NIOS Class 10th Home Science (216) Chapter 19th Important Topics

Jul 28, 2025
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NIOS Class 10th Chapter 19th Important Topics

HOME SCIENCE (216)

पाठ - 19  मेरा परिवार और मैं

परिवार : परिवार समाज की एक मौलिक इकाई है जहां दो या दो से अधिक लोग विवाह, रक्त या गोद लेने के माध्यम से एक-दूसरे से जुड़े होते हैं और एक साझा छत, रसोई और आय का स्रोत साझा करते हैं, इसे परिवार कहा जाता है।

परिवार के प्रकार

1. एकल परिवार : एकल परिवार एक छोटी इकाई है। जिसमें पति-पत्नी व उनके अविवाहित बच्चे रहते हैं। कभी-कभार पति का अविवाहित भाई या बहन भी उनके साथ रह सकते हैं।

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2. संयुक्त परिवार : संयुक्त परिवार कुछ एकल परिवारों से मिलकर बनता है और यह काफी बड़ा होता है। यह पति-पत्नी, उनकी अविवाहित लड़कियों, विवाहित लड़कों, उनकी पत्नियों व बच्चों से मिलकर बनता है।

परिवार का जीवन चक्र

  1. परिवार के जीवन चक्र का अर्थ : परिवार के जीवन चक्र का अर्थ उस क्रम से है जिसमें परिवार विभिन्न अवस्थाओं और बदलावों का अनुभव करता है। प्रत्येक व्यक्ति समान जीवन-चक्र से गुजरता है किन्तु हर व्यक्ति सौभाग्यशाली नहीं होता है कि वह इस चक्र से सुगमता से गुजर जाए। परिस्थितियां जैसे गंभीर बीमारी, वित्तीय संकट या प्रियजनों की मृत्यु इस जीवन चक्र में अवरोध उत्पन्न कर सकते हैं जो व्यक्ति के जीवन तथा व्यक्तित्व में स्थायी चिहन छोड़ जाते हैं।
  2. परिवार के जीवन चक्र के ज्ञान का महत्व

जीवन-चक्र का ज्ञान, परिवार में परिवेश की प्रकृति व कारणों, और परिवार के सदस्यों के विकास में इसके प्रभाव को जानने में भी सहायक होता है। प्रत्येक स्तर पर चुनौतियों के पूर्व-ज्ञान के परिणामस्वरूप हमें उनसे निपटने का बेहतर अवसर प्राप्त हो जाता है। इससे एक स्वस्थ तथा खुशहाल पारिवारिक व्यवस्था का जन्म होता है।

  1. परिवार जीवन-चक्र के स्तर

(i) प्रारंभिक स्तर : यह जीवन का वह स्तर है जब व्यक्ति अपनी स्वयं की पहचान प्राप्त करता है और एक स्वतंत्र युवा वयस्क के रूप में उभरता है। वह परिवार से अलग रह सकता है, अपने स्वास्थ्य तथा पोषण का स्वयं ध्यान रख सकता है, परिवार के बाहर भी दीर्घकालीन निकट संबंध स्थापित कर सकता है। इस प्रकार के निकट संबंधों को स्थापित करने के लिए प्रतिबद्धता, संगतता, विश्वास तथा लगाव अनिवार्य तत्व हैं।

परिवार में स्वस्थ संबंध स्थापित करना

स्वस्थ संबंध स्थापित करने के गुण

किन बातों से बचना चाहिए

  • एक-दूसरे के साथ व्यवहार-कुशलता से बात करें। एवं एक-दूसरे को सहयोग प्रदान करें।  
  • कड़वाहट के साथ बात करना एवं दूसरों की मदद न करना।
  • मिलकर कार्य करने के साथ साथ जिम्मेदारियों को मिलकर बांटें।  
  • अकेले कार्य करने से बचें और जब दूसरे काम कर रहे हों, तो आराम न करें।
  • अपनी योजनाओं को परिवार के अन्य सदस्यों को भी बताएं।
  • बिना बताए घर से बाहर न जाएं।
  • अपने हाव-भाव तथा शारीरिक मुद्राओं के प्रति सचेत होकर।
  • आपत्तिजनक शारीरिक मुद्राओं और नकारात्मक चेहरे के भावों को हटाना।
  • दूसरों की बात ध्यान से सुनना।
  • केवल अपने बारे में बात करना।

 

(ii) विस्तार स्तर/अवस्था : जीवन-चक्र के इस स्तर पर पति-पत्नी दोनों को व्यक्तिगत तथा साझा जिम्मेदारियों के बीच में संतुलन बनाकर परस्पर तथा परिवार के प्रति अपने कर्त्तव्य का निर्वाह करना चाहिए। इस अवस्था के दौरान माता-पिता अपने बच्चों का पालन-पोषण करते हैं। वे उनकी शारीरिक, भावनात्मक, शैक्षिक और सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं। यह परिवार-जीवन-चक्र का सबसे चुनौतीपूर्ण समय है।

(iii) संकुचन स्तर : जीवन-चक्र की यह अवस्था तब शुरू होती है जब पहला बच्चा एक आत्मनिर्भर वयस्क रूप में घर छोड़ने के लिए तैयार होता है। यह अवस्था आखिरी संतान के घर छोड़ने या दम्पत्ति में से किसी एक की मृत्यु पर समाप्त होती है। इस अवस्था के दौरान दम्पत्ति अपनी नौकरियों से सेवानिवृत्त होकर कुछ रूचियों को शुरूकर, समाज सेवा में भाग लेकर और अपने पोते-पोतियों के साथ जीवन बिताकर आनंद ले सकते हैं।

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परिवार के सदस्यों की देखभाल करना

  1. गर्भावस्था के दौरान देखभाल

गर्भावस्था के दौरान परिवार को सुनिश्चित करना चाहिए कि स्त्री को-

  • निरन्तर अंतरालों पर पोषक भोजन का सेवन करे।
  • पर्याप्त विश्राम तथा व्यायाम के साथ खुश व प्रसन्नचित रहे।
  • भ्रूण के विकास की जांच के लिए नियमित रूप से डॉक्टर के पास जाए और किसी प्रकार की जटिलता का पता लगने पर तत्काल उपचार कराए।
  1. शिशु की देखरेख
  • शिशु को आहार देना, प्यार करना, कपड़े पहनाना तथा नहलाना।
  • सभी शिशुओं को मां का दूध अवश्य पिलाना चाहिए क्योंकि मां का दूध शिशु के लिए सर्वोत्तम आहार है जो उसकी पोषण संबंधी सभी आवश्यकताओं को पूरा करता है।
  • शिशु को कुछ जीवन-घातक रोगों से बचाने के लिए टीके भी लगाए जाने चाहिए।

यदि पति और पत्नी दोनों ही नौकरी करते हैं तो उन्हें अपने शिशु की देखरेख के लिए :

  • दादा-दादी या चाची-ताई शिशु की देखरेख कर सकती हैं।
  • शिशुओं को डे-केयर केन्द्र/क्रैच में रखें।
  • शिशु की देखरेख के लिए आया को नियुक्त करें जो आपके शिशु की देखरेख कर सके।

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