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प्रश्न 1. उदारीकरण क्या है? उदारीकरण के आर्थिक और राजनीतिक परिणाम किस हद तक भारतीय लोकतंत्र के कामकाज को प्रभावित करते हैं? ( जून 2010 प्रश्न 8, जून 2012: प्रश्न 2, जून 2013: प्रश्न 7, दिसं 2013 प्रश्न 2, दिसं 2015: प्रश्न 4, जून 2016: प्रश्न 10, दिसं 2016: प्रश्न 5, जून 2018: प्रश्न 7, जून 2020: प्रश्न 6, दिसं 2020: प्रश्न 4, जून 2024: प्रश्न 9 )
उत्तर:
परिचय -
उदारीकरण (Liberalisation)
उदारीकरण भारत में मुख्य रूप से 1990 के दशक में लागू किए गए आर्थिक सुधारों के एक समूह को संदर्भित करता है, उदारीकरण का अर्थ है बाज़ार को मुक्त करना अर्थात उस पर से अनावश्यक सरकारी नियन्त्रण को कम करना जिस से आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिल सके। इसका मुख्य उद्देश्य है.
सरकारी हस्तक्षेप कम करनाः इसमें उद्योगों, व्यापार और निवेश पर नियंत्रण और नियमों को कम करना शामिल है।
अर्थव्यवस्था को खोलनाः इसका मतलब है अंतर्राष्ट्रीय व्यापार (जैसे, टैरिफ, कोटा) की बाधाओं को कम करना और विदेशी निवेश को प्रोत्साहित करना।
बाजार-उन्मुख प्रणाली की ओर बढ़नाः इसमें सरकारी योजना और नियंत्रणों के बजाय संसाधनों के आवंटन के लिए बाजार की शक्तियों (आपूर्ति और मांग) पर अधिक निर्भर रहना शामिल है।
ISI: भारत ने आयात प्रतिस्थापन औद्योगीकरण (ISI) अपनाया जिसमें आयात को रोककर उद्योगों का विकास करना और औद्योगीकरण लाने के लिए राज्य द्वारा कार्रवाई करना शामिल था। भुगतान संतुलन संकट (balance of payments crisis) के बाद देश को मजबूत करने जरूरी था जिसके लिए देश को विदेशी पूंजी क साथ साथ औद्योगिक निवेश के प्रवाह को सक्षम करके उदारीकरण की ओर बढ़ना पड़ा।
उदारीकरण के आर्थिक परिणाम
1. विकास दरें (Growth Rates): कृषि और विनिर्माण की विकास दरों में कोई महत्वपूर्ण परिवर्तन नहीं हुआ है।
2. बढ़ा हुआ निर्यात (Increased Exports): ऐसे प्रमाण हैं जो बताते हैं कि श्रम-गहन (labor-intensive) वस्तुओं का निर्यात बढ़ा है।
3. उत्पादकता (Productivity): भारतीय उद्योग में उत्पादकता में वृद्धि हुई है।
4. विदेशी निवेश (Foreign investment): औद्योगिक निवेश पर आंतरिक नियमों को भी समाप्त कर दिया गया है और विदेशी पूंजी के प्रवाह को उदार (liberalized) बनाया गया है।
5. गरीबी में कमी (Poverty Reduction): 1990 के दशक में गरीबी में निरंतर गिरावट आई, हालांकि संभवतः 1980 के दशक की तुलना में धीमी गति से।
6. आय असमानता (Income Inequality): उदारीकरण वैश्वीकरण आय असमानता को बढ़ा सकता है।
7. आधारभूत संरचना (Infrastructure): प्रतिबंधों के उन्मूलन से संबंधित लाभ (corresponding benefits) उत्पन्न नहीं किए जा सके हैं। साथ ही, सरकारी निवेश की कमी के कारण पुरानी आधारभूत संरचना (outdated infrastructure) का विकास ठहर (stagnating) गया है।
8. घटा हुआ सरकारी निवेश (Reduced government investment): सरकारी निवेश (में कमी) के परिणामस्वरूप आधारभूत संरचना बहुत खराब और पुरानी हो गई है (very poor and outdated infrastructure has developed) जो तेज विकास में बाधा है।"
उदारीकरण के राजनीतिक परिणाम
चुनौतियाँ और संघर्ष
गरीबी में कमी और आय असमानता कम करने के बीच संघर्ष वैश्वीकरण गरीबी में कमी और आय असमानता को कम करने के बीच एक संभावित संघर्ष को सामने लाता है, एक संभावित विरोधाभास जिसे पहले भारत में नजरअंदाज किया गया था।
स्थिरता (Sustainability): यह सब गरीबी कम करने और वंचित समूहों को सशक्त बनाने में प्रगति की स्थिरता (sustainability of progress) के बारे में चिंताएँ पैदा करता है, खासकर सार्वजनिक क्षेत्र में कर्मचारियों और बुनियादी ढाँचे की कमी के कारण।
निष्कर्ष (CONCLUSION):
भारत में उदारीकरण के मिश्रित परिणाम रहे हैं। जबकि इसने आर्थिक विकास और कुछ गरीबी में कमी में योगदान दिया हो सकता है, इसने आय असमानता, राज्य की बदलती भूमिका और "न्यायपूर्ण विकास" सुनिश्चित करने के लिए बुनियादी ढांचे (infrastructure) और मानव पूंजी (human capital) में अधिक निवेश (greater investment) की आवश्यकता के बारे में चिंताएँ भी बढ़ाई हैं। इस बात पर बहस है कि क्या उदारीकरण ने भारतीय लोकतंत्र को मजबूत किया है या कमजोर किया है, खासकर गरीबी और समानता पर इसके प्रभाव के संदर्भ में। उदारीकरण ने इस बहस को जन्म दिया है कि क्या आर्थिक विकास "न्यायपूर्ण" है यानी, क्या यह गरीबी कम करता है, समानता को बढ़ावा देता है, और लोकतंत्र को मजबूत करता है।
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