NIOS Class 10th Home Science (216) Chapter 8th Important Topics

Jul 26, 2025
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पाठ - 8 संक्रामक रोग तथा जीवनशैली रोग

रोग के दो प्रकार

1. संक्रामक रोग

2. जीवन शैली रोग

संक्रामक रोग (Communicable Diseases)

एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलने वाले रोग को संक्रामक रोग या संक्रमण रोग कहते हैं। ये रोग संक्रमण के कारण उत्पन्न होते हैं जो स्पर्श के माध्यम से, रोगी के तौलिये या रुमाल आदि के प्रयोग से वायु, भोजन या जल के माध्यम से या संक्रमित व्यक्ति के साथ यौन संबंध स्थापित करने से फैलता है।

उदाहरण के लिए, इनफ्लुएंजा (फ्लू), पोलियों, मोतीझरा, खसरा, मम्प्स, छोटी माता, तपेदिक (टी बी), यौन संबंधी संक्रमण तथा एड्स (एक्वायर्ड इम्यूनो डेफिशेयंसी सिंड्रोम) कुछ संक्रामक रोग हैं।

संक्रामक रोगों के कारण

संक्रामक रोग सूक्ष्म रोगाणुओं द्वारा होते हैं, जिन्हें कीटाणु और परजीवी कहते हैं। ये रोगाणु हर जगह जैसे-  वायु, जल, संक्रमित मिट्टी आदि में उपस्थित होते हैं।

 

उद्भवन अवधि : रोगाणुओं के हमारे शरीर में प्रवेश करने और उस रोग के लक्षणों के प्रकट होने के बीच की अवधि को रोग की उद्भवन अवधि (incubation period) कहते हैं।

 

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संक्रामक रोगों के फैलने के माध्यम

1. भोजन और जल

  • अस्वच्छ स्थिति में पकाने, परोसने या संचित करने से।
  • गंदे हाथों और बर्तनों से।
  • मक्खियों से, जो कि कूड़े-कचरे और गंदगी के ढेरों से रोगाणुओं को भोजन पर ले आती हैं।
  • कुओं, तालाबों, नदियों और यहाँ तक कि हैंड पम्प का जल आमतौर पर असुरक्षित होता है और उसमें रोगों को उत्पन्न करने वाले रोगाणु होते हैं। हेपेटाइटिस, हैजा, टायफाइड आदि रोग इसी तरह फैलते हैं।

 

 

2. वायु

खाँसने और छींकने से रोगग्रस्त व्यक्ति के रोगाणु हवा में प्रवेश कर जाते हैं और जब व्यक्ति हवा में साँस लेते हैं तो ये रोगाणु उस व्यक्ति के शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। जिससे व्यक्ति उस रोग से पीड़ित हो जाता है। भीड़-भाड वाले स्थानों, कम हवादार घरों, सिनेमाघरों में वायु में इन रोगाणुओं के विद्यमान होने की संभावना अधिक रहती है।

3. संपर्क

संक्रामक रोग संपर्क द्वारा भी फैल सकते हैं। यह संपर्क निम्न प्रकार से हो सकता है:

(i) प्रत्यक्ष संपर्क : रोगी को स्पर्श करना या उसके साथ शारीरिक संपर्क करना और यौन संबंध स्थापित करना आदि।

उदाहरण के लिए : डिप्थीरिया, कॉलरा, तपेदिक, निमोनिया, मीज़ल्स, मेनिन्जाइटिस, हेपेटाइटिस बी, जेनिटल वार्ट्स (मस्से), हरपीज़, सूजाक, एचआईवी/एड्स जैसे रोग प्रत्यक्ष संपर्क के कारण होते है।

(ii) अप्रत्यक्ष संपर्क : रोगी की चीज़ें जैसे कंघी, तौलिया, कपड़े आदि का इस्तेमाल करना और सार्वजनिक जगहों (अस्पताल, सिनेमा घर, बस) में वस्तुओं को छूना।

4. कीटाणु

कई रोग कीटों द्वारा फैलते हैं। मक्खियाँ कूड़े-कचरे और गंदगी के ढेरों से अपने शरीर पर रोगाणु लेकर जिस भोजन पर बैठती हैं उसे प्रदूषित कर देती हैं। इनसे हैजा जैसे रोग फैलते हैं। मच्छरों से मलेरिया, डेंगू तथा जापानी दिमागी बुखार होता है।

रोगों के रोकथाम के उपाय

  • रोगी की व्यक्तिगत वस्तुएँ अर्थात कपड़े, बर्तन अलग रखे जाने चाहिए।
  • बाजार के कटे हुए फलों व सब्जियों आदि का प्रयोग न करें, न ही उन्हें खरीदें।
  • खाद्य पदार्थ, दूध या पानी रखने से पहले सभी बर्तनों को धो लें।
  • खाना पकाने और खाने से पहले तथा शौच के बाद साबुन से हाथ अवश्य धोएँ।

 

जीवनशैली रोग या गैर-संक्रामक रोग (Lifestyle Diseases)

कई रोग ऐसे होते हैंजो स्पर्श, वायु, भोजन, जल या यौन संपर्कों के कारण एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में संक्रमित नहीं होते हैं। ये रोग गंदा खाना खाने तथा खराब जीवन शैली या आदतों के कारण विकसित होते हैं जैसे मोटापा, मधुमेह तथा हाईपरटेंशन। इस प्रकार के रोगों को जीवनशैली रोग कहते हैं।

जीवन शैली कारकों से संबंधित इन रोगों को दो प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है:

  1. गैर-परिवर्तनीय (जिन्हें परिवर्तित नहीं किया जा सके) जैसे आयु तथा आनुवंशिकता।
  2. परिवर्तनीय (जिन्हें परिवर्तित किया जा सके) जैसे भोजन संबंधी आदतें, शारीरिक गतिविधियों का स्तर, लत (धूम्रपान, मदिरापान) तथा तनाव।

जीवनशैली रोगों का निवारण

  • प्रतिदिन कुछ व्यायाम करना चाहिए जैसे घूमना, योग करना, साइकिल चलाना आदि।
  • भोजन के सही समय पर संतुलित आहार लें व प्रचुर मात्रा में पानी पिएँ।
  • प्रतिदिन 400 - 500 ग्राम मौसमी फल व सब्जियों का सेवन करें।
  • जीवन में तनाव से बचने के लिए ध्यान तथा योग करें व धूम्रपान तथा मदिरापान से बचें।

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घर पर रोगी की देखरेख

रोग का नाम

संक्रमण फैलने का माध्यम

लक्षण

उद्धीवन अवधि

रोग का प्रबंधन

हैजा

भोजन एवं जल

  • अचानक गंभीर रूप से दस्त लग जाते हैं।
  • मल का रंग चावल के पानी जैसा हो जाता है।
  • उल्टियाँ होने लगती हैं।
  • पैरों में ऐंठन होने लगती है।
  • रोगी को प्यास बहुत लगती है।

1-5 दिन

  • पानी की कमी (निर्जलीकरण)
  • रोगी को पुनर्जलीकरण घोल पिलाएँ।
  • रोगी को उबला हुआ पानी तथा ताजा व सुपाच्य भोजन दें।

टायफाइड

भोजन एवं जल

  • तेज सिर दर्द।
  • नब्ज की मंद गति के साथ ज्वर।
  • जीभ सूखती है और उस पर सफेद पदार्थ जमने लगता है।

14-21 दिन

  • ब्लड कल्चर और अन्य जाँच कराना।
  • रोगी को चिकित्सक द्वारा लिखी गई दवाइयाँ देना।

हेपेटाइटिस

(पीलिया)

भोजन एवं जल

  • ज्वर और गाढ़ा पीला मूत्र होना।
  • आँखों में पीलापन और शरीर में सामान्य पीलापन।
  • भूख न लगना और असामान्य रूप से बेचैनी।

20-35   दिन

  • कार्बोहाईड्रेट प्रचुर आहार दें।
  • रोगी को बुखार रहने तक तथा भूख सामान्य होने तक आराम करने दें।

तपेदिक (टी.बी)

वायु

  • निरंतर लम्बे समय तक खाँसी
  • वजन में कमी और भूख न लगना।
  • अत्यधिक कमजोरी होना।
  • सीने में दर्द

4-6 दिन

  • वातावरण को स्वच्छ बनाए।
  • कैल्शियम से प्रचुर संतुलित आहार ले।
  • निरंतर एक वर्ष के लिए सही उपचार कराएँ।

मलेरिया

मच्छर द्वारा काटना

  • ज्वर, बारी-बारी से ठंड लगना व पसीना आना।
  • सिरदर्द व बदन दर्द
  • जी मिचलाना व उल्टी आना।

10-14 दिन

  • मलेरिया की पुष्टि, इसके लिए रक्त की जाँच कराएँ।
  • चिकित्सक द्वारा दी गई दवाईयाँ लें।

एचआईवी/एड्स (HIV/AIDS)

एड्स का तात्पर्य है एक्वायर्ड इम्यूनों डैफिशियंसी सिंड्रोम। एचआईवी/एड्स एक तीव्र संक्रामक रोग है जो अत्यंत क्षीणकारी है और व्यक्ति की उत्पादकता को प्रभावित करता है तथा इसका कोई उपचार नहीं है।

एचआईवी/एड्स का विषाणु निम्न प्रकार से फैलता है :

(i) संक्रमित व्यक्ति के साथ असुरक्षित यौन संबंधों द्वारा।

(ii) शारीरिक तरलों (फ्लूइड) के आदान-प्रदान से, उदाहरण के लिए रक्त चढ़ाना।

(iii) टीके आदि लगाते समय प्रदूषित सुइयों के प्रयोग से और गर्भावस्था के दौरान या शिशु जन्म के समय संक्रमित माँ से बच्चे तक।

एचआईवी/एड्स रोग से बचने के उपाय :

  • यौन संबंध एक व्यक्ति के साथ तक सीमित रखें।
  • यौन सम्पर्क के समय सुरक्षा अपनाएँ।
  • इंजेक्शन लगाते समय सदैव विसंक्रमित सुई का ही प्रयोग करें।
  • एचआईवी संक्रमित होने पर गर्भधारण के लिए चिकित्सक से परामर्श करें।
  • रक्त चढ़ाने की आवश्यकता पर केवल पंजीकृत ब्लड बैंक से परीक्षित रक्त ही प्राप्त करें।

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