IGNOU MPSE – 001 India and the World Notes In Hindi Medium

Aug 31, 2025
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IGNOU MPSE – 001 India and the World Notes In Hindi Medium

प्रश्न 1 - विश्व राजनीति को समझने के लिए अन्योन्याश्रय के परिप्रेक्ष्य की व्याख्या करें।

अथवा

भारत की विदेश नीति में परस्पर निर्भरता (अन्योन्याश्रय) ने विश्व राजनीति को कैसे प्रभावित किया है?

उत्तर -

परिचय

विश्व राजनीति का अध्ययन राष्ट्रों के बीच संबंधों अंतर्राष्ट्रीय संगठनों, वैश्विक शक्ति-संतुलन तथा नीति-निर्माण प्रक्रियाओं की समझ पर आधारित होता है। 20वीं शताब्दी तक यह अध्ययन मुख्यतः यथार्थवादी दृष्टिकोण (Realist Perspective) पर आधारित था, जिसमें राष्ट्र-राज्य की संप्रभुता, सुरक्षा और शक्ति को सर्वोपरि माना जाता था। परंतु वैश्वीकरण के दौर में, जब राष्ट्रों की सीमाएं आर्थिक, पर्यावरणीय, तकनीकी और सामाजिक रूप से एक-दूसरे से जुड़ गई हैं, तब अन्योन्याश्रय (Interdependence) का सिद्धांत विश्व राजनीति को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण दृष्टिकोण बन गया है।

अन्योन्याश्रय का अर्थ :

एक ऐसी स्थिति जिसमें दो या दो से अधिक देश या संस्थाएं इस प्रकार एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं कि वे स्वतंत्र रूप से कार्य करने में असमर्थ हो जाते हैं। यह निर्भरता व्यापार, पर्यावरण, सुरक्षा, तकनीक, ऊर्जा और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में होती है। अतः आज के युग में कोई भी देश पूरी तरह आत्मनिर्भर नहीं रह सकता, सभी देशों की आवश्यकताएँ किसी न किसी रूप में अन्य देशों से जुड़ी होती हैं।

रॉबर्ट के ओहेन (Robert Keohane) और जोसेफ नाए (Joseph Nye) ने अपनी पुस्तक Power and Interdependence: World Politics in Transition (1977) में अन्योन्याश्रय सिद्धांत को संपन्न अन्योन्याश्रय" (Complex Interdependence) के रूप में प्रस्तुत किया, जिसमें उन्होंने यह बताया कि आधुनिक विश्व व्यवस्था केवल सैन्य शक्ति से संचालित नहीं होती, बल्कि आर्थिक, सामाजिक और संस्थागत नेटवर्क भी उतने ही प्रभावशाली होते हैं।

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विश्व राजनीति में अन्योन्याश्रय का परिप्रेक्ष्य और भारत की विदेश नीति :

अन्योन्याश्रय या परस्पर निर्भरता (Interdependence) आज की वैश्विक राजनीति की एक महत्वपूर्ण सोच बन गई है। इसका असर भारत समेत सभी देशों की विदेश नीति पर दिखाई दिया। शीत युद्ध के बाद दुनिया में बहुत बदलाव हुए जैसे वैश्वीकरण का बढ़ना, देशों के बीच आर्थिक जुड़ाव और नई शक्तियों का उभरना इसके समकालीन प्रभाव निम्न थेः

1. घरेलू कारक और विदेश नीति का गहरा संबंध - भारत की विदेश नीति सिर्फ बाहरी दुनिया के साथ संबंधों पर निर्भर नहीं करती, बल्कि हमारे देश के अंदर के हालातों से भी जुड़ी होती है। जैसे-जैसे भारत के अंदर राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक परिस्थितियाँ बदलती हैं, विदेश नीति में भी बदलाव आते हैं। 1990 के दशक में, जब भारत आर्थिक सुधारों की राह पर चला, तब देश के अंदर अस्थिरता और विचारधारा की उलझन ने विदेश नीति को प्रभावित किया। उस समय यह स्पष्ट नहीं था कि भारत को वैश्विक मंच पर किस दिशा में और कैसे बढ़ना चाहिए।

2. अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था में बदलाव - अब दुनिया केवल देशों के आपसी रिश्तों (inter-state relations) तक सीमित नहीं है। आज की दुनिया में गैर-सरकारी संगठन (NGOs), अंतरराष्ट्रीय कंपनियाँ, वित्तीय संस्थाएँ (जैसे IMF, WTO, World Bank) और कई परा-राज्य (transnational) कारक भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। इसलिए अब केवल सरकारें ही नहीं, बल्कि कई गैर-सरकारी और निजी संस्थाएँ भी विदेश नीति को प्रभावित करती हैं।

3. सुरक्षा की पारंपरिक धारणा अब पुरानी- पहले सुरक्षा का मतलब केवल सैन्य शक्ति और सीमाओं की रक्षा होता था। लेकिन अब आर्थिक संकट, पर्यावरण प्रदूषण, आतंकवाद, सीमा पार अपराध, गरीबी, जनसंख्या विस्फोट जैसी चीजें भी सुरक्षा के बड़े मुद्दे बन गई हैं। इसलिए भारत को भी अब व्यापक दृष्टिकोण से सुरक्षा की परिभाषा को अपनाना होगा।

4. नई वैश्विक चुनौतियाँ और भारत की भूमिका- दुनिया अब बहु-ध्रुवीय (multi-polar) हो गई है यानी अब एक या दो देश ही सब कुछ तय नहीं करते। अमेरिका जैसी महाशक्ति भी हर मुद्दे को नियंत्रित नहीं कर सकती। ऐसे में भारत को भी वैश्विक मंच पर सक्रिय भूमिका निभाने और अपने हितों की रक्षा करने के लिए आगे आना होगा।

5. आर्थिक वैश्वीकरण का असर- आज दुनिया की अर्थव्यवस्था एक-दूसरे से जुड़ गई है। भारत को अंतरराष्ट्रीय व्यापार संगठनों के नियमों के अनुसार चलना पड़ता है, जैसे WTO/ यह संस्थाएं भारत पर दबाव बनाती हैं कि वह अपने बाजार विदेशी कंपनियों के लिए खोले। जिससे देश की आर्थिक संप्रभुता पर प्रभाव पड़ा है लेकिन यह आवश्यक भी था, ताकि भारत वैश्विक आर्थिक ढांचे में एक गतिशील भागीदार बन सके।

समकालीन भारत को अब एक ऐसी विदेश नीति अपनानी चाहिए, जो न केवल सैन्य सुरक्षा को देखे बल्कि आर्थिक समृद्धि, पर्यावरण, तकनीक, और सामाजिक विकास जैसे मुद्दों को भी साथ लेकर चले। भारत को वैश्वीकरण की लहर में खुद को उलझाए बिना, अपने राष्ट्रीय हितों और सुरक्षा को बनाए रखते हुए आगे बढ़ना होगा।

निष्कर्ष

अंततः हम यह कह सकते हैं कि 21वीं सदी के इस बदलते युग में अब कोई भी देश पूरी तरह आत्मनिर्भर नहीं रह सकता। इसी सच्चाई को समझते हुए भारत ने भी अपनी विदेश नीति में बदलाव किया है। अब वह केवल सैनिक और राजनीतिक मामलों पर केंद्रित नहीं है, बल्कि आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरण से जुड़े मुद्दे भी इसमें शामिल हुए हैं। जो भारत की विदेश नीति को एक नई दिशा प्रदान करता है।

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