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प्रश्न 1 - भारत में शांतिपूर्ण आंदोलन के नेतृत्व और उसकी ढाँचागत व्यवस्था की व्याख्या कीजिए।
अथवा
गांधी के बाद के अहिंसक आंदोलनों में नेतृत्व और संगठनात्मक पैटर्न पर चर्चा करें।
उत्तर -
परिचय
भारत में शांतिपूर्ण आंदोलन के नेतृत्व और उसकी ढाँचागत व्यवस्था :
1. गाँधी का नेतृत्वः विचारों और संबंधों पर आधारित महात्मा गाँधी का नेतृत्व सिर्फ भाषण देने या ताकत दिखाने पर नहीं था, बल्कि उनके विचारों और लोगों से बने गहरे रिश्तों पर आधारित था। वे आम लोगों की भावनाओं और समस्याओं को समझते थे। उन्होंने नेतृत्व को आदेश देने का तरीका नहीं बनाया, बल्कि सेवा और बातचीत का माध्यम बनाया। वे खुद जनता के दुख-दर्द में शामिल होते थे और वहीं से आंदोलन को दिशा मिलती थी। गाँधी का नेतृत्व ऐसा था जिसमें अनुयायी (follower) केवल पीछे चलने वाले नहीं, बल्कि सोचने और समझने वाले साथी बनते थे।
2. भारत में शांतिपूर्ण आंदोलन की ढाँचागत व्यवस्था: गांधी जी ने शांतिपूर्ण आंदोलन की एक स्पष्ट और मजबूत ढाँचागत व्यवस्था बनाई थी। इसमें दो स्तर शामिल थे- एक ओर थे आम लोग जो उनकी छवि से भावनात्मक रूप से जुड़ते थे, और दूसरी ओर थे आश्रमवासी जो अनुशासन और सेवा से आंदोलन को मजबूत बनाते थे। गाँधी ने भाषणों, यात्राओं और पत्रों के माध्यम से जनता से लगातार संपर्क बनाए रखा। आश्रम योजनाओं के केंद्र थे, जहाँ से आंदोलन की रणनीति तैयार होती थी।
गांधी के बाद के अहिंसक आंदोलनों में नेतृत्व और संगठनात्मक पैटर्न:
नेतृत्व का स्वरूप: गांधीवाद की निरंतरता और नवाचार
संगठनात्मक पैटर्न: विकेंद्रीकरण, आश्रम और वैश्विक जुड़ाव
1. गाँधीवादी आश्रमः आंदोलन के आधार स्तम्य गांधीजी के विचारों पर बने आश्रम, जैसे वर्धा और मदुरै, कार्यकर्ताओं के लिए शिक्षा, सेवा और प्रयोग की जगह थे। इन आश्रमों से भूदान, शांति मिशन और शांति सेना जैसे आंदोलन जुड़े। ये आश्रम न केवल विचारों की बल्कि समाज सेवा और संगठन की मजबूत नींव भी बने।
2. स्वतंत्र शांति पहले: नए सामाजिक क्षेत्रों से जुड़ाव महिलाओं, छात्रों, पत्रकारों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने अलग-अलग सामाजिक मुद्दों पर शांतिपूर्ण विरोध किए। उन्होंने सैन्यकरण, मानवाधिकार हनन और गलत विकास के खिलाफ आवाज उठाई। भले ही इनमें एकजुटता की कमी रही, लेकिन उन्होंने समाज में नई चेतना और जागरूकता जरूर पैदा की।
3. वैश्विक नेटवर्किंग और प्रशिक्षण आधारित संगठन 'पीस ब्रिगेड इंटरनेशनल जैसे संगठनों ने भारत में शांति और अहिंसा सिखाने के लिए प्रशिक्षण केंद्र चलाए। इनसे दुनिया भर के लोगों से बातचीत और साझा कार्यक्रम हुए। साथ ही, परमाणु विरोधी आंदोलनों ने भारत की ऊर्जा नीति और सैन्य खर्चों पर लोगों को सोचने और सवाल उठाने के लिए प्रेरित किया।
निष्कर्ष
गांधी के बाद के अहिंसक आंदोलनों ने न केवल उनके विचारों को जीवित रखा, बल्कि बदलते सामाजिक-राजनीतिक संदर्भों में उन्हें नया रूप और दिशा भी दी। यह परंपरा आज भी भारत के नागरिक समाज की नैतिक चेतना का आधार है।
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