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NIOS Question PAPER 2024 Solution
Question 28-29
HINDI (201)
28. निम्नलिखित काव्यांश के कवि और कविता का नमोल्लेख करते हुए काव्य सौंदर्य स्पष्ट कीजिए -
कभी महसूस किया कि किस कदर दहलता हैं मौन समाधि लिए बैठे पहाड़ का सीना विस्फोट से टूटकर जब छिटकता दूर तक, कोई पत्थर? सुनाई पड़ी है कभी भरी दुपहरिया में, हथौड़ों की चोट से टूटकर बिखरते पत्थरों की चीख़? |
उत्तर -
भाव-सौन्दर्य : कविता के इस अंश में पहाड़ की भयंकर यातना को महसूस करने का आग्रह किया गया है। इन पंक्तियों में कवियित्री कहती हैं कि जब कोई भयानक स्थिति या विपत्ति आती है तो उसे देखकर या उसका सामना करते हुए व्यक्ति का दिल दहलता है। अर्थात् वह भीतर तक हिल जाता है या काँप जाता है।
इसी तरह, पहाड़ की स्थिरता को देखकर लगता है, जैसे वह मौन समाधि में बैठा हो, जिस प्रकार कोई साधु ध्यान में बैठा हो। लेकिन मनुष्य अपने स्वार्थ के लिए पहाड़ों को तोड़ता है, उन पर डाइनामाइट लगाकर विस्फोट करता है ताकि पत्थर और सीमेंट निकाले जा सकें। इस विस्फोट से ऐसा लगता है मानो पहाड़ का सीना फट गया हो और वह दर्द से कराह उठा हो। कवयित्री ने इसी मानवीय हस्तक्षेप को पहाड़ की सुंदरता के लिए हानिकारक बताया है।
शिल्प-सौन्दर्य :
अथवा
आज़ादी वह फसल है जिसे बोने वाला ही काट सकता है, वह रोटी, जिसे मेहनती ही खा सकता है, यह वह कपड़ा है, जिसे दर्जी ही पहन सकता है", यह कहकर दर्जी फिर से कपड़े सीने लगा शागिर्द की उलझन दूर हुई और वह सुई में धागा पिरोने लगा। |
उत्तर -
भाव - सौंदर्य : यह पंक्तियाँ 'आजादी' कविता से ली गई है। इसके मूल लेखक "बालचंद्रन चुल्लिक्काड" है व इसके अनुवादक असद ज़ैदी हैं। इन पंक्तियों में कवि ने बताया है कि आज़ादी, मेहनत और मेहनती लोगों का अधिकार है। जिस तरह किसान बोई हुई फ़सल काटता है, श्रमिक अपनी मेहनत से कमाई करता है, और दर्जी खुद ही कपड़ा सिलकर पहनता है, उसी तरह आज़ादी भी केवल उन्हीं को प्राप्त होती है जो उसके लिए संघर्ष करते हैं।
शिल्प-सौंदर्य :
29. निम्नलिखित अवतरण की सप्रसंग व्याख्या कीजिए :
खैर, खून, खाँसी, खुसी, वैर, प्रीति, मदपान। रहिमन दाबे ना दबैं, जानत सकल जहान॥ |
उत्तर -
खैर, खून, खाँसी ………. सकल जहान।
प्रसंग : प्रस्तुत प्रसंग प्रसिद्ध कवि रहीम दोहे से लिया गया है। रहीम अपने दोहों में जीवन के व्यवहारिक और नैतिक पक्षों पर विशेष रूप से प्रकाश डालते हैं।
व्याख्या : इन पंक्तियों के माध्यम से कवि यह बताना चाहता है कि ख़ैर (कत्था), खून, खाँसी, खुसी, वैर (दुश्मनी), प्रीति, मदपान (नशा) यह साथ चीज ऐसी है जिसे छिपने से भी नही छिपाया जा सकता है। कत्था होट लाल होने पर अपनी उपस्थिति को ज़ाहिर कर देता है और खून का रंग भी छिपाना संभव नहीं होता। खाँसी को रोकने या दबाने से वह छिपती नही है, दो लोगो की दुश्मनी भी ज़ाहिर हो ही जाती हैं। इसी प्रकार प्रीति अर्थात प्रेम भी कभी छुपता नही है मदपान या नशा करने वाले व्यक्ति के व्यवहार और चाल-ढाल से पता चल जाता है कि उसने शराब या नशा कर रखा है। अर्थात ये सात चीजें ऐसी है जो स्वयं ही अपने आप को व्यक्त कर देती हैं, इन्हें छिपाया नही जा सकता।
विशेष :
अथवा
फाग गाता मास फागुन आ गया है आज जैसे। देखता हूँ मैं : स्वयंवर हो रहा है प्रकृति का अनुराग अंचल हिल रहा है इस विजन में दूर व्यापारिक नगर से प्रेम की प्रिय भूमि उपजाऊ अधिक है। |
उत्तर -
फाग गाता मास ........... उपजाऊ अधिक है।
प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ 'चंद्रगहना से लौटती बेर' कविता से ली गई हैं, जो ‘फूल नहीं, रंग बोलते है’ काव्य संग्रह में सम्मिलित हैं। इसके रचयिता “केदारनाथ अग्रवाल” हैं। यहाँ वनस्पतियों के मिलन को स्वयंवर जैसा वर्णित किया गया हैं व विभिन्न वनस्पतियों में प्रेंम भाव भरा है।
व्याख्या : कवि कहते हैं कि ऐसा लग रहा है जैसे फागुन का महीना ‘फाग’ (होली के समय गाया जाने वाला गीत) गाता हुआ आ रहा है। कन्या, वर, गीत आदि को देखकर कवि को ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसे प्रकृति का स्वयंवर हो रहा है। इससे प्रकृति का प्रेम रूपी आँचल हिल रहा हैं। जिस प्रकार माँ विवाह-मंडप में कन्या के ऊपर प्यार भरा आँचल फैलाकर उसे आशीर्वाद देती है, उसी प्रकार यहाँ प्रकृति माँ की भूमिका निभा रही है।
यह दृश्य कवि के मन को छू लेता है। उन्हें लगता है कि गाँवों में शहरों की तुलना में अधिक प्यार और आत्मीयता है। शहर अब केवल व्यापारिक हो गए हैं, जहाँ भावनाएँ कम होती जा रही हैं। लेकिन गाँवों में अब भी प्रेम और अपनापन बना हुआ है। यहाँ तक कि इस शांत और सुनसान से दिखने वाले स्थान पर भी हर ओर प्रकृति में प्यार बिखरा हुआ नजर आता है।
विशेष :
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