NIOS Class 10th Home Science (216) Chapter 20th Important Topics

Jul 28, 2025
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NIOS Class 10th Chapter 20th Important Topics

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पाठ - 20 किशोरावस्था : रोमांच व चुनौतियाँ

किशोरावस्था

किशोरावस्था बाल्यावस्था और वयस्कता के संक्रमण काल है, जो 10 से 19 साल की उम्र के बीच होता है। हर व्यक्ति में बदलाव का समय और गति भिन्न होती है, लेकिन इस समय शारीरिक भावनात्मक, सामाजिक और ज्ञानात्मक बदलाव होते हैं।

किशोरावस्था की विशेषताएं

1. शारीरिक परिवर्तन

किशोरावस्था में शारीरिक परिवर्तन यौवनारंभ से शुरू होता है जिसका अर्थ है यौन परिपक्कता का आरंभ।

किशोरावस्था के दौरान शारीरिक परिवर्तन

लड़कों व लड़कियों में समान रूप से होने वाले शारीरिक परिवर्तन

लड़कों में होने वाले विशिष्ट परिवर्तन

लड़कियों में होने वाले विशिष्ट परिवर्तन

  • लंबाई व वजन में वृद्धि
  • कंधों का चौड़ा होना।
  • शरीर में घुमाव नजर आना।
  • बगल के नीचे बाल आना।
  • आवाज में भारीपन आना।
  • स्तनों का विकसित होना।
  • जघन में बाल आना एवं मुँहासे/फुन्सियाँ का होना।
  • चेहरे के बालों का बढ़ना।
  • नितंबों का बड़ा होना।
  • जनन अंगों का विकास होना।
  • मांसपेशियों में विकास।
  • प्रथम रजोधर्म

 

2. भावनात्मक परिवर्त

भावनात्मक विकास से तात्पर्य अपने भावों के प्रबंधन तथा उन्हें सकारात्मक एवं उत्तरदायी रूप में अभिव्यक्त करने की क्षमता विकसित करना है।

  • लगभग सभी किशोर प्रतिबंधों के प्रति विद्रोह के दौर से गुजरते हैं। गुस्से से आग-बबूला होना, मूड में तेज़ी से बदलाव होना सामान्य है।
  • किशोर अक्सर भावनाओं के उतार-चढ़ाव का अनुभव करते हैं; एक पल खुश और अगले पल उदास हो सकते हैं कभी वे बड़े और समझदार की तरह व्यवहार करते हैं, तो कभी बच्चों की तरह।
  • स्व:अवधारणा का मतलब है अपनी ताकत और कमजोरियों को समझना। अगर किशोर सिर्फ अपनी कमजोरियों पर ध्यान देते हैं, तो आत्म-धारणा कम होती है। लेकिन जब किशोर अपनी ताकत और अच्छे गुणों को देखते हैं और उन्हें बेहतर बनाने की कोशिश करते हैं, तो उनमें आत्म-धारणा बढ़ती है।
  • स्वाभिमान : स्वाभिमान का अर्थ है आत्म-सम्मान या आत्म-मान। जब किशोर अपनी क्षमताओं पर भरोसा करने लगते हैं और उन्हें अपनी ताकत मानते हैं, तो उनका आत्म-सम्मान भी बढ़ता है। इसलिए किशोरावस्था में सकारात्मक स्व-धारणा का विकास बहुत महत्वपूर्ण है।

3. सामाजिक परिवर्तन

सामाजिक विकास से तात्पर्य किशोरों का अपने परिवार, समवर्ती समूह तथा अन्यों के साथ आपसी संवाद से है। बच्चा किशोर में परिवर्तित होता है और बाद में वयस्कता प्राप्त करता है, इसके साथ ही साथ उसके सामाजिक संबंधों में भी अनेक परिवर्तन होते हैं।

(i) परिवार के साथ संबंध

  • किशोर अपने परिवार से दूरी बनाने लगते हैं। और अपने दोस्तों पर अधिक भरोसा करने लगते हैं। साथ ही, किसी भी बात की स्वीकृति के लिए अपने दोस्तों की राय पर निर्भर रहते हैं।
  • इस समय किशोर एकांत रहना पसंद करते हैं और परिवार के साथ कम समय बिताना चाहते हैं। इसके अलावा अपने ऊपर किसी भी प्रकार के नियम या प्रतिबंध पसंद नहीं करते हैं।

(ii) समवर्ती समूह के साथ संबंध

समवर्ती समूह को समान आयु, क्षमता, योग्यता, पृष्ठभूमि या सामाजिक स्थिति के व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। किशोर अपने समवर्ती वर्ग को अत्यधिक महत्व प्रदान करता है। उनके मित्रों के विचार उसके लिए किसी और के विचारों से अधिक महत्वपूर्ण होते हैं। समवर्ती वर्ग का दबाव सकारात्मक और नकारात्मक दोनों हो सकता है।

  • सकारात्मक समवर्ती संबंधों से सामाजिक विकास में अच्छी छवि और आत्मविश्वास के निर्माण में सहायता मिलती है। ये संबंध कठिन परिस्थितियों के दौरान सुरक्षा कवच का काम करते हैं।
  • किशोर जो अपने मित्रों तथा परिवार से स्वयं को अलग तथा अकेला महसूस करते हैं या जिन पर नकारात्मक समवर्ती दबाव रहता है वे गैर-सामाजिक गतिविधियों जैसे चोरी, गलत काम, गैंग में शामिल होना, धूम्रपान, मदिरापान आदि में लिप्त हो जाते हैं।

4. ज्ञानात्मक परिवर्तन

ज्ञानात्मक विकास से तात्पर्य मस्तिष्क के विकास से है, जो किशोरों को अधिक कठिन मानसिक काम करने में सक्षम बनाता है।

(i) व्यक्तिगत आख्यान : इस स्तर पर किशोरों को लगता है कि वे विशिष्ट हैं और उनके साथ कुछ भी बुरा नहीं हो सकता है। किशोर ऊर्जापूर्ण तथा प्रकृति में सहज होते हैं और बिना भय के नए कार्यों को करने का प्रयास करते हैं। वे दोस्तों और परिवार की मदद करने या देश की सेवा जैसे कामों में शामिल हो सकते हैं, जिससे उनमें सकारात्मक स्व:अवलोकन का सृजन होता है। लेकिन कुछ जोखिम भरे काम, जैसे नशीली दवाओं का सेवन, यौन संबंध, तेज़ गाड़ी चलाना या बिना हेलमेट के बाइक पर बैठना, गंभीर नकारात्मक परिणाम हो सकते हैं।  

(ii) सुव्यवस्थित विचारधारा : किशोर इस स्तर पर सोच-समझकर फैसले ले सकते हैं। जब उनसे कोई फैसला लेने को कहा जाता है, तो वे पहले कई विकल्पों की सूची बनाते हैं और हर विकल्प के परिणामों पर विचार करते हैं। उदाहरण के लिए, अगर परिवार के साथ घूमने जाना हो, तो वे अलग-अलग जगहों की सूची बना सकते हैं और मौसम, हालात, यात्रा का समय और वहां पहुंचने के तरीके पर विचार करके सबसे अच्छा फैसला ले सकते हैं।

(iii) आदर्शवादिता : किशोरावस्था की एक मुख्य विशेषता आदर्शवादिता है। उनमें सही और गलत के प्रति सुदृढ भावना होती है। गर्व के अहसास के साथ वे स्वयं तथा अपने आस-पास के बारे में जागरूकता विकसित करते हैं। प्रायः आदर्शवादिता के कारण सकारात्मक सोच तथा क्रियाशीलता का विकास होता है। उदाहरण के लिए अनेक नवयुवक आपदा, विवाद जैसी कठिन परिस्थितियों में सहायता करते हैं।

किशोरों पर मीडिया का प्रभाव :

सकारात्मक प्रभाव

  • मीडिया न केवल विभिन्न मुद्दों पर जागरूकता पैदा करता है बल्कि टेलीविजन और रेडियो पर विभिन्न कार्यक्रमों में भागीदारी भी शामिल करता है।
  • यह किशोरों को अपने लेख समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, वेबसाइटों आदि में प्रकाशित करने का अवसर भी प्रदान करता है।
  • खेल, समाज सेवा आदि को बढ़ावा देकर मीडिया किशोरों को इन गतिविधियों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है।

नकारात्मक प्रभाव

  • किशोर प्रायः प्रसिद्ध लोगों से काफी प्रभावित होते हैं और सितारों, व्यावसायिक खिलाड़ियों, फिल्मी कलाकारों तथा टेलीविजन के कलाकारों को अपना आदर्श मान लेते हैं और अपने स्वयं के व्यक्तित्व को पीछे छोड़ देते हैं।
  • कलाकार तथा मॉडल अपने आदर्श शारीरिक आकार से युवावर्ग को प्रभावित करते हैं। अधिकतर लड़कियाँ अपने आहार को नियंत्रित करने लगती हैं जिसके कारण अनेक प्रकार के भोजन विकार उत्पन्न हो जाते हैं।
  • लड़के भी मांसपेशियाँ बढ़ाने के जुनून में वजन प्रशिक्षण पर जरूरत से ज्यादा ध्यान देने लगते हैं। वे अपनी माँसपेशियों को बढ़ाने तथा अधिक भार उठाने की क्षमता में वृद्धि करने के लिए दवाईयाँ तथा आहारीय पूरक लेते हैं।

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