IGNOU MPSE - 006 Peace and Conflict Studies Notes In Hindi Medium

Aug 31, 2025
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IGNOU MPSE - 006 Peace and Conflict Studies Notes In Hindi Medium

प्रश्न 1 - क्या आप सहमत हैं कि मानव प्रकृति मूल रूप से आक्रामक है? नकारात्मक और सकारात्मक शांति से आप क्या समझते हैं? व्याख्या कीजिए।

उत्तर -

परिचय

मानव प्रकृति को समझना एक जटिल विषय है, जिसमें यह सवाल उठता है कि क्या इंसान स्वभाव से आक्रामक है या नहीं। इतिहास में युद्ध, हिंसा और संघर्ष की घटनाएँ यह संकेत देती हैं कि आक्रामकता मानव व्यवहार का हिस्सा हो सकती है। लेकिन साथ ही सहानुभूति, सहयोग और शांति की भी अनेक मिसालें मिलती हैं। इसी संदर्भ में, "नकारात्मक" और "सकारात्मक" शांति की अवधारणाएँ मानव व्यवहार और समाज को गहराई से समझने का मार्ग प्रदान करती हैं।

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मानव प्रकृति को समझने के लिए तीन प्रमुख दृष्टिकोण दिए हैं:

1. मानव स्वभाव मूलतः शांत होता है

इस मत के अनुसार, इंसान का असली स्वभाव शांत, दयालु और सहयोगी होता है। उसमें करुणा, प्रेम और सहानुभूति जैसी भावनाएँ जन्म से ही मौजूद होती हैं। कई धार्मिक परंपराएँ मानती हैं कि इंसान ईश्वर की एक विशेष रचना है, जो अच्छा और नैतिक जीवन जीने की क्षमता रखता है। वह खुद अपने भविष्य को गढ़ता है और लगातार सुधार की ओर बढ़ता है। इसलिए, माना जाता है कि मानव स्वभाव मूलतः शांतिपूर्ण होता है।

2. मानव स्वभाव मूलतः आक्रामक होता है

इस मत के अनुसार, इंसान के भीतर स्वाभाविक रूप से क्रोध, लालच और हिंसा की प्रवृत्ति होती है। कई धर्म मानते हैं कि इंसान में अच्छाई और बुराई दोनों होती हैं और उनके बीच संघर्ष चलता रहता है। ईसाई धर्म में 'मूल पाप' और बौद्ध धर्म में इच्छाओं को संघर्ष का कारण बताया गया है। मनोवैज्ञानिक भी मानते हैं कि कठिन परिस्थितियों में इंसान आक्रामक बन सकता है। इसलिए यह मत कहता है कि मानव स्वभाव मूल रूप से हिंसक और स्वार्थी होता है।

3. मानव स्वभाव सामाजिक संबंधों से रूपांतरित होता है

इस मत के अनुसार, इंसान न तो पूरी तरह शांत होता है और न ही आक्रामक। उसका स्वभाव समाज, रिश्तों और माहौल से बनता है। जब लोग आपस में जुड़ते हैं, संवाद करते हैं और साथ काम करते हैं, तब उनका व्यवहार आकार लेता है। यह दृष्टिकोण मानता है कि मानव स्वभाव कोई स्थायी चीज नहीं है, बल्कि शिक्षा, संस्कृति और अनुभवों से लगातार बदलता रहता है।

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नकारात्मक और सकारात्मक शांति :

शांति

  • शांति को सरल शब्दों में समझें तो शान्ति का अर्थ केवल युद्ध या हिंसा का न होना नहीं है, बल्कि यह एक ऐसी स्थिति है जहाँ समाज में न्याय, समरसता और सहयोग भी हो। इसी आधार पर शान्ति को दो भागों में बाँटा जाता है: नकारात्मक और सकारात्मक शांति।

शांति की नकारात्मक और सकारात्मक अवधारणा

  • नकारात्मक शांति (Negative Peace) - नकारात्मक शांति का अर्थ है समाज में संघर्ष, हिंसा या युद्ध की अनुपस्थिति। इसमें समाज में शांति केवल इसलिए होती है क्योंकि संघर्ष को दबा दिया गया होता है, न कि हल किया गया है। जैसे- सैन्य बल या क़ानून द्वारा विरोध को रोकना। यह शांति दिखावटी और अस्थायी होती है, जिसमें तनाव छिपा होता है। प्रसिद्ध विद्वान केनेथ बॉल्डिंग इसे "कब्र की शांति" या "शून्यता की शांति" कहते हैं, जहाँ बाहर तो सब शांत होता है, पर भीतर जीवन, स्वतंत्रता, और ऊर्जा नहीं होती।
  • सकारात्मक शांति (Positive Peace) - सकारात्मक शान्ति का अर्थ है एक ऐसी स्थिति जिसमें न केवल हिंसा का अभाव होता है, बल्कि समाज में न्याय, समानता, संवाद और सहयोग सक्रिय रूप से मौजूद रहते हैं। यह शान्ति टिकाऊ और नैतिक मूल्यों पर आधारित होती है। जिसमें संघर्ष की जड़ को समझकर समाधान निकाला जाता है। प्रसिद्ध विद्वान केनेथ बॉल्डिंग कहते हैं कि यह "संघर्ष का अच्छा प्रबंधन है, जिसमें संघर्ष का दमन नहीं बल्कि समाधान होता है।

निष्कर्ष

अंततः, यह कहना अधिक उचित होगा कि मानव स्वभाव मूलतः न तो पूरी तरह आक्रामक है और न ही शांतिपूर्ण, बल्कि वह सामाजिक परिस्थितियों से ढलता है। इसी तरह, शांति केवल संघर्ष की अनुपस्थिति नहीं, बल्कि न्याय, समानता और सहयोग की उपस्थिति से बनती है। इसलिए सकारात्मक शांति की स्थापना ही एक स्थायी, मानवीय और संतुलित समाज की नींव रख सकती है।

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