए। उन्होंने सैन्यकरण, मानवाधिकार हनन और गलत विकास के खिलाफ आवाज उठाई। भले ही इनमें एकजुटता की कमी रही, लेकिन उन्होंने समाज में नई चेतना और जागरूकता जरूर पैदा की।

3. वैश्विक नेटवर्किंग और प्रशिक्षण आधारित संगठन 'पीस ब्रिगेड इंटरनेशनल जैसे संगठनों ने भारत में शांति और अहिंसा सिखाने के लिए प्रशिक्षण केंद्र चलाए। इनसे दुनिया भर के लोगों से बातचीत और साझा कार्यक्रम हुए। साथ ही, परमाणु विरोधी आंदोलनों ने भारत की ऊर्जा नीति और सैन्य खर्चों पर लोगों को सोचने और सवाल उठाने के लिए प्रेरित किया।

निष्कर्ष

गांधी के बाद के अहिंसक आंदोलनों ने न केवल उनके विचारों को जीवित रखा, बल्कि बदलते सामाजिक-राजनीतिक संदर्भों में उन्हें नया रूप और दिशा भी दी। यह परंपरा आज भी भारत के नागरिक समाज की नैतिक चेतना का आधार है।

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