NIOS Class 10th Home Science (216) Chapter 17th Important Topics

Jul 28, 2025
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NIOS Class 10th Chapter 17th Important Topics

Home Science (216)

पाठ - 17 जीवन आरंभ

गर्भावस्था के चिह्न

निषेचन की प्रक्रिया शुरू होने के साथ ही महिला के शरीर में अनेक परिवर्तन आरंभ हो जाते हैं अर्थात शारीरिक परिवर्तन, हार्मोनी परिवर्तन और भावात्मक परिवर्तन। इनमें से कुछ परिवर्तन हैं -

  • महिला का मासिक धर्म रुक जाता है। जो गर्भधारण का पहला संकेत होता है।
  • सुबह के समय उल्टी जैसा महसूस होता है, और कुछ महिलाओं को यह दिनभर होता रहता है, खासकर खाने के बाद।
  • गर्भावस्था के आखिरी महीनों में पेशाब बार-बार आता है। वक्ष (स्तन) का आकार बढ़ जाता है और वे नरम हो जाते हैं। निपिल के आस-पास का क्षेत्र अधिक काला व बड़ा हो जाता है।
  • महिला के शरीर में होने वाले हार्मोनी परिवर्तनों के कारण :
  1. विशेष प्रकार के भोजन जैसे मीठा या मसालेदार भोजन खाने की तीव्र इच्छा विकसित हो जाती है। कुछ महिलाओं में तो कतिपय अखाद्य पदार्थों जैसे मिट्टी या चॉक या स्लेट आदि खाने की इच्छा बढ़ने लगती है। यदि उन्हें इस प्रकार के अखाद्य पदार्थों को खाने की इच्छा विकसित होती है तो उन्हें इस संबंध में डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।
  2. कुछ महिलाओं को खाने या तेज गंध वाली चीजों जैसे प्याज, सेब या परफ्यूम से परेशानी होने लगती है।

 

जायगोट/युग्मनज : जायगोट या युग्मनज गर्भ में विकसित होता है और के शरीर से पोषक तत्वों को प्राप्त करके विकसित होना आरंभ करता है। जिसे भ्रूण कहा जाता है, और जन्म के बाद यही शिशु बनता है।

 

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भ्रूण के विकास को प्रभावित करने वाले कारक

1. माँ की भावनात्मक स्थिति :  मानसिक रूप से स्वस्थ माँ ही एक स्वस्थ शिशु को जन्म देती है। इसलिए माँ को लंबे समय तक तनाव तथा दबाव की स्थिति में नहीं रहना चाहिए। माँ की उत्तेजना, निराशा, भय या दुःख की भावनाओं से भ्रूण पर प्रभाव पड़ता है और इसके कारण जन्म के पश्चात शिशु में चिड़चिड़ेपन की समस्या उत्पन्न हो सकती है।

2. माँ का आहार : एक माँ को उचित मात्रा में आहार लेना चाहिए ताकि शिशु को उचित आहार मिल सके। ऐसा इसलिए क्योंकि भ्रूण के लिए आवश्यक ऑक्सीजन तथा भोजन उसे माँ के गर्भनाल से प्राप्त होता है। एक गर्भवती महिला के आहार में निम्नलिखित तत्व अनिवार्य रूप से शामिल होनी चाहिए।

  • हड्डियों के विकास के लिए आवश्यक कैल्शियम हेतु दूध का सेवन।
  • माँसपेशियों के विकास के लिए आवश्यक प्रोटीन हेतु दालें/अंडे/माँसाहारी भोजन।
  • मस्तिष्क के विकास के लिए अपेक्षित खनिजों हेतु हरी पत्तेदार सब्जियाँ तथा फल।
  • ऊर्जा के लिए अपेक्षित कार्बोहाइड्रेट हेतु चावल/गेहूँ।

4. माँ की आयु

शिशु को जन्म देने के लिए माँ की सही उम्र 20 से 35 साल के बीच होती है। 20 साल से पहले माँ की जनन प्रणाली पूरी तरह से विकसित नहीं होती, ऐसी स्थिति में शारीरिक व मानसिक रूप से कमजोर शिशु का जन्म हो सकता है साथ ही, माँ व शिशु के जीवन को जोखिम में डाल सकता है तथा गर्भपात का खतरा पैदा हो सकता है।

5. माँ द्वारा दवाईयों का सेवन

कुछ दवाईयाँ गर्भनाल से होते हुए शिशु के शरीर में प्रवेश कर सकती हैं। इसलिए एक गर्भवती महिला को किसी प्रकार की दवा लेने से पूर्व डॉक्टर से सलाह ले लेनी चाहिए। गर्भवती महिला को डॉक्टर की सलाह के बिना कोई दवाई नहीं लेनी चाहिए। साथ ही, गर्भावस्था में एक्स-रे से बचना चाहिए क्योंकि इससे गर्भ में बच्चे के विकास को नुकसान हो सकता है।

नोट : अल्ट्रासाउंड एक तकनीक है जिसमें उच्च आवृत्ति की ध्वनि तरंगों का उपयोग करके भ्रूण के विकास की जांच की जाती है। यह प्रक्रिया बहुत सुरक्षित है और इससे अजन्मे बच्चे को कोई नुकसान नहीं होता। यह प्रक्रिया शुरुआती अवस्था में भ्रूण के विकारों का पता लगाने में मददगार होती है।

6. भ्रूण को प्रभावित करने वाले रोग, कीटाणु : माँ को जर्मन मिजल्स, यौन संक्रामक रोग या एड्स जैसी बीमारियाँ होती हैं, तो उनके कीटाणु गर्भनाल से होकर बच्चे तक पहुँच सकते हैं और उसके विकास को प्रभावित कर सकते हैं। इसलिए गर्भावस्था में माँ को संक्रामक रोगों से बचना चाहिए।

7. नशीले पदार्थ, शराब, धूम्रपान : सिगरेट या बीड़ी का धुआँ, शराब या नशीली दवाओं के रसायन जैसे अफीम (मार्फिन) गर्भनाल के रास्ते से भ्रूण की रक्तनलिकाओं में पहुँचते हैं और उसे भारी नुकसान पहुँचा सकते हैं।

 

गर्भवती महिला की देख-रेख (प्रसव पूर्व देखरेख)

चिकित्सा जाँच :

  • सभी गर्भवती महिलाओं के लिए उचित चिकित्सा जांच के लिए नियमित रूप से डॉक्टर के पास जाना बेहद जरूरी है। यदि क्षेत्र में कोई डॉक्टर उपलब्ध नहीं है, तो एक प्रशिक्षित मिड-वाइफ (दाई) या किसी अन्य प्रशिक्षित स्वास्थ्य पेशेवर से परामर्श लिया जा सकता है।
  • डॉक्टर यह सुनिश्चित करता है कि सभी गर्भवती महिलाएँ कुछ नियमित जाँच कराए जैसे, हीमोग्लोबिन (एनीमिया के लिए), रक्त समूह या रक्त शर्करा (मधुमेह के लिए), वीडीआरएल परीक्षण (यौन प्रसारित संक्रमणों के लिए) तथा एड्स।

पोषण :

  • गर्भावस्था के प्रथम तीन महीनों के दौरान मितली तथा उल्टी आना विशेष रूप से प्रातः समय एक सामान्य समस्या है। प्रातःकाल की इस समस्या से निपटने के लिए गर्भवती महिला सुबह एक टोस्ट या बिस्कुट या पके हुए चावल खा सकती है। जिस समय मितली न आ रही हो उस समय भोजन करके अपने पोषक तत्वों की कमी को पूरा कर सकती है।
  • आयरन से युक्त आहार का सेवन करके एनीमिया से बचा जा सकता है। एक गर्भवती महिला अपने भोजन में अनाज व दालों, हरी पत्तेदार सब्जियों, आर्गेन मीट जैसे गुर्दा, किडनी, स्प्लीन, अंडे, गुड़ शामिल कर सकती है जिनसे प्रचुर मात्रा में आयरन प्राप्त होता है।
  • मसालेदार तथा तले हुए भोजन से बचना चाहिए क्योंकि इसके कारण गैस तथा बेचैनी की समस्या पैदा हो जाती है। दिन का अंतिम भोजन सोने से कम से कम 2-3 घंटे पूर्व करना चाहिए।

दवाईयाँ लेना :

  • गर्भवती महिला को किसी भी प्रकार की दवा का सेवन केवल डॉक्टर की चिकित्सीय सलाह पर ही करना चाहिए। जहाँ तक संभव हो दवाईयों का सेवन नहीं करना चाहिए।
  • गर्भवती महिला को टिटनेस का टीका लगाना चाहिए ताकि नवजात शिशु को टिटनेस के खतरे से बचाया जा सके।

व्यायाम तथा आराम :

  • परिवार के सदस्यों तथा सहकर्मियों को गर्भवती महिला का विशेष ध्यान रखना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि महिला पर्याप्त विश्राम करे व हर समय तनावमुक्त रहे। परिवार, मित्रों तथा सहकर्मियों के निरंतर सहयोग से गर्भवती महिला इस शारीरिक तथा मानसिक तनावपूर्ण अवधि को आसानी से निकाल लेती है।
  • एक गर्भवती महिला को सक्रिय बने रहना चाहिए और अपनी सामान्य दिनचर्या के कार्यों को निरंतर करना चाहिए। साथ ही, गर्भवती महिलाओं को कम से कम 10 घंटे की नींद अवश्य लेनी चाहिए।
  • सामान्य गतिविधियाँ गर्भवती महिला के शरीर को तंदुरूस्त व सक्रिय बनाए रखती हैं। इससे प्रसव के समय उसे सहायता मिलती है।

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नवजात शिशु तथा माँ की देखभाल (प्रसव पश्चात् देखभाल)

1. स्वच्छता :

(क) नवजात शिशु की साफ-सफाई : नवजात शिशु की त्वचा में प्रायः झुर्रियाँ होती हैं, और उसकी त्वचा सफेद मक्खन जैसे तत्व या कुछ महीन बालों से आवरित होती है। उसके शरीर को गुनगुने पानी से भीगे हुए स्वच्छ कपड़े से साफ करें। उसकी त्वचा को रगड़े नहीं क्योंकि ये दोनों ही तत्व संरक्षक के रूप में कार्य करते हैं और समय के साथ अपने-आप निकल जाते हैं।

(ख) नाल को काटते समय सावधानी : विकसित भ्रूण अम्बिलिका नामक नलिका द्वारा प्लेसेंटा से जुड़ा होता है। शिशु का जन्म होने पर उस नाल को काटकर प्लेसेंटा से अलग किया जाता है। काटी गई नाल को उसे शुष्क रखने के लिए उस पर हवा लगना आवश्यक है। यदि घर साफ-सुथरा है और वहाँ मक्खियाँ नहीं हैं तो काटी गई नाल को खुला छोड़ दीजिए। यदि घर में धूल-मिट्टी या मक्खियाँ हैं  तो उसे हल्के से ढ़क लें।

2. टीकाकरण :

शिशु को संक्रामक रोगों से सुरक्षित रखने के लिए टीकाकरण किए जाने की आवश्यकता होती है। माँ के रूप में आपको अपने शिशु के लिए उचित टीकाकरण कार्यक्रम का पता लगाना चाहिए ताकि आप अपने बच्चे को सही समय पर सही टीका लगा सकें।

माँ के दूध तथा बोतल के दूध के बीच तुलनात्मक विवरण :

स्तनपान

बोतल का दूध

  • माँ के दूध में शिशु के लिए आवश्यक सभी पोषक तत्व पर्याप्त अनुपात में होते हैं। इस दूध को शिशु आसानी से पचा लेते हैं।
  • पाउडरयुक्त दूध में पर्याप्त पोषकतत्व हो भी सकते हैं। यदि ताजा दूध इस्तेमाल किया जाता है तो शिशु को इसे पचाने में कठिनाई होती है।
  • माँ का दूध साफ होता है और इसके सेवन से शिशु में डायरिया की संभावना कम हो जाती है।
  • बोतलों को उचित रूप से विसंक्रमित किया जाता है अन्यथा शिशु संक्रमण के कारण बीमार हो सकता है।
  • माँ के दूध का तापमान हमेशा सही होता है। यह सीधा माँ के स्तन से शिशु केमुँह में प्रवेश करता है।
  • यहाँ दूध के तापमान को समायोजित किया जाता है।
  • माँ के दूध में रोग प्रतिकारक होते हैं जो शिशु को विभिन्न रोगों से सुरक्षा प्रदान करते हैं।
  • इस दूध में कोई संरक्षक तत्व नहीं होते हैं।
  • स्तनपान माँ तथा बच्चे के बीच एक विशेष संबंध स्थापित करने में सहायक होता है।
  • शिशु को बोतल का दूध कोई अन्य व्यक्ति भी पिला सकता है। इसलिए इससे माँ तथा बच्चे के बीच कोई विशेष जुड़ाव स्थापित नहीं होता है।

 

परिवार नियोजन : परिवार नियोजन से तात्पर्य परिवार में दो बच्चों के बीच पर्याप्त अंतर से है। परिवार का नियोजन करना अत्यंत महत्वपूर्ण है ताकि माँ और बच्चे दोनों ही स्वस्थ रह सकें।

1. अनियोजित परिवार : अनियोजित परिवार वह परिवार होता है जिसमें बच्चों की संख्या माता-पिता की इच्छाओं या आर्थिक स्थिति के अनुसार नहीं होती। ऐसे परिवारों में बिना योजना के अधिक बच्चे होते हैं, जो संसाधनों और जीवन स्तर पर दबाव डाल सकते हैं।

2. नियोजित परिवार : नियोजित परिवार वह है जिसमें दंपत्ति संतान की संख्या और उनके जन्म का समय तय करते हैं, ताकि माता-पिता और बच्चों का स्वास्थ्य और आर्थिक स्थिति संतुलित रहे। इसमें परिवार नियोजन के साधनों का उपयोग किया जाता है।

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