NIOS Class 10th Home Science (216) Chapter 4th Important Topics

Jul 26, 2025
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पाठ - 4 भोजन पकाने की विधियाँ

भोजन पकाने का महत्व

  • पकाने से भोजन सुपाच्य हो जाता है।
  • पकाने से भोजन के रूप, टैक्सचर, रंग, स्वाद, गंध तथा आकर्षण में वृद्धि हो जाती है।
  • भोजन को पकाकर आप उसमें विविधता ला सकते हैं।
  • पकाने से भोजन लंबे समय तक खाने योग्य रहता है।
  • पकाने से भोजन सुरक्षित रहता है।

पास्तरीकरण : इस प्रक्रिया में दूध को उच्च तापमान पर गर्म किया जाता है और फिर तीव्रता से ठंडा कर दिया जाता है। दूध में उपस्थित सूक्ष्मजीवाणु तापमान में अचानक होने वाले इस परिवर्तन को सह नहीं पाते हैं और नष्ट हो जाते हैं।

भोजन पकाने की विधियों का वर्गीकरण

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(A) नम ताप विधि द्वारा पकाना

इस विधि में भोजन को उबलते हुए पानी में डाला जाता है या उबलते हुए पानी से निकलने वाली भाप में पकाया जाता है।

1. उबालना : उबालना वह विधि है जिसमें भोजन को पर्याप्त पानी में पकाया जाता है। उदाहरण के लिए उबले हुए आलू, अंडे, चावल तथा सब्जियाँ।

भोजन को उबालते समय ध्यान रखने योग्य बातें :

  • उबालने से पूर्व भोज्य पदार्थ को अच्छी तरह से साफ कर लेना चाहिए।
  • पानी इतना होना चाहिए कि वह भोज्य पदार्थ को पूरी तरह से ढक लें।
  • भोजन को एक ऐसे बर्तन में पकाएँ जिसका ढक्कन अच्छी तरह से बंद होता हो।
  • भोजन को आवश्यकता से अधिक समय तक नहीं उबालना चाहिए। अधिक उबालने से भोजन का रंग, आकार, स्वाद और पोषक गुण नष्ट हो जाते हैं।
  • आलू तथा अन्य जड़ सब्जियों को उनके छिलके के साथ ही उबालना चाहिए ताकि उनके पोषक गुण विद्यमान रह सकें।

लाभ : उबालना भोजन पकाने की एक सुरक्षित तथा साधारण विधि है और इससे भोजन जलता भी नहीं है। उबला हुआ भोजन सुपाच्य भी होता है।

हानियाँ : उबालने की विधि में उबाले गए पानी को फेंकने के साथ जल के घुलनशील पोषक तत्व भी नष्ट हो जाते हैं।

2. भाप द्वारा पकाना : जब भोजन को गर्म पानी की भाप से पकाया जाता है तो उसे भाप द्वारा पकाना कहते हैं। उदाहरण के लिए, इडली, मोमोस तथा नूडल्स आदि।

(B) शुष्क ताप विधि द्वारा भोजन पकाना

इस विधि में 220-300 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान का प्रयोग किया जाता है। शुष्क ताप विधि से पकाए गए भोज्य पदार्थ स्वाद में करारे, रंग में ब्राउन तथा मोहक खुशबू वाले होते हैं।

1. भूनना : शुष्क ताप द्वारा भोजन पकाने की एक अन्य विधि है भूनना। भोजन को भूनते समय उसे सीधे गर्म तवे या ग्रिडल या रेत या आग पर रखा जाता है और पकाया जाता है। उदाहरण के लिए, सब्जियों जैसे बैंगन, आलू तथा शकरकंदी, मक्का, मूंगफली, काजू, पापड़।

लाभ: इस विधि से पकाया गया भोजन अधिक स्वादिष्ट होता है। यह भोजन में विविधता भी लाता है।

हानि : यह भोजन पकाने की एक धीमी विधि है। भुना हुआ भोजन कई बार बहुत शुष्क हो जाता है, इसलिए इसे चटनी या सॉस के साथ खाना पड़ता है।

(C) तलना

तलने की प्रक्रिया में भोजन को गर्म घी या तेल में पकाया जाता है। इस विधि में भोजन को कम तेल में तथा अत्यधिक तेल में पकाया जा सकता है।

1. अत्यधिक तेल में तलना : इस विधि में अधिक मात्रा में तेल को गर्म किया जाता है और भोज्य पदार्थ को उस तेल में डुबाया जाता है। उदाहरण के लिए, भजिया, पकोड़े, समोसे, बड़े तथा कचोंड़ियाँ।

भोजन को तलते समय रखी जाने वाली कुछ सावधानियाँ :

  • भोज्य पदार्थ को समान आकार के टुकड़ों में काट लें ताकि वे समान रूप से पक सकें।
  • घी या तेल को अच्छी तरह से गर्म कर लें और तत्पश्चात आँच या ताप को कम कर दें।
  • एक समय पर कुछ ही टुकड़ों को तलने के लिए डालना चाहिए क्योंकि अधिक भोज्य पदार्थों को डालने से वसा का तापमान कम हो जाएगा और वसा अवशोषण बढ़ जाएगा।
  • तले हुए भोजन के टुकड़ों को साफ तथा अवशोषक किचन नैपकीन या ब्राउन पेपर के ऊपर रखें।

लाभ : तले हुए भोजन की उपभोज्य अवधि अन्य विधियों से पकाए गए भोजन की तुलना में अधिक होती है।

हानियाँ : तला हुआ भोजन विशेष रूप से अत्यधिक तेल में तला हुआ भोजन पचाने में कठिन होता है और इसमें कैलोरी की मात्रा भी बहुत ज्यादा होती है। तले हुए भोजन का अत्यधिक सेवन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है।

(D) भोजन पकाने की अन्य विधियाँ

1. माइक्रोवेव द्वारा पकाना : यह भोजन पकाने की एक नवीन पद्धति है और यह धीरे-धीरे लोकप्रिय हो रही है। इस विधि में माइक्रोवेव किरणों के माध्यम से भोजन को पकाया जाता है। इस प्रक्रिया से उत्पन्न ताप से भोजन पकता है। माइक्रोवेव का प्रयोग खाना गर्म करने में भी किया जाता है। उदाहरण के लिए, पिज़्ज़ा, बर्गर, ढोकला आदि।

लाभ : यह भोजन पकाने की एक तीव्र विधि है। पकाने की अन्य विधियों की तुलना में यहाँ भोजन पकाने के समय में व्यापक कमी आ जाती है।

हानियाँ : इसमें पकाया गया भोजन शुष्क हो जाता है।

2. सौर कुकर में पकाना : भोजन पकाने के लिए इसका उपयोग एक वैकल्पिक ईंधन स्रोत के रूप में किया जाता है। इसमें भोजन पकाना विज्ञान के इस सिद्धान्त पर आधारित है कि काली सतह और काली पृष्ठ भूमि सौर किरणों को अवशोषित कर गर्म हो जाती हैं जिसके कारण काले डिब्बों में रखा भोजन पक जाता है।

लाभ :

  • सौर कुकर में धुआँ उत्पन्न नहीं होता है। इसका रखरखाव बहुत सरल और इसकी देखभाल पर बहुत कम खर्च होता है।
  • यह भोजन पकाने की एक पर्यावरण (अनुकूल) सहिष्णु विधि है।

हानियाँ : सौर कुकर का प्रयोग बाहर खुले में किया जाता है और यह वहीं कार्य करता है जहाँ व्यापक स्तर पर सूर्यप्रकाश होता है।

पकाते समय पोषक तत्वों का नष्ट होना

(i) विटामिन ए : उच्च तापमान पर खुले बर्तन में भोजन पकाने से भोजन लंबे समय के लिए ऑक्सीजन के संपर्क में आता है और इससे विटामिन ए की मात्रा कम हो जाती है।

विटामिन ए वसा में घुलनशील होता है। जब पालक या मेथी को अधिक तेल में तलते हैं, तो यह वसा में मिल जाता है। 300 डिग्री पर तेल का तापमान विटामिन ए को नष्ट कर सकता है। गाजर और आलू की सब्जी बनाते समय ढककर पकाना चाहिए ताकि विटामिन ए बच सके।

(ii) विटामिन बी कॉम्पलैक्स

  • हमारे आहार में चावल, दालें तथा कुछ सब्जियाँ विटामिन बी कॉम्पलैक्स के मुख्य स्रोत हैं। जब विटामिन बी युक्त खाद्य पदार्थों को धोया, भिगोया या पानी में पकाया जाता है, तो उनमें उपस्थित विटामिन बी पानी में घुल जाता है। यदि इस पानी को फेंक देते है, तो विटामिन बी भी नष्ट हो जाता है।
  • जब भोजन पकाने के दौरान कुकिंग सोडा का प्रयोग किया जाता है, तो यह विटामिन बी कॉम्पलैक्स को नष्ट कर सकता है। इसलिए भोजन पकाते समय कुकिंग सोडा का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
  • विशेषकर विटामिन बी2 (रीबोफ्लेविन) दूध में पाया जाता है, जो सूर्यप्रकाश (अल्ट्रावायलेट किरणों) के संपर्क में आने पर नष्ट हो जाता है। इसलिए भोजन को सूर्यप्रकाश से दूर रखना चाहिए।

(iii) विटामिन सी

  • जब विटामिन से भरपूर सब्जियों या फलों को काटकर लंबे समय तक हवा में रखते हैं, तो उनमें कई विटामिन नष्ट हो जाते हैं।
  • जब फलों व सब्जियों को काटने के बाद धोया जाता हैं या बहुत छोटे टुकड़ों में काटते हैं तो भी विटामिन सी नष्ट हो जाता है।
  • जब विटामिन सी से भरपूर भोजन को लंबे समय के लिए या सोडा में पकाया जाता है तो इसका विटामिन सी नष्ट हो जाता है।

(iv) प्रोटीन

पकाने से भोजन में उपस्थित प्रोटीन नरम हो जाते हैं जैसे अंडा, मछली, मांस आदि। भोजन में उपस्थित सभी प्रोटीन पानी को चूस लेते हैं और ताप से जम जाते हैं। यदि इन जमे हुए प्रोटीनों को पुनः गर्म किया जाता है तो ये अपनी नमी खो देते हैं और शुष्क व रबड़ जैसे हो जाते हैं। इन्हें पचाना भी कठिन हो जाता है।

प्रोटीन को सुदृढ़ व ठोस बनाए रखने के लिए नींबू के रस, टमाटर, दही या इमली के रस जैसे अम्लीय तत्वों को मिलाया जाना चाहिए। इन तत्वों को भोजन पकाने के अंतिम चरण में मिलाया जाना चाहिए।

(v) तेल तथा वसा

तेल तथा घी का प्रयोग भोजन पकाने तथा उसे तलने के लिए किया जाता है। पकाने की प्रक्रिया के दौरान तेल को 300 डिग्री सेंटीग्रेड के तापमान तक गर्म किया जाता है। तलने के लिए तेल का पुनः प्रयोग करना एक सामान्य प्रक्रिया है। किन्तु इस प्रक्रिया का प्रयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि जब तेल या घी को लंबे समय तक पकाया जाता है या पुनः प्रयोग किया जाता है तो इसकी गुणवत्ता कम हो जाती है।

(vi) खनिज

सोडियम तथा पोटाशियम जैसे खनिज पानी में घुल जाते हैं। जब भोज्य पदार्थों को पहले काटा और फिर धोया जाता है और उस अतिरिक्त पानी को फेंक दिया जाता है जिसमें उसे पकाया जाता है तो उसके खनिज नष्ट हो जाते हैं। पकाने की प्रक्रिया के दौरान सब्जियों और फलों को काटने से पहले धोना चाहिए।

 

 

पोषक तत्वों का संरक्षण

भोजन तैयार करने व पकाने की प्रक्रिया के दौरान पोषक तत्वों को सुरक्षित रखने की प्रक्रिया को पोषक तत्वों का संरक्षण कहते हैं।

पोषक तत्वों के संरक्षण के तरीके :

  1. सब्जियों को काटने से पहले धोना चाहिए ताकि उनके खनिज तथा विटामिन नष्ट न हों। भोज्य पदार्थों को आवश्यकता से अधिक नहीं धोना चाहिए।
  2. सब्जियों के छिलके निकालते समय ध्यान रखें कि छिलकों को जितना हो सके पतला छीलें क्योंकि इनके नीचे ही विटामिन और खनिज होते हैं।
  3. सब्जियों को भोजन पकाने से ठीक पहले बड़े-बड़े टुकड़ों में काटा जाना चाहिए क्योंकि छोटे टुकड़ों में काटने से पोषक तत्वों की हानि होती है।
  4. यदि सब्जियों को पानी में पकाना है तो इन्हें उबलते हुए पानी में डालना चाहिए।
  5. भोजन पकाते समय खाने वाले सोडे का प्रयोग न करें।
  6. भोजन पकाते समय इमली या नींबू के रस के प्रयोग से विटामिनों के संरक्षण में सहायता मिलती है।
  7. चावल पकाते समय उतने ही पानी का प्रयोग करें जो पकाने की प्रक्रिया के दौरान अवशोषित हो जाए।
  8. ऐसे बर्तन में भोजन पकाएँ जिसका ढक्कन अच्छी तरह से बंद होता हो। जब आप बिना ढक्कन के भोजन पकाते हैं तो इसके अधिकतर पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं।

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भोजन में पौष्टिक तत्वों में संवर्धन करना

पोषण संवर्धन : एक विशिष्ट पद्धति द्वारा भोजन के पोषक तत्वों में सुधार करने की प्रक्रिया को पोषण संवर्धन कहते हैं।

 

 

 

 

 

1. संयोजन

कोई एक भोजन हमें सभी पोषक तत्व उपलब्ध नहीं कराता है। इसलिए हम विविध प्रकार का भोजन खाते हैं। सभी पौष्टिक तत्वों का सेवन करने का सबसे आसान तरीका यह है कि विभिन्न भोजन समूहों से भोज्य पदार्थों के संयोजन (मिश्रण) को अपने भोजन में शामिल करना चाहिए।

उदाहरण के लिए, जब हम चावल और दाल को मिलाते हैं तो इसमें प्रोटीन की गुणवत्ता उतनी ही अच्छी हो जाती है जितनी कि दूध में होती है। इसी प्रकार सब्जियों जैसे पालक, मेथी तथा गाजर में विटामिन और खनिज तत्व प्रचुर मात्रा में होते हैं। इन्हें जब आहार में शामिल किया जाता है तो भोजन के पौष्टिक तत्वों में व्यापक संवर्धन होता है।

लाभ : भोजन की लागत में वृद्धि किए बिना एक ही खाद्य समूह या विभिन्न खाद्य समूहों से दो खाद्य पदार्थों को मिलाकर आहार की गुणवत्ता में सुधार किया जा सकता है, जैसे कि खिचड़ी।

2. किण्वन ( खमीर उठाना )

किण्वन वह प्रक्रिया है, जिसमें भोज्य पदार्थों में उपस्थित सूक्ष्म जीवाणु (जैसे दही में पाए जाने वाले) भोजन के अंदर मौजूद पोषक तत्वों को साधारण व बेहतर रूप में परिवर्तित कर देते हैं। इस प्रक्रिया में कुछ नए पोषक तत्व जैसे विटामिन सी तथा विटामिन बी कॉम्पलैक्स का भी निर्माण होता है।

उदहारण के लिए, दही, ब्रेड, खमन, ढोकला तथा इडली किण्वित भोजन के उदाहरण हैं।

लाभ :

  • किण्वन भोजन की सुपाच्यता में सुधार करता है। सूक्ष्म जीवाणु जो किण्वन की प्रक्रिया को जन्म देते हैं वे भोजन के प्रोटीन तथा कार्बोहाईड्रेट को छोटे भागों में खंडित कर देते हैं जिसके कारण भोजन को पचाना आसान हो जाता है।
  • किण्वित भोजन स्पांजी और नर्म होता है जिसके कारण वह भोजन बच्चों तथा बुजुर्गों के लिए उपयोगी हो जाता है।

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3. अंकुरण

साबुत मूँग या चने के दाने को थोड़े से पानी में पूरी रात भिगो दीजिए। अगले दिन उनका आकार बदल जाएगा और वे छूने में नरम हो जाएँगे। उन दोनों को मलमल के कपड़े में बाँध कर 12 या 14 घंटे के लिए छोड़ दें , उनमें से छोटे-छोटे अंकुर निकल जायेंगे यह प्रक्रिया“अंकुरण” कहलाती है।

प्रत्येक अनाज या दाल को अंकुरित करने में प्रयुक्त होने वाले समय व पानी की मात्रा भिन्न-भिन्न है। सामान्य भगोने में 8 से 16 घंटे और अंकुरण में 12 से 24 घंटे का समय लगता है। जिस कपड़े में भीगी हुई दाल बाँधी जाती है, उसे पूरे समय नम रखा जाना चाहिए।

लाभ:

  • यह भोजन को सुपाच्य बना देता है।
  • भोजन की लागत को बढ़ाए बिना उसके पोषक तत्वों में वृद्धि करता है। आपने यह पहले ही सीख लिया है कि ऐसा किस प्रकार किया जाता है।

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