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NIOS Question Paper 2024
Hindi (301)
Question 25-28
25. निम्नलिखित काव्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए :
(क) सपनेहुँ दोस कलेसु न काहू । मोर अभाग उदधि अवगाहू ।। बिनु समुझें निज अघ परिपाकू । जारिउँ जायँ जननि कहि काकू ।। हृदयँ हेरि हारेउँ सब ओरा । एकहि भाँति भलेहिं भल मोरा ।। गुरु गोसाइँ साहिब सिय रामू । लागत मोहि नीक परिनामू ।। |
उत्तर -
सपनेहुँ दोस कलेसु .............. नीक परिनामू ।।
प्रसंग - प्रस्तुत काव्य पंक्तियां तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस के अयोध्या कांड से ली गई हैं। इसमें भरत के मन में बार-बार अपनी माँ कैकयी की करनी याद आ रही थी और वे आत्मग्लानि से भर जाते थे। इसमें भरत की इसी मनोदशा का वर्णन किया है।
व्याख्या - मैं स्वप्न में भी किसी को दोष देना नहीं चाहता। वास्तव में मेरा दुर्भाग्य ही अथाह समुद्र और प्रबल है। मैंने अपने पूर्व जन्म के पापों का परिणाम समझे बिना ही माता को कटु वचन कहकर उन्हें बहुत दुखी किया है।
मैं अपने हृदय में सब ओर खोज कर हार गया (मेरी भलाई का कोई साधन नहीं सूझता)। एक ही प्रकार भले ही (निश्चय ही ) मेरा भला है। वह यह है कि गुरु महाराज सर्वसमर्थ हैं और श्री सीता-रामजी मेरे स्वामी हैं। इसी से परिणाम मुझे अच्छा जान पड़ता है।
विशेष -
अथवा
(ख) आया होगा न जाने किस काम से वह न जाने कितनी बातें रही होंगी मुझसे कहने को चली गई हैं सारी बातें भी लौट कर उसी के साथ रास्ते में हो सकता है कहीं उसने पानी तक न पिया हो सोचा होगा शायद उसने कि यहीं मेरे साथ पिएगा चाय कैसा लगता है इस तरह किसी का घर से लौट जाना |
उत्तर -
आया होगा न जाने ........... घर से लौट जाना
प्रसंग - प्रस्तुत काव्य पंक्तियां “राजेश जोशी” द्वारा लिखित “संयुक्त परिवार” से ली गई हैं। यह काव्यांश भावनात्मक गहराई और असंतोष का चित्रण करता है, जो किसी प्रिय व्यक्ति के अचानक चले जाने और उसके साथ छूटी हुई बातों की कमी को दर्शाता है।
व्याख्या - ताले में पर्ची लगी देखकर कवि बेचैन और चिंतित है कि न जाने वह आगंतुक किस काम से आया होगा! शायद कुछ कहना चाह रहा होगा! अगर वह कहीं दूर से आया होगा तो उसने पानी तक नहीं पिया होगा। कवि को इसका भी पछतावा है कि वे सारी सूचनाएँ जो उसे आगंतुक से मिलतीं, उससे वह वंचित रह गया है। आपने यह देखा होगा कि चाय पीते हुए लोग अपने सुख-दुःख की बातें किया करते हैं। यहाँ कवि को इस बात का दुःख है कि वह आगंतुक जो लौट गया शायद मेरे साथ बैठकर चाय पीना चाहता होगा।
विशेष -
26. निम्नलिखित में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर लगभग 50-60 शब्दों में लिखिए :
(क) गोपियाँ कृष्ण की बाँसुरी क्यों छिपा लेती हैं ? कृष्ण द्वारा गोपियों से बाँसुरी माँगने पर उनकी क्या प्रतिक्रिया होती है ? सूरदास द्वारा रचित पद के आधार पर लिखिए।
उत्तर - गोपियाँ श्रीकृष्ण से अत्यधिक प्रेम करती हैं और उनके साथ समय बिताने का कोई भी अवसर नहीं छोड़ना चाहती। इसलिए, गोपियाँ उनकी बाँसुरी छिपा देती हैं ताकि श्रीकृष्ण उनके पास आकर बाँसुरी माँगें और इस बहाने उनसे बातचीत हो सके। जब कृष्ण गोपियों से बाँसुरी माँगते हैं, तो गोपियाँ भौंहों में मुस्कराकर उन्हें छेड़ती हैं और बाँसुरी वापस देने की बात कहकर फिर मुकर जाती हैं। गोपियाँ जान-बूझकर बाँसुरी नहीं लौटाती है, ताकि कृष्ण उनसे लंबे समय तक बात कर सके।
(ख) 'परशुराम के उपदेश' कविता के संदर्भ में स्वतंत्रता का महत्त्व अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर - परशुराम के उपदेश' कविता के संदर्भ में, स्वतंत्रता मानव जीवन के लिए अनिवार्य है। यह केवल एक अधिकार नहीं, बल्कि मनुष्य की मौलिक प्रवृत्ति है। जिस प्रकार एक पक्षी स्वतंत्रता चाहता है, उसी प्रकार हर मनुष्य भी अपनी स्वतंत्रता की रक्षा करना चाहता है। जब मनुष्य पर गुलामी का संकट आता है, तो वह उससे मुक्त होने के लिए हर संभव प्रयास करता है। इसके अलावा कवि का कहना है कि वही राष्ट्र स्वतंत्र रह सकते हैं, जिनमें स्वाभिमान होता है और जो किसी भी मुसीबत का सामना करते हुए झुकते नहीं हैं।
(ग) 'भेड़िया' कविता में भेड़िया का प्रतीकार्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर - कविता में 'भेड़िया' शब्द का उपयोग एक प्रतीक के रूप में किया गया है। भेड़िया उस वर्ग का प्रतीक है जो अपनी हिंसा, क्रूरता और लालच से आम जनता को डराकर उनके अधिकारों को छीन लेता हैं। कविता का उद्देश्य सामान्य लोगों को भेड़िए जैसे हिंसक और अत्याचारी लोगों के खिलाफ संघर्ष करने का हौसला देना है। यहाँ भेड़िया केवल एक पशु नहीं है बल्कि दमन, शोषण और अन्याय करने वाले लोगों का प्रतीक है, जिनका सिर्फ एक ही मकसद होता है- अपना वर्चस्व बनाए रखना और स्वार्थ पूरा करना।
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27. निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए और दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :
आँसू से भाग्य पसीजा है, हे मित्र, कहाँ इस जग में? नित यहाँ शक्ति के आगे, दीपक जलते पग-पग में। कुछ तनिक ध्यान से सोचो, धरती किसकी हो पाई ? मधुमास मधुर रुचिकर है, पर पतझर भी आता है। जग रंगमंच का अभिनय, जो आता सो जाता है। सचमुच वह ही जीवित है, जिसमें कुछ बल-विक्रम है। पल-पल घुड़दौड़ यहाँ है, बल - पौरुष का संगम है। दुर्बल को सहज मिटाकर, चुपचाप समय खा जाता, वीरों के ही गीतों को, इतिहास सदा दोहराता । फिर क्या विषाद, भय, चिंता जो होगा सब सह लेंगे, परिवर्तन की लहरों में, जैसे होगा बह लेंगे। |
(क) “आँसू से भाग्य पसीजा है”- पंक्ति का आशय क्या है ?
उत्तर - 'आँसू से भाग्य पसीजा है' पंक्ति का मतलब है ‘रोने से दुर्भाग्य सौभाग्य में नहीं बदल जाता’
(ख) इतिहास में किसका नाम अमर रहता है और क्यों ?
उत्तर - इतिहास उनका नाम अमर रहता है जो अपने बल व पुरुषार्थ के आधार पर समाज के लिए कार्य करते हैं। क्योंकि प्रेरक कार्य करने वालों को जनता याद रखती है।
(ग) “जग रंगमंच का अभिनय, जो आता सो जाता है” - पंक्ति के माध्यम से जीवन की किस शाश्वतता का उल्लेख किया गया है ?
उत्तर - पंक्ति "जग रंगमंच का अभिनय, जो आता सो जाता है" के माध्यम से जीवन की शाश्वतता का उल्लेख किया गया है कि संसार में सब कुछ अस्थायी और परिवर्तनशील है।
(घ) “मधुमास मधुर रुचिकर है, पर पतझर भी आता है” - पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर - इसका अर्थ है कि अच्छे दिन सदैव नहीं रहते। मानव के जीवन में पतझर जैसे दुख भी आते हैं।
(ङ) क्या आपको भी ऐसा लगता है कि समय की दौड़ में दुर्बल व्यक्ति का टिक पाना कठिन है ?
उत्तर - हाँ क्योंकि समय हमेशा कमजोर व्यवस्था को चुपचाप नष्ट कर देता है। दुर्बल तब समय के अनुसार स्वयं को बदल नहीं पाता तथा प्रेरणापरक कार्य नहीं करता।
28. निम्नलिखित गद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए :
(क) मेरे मन में सावरकर के प्रति पूर्वाग्रह था, क्योंकि उनका संबंध 'हिन्दू महासभा' से रहा। मैंने यह नहीं सोचा कि एक रूप में अपनी अस्मिता की तलाश सांप्रदायिकता नहीं। कम-से-कम ऐसा व्यक्ति सांप्रदायिक नहीं हो सकता, जिसने देशभक्ति की इतनी बड़ी सजा भोगी हो। |
उत्तर -
मेरे मन में ........... सजा भोगी हो।
प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश “श्रीकांत वर्मा” द्वारा लिखित “अंडमान डायरी” से लिया गया है। श्रीकांत वर्मा सन् 1986 की जनवरी में यह अनुभव करते हैं कि सावरकर स्वाधीनता संग्राम के इतिहास में जिस कीर्ति के अधिकारी थे; उनसे उन्हें वंचित रखा गया।
व्याख्या - विवेच्य पंक्ति में जैसे लेखक स्वयं को कठघरे में खड़ा करता है और शायद बताना चाहता है कि आजादी के बाद शासक दल ने सावरकर की वैचारिकी को वर्जित मान लिया। उनका संबंध 'हिंदू महासभा' से होने के कारण वे सांप्रदायिक घोषित कर दिए गए।
लेखक उनकी कोठरी के सामने खड़े होकर जैसे अपराधबोध से ग्रसित हो जाता है। अंडमान के सेल्यूलर जेल में सावरकर ने 9 साल 10 महीनों की सजा काटी थी । 11 जुलाई 1911 को सावरकर अंडमान पहुँचे थे।
1921 में उन्हें पुणे के यरवदा जेल में लाया गया था। राजनीतिक गतिविधियों पर आजीवन प्रतिबंध की शर्त पर वे 1924 में रिहा हुए। सावरकर के जीवन के आखिरी दो दशक राजनीतिक एकाकीपन और अपयश (बदनामी) में बीते। सावरकर के योगदान पर आजाद भारत में गुमनामी की रोशनाई पोत दी गई। डायरी लेखक श्रीकांत वर्मा सेल्यूलर जेल में स्थापित सावरकर की मूर्ति के समक्ष श्रद्धा की मुद्रा में नतमस्तक हो जाते हैं।
विशेष -
अथवा
(ख) उनके मानसिक जगत में हीनता की किसी ग्रंथि के लिए अवकाश नहीं रहा, घर से बाहर बैठकर वे कोमल और ओज भरे छंद लिखने वाले हाथों से गोबर के कंडे पाथती थीं। घर के भीतर तन्मयता से आँगन लीपती थीं, बर्तन माँजती थीं। आँगन लीपने की कला में मेरा भी कुछ प्रवेश था, अतः हम दोनों प्रतियोगिता के लिए आँगन के भिन्न छोरों से लीपना आरंभ करते थे। |
उत्तर -
उनके मानसिक जगत ........... आरंभ करते थे।
प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश महादेवी वर्मा द्वारा लिखित संस्मरण सुभद्रा कुमारी चौहान से लिया गया है।जिसे पथ के साथी में संकलितकिया गया है। इसमें उन्होंने अपनी बचपन की सखी वीररस की लेखिका सुभद्रा कुमारी से जुड़ी अपनी समस्त स्मृतियों का वर्णन किया है।
व्याख्या - सरल और जीवन- सुभद्रा कुमारी चौहान में हीन भावना नहीं थी। कविता लिखने के साथ-साथ वह गाय के गोबर से उपले भी बनाती थीं और घर का सारा काम भी करती थीं। दोनों सखियों में अक्सर गोबर से लीपने की प्रतियोगिता होती रहती थी। अनेक अभावों और कष्ट में वह मुस्कुराती हुई पारिवारिक और राष्ट्रीय जिम्मेदारियों को निभाती रहीं।
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