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प्रश्न 1 - सकारात्मक और नकारात्मक स्वतंत्रता के बीच अंतर कीजिए। यशायाह बर्लिन स्वतंत्रता की किस अवधारणा को वरीयता देते हैं?
अथवा
यशायाह बर्लिन ने सकारात्मक और नकारात्मक स्वतंत्रता में भेद किया है। क्या आप इससे सहमत हैं? अपने उत्तर की पुष्टि करने के लिए तर्क दीजिए ।
उत्तर -
परिचय
20वीं सदी के राजनीतिक दार्शनिक यशायाह बर्लिन (1909-97) ने अपने निबंध 'टू कॉन्सेप्ट्स ऑफ लिबर्टी' (1958) में दो प्रकार की स्वतंत्रता को प्रतिष्ठित किया। जिसे उन्होंने नकारात्मक स्वतंत्रता और सकारात्मक स्वतंत्रता कहा। LH
यशायाह बर्लिनः स्वतंत्रता की अवधारणाएँ
बर्लिन के लिए, स्वतंत्रता एक सरल या सीधी अवधारणा नहीं थी, बल्कि एक जटिल और बहुआयामी अवधारणा थी जिस पर अक्सर विवाद होता था और जिसे परिभाषित करना मुश्किल था।
सकारात्मक स्वतंत्रताः
सकारात्मक स्वतंत्रता की अवधारणा में यह बुनियादी विचार शामिल है कि हर व्यक्ति के आत्म का दो भाग होता है-उच्चतर आत्म और निम्नतर आत्म। व्यक्ति का उच्चतर आत्म उसका तार्किक आत्म होता है और व्यक्ति के मुक्त निम्नतर आत्म पर इसका प्रभुत्व होना चाहिए। ऐसा होने पर ही कोई व्यक्ति सकारात्मक स्वतंत्रता के अर्थ में या स्वतंत्र हो सकता है। बर्लिन ने इस संबंध में लिखा है कि 'स्वतंत्रता शब्द का सकारात्मक अर्थ किसी व्यक्ति की खुद अपना मालिक होने की इच्छा से उत्पन्न होता है। सकारात्मक स्वतंत्रता का अर्थ यह नहीं है कि इसमें किसी तरह की दखलंदाजी न हो। दरअसल, इसमें यह बात भी शामिल है कि व्यक्ति अपना मालिक हो और उसके उच्चतर आत्म का उसके निम्नतर आत्म पर प्रभुत्व हो।
नकारात्मक स्वतंत्रताः
यशायाह बर्लिन नकारात्मक स्वतंत्रता की अवधारणा को वरीयता देते हैं, इसमें उनके द्वारा शामिल विचार कुछ इस प्रकार हैं:
नकारात्मक स्वतंत्रता में 'नकारात्मक' शब्द इस बात का संकेत करता है कि यह व्यक्ति की आज़ादी को सीमित करने वाले हर काम को नकारता है। आमतौर पर, इसे हस्तक्षेप या दखलंदाजी से आज़ादी के रूप में समझा जाता है। नकारात्मक स्वतंत्रता का दायरा इस सवाल के जवाब से तय होता है कि 'मैं किस क्षेत्र का मालिक हूँ। बर्लिन आगे कहते हैं कि 'यदि दूसरे मुझे वह काम करने से रोकते हैं, जो मैं उनके द्वारा न रोके जाने पर कर सकता था, तो मैं उस सीमा तक गैर आज़ाद हूँ। यदि इस क्षेत्र में दूसरे आदमियों का एक न्यूनतम सीमा से ज़्यादा दखल हो गया है, तो यह कहा जा सकता है कि मेरा दमन हो रहा है या यह भी कहा जा सकता है कि मुझे दास बना लिया गया है।
बहरहाल, बर्लिन यह स्पष्ट करते हैं कि यदि कोई व्यक्ति किसी लक्ष्य को हासिल करने में असमर्थ है, तो इसका अर्थ यह नहीं है कि वह आज़ाद नहीं है। उन्होंने लिखा है कि 'केवल दूसरे लोगों द्वारा थोपी जाने वाली पाबंदियाँ ही मेरी आज़ादी को प्रभावित करती हैं।'
नकारात्मक स्वतंत्रता दो मुख्य पूर्वमान्यताओं पर आधारित है-
(i) हर व्यक्ति सबसे बेहतर तरीके से अपना हित जानता है। यह सूत्र इस मान्यता पर आधारित है कि व्यक्ति तर्क कर सकते हैं। इसलिए उनमें विचार-विमर्श करने और जानकारियों के आधार पर सही विकल्प को चुनने की क्षमता होती है।
(ii) राज्य की भूमिका बहुत ही सीमित है। दरअसल, यह पिछले सूत्र का ही विस्तार है। चूँकि व्यक्ति को तार्किक कर्त्ता माना गया है, इसलिए राज्य व्यक्ति के लक्ष्यों और उद्देश्यों के बारे में फ़ैसला नहीं कर सकता है।
यशायाह बर्लिन ने नकारात्मक स्वतंत्रता की अवधारणा को प्राथमिकता दी। उन्होंने तर्क दिया कि प्राथमिक चिंता सरकारी हस्तक्षेप के माध्यम से सकारात्मक स्वतंत्रता को बढ़ावा देने के प्रयास के बजाय व्यक्तियों को बाहरी हस्तक्षेप और जबरदस्ती से बचाने की होनी चाहिए।
अपने निबंध "टू कॉन्सेप्ट्स ऑफ लिबर्टी" में, बर्लिन ने नकारात्मक और सकारात्मक स्वतंत्रता के बीच स्पष्ट अंतर किया और सत्ता के संभावित दुरुपयोग के खिलाफ सुरक्षा के रूप में नकारात्मक स्वतंत्रता के लिए अपनी प्राथमिकता व्यक्त की।
नकारात्मक और सकारात्मक स्वतंत्रता के बीच अंतर :
हाँ, यशायाह बर्लिन ने सकारात्मक और नकारात्मक स्वतंत्रता में भेद किया है जो की इस प्रकार है:
सकारात्मक स्वतंत्रता | नकारात्मक स्वतंत्रता |
1. स्वतंत्रता की सकारात्मक अवधारणा का अर्थ बंधनों का आभाव नहीं हैं। | 1. स्वतंत्रता की नकारात्मक अवधारणा का अर्थ हैं बंधनों का न होना। अर्थात् व्यक्ति को अपनी इच्छानुसार कार्य करने की छूट। |
2. सकारात्मक स्वतंत्रता के अनुसार कानून व स्वतंत्रता परस्पर सहयोगी हैं। कानून स्वतंत्रता की रक्षा करते हैं। | 2. नकारात्मक स्वतंत्रता के अनुसार कानून व स्वतंत्रता परस्पर विरोधी हैं। कानून स्वतंत्रता की रक्षा नहीं अपितु उसे नष्ट ही करते हैं। |
3. सकारात्मक स्वतंत्रता के अनुसार व्यक्ति के हित 3 और समाज के हितों में कोई विरोध नहीं होता । | 3. नकारात्मक स्वतंत्रता के अनुसार व्यक्तिगत हित और सामाजिक हित दोनों अलग- अलग होते हैं। |
4. सकारात्मक स्वतंत्रता के तर्क कुछ करने की स्वंतत्रता' के विचार की व्याख्या से जुड़े हैं। | 4. नकारात्मक स्वतंत्रता का तर्क यह स्पष्ट करता है कि व्यक्ति क्या करने से मुक्त हैं। |
5. सकारात्मक स्वतंत्रता के पक्षधरों का मानना है कि व्यक्ति केवल समाज में ही। स्वतंत्र हो सकता है, समाज से बाहर नहीं और इसीलिए वह इस समाज को ऐसा बनाने का प्रयास करते हैं, जो व्यक्ति के विकास का रास्ता साफ करे। | 5. नकारात्मक स्वतंत्रता का सरोकार अहस्तक्षेप के अनुलंघनीय क्षेत्र से है, इस क्षेत्र से बाहर समाज की स्थितियों से नहीं। |
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