Political Science : Constitutional Values and Fundamental Duties in Hindi Medium

Aug 11, 2025
1 Min Read

प्रश्न 1 - भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताएं क्या हैं?

अथवा

हमारे संविधान की मुख्य विशेषताएं क्या है? संक्षेप में उत्तर दें।

उत्तर -

परिचय

भारतीय संविधान एक लिखित और निर्मित संविधान है, जो राष्ट्र की सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक परिस्थितियों से जुड़ा हुआ है। इसका प्रमुख उद्देश्य भारत की विविधताओं के अनुसार संकटकाल में सही ढंग से शासन को चलाने में सहयोग करना है। यह धर्मनिरपेक्षता, लोकतांत्रिक गणराज्य, और मौलिक अधिकारों की सुरक्षा को सुनिश्चित करता है। संविधान में न्यायपालिका की स्वतंत्रता और नागरिकों के लिए कर्तव्यों की भी व्यवस्था की गई है।

Click Here Full Notes

भारतीय संविधान की विशेषता पर कहे गए विद्वानों के अनुसार महत्वपूर्ण कथन : -

"उधार लेने में किसी की साहित्यिक चोरी नहीं है। शासन और विधान के बुनियादी सिद्धांतों के बारे में किसी का कोई एकाधिकार नहीं होता।"
डॉ. भीमराव अंबेडकर जी
"हमें इस बात पर गर्व है कि हमारा संविधान विश्व का सबसे बड़ा संविधान है।"
श्री हरिविष्णु कामथ जी
    • संविधान निर्माण में कुल 2 वर्ष 11 माह 18 दिन का समय लगा, जिसमें 11 अधिवेशन हुए एवं 26 नवंबर 1949 को इसे अंगीकृत कर लिया गया।
      इस समय मूल संविधान में कुल 395 अनुच्छेद 8 अनुसूचियाँ तथा 22 भाग थे।
    • संविधान सभा द्वारा 26 जनवरी 1950 को भारतीय संविधान लागू किया गया।
    • भारतीय संविधान की प्रस्तावना भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, लोकतंत्रात्मक, पंथ-निरपेक्ष, समाजवादी गणराज्य घोषित करती है। इसका उद्देश्य नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक, और राजनीतिक न्याय प्रदान करना है। प्रस्तावना सभी व्यक्तियों को समानता, स्वतंत्रता, और भाईचारे का अधिकार देती है और सशक्त नागरिकों की पहचान करती है।

    भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताएं

    1. सबसे बड़ा संविधान : भारतीय संविधान विश्व का सबसे बड़ा लिखित संविधान है, जो भारत में विभिन्न प्रांतों, धर्मों, जातियों, भौगोलिक परिस्थितियों और नई चुनौतियों का सामना करने के लिए निर्मित किया गया है। इसके मूल संविधान में 395 अनुच्छेद, 8 अनुसूचियाँ और 22 भाग थे।
    भारतीय संविधान में अमेरिकी संविधान से मूल अधिकार, ब्रिटेन से संसदीय लोकतंत्र, आयरलैंड से नीति-निदेशक तत्व, कनाडा से संघवाद, ऑस्ट्रेलिया से समवर्ती सूची, फ्रांस से प्रयुक्त शब्दावली एवं जापान से कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया को अपनाया गया है।

    2. कठोर एवं लचीला संविधान : भारतीय संविधान में कठोरता और लचीलेपन का संतुलन है। संविधान की कठोरता इस बात पर निर्भर करती है कि संशोधन के लिए जटिल प्रक्रिया अपनाई जाती है।

    • अनुच्छेद 368 के तहत कुछ संशोधनों के लिए संसद के सदस्यों के बहुमत के साथ-साथ राज्यों की विधानसभाओं के आधे सदस्यों का समर्थन भी आवश्यक होता है, जो इसे कठिन बनाता है। यह प्रक्रिया साधारण कानून निर्माण से अधिक जटिल है, इसलिए भारतीय संविधान को कठोर माना जाता है।
    • वहीं, लचीला संविधान वह होता है जिसमें संशोधन साधारण कानून की तरह आसानी से किया जा सकता है, जो भारतीय संविधान के कुछ हिस्सों में भी लागू होता है।

    Click Here Full Notes

    3. संसदात्मक शासन प्रणाली: भारतीय संविधान में संसदीय शासन प्रणाली अपनाई गई है, जिसमें प्रधानमंत्री और उनकी मंत्री परिषद वास्तविक कार्यकारी होते हैं, जबकि राष्ट्रपति नाममात्र का प्रधान होता है। भारत सरकार अधिनियम 1919 और 1935 के तहत भारत में संसदीय प्रणाली की नींव पहले ही रखी जा चुकी थी, जिससे भारतीय जनता इस व्यवस्था से परिचित थी।


    संविधान सभा ने इसी कारण इसे प्राथमिकता दी। राष्ट्रपति के पास सैद्धांतिक रूप से सभी कार्यकारी शक्तियां होती हैं, लेकिन वह इन्हें मंत्री परिषद की सलाह के बिना प्रयोग नहीं कर सकता। मंत्री परिषद सामूहिक रूप से जनता के प्रति उत्तरदायी होती है।

    4. एकात्मक और संघात्मक स्वरूप: भारतीय संविधान में एकात्मक और संघात्मक दोनों प्रकार की व्यवस्थाएँ हैं। इसका मूल ढांचा संघात्मक है, यानी राज्यों की अपनी सरकारें और अधिकार हैं, लेकिन यह आपातकाल के समय एकात्मक हो जाता है, जैसे केंद्रीय सरकार की शक्तियाँ बढ़ जाती हैं। उदाहरण के तौर पर, एकात्मक तत्वों में इकहरी नागरिकता, इकहरी न्यायपालिका, और गवर्नरों की नियुक्ति शामिल हैं।

    • जबकि राज्यों का पुनर्गठन और अखिल भारतीय सेवाएँ संघात्मक तत्वों को दर्शात हैं। यदि केंद्र और राज्य के बीच कोई संवैधानिक विवाद होता है, तो उच्चतम न्यायालय उसे हल करने का कार्य करता है।

    5. स्वतंत्र न्यायपालिका एवं एकल नागरिकता : भारतीय संविधान ने स्वतंत्र न्यायपालिका की स्थापना की है, जो न्यायपूर्ण और निष्पक्ष निर्णय देने के लिए स्वतंत्र होती है। इसका मुख्य कार्य केंद्र और राज्यों के बीच विवादों को सुलझाना और मूल अधिकारों की रक्षा करना है।

    • भारत में एकल नागरिकता है, जिसका मतलब है कि हर व्यक्ति केवल भारत का नागरिक होता है, न कि किसी राज्य का। यह व्यवस्था देश की एकता और अखंडता को बनाए रखने में मदद करती है। इसके विपरीत, कुछ देशों में दोहरी नागरिकता होती है, जैसे अमेरिका में, जहां नागरिक संघ और राज्य दोनों के नागरिक होते हैं।


    6. मूल अधिकार, मूल कर्तव्य और राज्य के नीति-निदेशक तत्व : भारतीय संविधान में मूल अधिकार नागरिकों के जीवन की बुनियादी स्वतंत्रताएँ और सुरक्षा प्रदान करते हैं, और इन्हें किसी भी कानून से छेड़ा नहीं जा सकता। यदि ऐसा होता है, तो न्यायपालिका इसे असंवैधानिक घोषित कर सकती है।

    • मूल कर्तव्य 42वें संविधान संशोधन (1976) द्वारा जोड़े गए, और ये नागरिकों के कर्तव्यों को दर्शात हैं, जैसे कि संविधान का पालन करना और देश की सुरक्षा में भाग लेना।
    • राज्य के नीति-निर्देशक तत्व संविधान के चौथे भाग में होते हैं और सामाजिक न्याय की दिशा में मार्गदर्शन करते हैं। ये आदर्श निर्देश हैं, जो सरकारी नीतियों को समाज में न्याय और कल्याण स्थापित करने के लिए मार्गदर्शित करते हैं। हालांकि ये न्यायिक रूप से बाध्यकारी नहीं हैं, इन्हें "राज्य की आत्मा" माना जाता है।


    निष्कर्ष
    अतः कहा जा सकता है कि भारतीय संविधान लिखित और विस्तृत होने के साथ-साथ भारतीय परिस्थतियों के अनुसार निर्मित किया गया है, जिसकी उपरोक्त वर्णित विशेषताएं इसे महत्वपूर्ण बनाती है। यह भारतीय शासन प्रणाली को व्यवस्थित तरीके से चलाने में सहयोग करता है।

    Click Here Full Notes

    What do you think?

    0 Response