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प्रश्न 1 - अंतर्राष्ट्रीय संबंध क्या है? अंतर्राष्ट्रीय संबंधों का विकास तथा यथार्थवाद और आदर्शवाद के परिप्रेक्ष्य की तुलना कीजिए।
उत्तर-
परिचय
अंतरराष्ट्रीय संबंध (आई.आर.) उन संबंधों का अध्ययन है जो देशों की सीमाओं से परे होते हैं। इसमें अंतरराष्ट्रीय राजनीति, वैश्विक अर्थव्यवस्था, सांस्कृतिक संबंध, राष्ट्रीय और जातीय पहचान, विदेश नीति, विकास, पर्यावरण, सुरक्षा, कूटनीति, आतंकवाद, मीडिया, और सामाजिक आंदोलनों जैसे विषय शामिल होते हैं। अंतरराष्ट्रीय संबंध का उद्देश्य देशों के बीच अच्छे रिश्ते बनाए रखना और विश्व स्तर पर शांति और विकास को बढ़ावा देना होता है।
सरल शब्दों में, अंतर्राष्ट्रीय संबंध देशों को एक-दूसरे के साथ मिलकर काम करने, संसाधनों को साझा करने और वैश्विक समस्याओं का समाधान ढूंढने का मौका देता है, जो केवल एक देश या क्षेत्र तक सीमित नहीं होता।
प्रमुख दार्शनिकों द्वारा अंतर्राष्ट्रीय संबंध की परिभाषाएँ :
हंस मोर्गेभाऊ : अंतरराष्ट्रीय संबंधों के क्षेत्र में एक प्रमुख व्यक्ति, जिन्होंने अपने काम "पॉलिटिक्स अमंग नेशंसः द स्ट्रगल फॉर पावर एंड पीस" (1948) में अंतरराष्ट्रीय संबंधों को "राज्यों के बीच सत्ता के लिए संघर्ष के रूप में परिभाषित किया।
थॉमस हॉब्स : उन्हें उनके काम "लेवियाथन" के लिए जाना जाता है, इनका मानना था कि समाज में शांति बनाए रखने के लिए एक मजबूत सरकार और सभी के बीच सामाजिक अनुबंध की आवश्यकता है, जो अंतरराष्ट्रीय संबंधों को समझने में मदद करता है।
केनेथ वाल्ट्ज : यह अंतरराष्ट्रीय संबंधों के नवयथार्थवादी सिद्धांत के लिए जाने जाते हैं। वाल्ट्ज ने अपनी पुस्तक "ध्योरी ऑफ इंटरनेशनल पॉलिटिक्स" (1979) में अंतरराष्ट्रीय संबंधों को "राजनीतिक गतिविधि का एक क्षेत्र" के रूप में परिभाषित किया है।
अंतर्राष्ट्रीय संबंधों का विकास :
अंतरराष्ट्रीय संबंध (IR) का विकास एक लंबी और जटिल प्रक्रिया रही है, जिसमें प्राचीन सभ्यताओं से लेकर 17वीं शताब्दी में राष्ट्र-राज्य प्रणाली के उदय तक कई महत्वपूर्ण घटनाएँ और सैद्धांतिक विकास शामिल हैं, जिसने इसे एक शैक्षणिक विषय के रूप में आकार दिया और वैश्विक स्तर पर राज्यों और कर्ताओं के बीच संबंधों के अध्ययन को स्थापित किया।
1. वेस्टफेलिया की संधि (1648) 1648): 1648 की वेस्टफेलिया संधि ने राष्ट्र-राज्य की अवधारणा को जन्म दिया और 30 वर्षों के युद्ध को समाप्त किया। इसने राज्य और उनकी संप्रभुता को कानूनी मान्यता दी, जो आधुनिक अंतर्राष्ट्रीय संबंधों का आधार बना।
2. कूटनीतिक इतिहास का युग (1919 से पहले) राम विश्व युद्ध से पहले, अंतर्राष्ट्रीय संबंध मुख्यतः कूटनीतिक इतिहास और विदेश नीति पर केंद्रित थे। इसे केवल राजनयिकों और इतिहासकारों द्वारा अध्ययन किया जाता था। इस दौर में युद्ध और गठबंधनों को स्वाभाविक माना जाता था, इसलिए इसे रोकने के प्रयास कम ही हुए।
3. राजनैतिक सुधारवाद का युग (1919-1939) : प्रथम विश्व युद्ध के बाद, राष्ट्र संघ की स्थापना के जरिए अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में सुधार की कोशिश की गई। इस समय विद्वानों ने माना कि शांति और सुरक्षा के लिए अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं का विकास आवश्यक है।
4. द्वितीय विश्व युद्ध और वैश्विक दृष्टिकोण (1939-1945): द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अंतर्राष्ट्रीय संबंधों ने वैश्विक स्वरूप अपनाया। हर राष्ट्र ने अपने हितों को वैश्विक शांति, सुरक्षा और विकास के साथ जोड़ने का प्रयास शुरू किया। इस समय अंतर्राष्ट्रीय संबंध अधिक संगठित और संस्थागत रूप से विकसित हुए।
5. आधुनिक युग (1991 के वाद): शीत युद्ध के अंत और वैश्वीकरण की प्रक्रिया ने अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के स्वरूप को बदल दिया। अब देशों के बीच आर्थिक, पर्यावरणीय, सांस्कृतिक और मानवाधिकारों के मुद्दों पर अंतर्राष्ट्रीय संगठनों ने वैश्विक स्तर पर सहयोग और समाधान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
थार्थवाद और आदर्शवाद के परिप्रेक्ष्य की तुलना :
यथार्थवाद (Realism):
मुख्य विचारः यथार्थवाद यह मानता है कि अंतरराष्ट्रीय संबंधों में राज्य अपनी सुरक्षा और राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए कार्य करते हैं। यह मानता है कि दुनिया अराजक (anarchic) है और शक्ति (power) सबसे महत्वपूर्ण कारक है।
यथार्थवादी दृष्टिकोण के अनुसार, मानव स्वभाव स्वार्थी होता है, और राज्य अपनी सुरक्षा और शक्ति बढ़ाने के लिए संघर्ष करते हैं।
राष्ट्र की भूमिकाः राज्य को सबसे महत्वपूर्ण कर्ता माना जाता है, और यह किसी अंतरराष्ट्रीय संस्थान या कानून से ऊपर होता है।
सहयोगः यथार्थवादी यह मानते हैं कि अंतरराष्ट्रीय सहयोग अस्थायी और स्थिति-निर्भर होता है, क्योंकि प्रत्येक राज्य का मुख्य उद्देश्य अपनी शक्ति और सुरक्षा बढ़ाना होता है।
आदर्शवाद (Idealism):
मुख्य विचारः आदर्शवाद का मानना है कि अंतरराष्ट्रीय संबंधों में सहयोग, शांति और न्याय संभव है। यह विश्वास करता है कि मानवता और नैतिक सिद्धांतों का पालन करते हुए राज्य आपसी सहयोग कर सकते हैं।
आदर्शवाद दृष्टिकोण के अनुसार, मानव स्वभाव मूलतः अच्छा ही होता है और सही रास्ते पर चलने से शांति संभव है।
राष्ट्र की भूमिकाः आदर्शवाद में अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं, कानूनों और नैतिक सिद्धांतों को महत्वपूर्ण माना जाता है। राज्य को इन संस्थाओं के माध्यम से काम करने की आवश्यकता होती है।
सहयोगः आदर्शवादी यह मानते हैं कि अंतरराष्ट्रीय सहयोग स्थायी होता है, और सही नीतियों और संस्थाओं के माध्यम से शांति और सहयोग स्थापित किया जा सकता है।
निष्कर्ष
अंततः अंतर्राष्ट्रीय संबंध का स्वरूप परिवर्तनशील है। जब-जब अंतर्राष्ट्रीय संबंध के परिवेश, कारकों व घटनाक्रम में परिवर्तन आयेगा, इसके अध्ययन करने के तरीकों व दृष्टिकोणें में भी परिवर्तन अनिवार्य है।
इसके अतिरिक्त, यह परिवर्तन स्थाई न होकर निरंतर है।
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