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NIOS Question Paper 2024 Solution
HINDI (201)
Question 28-29
28. निम्नलिखित काव्यांश के कवि और कविता का नामोल्लेख करते हुए काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(i)
पावस देखि रहीम मन, कोइल साधै मौन।
अब दादुर बक्ता बने, हमको पूछत कौन।।
उत्तर -
भाव सौन्दर्य - यह पंक्तियाँ कवि रहीम के दोहे से ली गई है। कवि ने पावस ऋतु के माध्यम से प्राकृतिक दृश्यों की सुंदरता और शांत वातावरण का चित्रण किया है। रहीम के दोहे में कोयल को ज्ञानी और मेंढक को अज्ञानी का प्रतीक बताया गया है। जब अज्ञानी लोग बढ़-चढ़कर बातें करते हैं, तो ज्ञानी मौन हो जाते हैं, क्योंकि उनके ज्ञान का शोर में प्रभाव नहीं पड़ता। विद्वान तब तक चुप रहता है जब तक सही अवसर न मिले, फिर वह अपनी बात रखता है।
शिल्प सौन्दर्य -
अथवा
(ii)
"आज़ादी वह फ़सल है जिसे,
बोने वाला ही काट सकता है;
वह रोटी; जिसे मेहनती ही खा सकता है,
यह वह कपड़ा है, जिसे दर्जी ही
पहन सकता है,"
यह कहकर दर्जी फिर से कपड़े सीने लगा।
उत्तर -
भाव-सौंदर्य - यह पंक्तियाँ ‘आजादी’ कविता से ली गई है। इसके मूल लेखक “बालचंद्रन चुल्लिक्काड” है व इसके अनुवादक असद ज़ैदी हैं। कवि ने यह व्यक्त किया है कि आज़ादी, मेहनत और मेहनती लोगों का अधिकार है। जैसे किसान अपनी फसल काटता है, मेहनती लोग मेहनत का फल पाते हैं और दर्जी खुद कपड़े सीकर उनका उपयोग करता है। वैसे ही आज़ादी भी मेहनत और संघर्ष से मिलती है। यहाँ दर्जी की निरंतर मेहनत और समर्पण को भी दर्शाया गया है।
शिल्प-सौंदर्य -
29. सप्रसंग व्याख्या कीजिए।
(i)
थोड़ा-सा वक्त चुरा कर बतियाया है कभी
कभी शिकायत न करने वाली
गुमसुम बूढ़ी पृथ्वी से उसका दुख?
अगर नहीं, तो क्षमा करना !
मुझे तुम्हारे आदमी होने पर संदेह है !!
उत्तर -
थोड़ा-सा वक्त ........... पर संदेह है !!
प्रसंग - प्रस्तुत पंक्तियों को 'बूढ़ी पृथ्वी का दुख' कविता से लिया गया हैं, जिसकी लेखिका निर्मला पुतुल हैं। इन पंक्तियों में कवयित्री ने पृथ्वी को बूढ़ी औरत के रूप में प्रस्तुत करते हुए उसके दुख को प्रकट किया है। साथ ही मनुष्य होने का वास्तविक अर्थ भी बताया है।
व्याख्या - आजकल लोग ज्यादा सुविधाएँ पाने की दौड़ में उलझ गए हैं, जिससे उनके पास जरूरी कामों के लिए समय नहीं बचता। इसका असर उनके परिवार पर भी पड़ता है। कई घरों में बुजुर्ग, जिन्होंने अपनी संतानों को पाल-पोसकर बड़ा किया और अब उनकी संतान के पास इतना भी समय नहीं है कि वह उनकी देखभाल और सेवा कर सके, उनसे बात करके उनका दुख-सुख पूछे। ऐसे में ये बड़े-बूढ़े बहुत उदास, चुप तथा दुखी रहते हैं। इन बुजुर्गों की तरह ही हमारी पृथ्वी की स्थिति हो गयी है।
इस कविता में पृथ्वी को "बूढ़ी" कहा गया है क्योंकि पेड़-पौधे कम हो रहे हैं, नदियाँ सूख रही हैं और पानी व हवा प्रदूषित हो रहे हैं। जैसे इंसान बूढ़ा होने पर कमज़ोर और बीमार हो जाता है, वैसे ही पृथ्वी भी बिना हरियाली, शुद्ध पानी और साफ़ हवा के बंजर और रोगी हो रही है। मनुष्य अपनी सेहत का ध्यान रखता है, व्यायाम करता है और खान-पान पर ध्यान देता है। इसी तरह उसे पृथ्वी का भी ध्यान रखना चाहिए, ताकि वह हरी-भरी और प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर बनी रहे।
कवयित्री कहती है कि यदि तुमने यह सब नहीं किया, तो क्षमा करना, मुझे तुम्हारे आदमी होने पर संदेह है! ऐसा कवयित्री ने इसलिए कहा है क्योंकि मनुष्य से ही आशा की जाती है कि वह पृथ्वी का दुख समझे।
विशेष -
अथवा
(ii)
और पैरों के तले है एक पोखर,
उठ रहीं इसमें लहरियाँ,
नील तल में तो उगी है घास भूरी,
ले रही वह भी लहरियाँ।
एक चाँदी का बड़ा-सा गोल खंभा,
आँख को है चकमकाता।
उत्तर -
और पैरों के तले ........... को है चकमकाता।
प्रसंग - प्रस्तुत पंक्तियों को 'चंद्रगहना से लौटती बेर' कविता से लिया गया हैं, जो ‘फूल नहीं, रंग बोलते है’ संग्रह में सम्मिलित हैं। इसके रचयिता केदारनाथ अग्रवाल हैं।
व्याख्या - कवि को एक तालाब दिखाई दे रहा है, जिसमें छोटी-छोटी लहरें उठ रही हैं। तालाब का तल नीला है, लेकिन उसमें भूरे रंग की घास भी उगी है, जो लहरों के साथ हिल रही है। साँझ (संध्याकाल) का समय है और तालाब की सतह पर चाँद का प्रतिबिंब चमक रहा है। कवि ने चाँद को 'एक चाँदी का बड़ा गोल खंभा' कहा है। चाँद को खंभा जैसा दिखने का कारण यह है कि हिलते पानी में चाँद का प्रतिबिंब लंबा और खंभा जैसा दिखता है, जबकि शांत पानी में वह केवल एक गोल आकार का लगता है। लहरों वाले तालाब में किरणों के फिसलने से उसमें लंबाई प्रतीत होती है। इसलिए कवि को चाँद बड़ा और गोल खंभा जैसा महसूस होता है। यह कवि की सूक्ष्म दृष्टि और कल्पना का उदाहरण है।
विशेष -
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