Political Science : Perspectives on Public Administration in Hindi Medium | B.A. (PROG./ HONS.) Sem 6th

May 15, 2025
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Political Science : Perspectives on Public Administration in Hindi Medium | B.A. (PROG./ HONS.) Sem 6th

प्रश्न 1 – कौटिल्य के अर्थशास्त्र को प्रशासनिक प्रणाली और राजनीतिक रणनीतियों का पथप्रदर्शक ग्रंथ माना जाता है। उनके विचार लोक प्रशासन में किस प्रकार योगदान देते हैं? चर्चा कीजिए।

अथवा

लोक प्रशासन के विकास में कौटिल्य के योगदान का संक्षेप में परीक्षण कीजिए।

उत्तर – परिचय

लोक प्रशासन का इतिहास बहुत प्राचीन है। इसकी शुरुआत यूनान, मिस्र और रोम जैसी सभ्यताओं से हुई, जहाँ लोगों के लिए कानून, व्यवस्था और न्याय बनाए रखने के लिए प्रशासन की योजनाएँ बनाईं गई। बाद में, इस प्रणाली को रोमन कैथोलिक चर्च और बीजान्टिन साम्राज्य ने अपनाया तथा यूरोप के शाही परिवारों ने आधुनिक प्रशासनिक संस्थाओं की नींव रखी, जिससे आज के लोक प्रशासन की संरचना विकसित हुई। अत: यह विषय आज भी शासन व्यवस्था की रीढ़ माना जाता है।

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लोक प्रशासन का अर्थ :

लोक प्रशासन का अंग्रेजी अनुवाद "Public Administration" होता है, जो दो लैटिन शब्दों के संयोजन से बना है। पहला शब्द 'Public' (लैटिन: publicus) है, जिसका अर्थ होता है 'लोग' या 'जनता' दूसरा शब्द 'Administration' (लैटिन: ad+ministrare) है, जिसका अर्थ है 'प्रबंध' या 'सेवा'  करना।

इस प्रकार, लोक प्रशासन का अर्थ होता है - जनता की सेवा करना, उनके कल्याण के लिए कार्य करना, और प्रशासन को जनता के हित में संचालित करना। यह प्रशासन जनता के लिए और जनता द्वारा किया जाता है। सरल शब्दों में, लोक प्रशासन सरकार या प्रशासन का वह रूप है जो समाज के लोगों की जरूरतों और हितों को ध्यान में रखते हुए कार्य करता है।“

विभिन्न विचारकों द्वारा लोक प्रशासन की परिभाषाएं :

वुडरो विल्सन के अनुसार, "कानून को विस्तृत एवं क्रमबद्ध रूप से क्रियान्वित करने का नाम ही लोक प्रशासन है। कानून को क्रियान्वित करने की प्रत्येक क्रिया एक प्रशासकीय क्रिया है।"

एल. डी. व्हाइट के शब्दों में, "लोक प्रशासन में वे सभी कार्य आ जाते हैं जिनका उद्देश्य सार्वजनिक नीतियों को पूरा करना या लागू करना होता है।"

हर्बर्ट साइमन के अनुसार, "सामान्य प्रयोग में लोक प्रशासन का अर्थ केंद्रीय, प्रांतीय तथा स्थानीय सरकार की कार्यपालिका शाखाओं की गतिविधियों का अध्ययन है।"

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लोक प्रशासन के विकास में कौटिल्य के विचारों का योगदान :

1. राज्य की अवधारणा और प्रशासनिक ढाँचा : कौटिल्य ने सप्तांग सिद्धांत’ के माध्यम से राज्य के सात मुख्य अंगों का उल्लेख किया- राजा, मंत्री, जनपद, दुर्ग, कोष, सेना और मित्र। यह सिद्धांत प्रशासन के विभिन्न पहलुओं की व्याख्या करता है और आज भी प्रशासनिक ढांचे के अध्ययन में प्रासंगिक माना जाता है।

2. मंत्रिपरिषद और अधिकारियों की भूमिका : कौटिल्य ने मंत्रिपरिषद को राज्य संचालन का प्रमुख आधार बताया। उन्होंने मंत्रियों, सचिवों और अन्य अधिकारियों के चयन, कर्तव्यों, योग्यता और जवाबदेही का विस्तृत वर्णन किया। उनका मानना था कि एक सशक्त प्रशासनिक तंत्र ही एक सफल राज्य का आधार होता है।

3. राजकोष और वित्तीय प्रशासन: कौटिल्य ने राजस्व संग्रह, कर-व्यवस्था, खर्च की निगरानी और कोषपाल की भूमिका को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया। उन्होंने आर्थिक अनुशासन और पारदर्शिता पर विशेष जोर दिया, जो आज के लोक प्रशासन के लिए भी प्रेरणादायक है।

4. न्याय और विधि-व्यवस्था : अर्थशास्त्र में न्यायिक प्रणाली और विधि-व्यवस्था का विस्तृत उल्लेख मिलता है। कौटिल्य ने न्यायिक अधिकारियों की नियुक्ति, अपराधों की श्रेणियाँ और दंड-प्रणाली को स्पष्ट किया। उनका उद्देश्य था- न्यायपूर्ण शासन की स्थापना।

5. जनकल्याण और लोकहित : कौटिल्य ने लोक प्रशासन को केवल सत्ता चलाने का साधन नहीं माना, बल्कि  उन्होंने इसे जनकल्याणकारी कार्यों से जोड़ा। उन्होंने सिंचाई, सड़क निर्माण, कृषि विकास, सुरक्षा, शिक्षा तथा रोजगार जैसे कार्यों को शासन की प्राथमिक जिम्मेदारी बताया।

6. गुप्तचर प्रणाली और प्रशासनिक निगरानी : प्रशासन में पारदर्शिता बनाए रखने के लिए कौटिल्य ने गुप्तचर व्यवस्था को अत्यंत आवश्यक बताया। उन्होंने अधिकारियों की निगरानी के लिए गुप्तचरों का उपयोग करने की रणनीति दी, जिससे भ्रष्टाचार पर नियंत्रण संभव हो सके।

7. नैतिकता और आचरण संहिता : कौटिल्य ने प्रशासनिक अधिकारियों के लिए नैतिक आचरण का निर्धारण किया। उनके अनुसार, एक आदर्श शासक या प्रशासक वही होता है जो निजी स्वार्थ से ऊपर उठकर केवल जनहित में कार्य करे।

निष्कर्ष:

कौटिल्य के विचार आधुनिक प्रशासनिक सिद्धांतों का पूर्वानुमान हैं। उनकी सोच केवल वेलफेयर स्टेट, पारदर्शिता और जवाबदेही से नहीं बल्कि, व्यावसायिक प्रशासन के विचारों से मेल खाती है। उन्होंने प्रशासन को केवल सत्ता का साधन नहीं, बल्कि जनसेवा का माध्यम माना। अर्थशास्त्र की शिक्षाएँ आज के लोक प्रशासन, नीति निर्धारण और सुशासन के लिए एक दिशा-निर्देश के रूप में कार्य करती हैं।

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