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NIOS Question Paper Oct 2024 SET B
HINDI (301)
Question 23-26
23. निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर दिए गए प्रश्नों के सर्वाधिक उपयुक्त वाले विकल्प को चुनकर लिखिए :
सुनि मुनि बचन राम रुख पाई। गुरु साहिब अनुकूल अघाई।
लखि अपने सिर सबु छरु भारू। कहि न सकहिं कछु करहिं विचारू॥
पुलकि सरीर सभाँ भए ठाढ़े। नीरज नयन नेह जल बाढ़े।
कहब मोर मुनिनाथ निबाहा। एहि तें अधिक कहौं मैं काहा॥
मैं जानऊँ निज नाथ सुभाऊ। अपराधिहु पर कोह न काऊ।
मो पर कृपा सनेहु विसेषी। खेलत खुनिस न कब हूँ देखी॥
सिसुपन तें परि हरेउँ न संगू। कबहुँ न कीन्ह मोर मन भंगू।
मैं प्रभु कृपा रीति जिथँ जोही। हारेहुँ खेल जितावहिं मोही॥
(i) किसके नेत्रों से अश्रु बहने लगे?
(क) राम (ख) भरत
(ग) कैकयी (घ) मुनि
उत्तर - (ख) भरत
(ii) गुरु वशिष्ठ ने क्या किया?
(क) राम के मन की बात कह दी (ख) भरत के मन की बात कह दी
(ग) राम को अयोध्या चलने को कहा (घ) भरत को चुप रहने को कहा
उत्तर - (ख) भरत के मन की बात कह दी
(iii) राम के स्वभाव की क्या विशेषता है?
(क) छोटों से प्रेम न करना (ख) दृढ़ता पूर्वक बोलना
(ग) गुरुजनों पर क्रोध करना (घ) अपराधी पर भी क्रोध न करना
उत्तर - (घ) अपराधी पर भी क्रोध न करना
(iv) 'मो पर कृपा सनेहु विसेषी' पंक्ति में 'मो' किसके लिए प्रयुक्त हुआ है?
(क) राम (ख) भरत
(ग) लक्ष्मण (घ) वशिष्ठ
उत्तर - (ख) भरत
(v) भरत की आँखे सदैव किसकी प्यासी बनी रही?
(क) राम के दर्शनों की (ख) राम के प्रेम की
(ग) माता कैकयी के प्रेम की (घ) राजा दशरथ के प्रेम की
उत्तर - (ख) राम के प्रेम की
(vi) 'नेह-जल' में कौन-सा अलंकार है?
(क) उत्प्रेक्षा (ख) अतिशयोक्ति
(ग) मानवीकरण (घ) रूपक
उत्तर - (घ) रूपक
(vii) बड़ों के सम्मुख मुँह न खोलना _______________ ।
(क) उनसे डरना है (ख) उन्हें प्रसन्न रखना है
(ग) दबाव सहन करना है (घ) शिष्टाचार की परंपरा है
उत्तर - (घ) शिष्टाचार की परंपरा है
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24. दिए गए गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर उसपर आधारित प्रश्नों के उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनकर लिखिए :
हमारे शैशवकालीन अतीत और प्रत्यक्ष वर्तमान के बीच में समय-प्रवाह का पाट ज्यों-ज्यों चौड़ा होता जाता है त्यों-त्यों हमारी स्मृति में अनजाने ही एक परिवर्तन लक्षित होने लगता है, शैशव की चित्रशाला के जिन चित्रों से हमारा रागात्मक संबंध गहरा होता है, उनकी रेखाएँ और रंग इतने स्पष्ट और चटकीले होते चलते हैं कि हम वार्धक्य की धुँधली आँखों से भी उन्हें प्रत्यक्ष देखते रह सकते हैं। पर जिनसे ऐसा संबंध नहीं होता वे फीके होते-होते इस प्रकार स्मृति से धुल जाते हैं कि दूसरों के स्मरण दिलाने पर भी उनका स्मरण कठिन हो जाता है। मेरे अतीत की चित्रशाला में बहिन सुभद्रा से मेरे सख्य का चित्र पहली कोटि में रखा जा सकता है, क्योंकि इतने वर्षों के उपरांत भी उसकी सब रंग-रेखाएँ अपनी सजीवता में स्पष्ट हैं।
(i) गद्यांश के रचयिता का नाम है :
(क) महावीर प्रसाद द्विवेदी (ख) महादेवी वर्मा
(ग) सुभद्राकुमारी चौहान (घ) राजेन्द्र यादव
उत्तर - (ख) महादेवी वर्मा
(ii) गद्यांश के पाठ का नाम है :
(क) दो कलाकार (ख) सुभद्राकुमारी चौहान
(ग) कुटज (घ) यक्ष-युधिष्ठिर संवाद
उत्तर - (ख) सुभद्राकुमारी चौहान
(iii) अतीत और वर्तमान के बीच की समय की खाई बढ़ने पर क्या परिणाम निकलता है?
(क) हमारी स्मृतियों में परिवर्तन आने लगता हैं।
(ख) हमारी स्मृतियाँ धूमिल पड़ने लगती हैं।
(ग) सामाजिक दूरियाँ बढ़ने लगती हैं।
(घ) पारिवारिक जिम्मेदारियाँ बढ़ने लगती हैं।
उत्तर - (ख) हमारी स्मृतियाँ धूमिल पड़ने लगती हैं।
(iv) 'शैशव की चित्रशाला ...... गहरा होता है' - पंक्ति में प्रयुक्त 'चित्रों' से अभिप्राय है :
(क) व्यक्तियों से (ख) तस्वीरों से
(ग) वस्तुओं से (घ) घटनाओं से
उत्तर - (घ) घटनाओं से
(v) वार्धक्य का अर्थ है:
(क) जवानी (ख) बुढ़ापा
(ग) शैशवावस्था (घ) सुप्तावस्था
उत्तर - (ख) बुढ़ापा
(vi) लेखिका और सुभद्राकुमारी के बीच किस प्रकार के संबंध थे?
(क) रागात्मक
(ख) औपचारिक
(ग) पारीवारिक
(घ) कामकाजी
उत्तर - (क) रागात्मक
(vii) 'उनकी रेखाएँ और रंग ........ चटकीले होते चलते हैं।' वाक्य में प्रयुक्त 'रेखाएँ और रंग' संकेत करते हैं :
(क) बनावट और दृश्यता की ओर
(ख) रंग-रूप और वेशभूषा की ओर
(ग) जीवन और व्यक्तित्व की ओर
(घ) आकृति और वर्ण-विन्यास की ओर
उत्तर - (ग) जीवन और व्यक्तित्व की ओर
25. व्याकरण संबंधी निम्नलिखित प्रश्नों के निर्देशानुसार उत्तर लिखिए :
(i) पठित, संयुक्त (विलोम शब्द लिखिए)
उत्तर - :विलोम शब्द :
पठित - अपठित
संयुक्त - असंयुक्त
(ii) अत्याचार, पालक (उपसर्ग/प्रत्यय अलग कीजिए)
उत्तर -
अत्याचार - अति : उपसर्ग
पालक - अक : प्रत्यय
(iii) हे प्रभो अब यह जीवन नैया तुम्हीं पार लगाओगे (विराम चिह्न लगाकर वाक्य पुनः लिखिए)
उत्तर - हे प्रभो, अब यह जीवन नैया, तुम्हीं पार लगाओगे।
(iv) वह अनेकों मामलों में गवाह था। (वाक्य शुद्ध कीजिए)
उत्तर - वह अनेक मामलों में गवाह था।
(v) ग्रीष्म ऋतु के जाते ही वर्षा ऋतु आ गई। (संयुक्त वाक्य बनाइए)
उत्तर - ग्रीष्म ऋतु के जाते ही वर्षा ऋतु आ गई, और वातावरण में ठंडक छा गई।
(vi) उज्वल, कवियत्री (शुद्ध रूप लिखिए)
उत्तर - :शुद्ध रूप :
उज्वल - उज्जवल
कवियत्री - कवयित्री
(vii) वह उठ नहीं सकता। (भाववाच्य में बदलिए)
उत्तर - वह उठाया नहीं जा सकता।
(viii) दैत्यारि, तपः+भूमि (संधिच्छेद/संधि कीजिए)
उत्तर -
दैत्यारि = दैत्य + अरि
तपः + भूमि = तपोभूमि
(ix) पंचवटी (विग्रह करते हुए समास का नाम लिखिए)
उत्तर - :विग्रह सहित समास का नाम :
समास विग्रह - पञ्च + वटी (द्विगु समास)
(x) 'ईय' प्रत्यय से दो नए शब्द बनाइए।
उत्तर - :’ईय' प्रत्यय से दो शब्द :
26. निम्नलिखित काव्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए :
(i)
माई री म्हां लियाँ गोविन्दाँ मोल।
थे कह्या छाणे म्हां कां चोड्ढे, लियाँ बजन्ता ढोल।
थे कह्या मुंहोधो म्हां कह्यां सस्तो, लिया री तराजा तोल।
तण वारां म्हां जीवन वारां, वारां अमोलक मोल।
मीराँ कूं, प्रभु दरसण दीज्याँ, पूरब जनम को कोल॥
उत्तर -
माई री म्हां लियाँ ........... जनम को कोल॥
प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ मीराँबाई के पद से संकलित है। इसमें मीराँ ने कृष्ण के साथ अपने प्रेम-संबंध की घोषणा अत्यंत साहस और दृढ़ता से की हैं।
व्याख्या : मीराँ कहती हैं कि हे सखी ! तुम कहती हो कि मैं उनसे यह संबंध छिपाकर रखती हूँ और मैं कहती हूँ कि मैंने खुले में ढोल बजा कर श्रीकृष्ण को मोल लिया है अर्थात् उन्हें खुले आम अपना लिया है। मुझे उनसे प्रेम है और मैं सार्वजनिक तौर पर इस प्रेम की घोषणा करती हूँ। मीराँ आगे कहती हैं कि हे सखी, तुम कहती हो कि यह सौदा मँहगा है पर मेरा मानना है कि यह बहुत सस्ता है; क्योंकि मैंने यह सौदा तराजू पर तौलकर किया है अर्थात् मैंने पूर्ण रूप से सोच-विचार कर, जाँच-परख कर ही ऐसा किया है और इसका जो मूल्य मैंने चुकाया है (लोक अपवाद, कुल-संबंधियों से मिलने वाली भर्त्सना और लांछना आदि) वह तुम्हारी दृष्टि में अधिक हो सकता है, पर मेरी दृष्टि में श्रीकृष्ण को पाने के लाभ की तुलना में अपयश बहुत कम है। मैंने तो उन पर अपना तन-मन और जीवन सभी कुछ न्योछावर कर दिया है अर्थात् मैं अपने इस अमूल्य सौदे यानी श्रीकृष्ण से प्रेम-संबंध पर स्वयं न्योछावर हूँ। दूसरा अर्थ यह भी हो सकता है कि मैंनेअपना सब कुछ, जो अमूल्य था, कीमत के रूप में श्रीकृष्ण पर न्योछावर कर दिया। इसके बाद मीराँ पूर्व जन्म में दिए गए वचन का स्मरण कराते हुए श्रीकृष्ण से दर्शन देने की प्रार्थना करती हैं।
विशेष-
अथवा
(ii)
नक्शों में गतियाँ हैं लक्ष्य हैं दिशाएँ हैं
अतीत है भविष्य है और सब तरह के रंग
क्या नहीं है
बाजरे की रोटियाँ और धनिये-पोदीने की चटनी तक
नक्शे में जा चुकी है
एक लंबे क्यू में खड़े बदहवास हम पूछते हैं
'भाई साहब, कहीं हम नक्शों से बाहर तो नहीं छूट जायेंगे।'
उत्तर -
नक्शों में गतियाँ ........... नहीं छूट जायेंगे।
प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ नरेश सक्सेना द्वारा रचित ‘नक्शे’ कविता से अवतरित है। कवि नक्शों को सिर्फ भौगोलिक सीमाओं के रूप में नहीं, बल्कि हमारे जीवन की उस पहचान के रूप में पेश करते हैं।
व्याख्या : कवि का कहना हैं कि नक्शे में हर स्थान, दिशा और गति का निर्धारण होता है। यह जीवन की दिशा, यात्रा, और लक्ष्यों की ओर संकेत करता है। नक्शे में अतीत और भविष्य दोनों का उल्लेख है, जैसे हम अपने अतीत को पीछे छोड़ते हुए भविष्य की ओर बढ़ते हैं। रंगों का उल्लेख उन विविधताओं और संभावनाओं का प्रतीक है, जो हमारे जीवन में होते हैं। कवि यह उदाहरण देकर कह रहे हैं कि आजकल हमारे जीवन की छोटी-छोटी चीज़ें-जो कभी हमारे स्थानीय जीवन का हिस्सा होती थीं, जैसे बाजरे की रोटियाँ और चटनी- अब नक्शे का हिस्सा बन चुकी हैं। यह पंक्ति समाज की उस स्थिति को चित्रित करती है, जहां हम अपनी वास्तविकता से विमुख होते जा रहे हैं। हम इतने उलझे हुए हैं कि हमें यह डर है कि कहीं हम नक्शे से बाहर न हो जाएं, यानी हमारी पहचान, हमारी मौजूदगी, कहीं गुम न हो जाए।
विशेष-
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