NIOS Class 12th Home Science (321) Chapter 20th Important Topics

Jul 29, 2025
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NIOS Class 12th Important Topics

Module 4- : मानव विकास

HOME SCIENCE (321)

पाठ - 20 किशोरावस्था

किशोरावस्था की परिभाषा

किशोरावस्था (Adolescence) लेटिन भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है- परिपक्वता की दिशा में विकसित होना। यह ऐसी अवस्था होती है जब व्यक्ति न तो बालक होता है और न ही वयस्क।

"किशोरावस्था, बाल्यावस्था और प्रौढ़ावस्था के बीच की अवधि है।"

सरल शब्दों में - किशोरावस्था विकास की वह तीव्र अवस्था है जब बालक वयस्कता की ओर बढ़ते हैं। इसमें बालक युवक के समान व बालिकाएँ युवतियों की तरह प्रतीत होने लगती हैं। यह बाल्यावस्था तथा प्रौढ़ावस्था के बीच का परिवर्तन काल है। इस अवस्था को “टीनएज़" भी कहा जाता है जो कि 10-19 वर्ष तक मानी जाती है।

किशोरावस्था में होने वाले शारीरिक परिवर्तन :

लड़कियाँ

लड़के

1.    लड़कियों का कद 11 से 131/2 वर्ष की आयु में लगभग 8 सेमी. तक बढ़ जाता है।

  • 13 से 15 वर्ष की आयु में लड़के औसतन कद में लगभग 20 सेमी. बढ़ते हैं।

2.    शरीर को गोलाई प्रदान करने के लिए अधिक वसीय ऊतक व त्वचा के नीचे के ऊतक विकसित होते हैं।

  • मांसपेशियों का विकास होता है जिससे लड़कों को भारी शारीरिक श्रम करने में मदद मिलती है।

3.    कंधे छरहरे हो जाते हैं जबकि नितम्ब चौड़े व गोलाकार हो जाते हैं।

  • लड़कों के कंधे चौड़े व मज़बूत हो जाते हैं जबकि उनके नितम्ब पतले ही रहते हैं।

4.    बगलों व जांघ क्षेत्र में बालों की वृद्धि ।

  • शरीर पर बाल काले और घुंघराले हो जाते हैं। लड़कों के भी बगलों और जांघों में बाल आ जाते हैं। चेहरे पर, होंठों के ऊपर व गालों पर भी बाल उग आते हैं।

5.    आवाज़ तीखी और वयस्कों जैसी हो जाती है।

  • आवाज़ में परिवर्तन होता है। गले में एडम्स एप्पल ग्रंथि ज्यादा स्पष्ट हो जाती है।

6.    मासिक धर्म प्रारंभ हो जाता है, प्रारंभिक मासिक चक्र अनियमित व कष्टदायक हो सकते हैं।

  • शिश्न ग्रंथि की वृद्धि के एक साल बाद साधारणतया स्वप्न दोष होने लगता है। यौवनारंभ के समय वीर्य में शुक्राणु नहीं होते ।

किशोरावस्था में यौन शिक्षा की आवश्यकता

  1. शारीरिक और मानसिक विकास : किशोरावस्था में हार्मोनल परिवर्तन होते हैं, जिससे यौन विकास की प्रक्रिया शुरू होती है। इस समय किशोरों का यौन ज्ञान के प्रति रूझान बहुत ही स्वाभाविक है। यौन शिक्षा किशोरों को इन परिवर्तनों को समझने और उनसे निपटने में मदद करती है, जिससे वे स्वस्थ और सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित कर सकें।
  2. भ्रामक जानकारी से बचाव : किशोर अक्सर इन प्रश्नों के उत्तरों के लिए पुस्तकों व हम उम्र दोस्तों पर निर्भर होते हैं। हालांकि, यह जानकारी अक्सर गलत या भ्रामक हो सकती है। इस तरह की सूचनाएं किशोरों को लाभ की अपेक्षा हानि ही अधिक पहुंचाती हैं। यौन शिक्षा के माध्यम से किशोरों को सही और वैज्ञानिक जानकारी दी जा सकती है, जिससे वे भ्रांतियों से बच सकें और सही निर्णय ले सकें।
  3. माता-पिता और शिक्षकों की भूमिका : किशोरों को यौन शिक्षा प्रदान करने में माता-पिता और शिक्षकों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। माता-पिता को अपने बच्चों के साथ खुला संवाद स्थापित करना चाहिए, ताकि बच्चे अपनी चिंताओं और प्रश्नों को बिना संकोच के साझा कर सकें। स्कूलों में यौन शिक्षा पाठ्यक्रम को शामिल करना भी आवश्यक है, जिससे सभी बच्चों को समान और सही जानकारी मिल सके।

अभिभावकों की भूमिका

इस अवधि में किशोर/किशोरियाँ अपने माता पिता से स्वतन्त्र होना चाहते हैं परन्तु अपनी आवश्यकताओं के लिए उन्हें अभी भी माता पिता पर ही निर्भर रहना पड़ता है। माता पिता चाहते हैं कि बच्चों पर उनका नियन्त्रण रहे, जबकि बच्चे स्वतन्त्र होना चाहते हैं।

माता-पिता द्वारा अपनाएँ गए अनुशासनात्मक तरीके और उनके प्रभाव :

  1. जो माता पिता अपने किशोर बालकों को अधिक स्वतन्त्रता देते हैं और उनके निर्णयों में रूचि व ज़िम्मेदारी का भाव दिखाते हैं, वे बच्चों को अधिक आत्मनिर्भर और ज़िम्मेदार बनाने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।
  2. जो माता-पिता सख्त और तानाशाही प्रकृति के होते हैं वे बच्चों को स्वंय निर्णय नहीं लेने देते। वे किशोरों की आत्मनिर्भर होने की क्षमता पर गंभीर रूप से रोक लगा देते हैं।
  3. दूसरी ओर यदि माता-पिता तटस्थ रहते हैं यानी किशोरों की समस्याओं को उन पर ही छोड़ देते हैं और उनसे से मेल जोल नहीं रखते, ऐसे किशोर तटस्थ मनोवृतियों वाले ही होते हैं।

हम-उम्रों की भूमिका

किशोरावस्था के दौरान, अक्सर 14 से 16 वर्ष की आयु के बीच, माता-पिता से सहकर्मी समूह की ओर धीरे-धीरे बदलाव होता है। बचपन और किशोरावस्था में दोस्तों का हम पर गहरा प्रभाव पड़ता है। हम उनसे नई चीजें सीखते हैं, रुचियां बनाते हैं और अपनी भावनाओं व समस्याओं पर चर्चा करते हैं।

किशोरावस्था की अवधि में हम-उम्रों की मण्डली निम्न कारणों से महत्त्वपूर्ण बन जाती है -

  1. इस समय सभी किशोर एक समान संघर्षों एवं समस्याओं से घिरे रहते हैं।
  2. किशोरों की धारणा है कि माता-पिता की अपेक्षा उनके दोस्त उन्हें ज्यादा  अच्छी तरह समझते हैं।
  3. किशोरावस्था में ही बच्चा अपने विपरीत लिंग के साथ बातचीत करना सीखते हैं। इसके लिए अवसर हम-उम्रों की मण्डली ही प्रदान करती है।
  4. सभी किशोरों को लगता है कि बात करना, चलना, बोलना, कपड़े पहनना और आम तौर पर अपने सहकर्मी समूह की तरह व्यवहार करना बहुत महत्वपूर्ण है। इसे "समकक्ष संस्कृति" कहा जाता है।

किशोरों की समस्याएँ

  1. भोजन संबंधी परेशानी : कुछ शीघ्र परिपक्व किशोर सोचते हैं कि वे मोटे हो रहे हैं और वे अपेक्षित भोजन की मात्रा में कटौती करने लगते हैं। जबकि कुछ ध्यान आकर्षित करने के लिए अत्यधिक मात्रा में खाने लगते हैं और मोटे होने लगते हैं। कुछ किशोर अत्यंत भावुक होते हैं और तनाव की स्थिति में वे उल्टी करने लगते हैं।
  2. आत्मघाती प्रवृतियां : कई किशोर अपने मित्र समूह से दोस्ती करने में अक्षम होते हैं। वे अपने माता-पिता पर भी विश्वास नहीं करते। ऐसी स्थिति में वे स्वंय को बेहद अकेला महसूस करते हैं और सोचते हैं कि कोई उन्हें प्यार नहीं करता। जिससे कई बार उनमें आत्मघाती प्रवृति पनपने लगती है और वे स्वंय को ही खत्म कर देना चाहते हैं।
  3. मित्रों का दबाब किशोर मित्रों के दबाव में खुद को बलिष्ठ दिखाने के लिए शराब, धूम्रपान और नशीले पदार्थों का सेवन करने लगते हैं। यह भावुकता और दोस्तों की उपेक्षा के कारण होता है। यदि मित्र और माता-पिता समझदारी से व्यवहार करें, तो इन समस्याओं का आसानी से निपटा जा सकता है।
  4. व्यक्तिगत समस्याएँ : किशोरों की अपने रूप रंग से संबंधित अनेक समस्याएँ होती हैं। किशोरों को अपने रूप-रंग से संबंधित कई समस्याएं होती हैं। वे अक्सर अपने वजन, ऊंचाई, नाक के आकार या कपड़े पहनने के तरीके को लेकर चिंतित रहते हैं।
  5. सामाजिक समस्याएँ : किशोर पारिवारिक व सामाजिक उत्सवों में भाग लेना पसंद नहीं करते। वे विपरित लिंगी लोगों के साथ रहने में हिचकते हैं, कि कहीं उनका मजाक न बनाया जाए।
  6. शारीरिक समस्याएँ : लड़के और लड़कियाँ दोनों के ही लिए शारीरिक समस्याएँ काफी जटिल होती हैं। लेकिन लड़कियों के लिए शारीरिक समस्याएं अधिक जटिल होती हैं। लड़कियाँ अपनी समस्याएँ बताने में झिझकती हैं और उन्हें अपने शरीर में हो रहे परिवर्तनों के बारे में सही जानकारी नहीं होती। वे स्वास्थ्य अधिकारियों से संपर्क करने में डरती हैं। अक्सर उन्हें प्रजनन स्वास्थ्य के बारे में शिक्षा नहीं मिलती, और धार्मिक परंपराएँ व अंधविश्वास मासिक धर्म जैसे समय में उन्हें गलत तरीके से पेश आते हैं, जिससे उन पर नकारात्मक मानसिक प्रभाव पड़ता है। किशोरों को इस विषय में सही जानकारी देना बहुत ज़रूरी है।

किशोरावस्था में गर्भधारण की समस्याएँ

किशोरावस्था में गर्भधारण आमतौर पर अनियोजित होता है, चाहे वह विवाह से पहले हो या बाद में। इसका मानसिक, स्वास्थ्य, सामाजिक और आर्थिक रूप से गंभीर प्रभाव पड़ता है।

  1. छोटी आयु में गर्भधारण से प्रजनन तंत्र को काफी क्षति होती है क्योंकि इस उम्र में प्रसव काफी कठिन होता है।
  2. किशोरी माँ के बच्चे अक्सर कमजोर होते हैं। वे या तो जन्म लेते ही या फिर शैशवावस्था में ही मर जाते हैं।
  3. छोटी अवस्था में ही गर्भधारण करने से परिवार भी बड़ा होता है जिससे जीवन की गुणवत्ता पर नकारात्मक असर पड़ता है।
  4. जल्दी माँ बनने से किशोरी पर मनोवैज्ञानिक दबाव पड़ता है और उसके शिक्षा पूरी करने या किसी व्यवसाय के लिए तैयारी करने की संभावना कम हो जाती है।

 

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